नमस्कार
अन्ना हजारे जी।
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एवं जन लोकपाल बिल के लिए आंदोलन चलाने वाले अन्ना हजारे ने आज राजनीतिक गंदगी से दूर रहने की बात कही है। अन्ना श्री, हां मुझे याद है, अन्ना हजारे ने अपने सहयोगी अरविंद केजरीवाल के साथ जाने से उस समय भी इंकार कर दिया था, जब आपके सहयोगी सहित अन्य आंदोलनकारियों ने राजनीति में घुसकर राजनीति को स्वच्छ बनाने का संकल्प लेते हुए आम आदमी पार्टी बनाने की घोषणा की थी।
हालांकि, कुछ समय बाद ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के अगुआ अन्ना हजारे यानी आप पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के साथ खड़े हो गए। अन्ना हजारे का ममता बनर्जी के साथ खड़ा होना सबको चौंका गया। हां, मुझे भी। चौंकाता भी क्यों न ? यदि आपको राजनीति में जाना था या उसका समर्थन करना था तो अरविंद केजरीवाल समेत अन्य सहयोगियों का समर्थन क्यों नहीं किया ?
अन्ना हजारे यानी आप ने राजनीतिक गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वालों को सबसे बड़ा झटका उस समय दिया, जब आप ने ममता बैनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी टीएमसी द्वारा दिल्ली में आयोजित एक महारैली में अचानक शिरकत करने से मना कर दिया। इस रैली का आयोजन आपके नाम पर किया गया था। इस रैली में आपका शामिल होना बेहद जरूरी था। मगर, आप आए नहीं। विवाद भी हुआ। समय के साथ विवाद लोग भूल भी गए होंगे। सबकी याददाशत मेरे जैसी तो है नहीं।
उसके बाद अब अन्ना हजारे यानी आप उस समय चर्चा में आए, जब आपकी टीम सदस्य किरण बेदी ने वीके सिंह की तरह भाजपा को दिल्ली विधान सभा चुनावों से पूर्व ज्वॉइन कर लिया और भाजपा ने टिकट देने के साथ साथ उनको मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया। अन्ना हजारे यानी आप से प्रतिक्रिया मांगी गई तो आपने कहा, 'भाजपा को ज्वॉइन करने से पहले किरण बेदी ने मुझसे विचार विमर्श नहीं किया। सच तो यह है कि उन्होंने मुझे पिछले एक साल से कॉल तक भी नहीं किया।'
अब अन्ना हजारे यानी आपका नया बयान आया कि मैं राजनीतिक गंदगी से बचना चाहता हूं। तो मैं अन्ना हजारे यानी आप से पूछना चाहता हूं कि आप राजनीति को गंदा कह एक लोकतंत्र की शक्ति को गाली क्यों दे रहे हैं। यदि आप चाहें तो गंदी राजनीति करने वालों से गुरेज कर सकते हैं। आप राजनीति को गंदी कहकर लोकतंत्र की तौहीन कर रहे हैं। जिस तरह हर शहर में अच्छे बुरे लोग होते हैं, उसी तरह राजनीति में भी अच्छे बुरे लोग होते हैं।
आपको मलाल हो सकता है कि आपके हिस्से कुछ नहीं आया क्योंकि बाबा रामदेव की निकल पड़ी। वीके सिंह को भाजपा ने टिकट देकर सांसद बनाते हुए मंत्री पद तक दे दिया। किरण बेदी कुछ दिनों बाद सीएम बन सकती हैं या विधायक बन सकती हैं। आपके सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने स्वयं का अलग रास्ता चुनकर दिल्ली के पूर्व सीएम की मोहर लगवा ली और एक बार फिर से दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ा रहे हैं। अरविंद पहले की तरह आज भी मैदान में डटे हुए हैं, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि अरविंद चूक जाएगा और यह उसका अंतिम युद्ध होगा। मैं कहता हूं, जो भी हो, लेकिन अरविंद एक जननेता की तरह मैदान में टिका हुआ है। उसने स्वयं का रास्ता चुना। अरविंद ने किसी राजनीतिक पार्टी की छात्र छाया में राजनीतिक करियर नहीं बनाया। हो सकता है कि उसका रास्ता सही हो या गलत हो। जो भी हो, लेकिन अरविंद उस व्यवस्था को बदलने के लिए प्रयासरत हैं, जिसको आप राजनीतिक गंदगी कह रहे हैं।
मैं फिर दोहरा रहा हूं। गौर से सुनिए। आप नाक पर रूमाल रखकर कोसते हुए निकल रहे हैं। मगर, अरविंद गंदगी के ढेर को हटाने का प्रयासरत रहे हैं। यह प्रयास काफी हद तक सफल होता नजर आ रहा है क्योंकि भारत की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को अरविंद के सामने गैर राजनीतिक चेहरा उतारना पड़ रहा है। अरविंद की हार हो या जीत, उससे अधिक महत्वपू्र्ण बात तो यह है कि वो लड़ रहे हैं, एक बड़ी पुरानी जर्जर हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ। आप महात्मा गांधी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं तो नेहरू और सरदार पटेल का साथ देना आपका धर्म होना चाहिए। यदि महात्मा गांधी भी राजनीतिक गंदगी से बचने का प्रयास करते तो देश को लोकतंत्रिक सरकार न मिलती।
किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि आपकी मंजिल एक होनी चाहिए। भले ही, उसके लिए रास्ते हजार हों। एक चींटी भी पत्थर के इधर उधर घूम कर अपनी खड तक पहुंच जाती है। अन्ना हजारे अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। एक बार अरविंद केजरीवाल अन्ना आंदोलन में जुड़ा था। अब एक बार आप केजरीवाल आंदोलन में जुड़ जाओ। सुबह का भूला शाम को घर लौटे, उसको भूला नहीं कहते। अब उम्र हो चली है। ढलती शाम किसी अच्छे आशियाने में गुजर दो। कुछ लोग आए थे, आपका आंदोलन चुराने और चुराकर निकल दिए। अभी भी कोई है, जो लड़ रहा है। अभी भी है कोई जो थप्पड़ खा रहा है। अभी भी है कोई जो अंडे खा रहा है। अभी भी है कोई जो तुझे बुला रहा है।
हालांकि, कुछ समय बाद ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के अगुआ अन्ना हजारे यानी आप पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के साथ खड़े हो गए। अन्ना हजारे का ममता बनर्जी के साथ खड़ा होना सबको चौंका गया। हां, मुझे भी। चौंकाता भी क्यों न ? यदि आपको राजनीति में जाना था या उसका समर्थन करना था तो अरविंद केजरीवाल समेत अन्य सहयोगियों का समर्थन क्यों नहीं किया ?
अन्ना हजारे यानी आप ने राजनीतिक गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वालों को सबसे बड़ा झटका उस समय दिया, जब आप ने ममता बैनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी टीएमसी द्वारा दिल्ली में आयोजित एक महारैली में अचानक शिरकत करने से मना कर दिया। इस रैली का आयोजन आपके नाम पर किया गया था। इस रैली में आपका शामिल होना बेहद जरूरी था। मगर, आप आए नहीं। विवाद भी हुआ। समय के साथ विवाद लोग भूल भी गए होंगे। सबकी याददाशत मेरे जैसी तो है नहीं।
उसके बाद अब अन्ना हजारे यानी आप उस समय चर्चा में आए, जब आपकी टीम सदस्य किरण बेदी ने वीके सिंह की तरह भाजपा को दिल्ली विधान सभा चुनावों से पूर्व ज्वॉइन कर लिया और भाजपा ने टिकट देने के साथ साथ उनको मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया। अन्ना हजारे यानी आप से प्रतिक्रिया मांगी गई तो आपने कहा, 'भाजपा को ज्वॉइन करने से पहले किरण बेदी ने मुझसे विचार विमर्श नहीं किया। सच तो यह है कि उन्होंने मुझे पिछले एक साल से कॉल तक भी नहीं किया।'
अब अन्ना हजारे यानी आपका नया बयान आया कि मैं राजनीतिक गंदगी से बचना चाहता हूं। तो मैं अन्ना हजारे यानी आप से पूछना चाहता हूं कि आप राजनीति को गंदा कह एक लोकतंत्र की शक्ति को गाली क्यों दे रहे हैं। यदि आप चाहें तो गंदी राजनीति करने वालों से गुरेज कर सकते हैं। आप राजनीति को गंदी कहकर लोकतंत्र की तौहीन कर रहे हैं। जिस तरह हर शहर में अच्छे बुरे लोग होते हैं, उसी तरह राजनीति में भी अच्छे बुरे लोग होते हैं।
आपको मलाल हो सकता है कि आपके हिस्से कुछ नहीं आया क्योंकि बाबा रामदेव की निकल पड़ी। वीके सिंह को भाजपा ने टिकट देकर सांसद बनाते हुए मंत्री पद तक दे दिया। किरण बेदी कुछ दिनों बाद सीएम बन सकती हैं या विधायक बन सकती हैं। आपके सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने स्वयं का अलग रास्ता चुनकर दिल्ली के पूर्व सीएम की मोहर लगवा ली और एक बार फिर से दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ा रहे हैं। अरविंद पहले की तरह आज भी मैदान में डटे हुए हैं, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि अरविंद चूक जाएगा और यह उसका अंतिम युद्ध होगा। मैं कहता हूं, जो भी हो, लेकिन अरविंद एक जननेता की तरह मैदान में टिका हुआ है। उसने स्वयं का रास्ता चुना। अरविंद ने किसी राजनीतिक पार्टी की छात्र छाया में राजनीतिक करियर नहीं बनाया। हो सकता है कि उसका रास्ता सही हो या गलत हो। जो भी हो, लेकिन अरविंद उस व्यवस्था को बदलने के लिए प्रयासरत हैं, जिसको आप राजनीतिक गंदगी कह रहे हैं।
मैं फिर दोहरा रहा हूं। गौर से सुनिए। आप नाक पर रूमाल रखकर कोसते हुए निकल रहे हैं। मगर, अरविंद गंदगी के ढेर को हटाने का प्रयासरत रहे हैं। यह प्रयास काफी हद तक सफल होता नजर आ रहा है क्योंकि भारत की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को अरविंद के सामने गैर राजनीतिक चेहरा उतारना पड़ रहा है। अरविंद की हार हो या जीत, उससे अधिक महत्वपू्र्ण बात तो यह है कि वो लड़ रहे हैं, एक बड़ी पुरानी जर्जर हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ। आप महात्मा गांधी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं तो नेहरू और सरदार पटेल का साथ देना आपका धर्म होना चाहिए। यदि महात्मा गांधी भी राजनीतिक गंदगी से बचने का प्रयास करते तो देश को लोकतंत्रिक सरकार न मिलती।
किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि आपकी मंजिल एक होनी चाहिए। भले ही, उसके लिए रास्ते हजार हों। एक चींटी भी पत्थर के इधर उधर घूम कर अपनी खड तक पहुंच जाती है। अन्ना हजारे अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। एक बार अरविंद केजरीवाल अन्ना आंदोलन में जुड़ा था। अब एक बार आप केजरीवाल आंदोलन में जुड़ जाओ। सुबह का भूला शाम को घर लौटे, उसको भूला नहीं कहते। अब उम्र हो चली है। ढलती शाम किसी अच्छे आशियाने में गुजर दो। कुछ लोग आए थे, आपका आंदोलन चुराने और चुराकर निकल दिए। अभी भी कोई है, जो लड़ रहा है। अभी भी है कोई जो थप्पड़ खा रहा है। अभी भी है कोई जो अंडे खा रहा है। अभी भी है कोई जो तुझे बुला रहा है।
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