महाभारत में युधिष्ठर की भूमिका निभाने वाले गजेंद्र चौहान को लेकर कुछ लोग इस तरह तिलमिला रहे हैं, जैसे गली की रामलीला में अभिनय करने वाले को एफटीआईआई का चेयरमैन बना दिया गया हो। आलोचना करने वाले भूल गए कि गजेंद्र चौहान के पास दो दशक से लंबा अनुभव है, अभिनय की दुनिया में, और 160 से अधिक फिल्मों एवं 600 के करीब धारावाहिकों में अभिनय कर चुके हैं। फिल्म ए ग्रेड की और या बी ग्रेड की, बैनर छोटा हो या बड़ा, इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है, जब आपको अभिनय नहीं आता।
बॉलीवुड में बहुत सारे युवा अभिनेता हैं, जो बड़े बजटों की फिल्मों में काम करते हैं, मगर अभिनय के नाम पर कुछ भी नहीं आता, लेकिन सालों से चल रहे हैं। क्या उनको एफटीआईआई का चेयरमैन बना देना चाहिए। बॉलीवुड में हजारों सितारे हैं, मगर, हर सितारा अपने आपको दूसरे से बड़ा समझता है। हो सकता, जो सितारा आपको पसंद हो, दूसरे न भी हो। क्योंकि सबकी पसंद एक सी नहीं होती।
गजेंद्र चौहान को बहुत सारे मीडिया वाले जजमेंटल हो चुके हैं, क्या गजेंद्र चौहान को काम करने का अवसर दिया, क्या उसको अपनी क्षमता साबित करने का अवसर दिया। हो सकता है कि इसमें सरकार ने अपनी मनमानी की हो, हो सकता है कि गजेंद्र चौहान ने अपनी निकटता का लाभ लिया हो, मगर, इस पूरे मामले में जिम्मेदारी सरकार की है, और सरकार को पांच साल दे दिए हैं, वो किस को मानव संसाधन मंत्री बनाए, वो किस को विदेशी मंत्री बनाकर भारत की यात्रा करने का अवसर दे, वो सरकार की जिम्मेदारी है।
केवल किसी की नपसंद या पसंद पर किसी व्यक्ति विशेष को बुरे तरीके से नकार देना गलत है। बॉलीवुड के बड़े सितारों को दिक्कत हो सकती है, क्योंकि गजेंद्र चौहान को यकीनन वो मिला है, जो दूसरों को मिलना चाहिए था, लेकिन सवाल यह है कि जो सितारे विरोध कर रहे हैं, क्या उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन जरूरतों से बाहर निकलकर देश हित में कुछ किया , क्या कभी उन्होंने ऐसी फिल्मों का निर्माण जो देश को नई दिशा में ले जाएं, एफटीआईआई तो केवल कुछ प्रतिभाओं को निखारेगा, जो आगे चलकर करण जौहर, यशराज बैनर के लिए काम करेंगी, और उन को वैसा ही कार्य करना होगा, जैसा बैनर के लोग चाहेंगे।
एक पत्रकार जब कॉलेज से निकलता है, तो उसको लगता है कि उसकी कलम देश का नसीब बदल देगी, मगर, बाद में अनुभव होता है कि उसकी कलम की निब तो मालिक ने निकाल ली है, अब तो केवल पेंसिल से लिखना है, जिसमें से मालिक अपने जरूरत अनुसार शब्द रख लेगा, बाकी के रब्बर से मिटा देगा।
रविश कुमार मेरे पसंदीदा कलमकारों में से है। टीवी पर तो रविश कुमार हिट हुआ, लेकिन उससे पहले ब्लॉग पर बेबाक राय के लिए हिट हुआ। मुझे खुशी हुई, जब एनडीटीवी का चेहरा केवल रविश कुमार बन गया, ऐसा नहीं कि एनडीटीवी के अंदर इसको भी लेकर कभी बहस न चली होगा, इस पर भी उंगलियां न उठी हों, होता है जब कोई भीड़ से निकलकर आता है, और रविश कुमार वो चेहरा है जो भीड़ से निकलकर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ।
वरना तो भारत के ज्यादातर लोग आजतक, स्टार न्यूज एवं जी न्यूज को ही ए ग्रेड के न्यूज चैनल मानते थे, मगर रविश कुमार, और उनके संस्थान की सख्त मेहनत एनडीटीवी को उस कतार में लाकर खड़ा कर दिया, जहां यह चैनल थे। इन परिस्थितियों में यदि रविश कुमार को किसी मीडिया रेगुलेटरी का उच्च पद दे दिया जाए तो मुझे इस आधार पर आलोचना करने का कोई हक नहीं होना चाहिए कि रविश कुमार एनडीटीवी में कार्य करते हैं, उनके पास आज तक, जी न्यू एवं स्टार न्यूज का अनुभव नहीं।
अंत, गजेंद्र चौहान को कुछ वक्त दो। यदि वे अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से चूकते हैं तो खुलकर विरोध करो। सबूतों के साथ करो। अभी कुछ समय ठहरो। ठहरना पड़ेगा, क्योंकि हमने एक ऐसी सरकार चुनी है, जो किसी की नहीं सुनती, केवल मन की बात कहती है, और मन की बात केवल एक व्यक्ति करता है, आपको सुननी हो सुनो, नहीं सुननी हो न सुनो। हां, पांच साल बाद बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं, यदि बातों से उब जाएं, और सरकार अपने प्रदर्शन से चूक जाए।
बॉलीवुड में बहुत सारे युवा अभिनेता हैं, जो बड़े बजटों की फिल्मों में काम करते हैं, मगर अभिनय के नाम पर कुछ भी नहीं आता, लेकिन सालों से चल रहे हैं। क्या उनको एफटीआईआई का चेयरमैन बना देना चाहिए। बॉलीवुड में हजारों सितारे हैं, मगर, हर सितारा अपने आपको दूसरे से बड़ा समझता है। हो सकता, जो सितारा आपको पसंद हो, दूसरे न भी हो। क्योंकि सबकी पसंद एक सी नहीं होती।
गजेंद्र चौहान को बहुत सारे मीडिया वाले जजमेंटल हो चुके हैं, क्या गजेंद्र चौहान को काम करने का अवसर दिया, क्या उसको अपनी क्षमता साबित करने का अवसर दिया। हो सकता है कि इसमें सरकार ने अपनी मनमानी की हो, हो सकता है कि गजेंद्र चौहान ने अपनी निकटता का लाभ लिया हो, मगर, इस पूरे मामले में जिम्मेदारी सरकार की है, और सरकार को पांच साल दे दिए हैं, वो किस को मानव संसाधन मंत्री बनाए, वो किस को विदेशी मंत्री बनाकर भारत की यात्रा करने का अवसर दे, वो सरकार की जिम्मेदारी है।
केवल किसी की नपसंद या पसंद पर किसी व्यक्ति विशेष को बुरे तरीके से नकार देना गलत है। बॉलीवुड के बड़े सितारों को दिक्कत हो सकती है, क्योंकि गजेंद्र चौहान को यकीनन वो मिला है, जो दूसरों को मिलना चाहिए था, लेकिन सवाल यह है कि जो सितारे विरोध कर रहे हैं, क्या उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन जरूरतों से बाहर निकलकर देश हित में कुछ किया , क्या कभी उन्होंने ऐसी फिल्मों का निर्माण जो देश को नई दिशा में ले जाएं, एफटीआईआई तो केवल कुछ प्रतिभाओं को निखारेगा, जो आगे चलकर करण जौहर, यशराज बैनर के लिए काम करेंगी, और उन को वैसा ही कार्य करना होगा, जैसा बैनर के लोग चाहेंगे।
एक पत्रकार जब कॉलेज से निकलता है, तो उसको लगता है कि उसकी कलम देश का नसीब बदल देगी, मगर, बाद में अनुभव होता है कि उसकी कलम की निब तो मालिक ने निकाल ली है, अब तो केवल पेंसिल से लिखना है, जिसमें से मालिक अपने जरूरत अनुसार शब्द रख लेगा, बाकी के रब्बर से मिटा देगा।
रविश कुमार मेरे पसंदीदा कलमकारों में से है। टीवी पर तो रविश कुमार हिट हुआ, लेकिन उससे पहले ब्लॉग पर बेबाक राय के लिए हिट हुआ। मुझे खुशी हुई, जब एनडीटीवी का चेहरा केवल रविश कुमार बन गया, ऐसा नहीं कि एनडीटीवी के अंदर इसको भी लेकर कभी बहस न चली होगा, इस पर भी उंगलियां न उठी हों, होता है जब कोई भीड़ से निकलकर आता है, और रविश कुमार वो चेहरा है जो भीड़ से निकलकर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ।
वरना तो भारत के ज्यादातर लोग आजतक, स्टार न्यूज एवं जी न्यूज को ही ए ग्रेड के न्यूज चैनल मानते थे, मगर रविश कुमार, और उनके संस्थान की सख्त मेहनत एनडीटीवी को उस कतार में लाकर खड़ा कर दिया, जहां यह चैनल थे। इन परिस्थितियों में यदि रविश कुमार को किसी मीडिया रेगुलेटरी का उच्च पद दे दिया जाए तो मुझे इस आधार पर आलोचना करने का कोई हक नहीं होना चाहिए कि रविश कुमार एनडीटीवी में कार्य करते हैं, उनके पास आज तक, जी न्यू एवं स्टार न्यूज का अनुभव नहीं।
अंत, गजेंद्र चौहान को कुछ वक्त दो। यदि वे अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से चूकते हैं तो खुलकर विरोध करो। सबूतों के साथ करो। अभी कुछ समय ठहरो। ठहरना पड़ेगा, क्योंकि हमने एक ऐसी सरकार चुनी है, जो किसी की नहीं सुनती, केवल मन की बात कहती है, और मन की बात केवल एक व्यक्ति करता है, आपको सुननी हो सुनो, नहीं सुननी हो न सुनो। हां, पांच साल बाद बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं, यदि बातों से उब जाएं, और सरकार अपने प्रदर्शन से चूक जाए।
bahut badhiya likha hai ! ye baat wampanthi vichardhara se judi hui hai ! jo ptrkaar or film wale wampanthi vichrdhara se jude hue hain kewal wo hi virodh kar rahe hain !maamla rajnitik hai andar se !wampanthi vichardhara ke patrkaron , filmakaron or netaon ne desh ko todne kaa kam hi kiya hai ! jahaan ye tod nahi paye hain wahaan inhone rukavten khadi awshya ki hain !
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