दरअसल, बाहुबली क्यों नहीं देखनी चाहिए ? बड़े अजीब से सवाल के साथ फिल्म के बारे में बात करने जा रहा हूं, सही कहा ना। मेरे हिसाब से बात करने का यह सही तरीका है। विशेषकर उस स्थिति में जब फिल्म की समीक्षा करने की बजाय एक तर्कसंगत बात करने का मन हो।
मैं अपने सवाल पर लौटता हूं, मतलब बाहुबली क्यों नहीं देखनी चाहिए? क्योंकि इसमें बॉलीवुड का कोई सुप्रसिद्ध सितारा नहीं है। क्योंकि इसमें दो अर्थी संवाद नहीं हैं । क्योंकि इसमें नंगापन नहीं है । क्योंकि इसमें ज्यादा तड़का फड़का नहीं है। क्योंकि यह सीधी सरल कहानी है। क्योंकि यह दक्षिण भारत से आई हिन्दी में अनुवादित फिल्म है, मूलत हिन्दी नहीं है।
यदि फिर भी देखने का मन है, तो देखने के लिए बहुत कुछ है। फिल्म की शुरूआत एक घायल रानी से होती है, जिसके हाथ में एक बच्चा है, और उसको लेकर नदी में बह जाती है। और अपने प्राण त्याग देती है। और वो बच्चा छोटे से कबीले के लोगों को मिल जाता है।
यहां से बाहुबली की कहानी शुरू होती है। असल में, ये बच्चा बाहुबली नहीं है, ये तो शिवाय है। मगर, लोग इसको बाहुबली कहकर पुकारना शुरू कर देते हैं, जब ये उन लोगों से मिलता है, जो बहुत ऊंचे पर्वतों पर रहते हैं। एक छोटे से कबीले का नवयुवक लोगों के लिए बाहुबली कैसे बनता है, यह जानने के लिए तो फिल्म देखनी होगी।
हां, मगर, इस फिल्म का अंत आप को फिल्म के दूसरे भाग का बेसब्री से इंतजार करने के लिए उत्सुक करेगा। फिल्म के अंत में आप चौंक सकते हैं, जब महीषमति साम्राज्य का सबसे वफादार व्यक्ति कटप्पा अपने आपको गद्दार घोषित करेगा। मन में सवाल उठेंगे, जो उत्सुक करेंगे आगे क्या हो सकता है ? क्या कारण रहे होंगे कि कटप्पा जैसा व्यक्ति छल करने के लिए तैयार हो गया ?
हिन्दी सिनेमा के लिए जारी हुए पोस्टरों पर भले राणा दग्गुबाती भल्लाला देवा छाया हो, मगर, फिल्म का असली नायक प्रभास है। राणा ने तो विलेन का रोल अदा किया है। फिल्म के शुरूआती कुछ दृश्यों के दौरान आपको ऋतिक रोशन की कमी महसूस हो सकती है, मुझे तो हुई, मगर, प्रभास जल्द ही आपको अपने साथ जोड़ लेता है। धीरे धीरे फिल्म आपको बांधने लगती है। कुछ दृश्य आपकी आंखों को ही नहीं मन को भी छू जाएंगे।
सबसे पहला दृश्य रानी का पीछे कर रहे सैनिकों की हत्या वाला, और उसके बाद के दृश्य जैसे प्रभास का शिवलिंग को उठाना, पर्वतों पर चढ़ना, अवंतिका (तमन्ना भाटिया) को एक सुंदर कन्या के रूप में सजाना, बर्फ के पहाड़ पर एक चट्टान को तोड़कर कश्ती बनाना, कटप्पा का रानी देवसेना (अनुष्का शेट्टी) को रिहाय करते वक्त पागल कहना, कटप्पा का रानी शिवगामी के कहने पर महल के ऊपर से कूदकर दरबार में आना, शिवाय का महल के भीतर प्रवेश करना, भल्लाला देवा के बेटे का सिर कलम करना। ऐसे तमाम दृश्य हैं, जो आपकी आंखों में से होते हुए दिल में उतर जाएंगे।
अगर अभिनय की बात करूं तो इस फिल्म में राणा दग्गुबाती के लिए करने को अधिक कुछ नहीं था, मगर, जो भी उसके हिस्से आया, वो ठीक ठीक कहा जा सकता है। प्रभास ने अपने किरदार को बाखूबी निभाया है। रमैया कृशनन, जो शिवगामी के किरदार में हैं, उसका रौबदार चेहरा, चाल डाल, हाव भाव सब कुछ दिल को मोह लेने वाला है। महषिमति के सबसे वफादार कटप्पा का अभिनय सबसे प्रभावी कहा जा सकता है। रौबदार चेहरा, फुर्तीला शरीर एवं टाइमिंग सब कुछ गजब का है।
सबसे दिलचस्प मजेदार सीनों में से एक काले रंग के कपड़े पहने हुए समूह के साथ महषिमति की सेना का युद्ध। इसको कुछ लोग विदेशी फिल्म 300 से प्रेरित कह सकते हैं, मगर, इस सीन को बनाने के लिए जो कल्पना की गई है, गजब की है। काले कलूटे लोगों की भाषा भले आपके पल्ले न पड़े, लेकिन हर संवाद के बाद जो निक निक टिक टिक की आवाज आती है, मजेदार है।
निर्देशक एसएस राजामौली ने ऐसे कई दृश्य रचे हैं जो लार्जर देन लाइफ फिल्म पसंद करने वालों को ताली बजाने पर मजबूर करेंगे। मक्खी, मगधीरा जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके निर्देशक एसएस राजामौली ने सच में बहुत बड़ा जोखिम मोल लिया था, जो शत प्रतिशत सफल होता ही नहीं, बल्कि इतिहास रचता हुआ नजर आ रहा है।
मेरी राय के अनुसार, यदि यह फिल्म हिन्दी में डब न होती, और उस स्थिति में इसके रीमेक का जिम्मा अगर किसी को सौंपा जाना चाहिए था, तो संजय लीला भंसाली को, और प्रभास के रोल में ऋतिक रोशन, राणा दग्गुबाती के रोल के लिए अभिषेक बच्चन एवं तमन्ना भाटिया के रोल के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन को चुनना चाहिए था। शिवगामी के रोल के लिए माधुरी दीक्षित को लिया जा सकता था। मगर, अच्छी बात तो यह है कि राजामौली ने इस बात की नौबत नहीं आने दी, उन्होंने मायानगरी के लोगों को बता दिया कि सौ करोड़ कमाने के लिए केवल बड़े सितारों की भीड़ का होना जरूरी नहीं है।
अंत में, इसके आगे हिस्से का इंतजार रहेगा, साथ में एक चिंता भी रहेगी कि अमीष के उपन्यास मेलूहा पर बनने वाली फिल्म अब इससे कितने कदम आगे होगी, क्योंकि मेलूहा उपन्यास के अनुसार एक छोटे से कबीले का नेतृत्व करने वाला शिवा मेलूहा वासियों का नीलकंठ बन जाता है, जिस तरह इस फिल्म में छोटे कबीले का शिवा बाहुबली।
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