Friday, February 20, 2015

21वीं सदी, शुभ अशुभ और मोदी का सूट

रेड सिग्‍नल देखकर रूकें या न रूकें, लेकिन बिल्‍ली के रास्‍ता काटने पर आगे बढ़ने से पहले जरूर सोचते हैं। हाथ में खुजली हो तो दाएं या बाएं हाथ का ख्‍याल आता है, क्‍योंकि एक खर्च का प्रतीक है, तो दूसरा धन आने का। जब आंख फड़फड़ाने लगती है तो मन बेचैन हो जाता है, कुछ अनहोनी का अंदेशा होने लगता है।

सच में, हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जिसको विज्ञान की सदी कहा जाता है या सिर्फ बाहरी रूप से विज्ञान को ओढ़ रहे हैं। जिस तरह हमारे नेता सादगी, ईमानदारी का लिबास ओढ़ते हैं। हालांकि, युवा पीढ़ी उपरोक्‍त बातों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती है, मगर, मन में संदेह बना रहता है। संदेह हम को सामाजिक घटनाओं एवं संयोगवश हमारे साथ होने वाले घटनाक्रमों से मिलता है। कभी कभी संदेह पक्‍का हो जाता है तो कभी कभी एक भ्रम बनकर रह जाता है।

आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादित लिबास 4.31 करोड़ में नीलाम हो गया। इससे एकत्र होने वाली पूंजी को गंगा की सफाई में लगाया जाएगा, कथन अनुसार, बाकी सब तो भविष्‍य की कोख में है। हम सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने इस सूट को गणतंत्र दिवस के मुख्‍यातिथि बराक ओबामा की मेजबानी के दौरान पहना। उस दिन से विवाद और नरेंद्र मोदी साथ चल रहे हैं। 26 जनवरी के दिन नरेंद्र मोदी ने भूलवश राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ सलामी दे डाली। हालांकि, इस पर किसी की नजर न जाती, यदि मोदी के दीवाने उप राष्‍ट्रपति हामिद अंसारी को नीचा दिखाने के लिए ट्विटर पर हैशटैग न बनाते। उपराष्‍ट्रपति के बचाव में आए विभाग ने बताया कि इस दिन केवल और केवल राष्‍ट्रपति सलामी लेते हैं। इसके साथ ही, विरोधियों की तोपें नरेंद्र मोदी की तरफ तन गई।

इस घटनाक्रम में दूसरा वार मोदी सरकार पर उस समय हुआ, जब जाते जाते अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा भारत को धर्म से हटकर विकास की राह पर चलने की नसीहत दे गए। बात यहां ही खत्‍म नहीं हुई, इसके साथ ही नरेंद्र मोदी का महंगा परिधान चर्चा का केंद्र बन गया, हालांकि, इसका भाव आज तक सामने नहीं आया, जबकि उपहार देने वाला मीडिया के सामने आया और उपहार देने की बात कहकर छुप गया।

इसके बाद जब दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में बीजेपी बुरी तरह हारी तो नरेंद्र मोदी की लहर के दम तोड़ने की ख़बरें बाजार में आई और इसमें भी महंगे सूट का जिक्र भी था। चुनाव नतीजे आने के कुछ दिनों बाद नरेंद्र मोदी ने अपना महंगा सूट नीलामी के लिए सूरत रवाना कर दिया। बोली कुछ हजार से शुरू हुई, लेकिन देखते ही देखते लाखों में पहुंच गई। और अंतिम दिन अर्थात 20 फरवरी 2015 को सूट 4.31 करोड़ रूपये में नीलाम हो गया।

बीजेपी वालों से पूछो तो यह नरेंद्र मोदी का दानवीर स्‍वभाव है। यदि कांग्रेस समेत अन्‍य दलों से पूछो तो कहते हैं कि नरेंद्र मोदी अपनी गिरती अलोकप्रियता को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी इस सूट से पीछा छुड़वाना चाहते थे, क्‍योंकि जब से सूट आया है, तब से अशुभ ही अशुभ हो रहा है। हो सकता है कि उनको भी इस अशुभ का अहसास हो गया हो।

अजीब संयोग है कि आज जहां सूरत में सूट महंगे दाम पर बिक रहा था, वहीं, पटना में मांझी के समर्थन में मत देने आए बीजेपी विधायकों को निराशा का सामना करना पड़ा, क्‍योंकि जीतन राम मांझी ने टेस्‍ट देने से पहले ही अपनी हार स्‍वीकार कर ली थी, और बीजेपी को भनक तक नहीं लगने दी। उस सूट के सामने आने के बाद यह बीजेपी की दूसरी बड़ी हार कह सकते हैं।

आप सोच रहे हैं कि मेरे दिमाग में शुभ और अशुभ का ख्‍याल क्‍यों आ रहा है ? मेरे पास आपकी जिज्ञासा का भी समाधान है। पिछले वर्ष जुलाई में दिल्ली के सिविल लाइन्स क्षेत्र में 33 श्यामनाथ मार्ग पर स्थित बंगले को जल्द ही सरकारी गेस्ट हाउस में तब्दील करने की ख़बर आई थी, क्‍योंकि इस बंगले में कोई अधिकारी या राजनेता रहने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस बारे में चर्चा है कि यह अशुभ बंगला है क्‍योंकि पूर्व मुख्‍यमंत्री मदन लाल खुराना को इस्‍तीफा देना पड़ा था, जब उनका नाम हवाला में आया और उनके उत्‍तराधिकारी साहिब सिंह वर्मा को भी अपने पद से हाथ धोना पड़ा था।

वहीं, दूसरी ओर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी मुख्‍यमंत्री निवास में जाने से कतरा रहे हैं। उनको डर लग रहा है कि कहीं उनका हश्र भी कुछेक पूर्व मुख्‍यमंत्रियों सा न हो जाए, जो इस निवास स्‍थान में रहकर गए हैं। फिलहाल रावत सीएम सरकारी आवास से सौ मीटर की दूरी पर स्थित बीजापुर राज्य अतिथि गृह में रह रहे हैं। इतना ही नहीं, झारखंड के नए मुख्‍यमंत्री रघुबर दास भी कांके रोड पर स्थित आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास में स्थानांतरित नहीं होना चाहते, हालांकि, इसके आधिकारक कारण तो सामने नहीं आए, लेकिन चर्चा जरूर है कि पिछले चौदह सालों में इस घर में जितने भी मुख्‍यमंत्री रहने आए हैं, और उनमें से किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।

ऐसे में मेरा संदेह पक्‍का होने लगता है कि आखिर इतनी जल्‍दी नरेंद्र मोदी ने अपने चर्चित परिधान को नीलाम करने के लिए क्‍यों भेज दिया। हालांकि, वो चाहते तो इसको लंबे समय तक रख सकते थे, क्‍योंकि परिधान पर उनका नाम लिखा हुआ था और भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ था। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह थी कि नरेंद्र मोदी ने यह सूट पहनकर महाशक्‍ति कहे जाने वाले अमेरिका के राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के साथ वक्‍त बिताया। बराक ओबामा, उस व्‍हाइट हाउस से आते हैं, जिसको पृष्‍ठभूमि में रखकर कभी नरेंद्र मोदी ने अपने फोटो उतरवाया करते थे।

वैसे आम घरों में ऐसा होता है, जब किसी चीज के आने से समस्‍याएं बढ़ने लगें तो उस चीज से जल्‍द से जल्‍द निजात पा ली जाती है। हालांकि, घटनाएं संयोगवश हो सकती हैं, मगर, संदेह कभी कभी पक्‍का तो कभी कभी केवल भ्रम तक सीमित रह जाता है। यदि संदेह पक्‍का हो जाए तो अशुभ चीज घर से बाहर जाती है, और यदि संदेह केवल भ्रम बना रहे तो चीज पर विचार चलता रहता है, अंतरमन में कहीं न कहीं।

कुछ भी हो, नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया है कि उनके नाम में दम है, तभी तो कुछ हजार का सूट करोड़ों रुपये का हो गया। यह भी अपने आप में एक शक्‍ति प्रदर्शन है, हालांकि, हम इसको चैरिटी के रूप में देखना चाहिए। वैसे, इस सूट की नीलामी पर तंज कसने वाले कह रहे हैं, ''एक सूट के चक्‍कर में दिल्‍ली साफ हो गई, तो गंगा क्‍या चीज है।''

मगर, मेरे संदेह का जवाब भविष्‍य की कोख में छुपा है। यदि इस सूट को खरीदने वाले ने इसको गले से लगाए रखा तो मेरा संदेह भ्रम स्‍थिति में पड़ा रहेगा, सरकारी कार्यों में पड़ी आम आदमी की फाइलों की तरह, यदि उसने भी नरेंद्र मोदी की तरह सूट से जल्‍द निजात पाने की ठान ली तो मेरा संदेह पक्‍का हो जाएगा।

अंत में
देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्‍वयं को नसीब वाला कहते हैं, जो मुझे शुभ अशुभ के बारे में भी सोचने पर मजबूर करता है, क्‍योंकि जो नसीब में विश्‍वास करता है, वो शुभ अशुभ में भी विश्‍वास करता होगा। 

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