Tuesday, July 28, 2015

मातम में आई महिलाओं जैसा सोशल मीडिया

मेरी मां का देहांत फरवरी 2006 को हुआ। उनकी मृत्‍यु का समाचार जैसे रिश्‍तेदारों व परिचितों को मिला। परंपरा के अनुसार महिलाएं घर से चाली पचास कदमों की दूरी से रोना शुरू देती हैं, ऐसे मौकों पर। मेरी मम्‍मी के वक्‍त भी ऐसा हुआ। छाती पिट पिट कर ऐसे रोएं मानो, आज भगवान को जमीं पर लाकर छोड़ेंगी। और मेरी मां के शव में पुन:प्राण फूंकेंगी। दस बीस मिनटों के रोने धोने के बाद घुसर फुसर शुरू हो गई। एक दूसरे की बातें, फ्लां के क्‍या हुआ, तुमने वो सूट कब कहां से खरीदा, तरह तरह की बातें। मेरे कान खड़े के खड़े रह गए। ये तो मेरे ब्‍लैकटेक के टेलीविजन से भी ज्‍यादा तेज हैं, हवा से एनटीना हिला नहीं कि डीडी से सीधा डीडी मेट्रो हो जाता था। कुछ ऐसा ही माहौल सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है।

हालिया बात करूं तो भारत के 11वें राष्‍ट्रपति डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम के देहांत की ख़बर आई, तो सोशल मीडिया विनम्र श्रद्धांजलि, भावभीनि श्रद्धांजलि, झटका लगा, घाटा कभी पूरा न होगा, न जाने क्‍या क्‍या किस किस तरह की भावनाएं से भर गया। मगर, 28 जुलाई 2015 की बाद दोपहर होते हुए सोशल मीडिया चुटकले बनाने लगा, व्‍यंग करने लगा, सीधे प्रत्‍यक्ष वार करने लगा।

एक संदेश आया, भारत सरकार यदि डॉ. अब्‍दुल कलाम को सच्‍ची श्रद्धांजलि देना चाहती है तो 21 तोपों से नहीं, 21 मिसाइलों से दे, और इसका मुंह पाकिस्‍तान की तरफ रखें। यह हास्‍यजनक बात करने वाले कोई और नहीं बल्‍कि वे ही लोग हैं, जो पेशावर के एक स्‍कूल में हुए आतंकवादी हमले पर डिजिटल मोमबत्‍तियां जला रहे थे।

डॉ. अब्‍दुल कलाम को जब पूरा देश सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियां अर्पित कर रहा था तो कुछ लोग मुस्‍लिम समाज पर निशाना साधने में लगे हुए थे। देखो, एक सच्‍चे मुस्‍लिम के लिए पूरा भारत रो रहा है। हालांकि, डॉ. अब्‍दुल कलाम नाम एवं जन्‍म से मुस्‍लिम थे, बल्‍कि कर्म से तो सच्‍चे, नेक दिल इंसान एवं भारतीय नागरिक ही रहे हैं।

जब 27 जुलाई 2015 को देर रात ख़बर मिली कि डॉ. अब्‍दुल कलाम नहीं रहे, तो मुझे बिलकुल झटका नहीं लगा,मुझे कोई हैरानी भी नहीं हुई। मुझे उनकी उम्र का अंदाजा था। और दूसरी बात भारत के कितने लोग हैं, जो डॉ. अब्‍दुल कलाम के साथ हाथ मिलाकर सोते थे। डॉ. अब्‍दुल कलाम तो विचार थे, एक सोच थे, एक कर्म थे, जो न कभी मरते हैं, न कभी मिटते हैं। डॉ. अब्‍दुल कलाम सा देहांत तो नसीब से नसीब होता है। एक कर्मयोगी कर्म करते हुए जिन्‍दगी को अलविदा कहे, इससे अच्‍छा और क्‍या हो सकता है।

हिंदू मुस्‍लिम किसी दूसरे देश में होना लेना दोस्‍तो, अगर भारत में हैं तो डॉ. अब्‍दुल कलाम जैसे नागरिक हो जाए, यह भारत के लोग हैं, धर्म भी पूजते हैं, और कर्म भी।

चलते चलते

27/07/2015 को फेसबुक अपडेट
 
मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम मिसाल बन कर विदा हुए - ऐसी आत्माएं मरती कहाँ हैं - अमर हो जाती हैं - उनके विचार हमारे बीच रहेंगे जो उनके होने का अहसास दिलाएंगे ।।।

भगत सिंह का तो पूरा नहीं हुआ लेकिन 2020 बदलाव आपका सपना पूरा हो जाए तो अच्छा होगा और यह ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी आपके लिए। आप तो मिट्टी के असली हीरे थे।

Wednesday, July 15, 2015

दरअसल, बाहुबली क्‍यों नहीं देखनी चाहिए ?

दरअसल, बाहुबली क्‍यों नहीं देखनी चाहिए ? बड़े अजीब से सवाल के साथ फिल्‍म के बारे में बात करने जा रहा हूं, सही कहा ना। मेरे हिसाब से बात करने का यह सही तरीका है। विशेषकर उस स्‍थिति में जब फिल्‍म की समीक्षा करने की बजाय एक तर्कसंगत बात करने का मन हो।

मैं अपने सवाल पर लौटता हूं, मतलब बाहुबली क्‍यों नहीं देखनी चाहिए? क्‍योंकि इसमें बॉलीवुड का कोई सुप्रसिद्ध सितारा नहीं है। क्‍योंकि इसमें दो अर्थी संवाद नहीं हैं । क्‍योंकि इसमें नंगापन नहीं है । क्‍योंकि इसमें ज्‍यादा तड़का फड़का नहीं है। क्‍योंकि यह सीधी सरल कहानी है। क्‍योंकि यह दक्षिण भारत से आई हिन्‍दी में अनुवादित फिल्‍म है, मूलत हिन्‍दी नहीं है।

यदि फिर भी देखने का मन है, तो देखने के लिए बहुत कुछ है। फिल्‍म की शुरूआत एक घायल रानी से होती है, जिसके हाथ में एक बच्‍चा है, और उसको लेकर नदी में बह जाती है। और अपने प्राण त्‍याग देती है। और वो बच्‍चा छोटे से कबीले के लोगों को मिल जाता है।

यहां से बाहुबली की कहानी शुरू होती है। असल में, ये बच्‍चा बाहुबली नहीं है, ये तो शिवाय है। मगर, लोग इसको बाहुबली कहकर पुकारना शुरू कर देते हैं, जब ये उन लोगों से मिलता है, जो बहुत ऊंचे पर्वतों पर रहते हैं। एक छोटे से कबीले का नवयुवक लोगों के लिए बाहुबली कैसे बनता है, यह जानने के लिए तो फिल्‍म देखनी होगी।

हां, मगर, इस फिल्‍म का अंत आप को फिल्‍म के दूसरे भाग का बेसब्री से इंतजार करने के लिए उत्‍सुक करेगा। फिल्‍म के अंत में आप चौंक सकते हैं, जब महीषमति साम्राज्य का सबसे वफादार व्‍यक्‍ति कटप्‍पा अपने आपको गद्दार घोषित करेगा। मन में सवाल उठेंगे, जो उत्‍सुक करेंगे आगे क्‍या हो सकता है ? क्‍या कारण रहे होंगे कि कटप्‍पा जैसा व्‍यक्‍ति छल करने के लिए तैयार हो गया ?

हिन्‍दी सिनेमा के लिए जारी हुए पोस्‍टरों पर भले राणा दग्‍गुबाती भल्लाला देवा छाया हो, मगर, फिल्‍म का असली नायक प्रभास है। राणा ने तो विलेन का रोल अदा किया है। फिल्‍म के शुरूआती कुछ दृश्‍यों के दौरान आपको ऋतिक रोशन की कमी महसूस हो सकती है, मुझे तो हुई, मगर, प्रभास जल्‍द ही आपको अपने साथ जोड़ लेता है। धीरे धीरे फिल्‍म आपको बांधने लगती है। कुछ दृश्‍य आपकी आंखों को ही नहीं मन को भी छू जाएंगे।

सबसे पहला दृश्‍य रानी का पीछे कर रहे सैनिकों की हत्‍या वाला, और उसके बाद के दृश्‍य जैसे प्रभास का शिवलिंग को उठाना, पर्वतों पर चढ़ना, अवंतिका (तमन्ना भाटिया) को एक सुंदर कन्‍या के रूप में सजाना, बर्फ के पहाड़ पर एक चट्टान को तोड़कर कश्‍ती बनाना, कटप्‍पा का रानी देवसेना (अनुष्का शेट्टी) को रिहाय करते वक्‍त पागल कहना, कटप्‍पा का रानी शिवगामी के कहने पर महल के ऊपर से कूदकर दरबार में आना, शिवाय का महल के भीतर प्रवेश करना, भल्‍लाला देवा के बेटे का सिर कलम करना। ऐसे तमाम दृश्‍य हैं, जो आपकी आंखों में से होते हुए दिल में उतर जाएंगे।


अगर अभिनय की बात करूं तो इस फिल्‍म में राणा दग्‍गुबाती के लिए करने को अधिक कुछ नहीं था, मगर, जो भी उसके हिस्‍से आया, वो ठीक ठीक कहा जा सकता है। प्रभास ने अपने किरदार को बाखूबी निभाया है। रमैया कृशनन, जो शिवगामी के किरदार में हैं, उसका रौबदार चेहरा, चाल डाल, हाव भाव सब कुछ दिल को मोह लेने वाला है। महषिमति के सबसे वफादार कटप्‍पा का अभिनय सबसे प्रभावी कहा जा सकता है। रौबदार चेहरा, फुर्तीला शरीर एवं टाइमिंग सब कुछ गजब का है।

सबसे दिलचस्‍प मजेदार सीनों में से एक काले रंग के कपड़े पहने हुए समूह के साथ महषिमति की सेना का युद्ध। इसको कुछ लोग विदेशी फिल्‍म 300 से प्रेरित कह सकते हैं, मगर, इस सीन को बनाने के लिए जो कल्‍पना की गई है, गजब की है। काले कलूटे लोगों की भाषा भले आपके पल्‍ले न पड़े, लेकिन हर संवाद के बाद जो निक निक टिक टिक की आवाज आती है, मजेदार है।

निर्देशक एसएस राजामौली ने ऐसे कई दृश्य रचे हैं जो लार्जर देन लाइफ फिल्म पसंद करने वालों को ताली बजाने पर मजबूर करेंगे। मक्‍खी, मगधीरा जैसी फिल्‍मों का निर्देशन कर चुके निर्देशक एसएस राजामौली ने सच में बहुत बड़ा जोखिम मोल लिया था, जो शत प्रतिशत सफल होता ही नहीं, बल्‍कि इतिहास रचता हुआ नजर आ रहा है।

मेरी राय के अनुसार, यदि यह फिल्‍म हिन्‍दी में डब न होती, और उस स्‍थिति में इसके रीमेक का जिम्‍मा अगर किसी को सौंपा जाना चाहिए था, तो संजय लीला भंसाली को, और प्रभास के रोल में ऋतिक रोशन, राणा दग्‍गुबाती के रोल के लिए अभिषेक बच्‍चन एवं तमन्‍ना भाटिया के रोल के लिए ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन को चुनना चाहिए था। शिवगामी के रोल के लिए माधुरी दीक्षित को लिया जा सकता था। मगर, अच्‍छी बात तो यह है कि राजामौली ने इस बात की नौबत नहीं आने दी, उन्‍होंने मायानगरी के लोगों को बता दिया कि सौ करोड़ कमाने के लिए केवल बड़े सितारों की भीड़ का होना जरूरी नहीं है।

अंत में, इसके आगे हिस्‍से का इंतजार रहेगा, साथ में एक चिंता भी रहेगी कि अमीष के उपन्‍यास मेलूहा पर बनने वाली फिल्‍म अब इससे कितने कदम आगे होगी, क्‍योंकि मेलूहा उपन्‍यास के अनुसार एक छोटे से कबीले का नेतृत्‍व करने वाला शिवा मेलूहा वासियों का नीलकंठ बन जाता है, जिस तरह इस फिल्‍म में छोटे कबीले का शिवा बाहुबली।

Sunday, July 12, 2015

गजेंद्र चौहान पर इतने लाल पीले क्‍यों हो रहे हैं

महाभारत में युधिष्‍ठर की भूमिका निभाने वाले गजेंद्र चौहान को लेकर कुछ लोग इस तरह तिलमिला रहे हैं, जैसे गली की रामलीला में अभिनय करने वाले को एफटीआईआई का चेयरमैन बना दिया गया हो। आलोचना करने वाले भूल गए कि गजेंद्र चौहान के पास दो दशक से लंबा अनुभव है, अभिनय की दुनिया में, और 160 से अधिक फिल्‍मों एवं 600 के करीब धारावाहिकों में अभिनय कर चुके हैं। फिल्‍म ए ग्रेड की और या बी ग्रेड की, बैनर छोटा हो या बड़ा, इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है, जब आपको अभिनय नहीं आता।

बॉलीवुड में बहुत सारे युवा अभिनेता हैं, जो बड़े बजटों की फिल्‍मों में काम करते हैं, मगर अभिनय के नाम पर कुछ भी नहीं आता, लेकिन सालों से चल रहे हैं। क्‍या उनको एफटीआईआई का चेयरमैन बना देना चाहिए। बॉलीवुड में हजारों सितारे हैं, मगर, हर सितारा अपने आपको दूसरे से बड़ा समझता है। हो सकता, जो सितारा आपको पसंद हो, दूसरे न भी हो। क्‍योंकि सबकी पसंद एक सी नहीं होती।

गजेंद्र चौहान को बहुत सारे मीडिया वाले जजमेंटल हो चुके हैं, क्‍या गजेंद्र चौहान को काम करने का अवसर दिया, क्‍या उसको अपनी क्षमता साबित करने का अवसर दिया। हो सकता है कि इसमें सरकार ने अपनी मनमानी की हो, हो सकता है कि गजेंद्र चौहान ने अपनी निकटता का लाभ लिया हो, मगर, इस पूरे मामले में जिम्‍मेदारी सरकार की है, और सरकार को पांच साल दे दिए हैं, वो किस को मानव संसाधन मंत्री बनाए, वो किस को विदेशी मंत्री बनाकर भारत की यात्रा करने का अवसर दे, वो सरकार की जिम्‍मेदारी है।

केवल किसी की नपसंद या पसंद पर किसी व्‍यक्‍ति विशेष को बुरे तरीके से नकार देना गलत है। बॉलीवुड के बड़े सितारों को दिक्‍कत हो सकती है, क्‍योंकि गजेंद्र चौहान को यकीनन वो मिला है, जो दूसरों को मिलना चाहिए था, लेकिन सवाल यह है कि जो सितारे विरोध कर रहे हैं, क्‍या उन्‍होंने अपने व्‍यक्‍तिगत जीवन जरूरतों से बाहर निकलकर देश हित में कुछ किया , क्‍या कभी उन्‍होंने ऐसी फिल्‍मों का निर्माण जो देश को नई दिशा में ले जाएं, एफटीआईआई तो केवल कुछ प्रतिभाओं को निखारेगा, जो आगे चलकर करण जौहर, यशराज बैनर के लिए काम करेंगी, और उन को वैसा ही कार्य करना होगा, जैसा बैनर के लोग चाहेंगे।

एक पत्रकार जब कॉलेज से निकलता है, तो उसको लगता है कि उसकी कलम देश का नसीब बदल देगी, मगर, बाद में अनुभव होता है कि उसकी कलम की निब तो मालिक ने निकाल ली है, अब तो केवल पेंसिल से लिखना है, जिसमें से मालिक अपने जरूरत अनुसार शब्‍द रख लेगा, बाकी के रब्‍बर से मिटा देगा।

रविश कुमार मेरे पसंदीदा कलमकारों में से है। टीवी पर तो रविश कुमार हिट हुआ, लेकिन उससे पहले ब्‍लॉग पर बेबाक राय के लिए हिट हुआ। मुझे खुशी हुई, जब एनडीटीवी का चेहरा केवल रविश कुमार बन गया, ऐसा नहीं कि एनडीटीवी के अंदर इसको भी लेकर कभी बहस न चली होगा, इस पर भी उंगलियां न उठी हों, होता है जब कोई भीड़ से निकलकर आता है, और रविश कुमार वो चेहरा है जो भीड़ से निकलकर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ।

वरना तो भारत के ज्‍यादातर लोग आजतक, स्‍टार न्‍यूज एवं जी न्‍यूज को ही ए ग्रेड के न्‍यूज चैनल मानते थे, मगर रविश कुमार, और उनके संस्‍थान की सख्‍त मेहनत एनडीटीवी को उस कतार में लाकर खड़ा कर दिया, जहां यह चैनल थे। इन परिस्‍थितियों में यदि रविश कुमार को किसी मीडिया रेगुलेटरी का उच्‍च पद दे दिया जाए तो मुझे इस आधार पर आलोचना करने का कोई हक नहीं होना चाहिए कि रविश कुमार एनडीटीवी में कार्य करते हैं, उनके पास आज तक, जी न्‍यू एवं स्‍टार न्‍यूज का अनुभव नहीं।

अंत, गजेंद्र चौहान को कुछ वक्‍त दो। यदि वे अपनी जिम्‍मेदारियों को निभाने से चूकते हैं तो खुलकर विरोध करो। सबूतों के साथ करो। अभी कुछ समय ठहरो। ठहरना पड़ेगा, क्‍योंकि हमने एक ऐसी सरकार चुनी है, जो किसी की नहीं सुनती, केवल मन की बात कहती है, और मन की बात केवल एक व्‍यक्‍ति करता है, आपको सुननी हो सुनो, नहीं सुननी हो न सुनो। हां, पांच साल बाद बाहर का रास्‍ता दिखा सकते हैं, यदि बातों से उब जाएं, और सरकार अपने प्रदर्शन से चूक जाए।

Thursday, March 26, 2015

आम आदमी पार्टी के नाम एक कविता

आम आदमी पार्टी,
कहां हो तुम
गुम सुम गुम सुम
चलो उठो
समेट लो
बिखरा है जो
एक कुर्सी तक न थम जाएँ कदम
चलो उठो
भरो दम
सालों बाद जुड़ता है विश्वास
मत तोड़ आम की आस
मत बनो नेता तुम खास
मिट्टी में मिले हैं कई सिकंदर
चलो उठो
भरो उड़ान
दूर है मंजिल
मत करो तित्तर बित्तर कारवां
रूठे हैं जो
मना लो
एक बार फिर कारवाँ बना लो
मार दो
मैं तू को
और
जिन्दा कर दो
आम को
अच्छा लगेगा
अवाम को
कुछ तुम से हुई
कुछ उन से हुई
चलो उठो
डालो मिट्टी
करो मुआफ़
जिंदाबाद आप

Saturday, March 21, 2015

साहस और अनुभव

जो करना चाहते हैं करने का साहस करें या तो सफलता मिलेगी या अनुभव

समस्या और समाधान

आपकी समस्या का समाधान आपके पास है, दूसरों के पास केवल सुझाव हैं।

Tuesday, March 17, 2015

वॉट्सएप का नया कॉलिंग फीचर मिला क्‍या ?

क्‍या आप भी वॉट्सएप का नया संस्‍करण डाउनलोड करने के लिए उतावले हैं ? क्‍या आप के पास भी अलग अलग लोगों से वॉट्सएप के नए फीचर के संबंध में संदेश आ रहे हैं ?  यदि हां, तो आप उन पर ध्‍यान न दें। क्‍यों ? क्‍योंकि वॉट्स एप की आधिकारिक वेबसाइट पर इस संबंध में किसी भी प्रकार की घोषणा नहीं की गई।

हालांकि, वेब मीडिया में वॉट्स एप के नए संस्‍करण को लेकर ख़बरें प्रकाशित की जा रही हैं। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि इस ख़बर की पुष्‍टि किए बिना इसको चलाया जा रहा है। किसी भी ख़बर की पुष्‍टि संबंधित संस्‍था की तरफ से की जाती है। मगर, वेब मीडिया ने इसकी प्रामाणिक को समझने का प्रयास नहीं किया क्‍योंकि इससे अधिक से अधिक हिट्स को मिलने वाले थे।

वेब पोर्टल हिट्स के दम पर चलते हैं, जैसे इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया टीआरपी के बल पर। मीडिया के इन दोनों संस्‍करणों को विवादित या अफवाह आधारित ख़बरें अधिक से अधिक लोकप्रियता दिलाती हैं। मैंने भी ख़बरों के आधार पर वॉट्सएप की आधिकारिक वेबसाइट से वॉट्सएप का नया संस्‍करण डाउनलोड किया। इस संस्‍करण में किसी भी तरह का फेरबदल देखने को नहीं मिला।

इसके साथ ही वेबसाइट पर किसी भी तरह की जानकारी या घोषणा भी देखने को नहीं मिली। मगर, बाजार में लोग अपने अलग अलग अनुभव बता रहे हैं। मेरे साथ काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि सोमवार की रात को उसको एक परिचित की तरफ से वॉट्सएप के जरिए कॉल रिसीव हुआ। मगर, हैरानीजनक बात तो यह है कि इस कर्मचारी के वॉट्सएप में कॉलिंग फीचर है ही नहीं। यह उस तरह की बात थी, जैसे सिम एक्‍टिवेशन के बिना आपके मोबाइल पर कॉल आ जाए। जब पुष्‍टि करने को कहा गया तो केवल चैट दिखाई गई।

इसके अलावा वॉट्सएप पर उलू जुलूल संदेशों के जरिए लिंक मिल रहे हैं। लोग एक दूसरे को आमंत्रित कर रहे हैं। हालांकि, इसका फायदा फर्जी वेबसाइट बनाकर पैसा बटोरने वाले लोगों को तेजी के साथ हो रहा है। वहीं, मोबाइल कंपनियों का डेटा भी अच्‍छा खासा खर्च हो रहा है। चुटकलों के पीछे, अफवाहों के पीछे केवल और केवल मोबाइल कंपनियां या फेक वेबसाइट बनाकर धन कमाने वाले लोग होते हैं।
अंत में
वॉट्सएप, वर्तमान फेसबुक स्‍वामित्‍व वाली कंपनी है। फेसबुक के मैसेंजर में वॉयस कॉल करने की सुविधा है। यदि आपको फेसबुक वॉयस कॉल सुविधा से मजा नहीं आ रहा तो आप कैसे उम्‍मीद कर सकते हैं कि वॉट्सएप पर वॉयस कॉल सिस्‍टम गजब का होगा। इंतजार करो। जब आएगा तो आपके मोबाइल में गूगल अपडेट कर देगा क्‍योंकि कंपनी सुविधा ग्राहक को देने के लिए बनाती है। डिब्‍बे में बंद रखने के लिए नहीं।

Thursday, February 26, 2015

प्रभु के 'रेल बजट' की समीक्षा और हंसी ठिठोली

आज प्रभु का रेल बजट आया। अच्‍छे दिन वाली सरकार का दूसरा जबकि प्रभु का पहला रेलवे बजट था। नई ट्रेन की घोषणा रहित बजट की शुरूआत में ही प्रभु ने ही कह दिया, किराया नहीं बढ़ाया जाएगा। मतलब, आम आदमी का बजट बस यहीं खत्‍म हो गया। प्रभु ने आम आदमी के समय की इज्‍जत की, वरना, प्रभु चाहते तो अंत तक इस बात पर रहस्‍य बनाए रखते, लेकिन प्रभु ने ऐसा नहीं किया, क्‍योंकि प्रभु सब जानता है।

तभी तो प्रभु की नजर बुजुर्गों पर गई, उनके लिए लोअर बर्थ की व्‍यवस्‍था कर डाली। साथ ही, अपर सीट के लिए नए तरीके की सीढ़ियां बनाने की बात कही। हालांकि, मुझे इसमें विरोधाभास समझ पड़ता है। यदि बुजुर्गों के लिए लोअर बर्थ मिल गया, तो पुरानी सीढ़ियों में किसी प्रकार की दिक्‍कत नहीं, अन्‍य वर्ग के लिए। और भारत में बुजुर्गों का आज भी सम्‍मान होता है, बहुत सारे यात्री बुजुर्गों के लिए अपनी सीट छोड़ देते हैं। शायद सोशल मीडिया के यह सुझाव एक ही समस्‍या से जुड़े थे, हां, सुझाव देने वाले अलग अलग हो सकते हैं क्‍योंकि लोगों के सुझावों को शामिल किया गया है।

इस बजट में नई घोषणा नहीं करके प्रभु ने संदेश दिया कि प्रभु पुराने को सुधारने में विश्‍वास रखते हैं, ताकि जनता का रेलवे में विश्‍वास बढ़े। हालांकि, आज भी अविश्‍वास के साथ भी करोड़ों यात्री रेलवे में सफर करते हैं। यात्रियों के हाथ में ट्रेन की टिकट तो होती है, लेकिन ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चलकर निर्धारित समय में उनकी मंजिल पर पहुंचेगी या नहीं, इसको लेकर। यदि प्रभु जी इस समस्‍या से निबटने में कामयाब हो गए तो हो सकता है, उनको एक अच्‍छे रेलवे मंत्री के रूप में याद किया जाएगा।

यह बजट बहुत अधिक लुभावना नहीं था। सच में कहूं तो तालियां बजाने वाला भी नहीं था। मगर, प्रभु का साहस काबिले तारीफ है कि प्रभु ने इस बजट में जनता को लुभावने का प्रयास बिल्‍कुल नहीं किया, हालांकि, मोदी सरकार ने आते ही रेल यात्री भाड़े में 14 फीसद की बढ़ोतरी की थी, इस बार उसको कम करना चाहिए था, चलो ऐसा नहीं हुआ तो बुरा भी नहीं मानना चाहिए। यह कह कर दिल समझा लो, कोई यूं ही बेवफा नहीं होता, कुछ उसकी भी मजबूरियां रही होंगी।

प्रभु ने चतुरता से काम लेते हुए महिला सुरक्षा, स्‍वच्‍छता अभियान, स्‍किल डेवलपमेंट जैसे कदम रेलवे बजट के साथ अलग तरीके से जोड़ दिए। हालांकि, यह केंद्र सरकार के मुख्‍य मुद्दों में पहले से ही शामिल हैं। इसके लिए भी प्रभु को दाद देनी होगी। बुलेट ट्रेन को भूत लोगों के सिर पर सवार न हो जाए, इसलिए प्रभु ने फिलहाल परीक्षण अधीन मुम्‍बई अहमदाबाद रूट कहर मामले को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया। लेकिन, पुरानी ट्रेनों के एक्‍सीलेटर पर कदम रखना नहीं भूले ताकि आपको इसमें सेमी बुलेट की फीलिंग आएगी।

इस रेल बजट में आम यात्रियों का भाड़ा न बढ़ाकर आम आदमी को खुश तो कर दिया। मगर, हाथ घुमाकर कान पकड़ने से गुरेज न कर सके। माल ढुलाई में दस फीसद की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि की मार में सीमेंट, यूरिया, पेट्रोलियम उत्‍पाद, अन्‍य रोजमर्रा की चीजें शामिल हैं, जिनका संबंध सीधे सीधे आम आदमी से। यूरिया की ढुलाई भाड़े में वृद्धि की बात सामने आते ही सरकार ने बयान देते हुए कहा कि किसानों को सब्‍सिडी दी जाएगी। यदि सब्‍सिडी देनी है तो बढ़ाने की जरूरत समझ नहीं आई। एक हाथ से सरकार दे रही है, तो दूसरे हाथ से ले रही है।

प्रभु की कृपा से यात्री अब 60 दिन की जगह 120 दिन पहले कर पाएंगे टिकट - इससे फायदा किसको - केवल सरकार को - कैसे ? 4 महीने तक आपका पैसा सरकारी खाते में रहेगा - यदि कैंसल के लिए गए तो 30 रूपये से लेकर 50% तक सरकार के पास रह जाएगा। सरकार अपनी पैसा अपना - क्या फर्क पड़ता है कि कौन इस्तेमाल करता है ? अब टिकट पहले बुक न करवो तो आपकी समस्या और करवाओ तो रेलवे की मौज। फिर भी घाटे में है रेलवे।

जय हो।


अंत में...

रेल बजट में इन पर भी गौर किया जाना चाहिए था -

  1. शौचालय में मग्गे की चेन लम्बी किए जाने का प्रस्ताव
  2. सीट से हवाई चप्पल और जूते बाँधने का इंतजाम
  3. सहयात्री के अख़बार मांगने वालों पर जुर्माना
  4. पंखा चालू करने के लिए एक कंघी का इंतजाम
  5. रेलवे में मिलने वाला तकिया मोटा किया जाए
  6. मिडल बर्थ वालों के लिए काउन्सलिंग
  7. लोअर बर्थ पर बैठने वालों के लिए वोटिंग मीटर ताकि ये फैसला हो सके कि मिडल बर्थ कब उठाया जाए
  8. एयर होस्टेस के जैसे ही रेल होस्टेस, मिडल बर्थ उठाने की विधि समझाएगी और एक्स्ट्रा टॉमेटो सूप लाएगी।
  9. पानी लेने गए पापा अगर ट्रेन में न चढ़ पाए तो, उनके लिए विशेष ट्रेन/टैक्सी
  10. अगर बीच के किसी स्टेशन पर यात्री के मित्र या रिश्तेदार घर के आलू-पूरी आ रहे हों, और उन्हें देर हो जाए तो आपको चेन पुलिंग की छूट
  11. शौचालय में एक जगह टिकने के लिए सीटबेल्ट
  12. शौचालय में मोबाइल चार्जिंग पॉइंट
  13. गैस के मरीज़ों के लिए विकलांगों की तरह विशेष कोच ताकि बेझिझक हवा ख़ारिज कर सकें
  14. रेलवे लाइन के पास हगने वालों को करंट के झटके

(व्हॉट्सअप से साभार)

कृष्ण वृहस्पति की फेसबुक वॉल से

'तू तड़ाक' और इलेक्ट्रोनिक मीडिया

बुधवार को कांग्रेस के 'जमीन वापसी आंदोलन' के दौरान मंच पर मौजूद अभिनेता एवं नेता राज बब्बर ने कहा, 'नरेंद्र मोदी किसानों की जमीन 4.5 करोड़ में उनका सूट खरीदने वाले लोगों को गिफ्ट करना चाहता है। मैं पूछना चाहता हूं नरेंद्र दामोदर दास मोदी से कि तू क्या जानता है। तू सिर्फ कॉरपोरेटरों से अपने सूट की बोली 4.5 करोड़ में लगवाना जानता है। यहां वे किसान बैठे हैं, जिनके बेटे सीमाओं पर तैनात हैं। मोदी तुझे क्या पता है?।'

राज बब्बर का बयान सुनकर मीडिया कांप गया। मीडिया को लगा, राज बब्बर ने अपनी सीमाएं पार कर दी। उसने तू शब्द का इस्तेमाल कर अभद्रता का परिचय दिया। चलो अच्छी बात है, मीडिया को शब्दों से ख़बर तो मिलने लगी। जब पत्रकारों की भीड़ बढ़ जाएगी, एवं ख़बरों का काल पड़ जाएगा, विशेषकर विवादित ख़बरों का, तो कुछ न कुछ तो लाना होगा। मीडिया भूल गया कि मौजूदा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक शेर के जरिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पर व्यंग्य करते हुए पूछा था-तू इधर, उधर की बात न कर, बता ये काफिला क्यों लूटा, मुझे रहगुजर की बात नहीं, तेरी रहबरी से सवाल है। तब तो मीडिया को तू शब्द सुनाई नहीं दिया।

यदि आप तू शब्द का अर्थ ढ़ूंढ़ने निकलेंगे तो आपको पता चलेगा कि सूफी फकीर की नजर में तू एवं यार एक हैं, अर्थात प्रभु, परमात्मा। आशिक की जुबां से निकला तू शब्द सम्मानजनक है। हिन्दी गीतों में तू का सर्वाधिक इस्तेमाल किया गया है, प्रेम भाव प्रकट करने के लिए। मेरी नजर में तू शब्द मैं के होने का संदेशा देता है, जो एक फर्क पैदा करता है, तू तभी होगा, यदि मैं का मौजूद बचा होगा। राज बब्बर ने तलख रवैये में सरकार से पूछा है, और उस सरकार से जिसका मुखिया 'मैं' शब्द का भरपूर इस्तेमाल करता है।

अंत में इतना कहूंगा.....
इलेक्ट्रोनिक मीडिया लेज चिप्स सा है। जिसकी पैकेजिंग लुभावनी है, जिसमें चिप्स कम और हवा अधिक होती है। असल में इलेक्ट्रोनिक मीडिया में पत्रकारिता उतनी ही बची है, जितनी लेज के पैकेज में चिप्स। सावधान! इंडिया।

Wednesday, February 25, 2015

क्‍या डिजीटल लॉकर सुरक्षित है ?

क्‍या आपको पता है भारतीय डिजीटल लॉकर के बारे में ? चौंकिए मत ! डिजीटल लॉकर, नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का अहम हिस्सा है। नए समय की नई सरकार की इस पहल के तहत आप अपना जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र जैसे अहम दस्तावेजों को ऑनलाइन स्टोर कर सकते हैं।

इस सुविधा को पाने के लिए बस आपके पास आधार कार्ड होना चाहिए। आधार का नंबर फीड कर आप डिजीटल लॉकर अकाउंट खोल सकते हैं। इस सुविधा की खास बात ये है कि एक बार लॉकर में अपने दस्तावेज अपलोड करने के बाद आप कहीं भी अपने सर्टिफिकेट की मूल के स्थान पर डिजीटल लॉकर का लिंक दे सकेंगे।

डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (डीईआईटीवाई) ने मंगलवार को डिजिटल लॉकर का बीटा वर्जन लॉन्च किया है। इस डिजीटल लॉकर को खोलने के लिए आपको http://digitallocker.gov.in/ वेबसाइट पर जाकर अपनी आईडी बनानी होगी।

मगर, ठहरिये! मैं इसकी सुरक्षा को लेकर संदेह में हूं। हैकरों की ताकत के आगे बड़े बड़े देश मात खा रहे हैं। ऐसे में इंटरनेट पर हमारा डाटा डालना कितना उचित है ? जब हम अपनी फेसबुक प्रोफाइल में डाटा डालने से डरते हैं, तो अपने कीमत दस्‍तावेज सरकारी वेबसाइट पर यूं ही कैसे उपलब्‍ध करवा सकते हैं ?

ज्ञात रहे कि इससे पहले अमेरिकी जासूस एडवर्ड स्नोडन ने जब अमेरिका की इंटरनेट के जरिये पूरी दुनिया की छानबीन करने की बात सामने आई थी, तो सरकार ने सरकारी कार्यालयों में जीमेल, याहू जैसी ईमेल सेवाओं के इस्‍तेमाल पर रोक लगाने को लेकर नीति बनाने की बात कही थी, क्‍योंकि इससे जानकारियां चोरी होने का संदेह बना रहता है। हालांकि, इस मामले में सरकार ने कदम आगे नहीं बढ़ाया।

उससे भी अधिक घातक हैकर गैंग होता है। ध्‍यान रहे कि गत नवंबर महीने में गोवा सरकार की छह आधिकारिक वेबसाइटों को फिलिस्तीन के किसी सर्वर से हैक किया गया था। इससे तीन सप्ताह पहले गोवा के राज्यपाल की आधिकारिक वेबसाइट पाकिस्तान के किसी सर्वर से हैक की गई थी। द इंटरव्‍यू फिल्‍म रिलीज होने से पहले सोनी पिक्‍चर्स पर हुए साइबर हमले के कारण अमेरिका और उत्‍तरी कोरिया आमने सामने हो गए थे।

हालांकि, अब भारत में बहुत कुछ डिजीटल हो चुका है। हमको डिजीटल युग लुभावने लगा है। फिर भी सवाल यह है कि इस तरह के ख़तरों के बीच क्‍या डिजीटल लॉकर सुरक्षित हो सकता है ? क्‍या यह विकल्‍प सही है ? क्‍या असल में इसकी जरूरत थी ? क्‍या यह दस्‍तावेजों के फर्जीवाडे को जन्‍म नहीं देगा ?

Monday, February 23, 2015

राहुल गांधी को चाहिए लम्बी छुट्टी!

राहुल गांधी को नेता कहना नेता शब्द का अपमान करना होगा। नेता नेतृत्व करता है, लेकिन, राहुल गांधी कहीं भी नेतृत्व करते नजर नहीं आए। जब नेतृत्व करने की बात आती है तो राहुल गांधी पतली गली से निकल लेते हैं।

आज से बजट सत्र शुरू हो गया है, और राहुल गांधी का हॉलीडे सेशन भी। एक समय था, इस संसद से राहुल गांधी की आवाज पूरे देश तक पहुंची थी, और इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार के नए चेहरे से बहुत सारी उम्मीदें बंध गई थी।

समय के साथ साथ उम्मीदें ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी भी रसातल में चली गई। इसके लिए जिम्मेवार भी राहुल गांधी हैं क्योंकि राहुल गांधी जिम्मेदारी संभालने के वक्त भाग लेते हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि भारत की जनता शीर्ष नेता को तरजीह देती है क्योंकि उसको सशक्त नेता का नेतृत्व पसंद है।

बजट सेशन के साथ ही राहुल गांधी छुट्टी लेकर निकल गए। इस संसद में जब अटल बिहारी वाजपेयी बोले तो पूरे देश ने सुना। विपक्ष के पास सत्ता से अधिक कहने को होता है। विपक्ष के पिटारे में देश की तमाम समस्याएं होती हैं। विपक्ष सरकार को घेरे के लिए आजाद होता है। मगर, हैरानी कि राहुल गांधी छुट्टी लेकर निकल गए।

मुझे चिंता नहीं कि राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य क्या होगा ?  मगर, लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत एवं प्रखर होना जरूरी होता है। यदि आज कांग्रेस के पास मुट्ठी भर सांसद बचें हैं, तो इसके लिए उनका नेतृत्व जिम्मेदार है, विशेषकर राहुल गांधी। फिर भी राहुल गांधी को दिल्ली विधान सभा से सीख लेनी चाहिए, जहां बीजेपी के पास तीन हैं, लेकिन फिर भी लड़ैत हैं, राजनीतिक तौर पर।

जहां राहुल गांधी को लम्बी छुट्टी की जरूरत है। वहीं, कांग्रेस को गैर नेहरू गांधी परिवार के चेहरे की जरूरत है। यह चेहरा कांग्रेस के प्रति जवाबदेह हो, नहीं कि नेहरू गांधी परिवार के प्रति। 

Saturday, February 21, 2015

तेज प्रताप की शादी, 'समाजवाद' का जनाजा

सैफई में वैभव कार्यक्रम चल रहा है। सैंकड़ों टैंट लगे हैं। लाखों मेहमानों के लिए खाना बन रहा है। खाना बनाने के लिए मुम्‍बई और अन्‍य शहरों से खाना बनाने वाले बुलाए हुए हैं। देश के प्रधानमंत्री समेत अन्‍य राजनीतिक हस्‍तियों ने शादी में शिरकत की। इस शादी में सदी के महानायक अमिताभ बच्‍चन भी जया बच्‍चन के साथ पहुंचे।

यह कार्यक्रम एक समाजवादी परिवार का था। समाजवादी परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप यादव का तिलक कार्यक्रम था। तेज प्रताप की शादी लालू प्रसाद यादव की बिटिया राजलक्ष्‍मी से हो रही है। कुछ लोग इसको यूपी बिहार का गठबंधन कह रहे हैं। लेकिन, कोई नहीं कह रहा कि यह जंगलराज के राजाओं का मिलन समारोह है।

हालांकि, सोशल मीडिया पर कुछ चुटकियां लेते हुए कह रहे हैं कि सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं, नरेंद्र मोदी के सामने 'मुला' यम सिंह के पोते का तिलक करवाया जा रहा है। यह बात तो जगजाहिर है कि समाजवादी परिवार की पूरी राजनीति अल्‍प संख्‍यकों मतलब मुस्‍लिम समुदाय पर आधारित है। हालांकि, आज के मुख्‍यातिथि नरेंद्र मोदी की लहर ने लोक सभा चुनावों में साइकल वालों के पास केवल पांच सांसद छोड़े, जो समाजवादी परिवार सदस्‍य हैं।

हैरान हूं कि मीडिया वाले सैफई का लाइव कवरेज इस तरह दिखा रहे हैं, जैसे भारत आज भी गुलाम हो और एक राज परिवार में शादी चल रही हो। किसी मीडिया चैनल ने इसको लेकर सवाल उठाने की जहमत नहीं की। किसी चैनल ने नहीं कहा कि तेज प्रताप की शादी के साथ समाजवाद का जनाजा भी निकल रहा है।

एक चैनल पर पत्रकार कवरेज के दौरान पीसी देते हुए कहा रहा था, नरेंद्र मोदी ने मेहमानों के साथ तेज प्रताप यादव पर गुलाब की पत्‍तियां बरसाई। सुनते ही अचानक मन से आवाज निकली, तो क्‍या नरेंद्र मोदी बॉम्‍ब फेंकते। शादी में आए हैं, बतौर मुख्‍यातिथि तो कुछ रसमें तो निभानी होंगी।

चैनल वालों को भूल गया, बच्‍चे गलतियां करते हैं। किसी कोने में दफन होगी कि पेड़ पर टंगी लड़कियां। किसी को याद ही नहीं आए नदी में मिले दो सौ से अधिक मानव कंकाल। बस याद था तो सैफई का नजारा। वहां आने वाले मेहमान और उनकी गाड़ियां।

कुछ महीनों बाद बिहार चुनाव हैं, इस बार लालटेन पूरी तरह गूल हो जाए। और वहीं यूपी की जनता भी साइकिल के चक्‍के निकालकर दिल्‍ली के चोर बाजार में बेच दे। समाजवाद की आढ़ में राजवाड़ों की शानो शौकत देखी नहीं जाती, विशेषकर, जब भारत की एक बड़ी आबादी भूखमरी और बेरोजगारी से लड़ रही हो।

क्‍या आपको भी मिला 'सुकन्‍या समृद्धि योजना' का वाट्स एप संदेश ?

वाट्स एप संदेश आया। मीडिया से भी तेज वाट्सएप वाले हैं, लेकिन विश्वसनीय नहीं हैं। चौंकिए मत! मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं। मेरे पास ऐसा सैंकड़े संदेश आते हैं, जो भ्रमित जानकारी से भरे होते हैं। आपको भी आते होंगे। कुछ दिन पहले मेरे पास सुकन्या समृद्धि योजना को लेकर संदेश आया। संदेश देखकर झटका लगा क्योंकि इसमें उपलब्ध जानकारी पूर्ण रूप से सही न थी। और संदेश के नीचे लिखा था, जल्द से जल्द लोगों तक पहुंचाएं, ताकि लोगों का भला हो सके।

दरअसल संदेश में लिखा था, 14 साल तक 1000 रुपये जमा करवाएं, और 21साल बाद सरकार आपको 6 लाख रुपये प्रदान करेगी। इसके लिए आपको डाक विभाग से संपर्क करना है। मैंने उसका आदेश मानने की बजाय सत्य को टटोलना शुरू किया। मैंने देखा कि संदेश में उपलब्ध जानकारी भ्रमित करने वाली है।

मेरी खोजबीन के बाद जो बात सामने आई वो कुछ यूं थी। सरकार ने डाक विभाग द्वारा एक सुकन्या समृद्धि खाता योजना शुरू की है। इस खाते को खुलवाने के लिए आपकी बच्ची की उम्र जन्म से लेकर 10 साल तक होनी चाहिए। इस खाते के तहत आपको 14 साल तक 1000 से लेकर डेढ़ लाख रुपये प्रति वर्ष जमा करवाने होंगे एवं इस खाते की परिपक्वता अवधि 21 वर्ष है। इस खाते के अधीन सरकार आपको आपकी जमा पूंजी पर 9.10 फीसद वार्षिक दर से  ब्याज उपलब्ध करवाएगी।

एक अनुमान के तहत यदि आप सलाना 12000 रूपये इस योजना के तहत 14 साल तक जमा करवाते हैं, तो सरकार आपको योजना की अवधि पूर्ण होने पर 6 लाख रुपये प्रदान करती है यदि आप 14 वर्ष तक डेढ़ लाख रुपए जमा करवाते हैं, तो सरकार आपको 72 लाख रूपये उपलब्ध करवाएगी, योजना के संपूर्ण होने के पश्चात।

यदि आप बीच में वार्षिक किश्त का भुगतान करने से चूक जाते हैं, तो आपको बकाया राशि के साथ 50 रुपये की जुर्माना राशि भी जमा करवानी होगी क्योंकि किश्त टूटने की सूरत में आपका खाता निष्क्रिय हो जाता है। यह योजना उन लोगों के लिए काफी बेहतर है, जो पैसा जमा तो करना चाहते हैं, लेकिन उनको तरीकों की जानकारी नहीं।

इस योजना का लाभ लेने के लिए आप अपने नजदीकी डाक घर में जा सकते हैं। हालांकि, वाट्सएप संदेशों को नजर अंदाज करते हुए स्वयं इस योजना की जानकारी संबंधित अधिकारी से लें, ताकि निकट भविष्य में आपको किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े।

इसके अलावा यदि कन्या 18 वर्ष की हो जाती है तो उसको इस खाते में जमा 50 फीसद राशि विवाह तथा शिक्षा के लिए निकालने की अनुमति है। इस खाते को 21 वर्ष के बाद बंद किया जा सकता है। एक अन्य बात इसको हम एक सुरक्षित निवेश कह सकते हैं। इस योजना में आप तभी आगे बढ़ें, यदि आप निरंतर रख पाएं अन्यथा डाक विभाग में संचालित अन्य योजनायों के संदर्भ में जानकारी लेकर उनके जरिये लाभ उठाएं।

अंत में, डाक विभाग से अधिक ब्‍याज दर सीनियर सिटीजन खाते पर देता है, और उसके बाद दूसरे पायदान पर सुकन्‍या समृद्धि योजना है। इसको योजना को 80 सी के अंतर्गत ले लिया गया है अर्थात डेढ़ लाख रुपये तक के निवेश के लिए यह अच्छा विकल्प हो सकता है। यदि आपके घर में बच्ची है और आप अन्य सरकारी निवेश योजनाओं में निवेश करते हैं।

Friday, February 20, 2015

21वीं सदी, शुभ अशुभ और मोदी का सूट

रेड सिग्‍नल देखकर रूकें या न रूकें, लेकिन बिल्‍ली के रास्‍ता काटने पर आगे बढ़ने से पहले जरूर सोचते हैं। हाथ में खुजली हो तो दाएं या बाएं हाथ का ख्‍याल आता है, क्‍योंकि एक खर्च का प्रतीक है, तो दूसरा धन आने का। जब आंख फड़फड़ाने लगती है तो मन बेचैन हो जाता है, कुछ अनहोनी का अंदेशा होने लगता है।

सच में, हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जिसको विज्ञान की सदी कहा जाता है या सिर्फ बाहरी रूप से विज्ञान को ओढ़ रहे हैं। जिस तरह हमारे नेता सादगी, ईमानदारी का लिबास ओढ़ते हैं। हालांकि, युवा पीढ़ी उपरोक्‍त बातों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती है, मगर, मन में संदेह बना रहता है। संदेह हम को सामाजिक घटनाओं एवं संयोगवश हमारे साथ होने वाले घटनाक्रमों से मिलता है। कभी कभी संदेह पक्‍का हो जाता है तो कभी कभी एक भ्रम बनकर रह जाता है।

आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादित लिबास 4.31 करोड़ में नीलाम हो गया। इससे एकत्र होने वाली पूंजी को गंगा की सफाई में लगाया जाएगा, कथन अनुसार, बाकी सब तो भविष्‍य की कोख में है। हम सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने इस सूट को गणतंत्र दिवस के मुख्‍यातिथि बराक ओबामा की मेजबानी के दौरान पहना। उस दिन से विवाद और नरेंद्र मोदी साथ चल रहे हैं। 26 जनवरी के दिन नरेंद्र मोदी ने भूलवश राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ सलामी दे डाली। हालांकि, इस पर किसी की नजर न जाती, यदि मोदी के दीवाने उप राष्‍ट्रपति हामिद अंसारी को नीचा दिखाने के लिए ट्विटर पर हैशटैग न बनाते। उपराष्‍ट्रपति के बचाव में आए विभाग ने बताया कि इस दिन केवल और केवल राष्‍ट्रपति सलामी लेते हैं। इसके साथ ही, विरोधियों की तोपें नरेंद्र मोदी की तरफ तन गई।

इस घटनाक्रम में दूसरा वार मोदी सरकार पर उस समय हुआ, जब जाते जाते अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा भारत को धर्म से हटकर विकास की राह पर चलने की नसीहत दे गए। बात यहां ही खत्‍म नहीं हुई, इसके साथ ही नरेंद्र मोदी का महंगा परिधान चर्चा का केंद्र बन गया, हालांकि, इसका भाव आज तक सामने नहीं आया, जबकि उपहार देने वाला मीडिया के सामने आया और उपहार देने की बात कहकर छुप गया।

इसके बाद जब दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में बीजेपी बुरी तरह हारी तो नरेंद्र मोदी की लहर के दम तोड़ने की ख़बरें बाजार में आई और इसमें भी महंगे सूट का जिक्र भी था। चुनाव नतीजे आने के कुछ दिनों बाद नरेंद्र मोदी ने अपना महंगा सूट नीलामी के लिए सूरत रवाना कर दिया। बोली कुछ हजार से शुरू हुई, लेकिन देखते ही देखते लाखों में पहुंच गई। और अंतिम दिन अर्थात 20 फरवरी 2015 को सूट 4.31 करोड़ रूपये में नीलाम हो गया।

बीजेपी वालों से पूछो तो यह नरेंद्र मोदी का दानवीर स्‍वभाव है। यदि कांग्रेस समेत अन्‍य दलों से पूछो तो कहते हैं कि नरेंद्र मोदी अपनी गिरती अलोकप्रियता को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी इस सूट से पीछा छुड़वाना चाहते थे, क्‍योंकि जब से सूट आया है, तब से अशुभ ही अशुभ हो रहा है। हो सकता है कि उनको भी इस अशुभ का अहसास हो गया हो।

अजीब संयोग है कि आज जहां सूरत में सूट महंगे दाम पर बिक रहा था, वहीं, पटना में मांझी के समर्थन में मत देने आए बीजेपी विधायकों को निराशा का सामना करना पड़ा, क्‍योंकि जीतन राम मांझी ने टेस्‍ट देने से पहले ही अपनी हार स्‍वीकार कर ली थी, और बीजेपी को भनक तक नहीं लगने दी। उस सूट के सामने आने के बाद यह बीजेपी की दूसरी बड़ी हार कह सकते हैं।

आप सोच रहे हैं कि मेरे दिमाग में शुभ और अशुभ का ख्‍याल क्‍यों आ रहा है ? मेरे पास आपकी जिज्ञासा का भी समाधान है। पिछले वर्ष जुलाई में दिल्ली के सिविल लाइन्स क्षेत्र में 33 श्यामनाथ मार्ग पर स्थित बंगले को जल्द ही सरकारी गेस्ट हाउस में तब्दील करने की ख़बर आई थी, क्‍योंकि इस बंगले में कोई अधिकारी या राजनेता रहने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस बारे में चर्चा है कि यह अशुभ बंगला है क्‍योंकि पूर्व मुख्‍यमंत्री मदन लाल खुराना को इस्‍तीफा देना पड़ा था, जब उनका नाम हवाला में आया और उनके उत्‍तराधिकारी साहिब सिंह वर्मा को भी अपने पद से हाथ धोना पड़ा था।

वहीं, दूसरी ओर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी मुख्‍यमंत्री निवास में जाने से कतरा रहे हैं। उनको डर लग रहा है कि कहीं उनका हश्र भी कुछेक पूर्व मुख्‍यमंत्रियों सा न हो जाए, जो इस निवास स्‍थान में रहकर गए हैं। फिलहाल रावत सीएम सरकारी आवास से सौ मीटर की दूरी पर स्थित बीजापुर राज्य अतिथि गृह में रह रहे हैं। इतना ही नहीं, झारखंड के नए मुख्‍यमंत्री रघुबर दास भी कांके रोड पर स्थित आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास में स्थानांतरित नहीं होना चाहते, हालांकि, इसके आधिकारक कारण तो सामने नहीं आए, लेकिन चर्चा जरूर है कि पिछले चौदह सालों में इस घर में जितने भी मुख्‍यमंत्री रहने आए हैं, और उनमें से किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।

ऐसे में मेरा संदेह पक्‍का होने लगता है कि आखिर इतनी जल्‍दी नरेंद्र मोदी ने अपने चर्चित परिधान को नीलाम करने के लिए क्‍यों भेज दिया। हालांकि, वो चाहते तो इसको लंबे समय तक रख सकते थे, क्‍योंकि परिधान पर उनका नाम लिखा हुआ था और भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ था। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह थी कि नरेंद्र मोदी ने यह सूट पहनकर महाशक्‍ति कहे जाने वाले अमेरिका के राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के साथ वक्‍त बिताया। बराक ओबामा, उस व्‍हाइट हाउस से आते हैं, जिसको पृष्‍ठभूमि में रखकर कभी नरेंद्र मोदी ने अपने फोटो उतरवाया करते थे।

वैसे आम घरों में ऐसा होता है, जब किसी चीज के आने से समस्‍याएं बढ़ने लगें तो उस चीज से जल्‍द से जल्‍द निजात पा ली जाती है। हालांकि, घटनाएं संयोगवश हो सकती हैं, मगर, संदेह कभी कभी पक्‍का तो कभी कभी केवल भ्रम तक सीमित रह जाता है। यदि संदेह पक्‍का हो जाए तो अशुभ चीज घर से बाहर जाती है, और यदि संदेह केवल भ्रम बना रहे तो चीज पर विचार चलता रहता है, अंतरमन में कहीं न कहीं।

कुछ भी हो, नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया है कि उनके नाम में दम है, तभी तो कुछ हजार का सूट करोड़ों रुपये का हो गया। यह भी अपने आप में एक शक्‍ति प्रदर्शन है, हालांकि, हम इसको चैरिटी के रूप में देखना चाहिए। वैसे, इस सूट की नीलामी पर तंज कसने वाले कह रहे हैं, ''एक सूट के चक्‍कर में दिल्‍ली साफ हो गई, तो गंगा क्‍या चीज है।''

मगर, मेरे संदेह का जवाब भविष्‍य की कोख में छुपा है। यदि इस सूट को खरीदने वाले ने इसको गले से लगाए रखा तो मेरा संदेह भ्रम स्‍थिति में पड़ा रहेगा, सरकारी कार्यों में पड़ी आम आदमी की फाइलों की तरह, यदि उसने भी नरेंद्र मोदी की तरह सूट से जल्‍द निजात पाने की ठान ली तो मेरा संदेह पक्‍का हो जाएगा।

अंत में
देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्‍वयं को नसीब वाला कहते हैं, जो मुझे शुभ अशुभ के बारे में भी सोचने पर मजबूर करता है, क्‍योंकि जो नसीब में विश्‍वास करता है, वो शुभ अशुभ में भी विश्‍वास करता होगा। 

Sunday, February 15, 2015

बदले बदले हैं 'साहेब'

दिल्‍ली विधान सभा चुनाव के नतीजों के बाद बदले बदले हैं 'साहेब'। कोई शक! यदि आपको शक है, तो सच में मेरे पास शक का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, बदले बदले हैं 'साहेब' जुमले को सही साबित करने के लिए परिस्‍थितियां सबूत के रूप में रख सकता हूं। और आप अपर्याप्‍त सबूत कहकर साहेब का बचाव कर सकते हैं क्‍योंकि आपके पास भी पक्ष रखने का अधिकार है। और आपके अधिकार सुरक्षित हैं।

सबसे पहले जम्‍मू कश्‍मीर की बात करते हैं। जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य लगभग पिछले डेढ़ महीने से नई सरकार बनने की राह देख रहा है। हालांकि, अब जम्‍मू कश्‍मीर की जनता का इंतजार खत्‍म होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी अपनी मांगों को ठंडे बस्‍ते में डालने जा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्‍योंकि बीजेपी दिल्‍ली चुनावों के बाद जम्‍मू कश्‍मीर में रिस्‍क लेने की हिम्‍मत नहीं जुटा पा रही है। ऐसे में समझौता नीति, सबसे उत्‍तम नीति। हालांकि, दिल्‍ली चुनावों से पहले भाजपा अपनी मांगों पर अडिंग थी। मीडिया के अनुसार, मुख्‍यमंत्री बीजेपी का, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट नहीं हटेगा, धारा 370 हटाना इत्‍यादि बीजेपी की मुख्‍य मांगें थीं।

अब बात महाराष्‍ट्र की। जहां सरकार भारतीय जनता पार्टी की है। मगर, दिलचस्‍प बात तो यह है कि दिल्‍ली विधान सभा चुनावों के बाद शिवसेना के तेवर काफी तीखे हुए हैं और शिव सेना निरंतर नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रही है। माना जाता है कि शिव सेना एलके अडवाणी की पक्षधर रही है। आपको बता देते हैं कि महाराष्‍ट्र में बीजेपी ने सरकार अल्‍पमत में बनाई है, जो वो दिल्‍ली में कर सकती थी, लेकिन अहं के कारण नहीं किया। एक अन्‍य बात, जब दिल्‍ली विधान सभा की शानदार जीत के बाद अरविंद केजरीवाल रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण कर रहे थे, तो नरेंद्र मोदी महाराष्‍ट्र के दौरे पर थे, जहां पर उन्‍होंने एनसीपी प्रमुख शरद पावर के साथ भोज भी किया।

एनसीपी, जो महाराष्‍ट्र विधान सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए नेचुरल करप्‍ट पार्टी थी, अब नेचुरल कंपनीयन पार्टी बन गई है, क्‍योंकि शिव सेना के पीछे हटते ही, सहारा लेने के लिए एनसीपी की जरूरत पड़ सकती है। याद रहे कि महाराष्‍ट्र में कांग्रेस की सरकार यदि करप्‍ट थी, तो उसकी सहयोगी पार्टी एनसीपी पूर्ण इमानदार तो कभी नहीं हो सकती। इसलिए शरद पावर से मिलना नरेंद्र मोदी की उदारता नहीं, बल्‍कि मजबूरी है। नरेंद्र मोदी अच्‍छी तरह जानते हैं कि राजनीति में न तो कोई सगा होता है और न बेगाना। मजबूरी में सब अपने होते हैं, अच्‍छे दिनों में सब बेगाने।

चलो बिहार, अबकी बार। दिल्‍ली विधान सभा चुनावों से पहले बिहार में राजनीतिक संकट उभरकर सामने आया। इसको लोकतंत्र का संहार कह सकते हैं क्‍योंकि एक साजिश के तहत मुख्‍यमंत्री को हाइजैक कर उसकी पूरी पार्टी को ध्‍वस्‍त करना लोकतंत्र में शोभा नहीं देता। बिहार के मुख्‍यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला तो आलम कुछ ऐसा बना कि बिहार में विपक्ष अर्थात बीजेपी पक्ष अर्थात जीतन राम मांझी को बचाने के लिए समर्थन देने की बात कहने लगा। हालांकि, पक्ष वाली पार्टी अर्थात जेडीयू अपने मुख्‍यमंत्री को बरखास्‍त के लिए निवेदन कर चुकी थी।

हालांकि, दिल्‍ली विधान सभा चुनाव के नतीजों के बाद तस्‍वीर बदल चुकी है। बीजेपी के बड़े नेता कहने लगे हैं, वो मांझी को समर्थन नहीं देंगे। और 20 फरवरी के दिन मांझी की अग्‍निपरीक्षा है। उधर, मांझी भी सुर बदलते हुए कहते हैं कि यदि बहुमत साबित न कर पाया तो पद से इस्‍तीफा दे दूंगा। यदि बहुमत साबित न कर पाए तो हालत किरण बेदी जैसी होगी, न समाज सेवी बची, न बीजेपी की सदस्‍य बन पाई। पिछले दिनों बीजेपी ने दिल्‍ली हार को लेकर बैठक बुलाई, मगर, किरण बेदी को नहीं बुलाया गया, क्‍योंकि वे बीजेपी की पदाधिकारी नहीं है। जेडीयू का आरोप है कि मांझी का रिमोट बीजेपी के हाथ में है। इसमें दो राय होनी भी नहीं चाहिए, क्‍योंकि जब जेडीयू अपने विधायकों के साथ बैठक में व्‍यस्‍त थी तो मांझी अपने समर्थकों के साथ दिल्‍ली में नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर रहे थे।

बीजेपी ने पत्‍ता को बहुत बेहतरीन खेला था, मगर, नीतीश कुमार की तरह मोहरे के रूप में जीतन राम मांझी को चुनकर बीजेपी ने गलती कर दी है। अब बीजेपी को भी भीतर ही भीतर इस बात का डर लग रहा है कि कहीं किरण बेदी की तरह जीतन मांझी के रूप में खेला गया पत्‍ता उलटा न पड़ जाए। इसलिए बीजेपी अब इस खेल से बाहर निकलने का प्रयास कर रही है। यदि बीजेपी अब जीतन राम मांझी से पल्‍लू झटकेगी तो जीतन राम मांझी बीजेपी पर कमिशन देने का आरोप लगा सकते हैं, जो पूरी की पूरी गेम को नीतीश के पाले में पहुंचा देंगे। सफगोई के शौकीन हैं, आखिर हमारे जीतन राम मांझी।

इतना ही नहीं, अब बीजेपी पंजाब को लेकर भी संजीदा होगी, क्‍योंकि दिल्‍ली की जीत के बाद आम आदमी पार्टी भले ही एक साल तक कोई चुनाव न लड़ने की बात कह रही हो, मगर, उसके सांसद भगवंत मान एवं आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं की नजर पंजाब विधान सभा चुनावों पर टिक चुकी है।

अंत में.....
साहेब क्रिकेट पर ट्वीट कर रहे हैं। क्रिकेट खेलने के लिए टीम विदेश गई, तो उसके लिए पड़ोसी राष्‍ट्र को फोन कर बधाई दे रहे हैं। मगर, सार्क समिट में अहं किसी बात का था। जब आमने सामने थे तो नजर मिलाना भी गुनाह समझ लिया। हमने प्रधानमंत्री चुनना है, चौकीदार नहीं, जो पड़ोसी राष्‍ट्र को फोन कर बताए कि उनकी टीम बाहर खेलने के लिए गई है। क्रिकेट के अलावा हमारे पर भी बहुत काम हैं, और उनके पास भी। संबंध मजबूत खुशी के मौके पर संवेदनाएं प्रकट करने से नहीं, बल्‍कि दुख की घड़ी में साथ खड़ने से मजबूत होते हैं।

साहेब का फोन गया, उसके कुछ घंटों बाद मस्‍जिद के बाहर धमाका हुआ, इसमें बहुत सारी जिंदगियां चली गई, क्‍या अफसोस प्रकट करने के लिए फोन किया। नहीं, ना, क्‍योंकि उसको कवरेज कहां मिलता है।

न 'मोदी लहर' थी, न 'केजरीवाल लहर' है

लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया तो मोदी लहर शब्‍द को जन्‍म दिया गया। ठीक नौ महीनों के बाद जब दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व में आम आदमी पार्टी को रिकॉर्ड तोड़ बहुमत मिला तो मोदी लहर पर विराम लगा दिया गया।

हालांकि, यदि इसके बाद बीजेपी किसी क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करती है तो मोदी लहर में जान आ जाएगी। यह केवल शब्‍दावली के जरिये ख़बरों को मसालेदार बनाने की युक्‍त होती है। निर्देशक रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्‍स' नामक शानदार फिल्‍म में शेख हर बात से कहने से पहले, अम्‍मी कहती है, का इस्‍तेमाल करता है। उसकी बात पर साजन फर्नांडिस कहता है, तू तो अनाथ है ना, तो शेख कहता है, 'अम्‍मी कहती है' लगाने से बात में वजन आ जाता है।

बस, हर किसी को बात में वजन लाने की सूझती है। 'शब्‍द' जितना वजनदार होगा, स्टोरी या बात उतनी वजन दार होगी। तुम अपनी ओर से 'कुछ' कहो और बाद में, उसी 'कुछ' को तुम महात्‍मा गांधी या मार्टिन लूथर किंग के नाम से जोड़कर कहो। तुम महसूस करोगे कि बात में वजन आ रहा है।

शब्‍दों में वजन काम करता है। मोदी लहर भी इसी बीमारी की उपज है। इसको हम रचनात्‍मकता का नाम दे सकते हैं। जब कोई इस लहर को रोकेगा, तो उसका कद लहर वाले से यकीनन बड़ा हो जाएगा। जब आदमी बड़ा है तो कवरेज भी बड़ी होनी चाहिए। सिकंदर को रोकने वाला पोरस छोटा कैसे हो सकता है ? भले ही, पोरस ने सिकंदर पर जीत हासिल न की हो, लेकिन सिकंदर को रोकना भी कम नहीं हो सकता।

अगर, दिल्‍ली में 'मोदी लहर' की हवा निकली है, तो चिंता का विषय है। मगर, चिंता केवल बीजेपी के लिए नहीं, बल्‍कि तमाम राजनीतिक दलों के लिए। मोदी लहर को दरकिनार कर दो। अगर, आप कहते हैं, नहीं नहीं मोदी लहर तो थी, तो मैं कहता हूं, लहर अगर थी तो सत्‍ता विरोधी। जिस पर सवार होकर नरेंद्र मोदी दिल्‍ली सिंहासन तक पहुंचे। अगर हवाएं उस तरफ हों, जिस तरफ आपकी नौका को किनारा चाहिए, तो आपको अपने हुनर पर गुमान नहीं करना चाहिए बल्‍कि परिस्‍थितियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे इस समय आपके पक्ष में हैं।

'मोदी लहर' ने वर्ष 2014 में जन्‍म लिया, मगर, दिल्‍ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के जरिये कांग्रेस के चारे खाने वर्ष 2013 में चित कर दिए थे। जो सीधे सीधे संकेत हैं कि लहर सत्‍ता विरोधी थी। कांग्रेस के भ्रष्‍टाचार से लोग तंग आ चुके थे। देश के पास विकल्‍प के तौर पर बीजेपी के अलावा दूसरा कोई था भी नहीं। बाकी सभी नेता क्षेत्रीय पार्टियों से आते हैं, जो या तो जनता परिवार से टूटकर बनी हैं, या कांग्रेस से।

अगर, मोदी लहर होती तो इसका असर उड़ीसा, पश्‍चिमी बंगाल, तमिलनाडू में जरूर दिखाई पड़ता। वहीं, नवोदित आम आदमी पार्टी अकाली दल बीजेपी के गढ़ पंजाब से चार सांसद लाने में कामयाब न होती। हालांकि, अन्‍य राज्‍यों में परिस्‍थितियां पूर्ण रूप से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में थी। फिलहाल, आम आदमी पार्टी पर विश्‍वास करना मुश्‍किल था, क्‍योंकि लोग नए थे, रातोंरात उम्‍मीदवार मिले थे। बीजेपी के पीछे तमाम आध्‍यात्‍मिक, धार्मिक संस्‍थान, आरएसएस समेत अन्‍य हिंदू संगठन थे।

अगर, लोक सभा चुनावों के बाद के चुनावों पर नजर मारे तो देखेंगे कि बीजेपी ने महाराष्‍ट्र चुनाव जीता, मगर, सरकार अल्‍पमत में है यदि शिव सेना विरोध पर उतर आए, तो बीजेपी को एनसीपी का सहारा लेना होगा, जिसको नरेंद्र मोदी चुनावों के दिनों में नेचुरल करप्‍ट पार्टी या चाचे भतीजे की पार्टी कहते थे।

हरियाणा में सफलता का मुख्‍य कारण डेरे का समर्थन, वाड्रा डीएलएफ जमीन घोटाले का हरियाणा से जुड़े होना, हुड्डा सरकार का दस वर्षीय कार्यकाल, गोपाल कांडा का मामला, कांग्रेस के अंदर दरार, केंद्र में कांग्रेस का सफाया, भ्रष्‍टाचार की छवि हैं। मगर, जम्‍मू कश्‍मीर में बिखराव के नतीजे मिले, जिसके कारण वहां सरकार नहीं बन पाई। झारखंड को बदलाव की जरूरत थी एवं बाहरी दलों से आए नेताओं को टिकट देना अच्‍छा साबित हुआ।

देश बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। लोगों के बीच अब राजनीति को लेकर चर्चा होने लगी है। कल तक जनता किसी मुद्दे पर अधिक माथा मच्‍ची नहीं करती थी। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार देने के बाद दिल्‍ली की जनता ने नई पार्टी आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत देकर कहीं न कहीं अपनी समझ का परिचय दिया है। और लहर की धुन में रहने वाले नेताओं को सचेत किया है, 'लहर' वजन बढ़ाने के लिए अच्‍छा शब्‍द है, वरना जनादेश से बढ़कर कुछ नहीं है। लोक सभा में बीजेपी को बहुमत मिला क्‍योंकि क्षेत्रीय पार्टियों को अधिक सांसद देने का मतलब था, कांग्रेस की सरकार या खिचड़ी सरकार, जिससे देश को नुकसान होता।

अब न मोदी लहर काम करती है, न केजरीवाल लहर। केवल मुद्दे काम करते हैं, यदि आप मुद्दों की डिलिवरी देने में सफल रहते हैं, तो आपको बहुमत मिल सकता है। जो अन्‍य दलों ने लोक सभा चुनावों में गलती की थी, उसी तरह की गलती बीजेपी ने दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में की। व्‍यक्‍तिगत हमले, मुद्दों से हटकर भाषणबाजी।

Thursday, February 12, 2015

आमिर खान गुस्‍से में

बेहद विवादित एंटरटेनमेंट एवं चैरिटी शो एआईबी रोस्ट को लेकर बॉलीवुड में अलग अलग राय है। कुछ सितारे इसके पक्ष में खड़े हैं, तो कुछ इसके विरोध में। जहां कमाल खान गालियां देते हुए इस गाली भरपूर शो का विरोध कर रहे हैं, वहीं आमिर ख़ान गंभीरता के साथ करण जौहर और अर्जुन कपूर को फटकार लगा रहे हैं।

कमाल ख़ान को लेकर बात करना जरूरी नहीं, उसकी तो विवाद खड़ा करना आदत है। लेकिन आमिर ख़ान को लेकर बात करना बनता है क्‍योंकि बॉलीवुड में उनका कद काफी ऊंचा है। 'सत्‍यमेव जयते' जैसे शो ने उनकी समाज में एक अलग छवि बनाई है, हालांकि, आमिर ख़ान केवल इस शो का चेहरा हैं, क्‍योंकि अभिनेता हमेशा चेहरा ही होता है। मगर, जनता इस बात से अनजान रहती है। उसके लिए चेहरा ही सब कुछ होता है। इसमें शक नहीं है कि आमिर ख़ान एक संजीदा कलाकार हैं, उनका प्रोजेक्‍ट चुनाव बेहतर होता है।

हाल में आमिर ख़ान ने एक टिप्‍पणी की, जो मुझे थोड़ी सी अख़र रही है। उनकी बात गले नहीं उतार पा रहा हूं। शायद आप उतार पाएं। एआईबी रोस्‍ट पर प्रतिक्रिया देते हुए आमिर ख़ान ने कहा,''मैंने यह शो पूरा नहीं देखा है। इस शो के दो - तीन क्लिप ही मैंने देखे हैं और पर्सनली यह शो मुझे पसंद नहीं आया। शो देखते ही मुझे गहरा धक्का लगा। जो मैं सुन रहा था, उसपर मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था।''

आगे आमिर ख़ान कहते हैं कि यह शो मुझे पर्सनली बेहद ही हिंसात्मक लगा। मैं किसी की पर्सनली अभिव्यक्ति की आजादी पर कमेंट नहीं कर रहा, लेकिन मेरा मानना है कि आजादी के साथ-साथ कुछ जिम्मेदारियां भी होती हैं, जिसे हम सब को निभाना चाहिए।''

आमिर की प्रतिक्रिया सही है। मैं भी मानता हूं यदि हम एक अच्‍छा समाज चाहते हैं, तो हमको इस तरह के गाली भरपूर एंटरनेटमेंट कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाना होगा। मगर, मैं आमिर से एक सवाल पूछना चाहता हूं कि उनकी डेल्‍ही बेली फिल्‍म, आख़िर किस तरह की सोच से उपजी थी। मुझे लगता है कि 'डीके बॉस' की जगह किसी अन्‍य नाम को रखा जा सकता था। गालियों के बिना भी फिल्‍म का निर्माण हो सकता है।

हालांकि, इस फिल्‍म से पहले आमिर ख़ान ने दर्शकों को चेता दिया था कि डेल्‍ही बेली फिल्‍म देखने जाते समय बच्‍चों को न लेकर जाएं क्‍योंकि आपको शब्‍दावली से समस्‍या हो सकती है। हालांकि, एक शो के दौरान लड़कियों ने आमिर ख़ान के साहस की सराहना की थी, हो सकता है कि यह अंध प्रेम हो, एक छवि के प्रति उनका झुकाव। लड़कियां कह रही थीं कि उनके कारण उनको गालियां निकालना आ गया। आमिर ख़ान की मुस्‍कराहट बता रही थी कि उनका संदेश लड़कियों तक पहुंच गया, मगर, यह किस तरह की शिक्षा है। 

एक अन्‍य सवाल, जो उनकी फिल्‍म थ्री इडियट्स से जुड़ा हुआ है। उसके एक डायलॉग है, तोहफा कबूल करें, और जब इस डायलॉग को बोला जाता है, तो झुककर शर्ट को पिछवाड़े से उठाता हुआ सामने वाला कौन सा तोहफा दे रहा होता है। एक और सवाल, जो पिछले दिनों रिकॉर्ड तोड़ कमाई करने वाली फिल्‍म पीके से जुड़ा हुआ है। इस फिल्‍म में आमिर ख़ान किसी के पिछवाड़े में हाथ डालते हुए किसी का स्‍टाइल ठीक कर रहे हैं। पीके शहर, वीराने या अन्‍य जगह पर डांसिंग कारें दिखा रहा है, क्‍या यह सही है ?

मुझे लग रहा है कि आप कड़वी दवा को शहद में मिलाकर पिला रहे हैं और एआईबी रोस्‍ट पूरी की पूरी कड़वी दवा निगलने को कह रहा है। एआईबी वाले किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं करना चाहते। शायद उनको मिलावट पसंद नहीं है। मगर, आप तो शहद के साथ कड़वी दवा पिला रहे हैं।

आमिर ख़ान, तुम लोगों से तो सन्‍नी लियोने अच्‍छी है, जो कपड़े पहनने के पैसे तो ले रही है। बॉलीवुड की अभिनेत्रियों ने तो कपड़े उतरवाने के बदले पैसे लिए हैं। वक्‍त है अभी भी संभल जाओ। दिखाए से हट जाओ। लड़ना है तो स्‍वयं भी सुधरो। यदि लोग अच्‍छी चीज से हंसी पैदा नहीं कर सकते, तो दूसरों पर उंगली न उठाएं। वैसे आपका जल्‍द कोई प्रोग्राम तो नहीं आने वाला या कोई फिल्‍म तो रिलीज होने के किनारे तो नहीं।

सदमे में 'पीएम'

दिल्ली विधान सभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन न कर पाने का सदमा बिल्कुल नहीं लगा, लेकिन रोजकोट में एक मंदिर बनने की ख़बर सुनकर पीएम मोदी जी का मन दुख से भर गया, क्योंकि इस मंदिर का संबंध उनसे है। उन्होंने ट्विट कर दुखद प्रकट किया एवं कहा, इंसानों का मंदिर बनाने की भारत में संस्कृति नहीं है।

मैं सहमत हूं, मगर, एक सवाल पूछना चाहता हूं कि महात्मा गांधी का मंदिर, जो गांधीनगर में आप ने करोड़ों रुपये खर्च कर बनाया है, उस पर भी कुछ कहना चाहेंगे। इसके अलावा जो करोड़ों रुपये खर्च कर सरदार पटेल की मूर्ति का निर्माण करने की सोच रहे हैं, उस पर भी कुछ प्रकाश डालेंगे।

मुझे पता है कि आप सदमे में हैं, सदमे का कारण भी सब जानते हैं। किरण बेदी के आंसू, संसद पटल पर आपके आंसू, पूरा भारत समझता है एवं जानता है। अब सुर्खियां बटोरने का समय नहीं, प्रिय प्रधानमंत्री जी, अब कार्य करने का समय है।

बिहार में हो रहा लोकतंत्र का चीर हरण सब देख रहे हैं। पहली बार देख रहा हूं कि राज्यपाल एक बहुमत हासिल पार्टी को नजरअंदाज कर एक विधायक को महत्व दे रहा है। जब जेडीयू मांझी को निकाल चुकी है और अब उनकी एक विधायक की हैसियत है तो भाजपा उसको समर्थन किस आधार पर देगी।

लोकतंत्र का चीर हरण करना रोकिए, सुर्खियां सदमे तो चलते रहेंगे। मंदिर आपके सूट, विदेशी यात्रा खर्च,  चुनाव प्रचार से महंगा न होगा।

अंत में...
यह मंदिर 2006 से बना हुआ था। इसमें अभी तस्वीर की जगह प्रतिमा स्थापित की जानी थी। आप से ज्यादा मैं हैरत में हूं, कि इतने साल बाद आपको सदमा लगा।

Monday, February 9, 2015

अरुण जेटली के नाम खुला पत्र

नमस्‍कार, अरुण जेटली जी। आप हमारे देश के वित्‍त मंत्री हैं। आप एक अच्‍छे नेता भी हैं। आप कई दशकों से राजनीति में हैं। यकीनन, आप देश के प्रधानमंत्री बनने के हकदार थे। लेकिन, आपका नसीब काम नहीं कर सका, और नसीबवाले नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए। चलो, काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता, किसी महान व्‍यक्‍ति ने कहा है। जो आपके हिस्‍से आया, उसको पूर्ण जिम्‍मेदारी से निभाएं।

मैं आपको पत्र बजट के संबंध में नहीं लिख रहा। मैं आप से किसी प्रकार की सुविधा या छूट देने की मांग करने वाला नहीं हूं क्‍योंकि नसीब वाले प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं, देश को कड़वी दवा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हमारा क्‍या है, जो वादे पूरे होंगे, उनको लेकर खुशी मनाएंगे, जो बाकी रहेंगे, उनको राजनीतिक जुमला समझकर भूल जाएंगे। हां, अच्‍छे दिन आने वाले हैं, राजनीतिक जुमला बनकर न रह जाए, इसकी दुआ करें।

हां, मैं आपको पत्र क्‍यों लिख रहा हूं ? मैंने पिछले दिनों आपकी एक प्रेस वार्ता देखी। मुझे समझ नहीं आया कि उस प्रेस वार्ता को बुलाने का मकसद क्‍या था ? जी हां, दिल्‍ली चुनाव से एक दिन पहले। हां, वो वाली, जिसमें आप ने आम आदमी पार्टी को अराजकतावादी कहा। यह बात तो दिल्‍ली चुनावों से पूर्व एक रैली में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी कह चुके थे, फिर आपको विशेष प्रेस वार्ता बुलाकर कहने की जरूरत समझ नहीं आई। हालांकि, आपका उतरा हुआ चेहरा मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व को व्‍यक्‍त कर रहा था। यकीनन, आप ने वो प्रेस वार्ता किसी दबाव में बुलाई।

चलो, जो भी हो, लेकिन मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं, जेपी आंदोलन। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आपका युवा नेतृत्‍व। कुछ याद आया। यदि याद आया तो पूछना चाहता हूं कि आज वो भ्रष्‍टाचार के खिलाफ खौलने वाला खून ठंड क्‍यों पड़ गया ? आज आपकी डगर पर कुछ युवा चल रहे हैं, और आपको उनमें अराजकतावाद दिखाई कैसे पड़ गया ? आप ने बाबा रामदेव की तुलना भी जेपी से कर डाली थी, क्‍योंकि बाबा रामदेव ने काले धन के खिलाफ सरकार विरोधी लहर पैदा की, हालांकि, उनके कुर्ते सलवार पर आज भी चुटकले बनते हैं। बाबा रामदेव में आपको अराजकता नजर नहीं आई। इंदिरा गांधी के खिलाफ चलाए अभियानों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की भूमिका में आपको अराजकतावाद नजर नहीं आया।

मैं समझता हूं, आपकी मजबूरी। आप अमृतसर से हारे हुए उम्‍मीदवार हैं और हारे हुए व्‍यक्‍ति की स्‍थिति को समझना अधिक कठिन नहीं है। उस हार ने आपको कमजोर कर दिया। अब नसीब वाले की कृपा से मंत्रीमंडल में हैं। अब उनके बने हुए रास्‍ते पर आपको चलना पड़ेगा। आपका मन माने या न माने। आज इंडियन एक्‍सप्रेस समाचार पत्र में प्रकाशित हुए कुछ विदेशी बैंक खाता धारकों के नाम पर आप ने कहा, कार्रवाई के लिए सबूत चाहिए। मैं आपकी बात से सहमत हूं, लेकिन, मैं आपको कुछ दिन पीछे लेकर जाना चाहता हूं। जब अवाम नामक एक जिन्‍न बोतल से बाहर निकला, और उसने आम आदमी पार्टी पर फर्जी चंदा लेने के आरोप जड़ दिए। और आप ने मीडिया से बातचीत करते हुए आम आदमी पार्टी पर निशाना साध दिया। हालांकि, आप का व्‍यवहार उस तरह का था, जिस तरह ग्रामीण संस्‍कारी महिला को सन्‍नी लियोने कहे, बहनजी आपका पल्‍लू सरक रहा है। आप ने अरविंद केजरीवाल से पूछ डाला, यदि वो आईआरएस अधिकारी होते तो क्‍या ? मैं हैरत में पड़ गया। मुझे लगा, जैसे जज पूछ रहा हो, चोर से यदि तुम जज होते तो क्‍या फैसला सुनाते ? आज आप उसी तरह के मामले में कार्रवाई के लिए सबूत मांग रहे हैं, उस दिन तो आप ने आंख झपकते मीडिया में आम आदमी पर हमला बोल दिया था। आज अम्‍बानी परिवार का नाम सबसे ऊपर था, तो आप कैसे बोलते ? हां, मैं समझ सकता हूं।

माननीय वित्‍त मंत्री जी आप ने वर्ष 2013 में यूपीए 2 को अध्‍यादेश लाने पर खूब खरी खोटी सुनाई थी। उन दिनों पूरा देश सुन रहा था। आप ने किस तरह पानी पी पी कर अध्‍यादेश लाने पर यूपीए 2 को कोसा था। मगर, आप के मुंह से एक शब्‍द तक नहीं निकला, जब आपकी सरकार ने सत्‍ता संभालते ही धड़ाधड़ एक के बाद एक अध्‍यादेश पारित कर दिए। हालांकि, गुप्‍त सूत्रों से ख़बर थी कि कुछ मंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम से खुश नहीं हैं। हो सकता है, उनमें आपका नाम शामिल हो या न भी हो। मगर, आप ने खुलकर कुछ नहीं कहा।

हो सकता है कि कुछ साल बीतने के बाद आपकी भी किताब बाजार में आए। उसमें कुछ धमाकेदार खुलासे हों। मीडिया टीआरपी बटोर लेगा। प्रकाशक पैसे कमा लेगा, लेकिन मेरी नजर में उस समय सनसनीखेज खुलासे करती किताब केवल समोसे रखकर खाने के काम आ सकती है, इससे अधिक कुछ नहीं। क्‍योंकि सांप के निकल जाने के बाद लीक पीटने का कोई फायदा नहीं होता। सचिन तेंदुलकर ने चैप्‍पल के खिलाफ कुछ खुलासे किए, मगर, उन खुलासों से क्‍या होने वाला है ? मनमोहन सिंह के खिलाफ बहुत कुछ लिखा गया ? इससे क्‍या फर्क पड़ता है ? हम अतीत को कभी बदल नहीं सकते, मगर, सुनहरा भविष्‍य जरूर गढ़ सकते हैं।

अंत में इतना कहूंगा, घुट घुट कर सोहरत की जिन्‍दगी जीने से बेहतर है, स्‍वतंत्र फकीर की जिन्‍दगी।

जय हिंद

Valentine Day और माता पिता पूजन दिवस

अभी अभी अहमदाबाद की सड़कों पर आटो के पीछे कुछ बैनर देखे, जिसमें 14 फरवरी को माता पिता पूजन दिवस मनाने का निवेदन किया जा रहा है। 

यह Valentine Day के सामने एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश है, जो बुरी बात नहीं है। एक सराहनीय प्रयास है। हालांकि, मैं दोनों में विश्‍वास नहीं करता, क्‍योंकि दोनों के लिए केवल एक दिन काफी नहीं है।

यह तो दिनचर्या का हिस्‍सा होना चाहिए। माता पिता की पूजा और प्रेम दोनों महान हैं। समय के साथ साथ मूल्‍यों में गिरावट आई है। हमने पैसे एवं सुख सुविधाओं को भावनाओं से सामने खड़ा कर दिया है। भावनाओं, आत्‍मीयता की लकीर अब छोटी लगने लगी है। प्रेम स्‍वभाव है, हालांकि, प्रेमी का चुनाव होने लगा है। चुनाव सुंदरता के आधार पर, चुनाव हैसियत के आधार पर, कभी कभी तो जाति के आधार पर, जहां चुनाव है, वहां लोकतंत्र हो सकता है, लेकिन स्‍वभाव नहीं।

प्रेम तो स्‍वभाव है और स्‍वभाव के लिए एक दिन नहीं हो सकता। यदि माता पिता के प्रति हमारे हृदय में मान सम्‍मान है, तो उसको प्रकट करने के लिए दिन का चुनाव अनुचित लगता है। माता पिता तो हमेशा बच्‍चों के लिए अपनी तरफ अच्‍छा करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, बच्‍चे कभी कभी माता पिता के चुनाव में जुट जाते हैं। हम माता पिता को जायदाद, संपत्‍ति की तरह बांटने लगते हैं।

मगर, मेरे दिमाग में सवालिया कीड़ा कुरबल कुरबल करने लगा कि आखिर इस दिन युवा माता पिता पूजन दिवस मनाएंगे या माता पिता बनने के लिए राह तैयार करेंगे ? एक वर्तमान है तो दूसरा भविष्‍य।

#MaaBaappoojandiwas #Velentineday

Sunday, February 8, 2015

अरविंद केजरीवाल के नाम खुला बधाई पत्र

नमस्‍कार,
अरविंद केजरीवाल,
संयोजक, आम आदमी पार्टी,
नई दिल्‍ली।

शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई हो। एग्‍जिट पोल के आधार पर तो आप बधाई के हकदार है हीं। यदि एग्‍जिट पोल चूक भी जाएं, तो भी आप बधाई के हकदार हैं क्‍योंकि आप ने अपने जांबाज स्‍वयंसेवक के साथ जी जान लगाकर चुनावी युद्ध लड़ा है। कभी कभी खेल इतना रोचक हो जाता है कि उसमें हार जीत से अधिक खिलाड़ियों का व्‍यवहार और जज्‍बा महत्‍व रखने लगता है। मुझे क्रिकेट देखने का अधिक शौक नहीं, मगर, क्रिकेट के मैदान पर वसीम अकरम और अजय जाडेजा का जज्‍बा व व्‍यवहार देखना पसंद था। मैच हारे या जीते, वो मुस्‍कराते हुए नजर आते थे। अब आप जीत रहे हैं। आपकी बहुमत वाली सरकार दिल्‍ली में बनती नजर आ रही है। मैं आम आदमी पार्टी का समर्थक हूं। शायद इससे बेहतर यह कहना होगा कि मैं आम लोगों का समर्थक हूं, जो कुछ बदलाव लाना चाहते हैं। मैं आपकी पार्टी का समर्थन भी इसी सोच के साथ किया।

सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि विकास और बदलाव के दावे करने वाले दो शख्‍स दिल्‍ली में होंगे। एक छोटी दिल्‍ली देखेगा, तो दूसरा बड़ी दिल्‍ली अर्थात क्रमश: आधा अधूरा राज्‍य एवं संपूर्ण राष्‍ट्र। दिल्‍ली को आम आदमी पार्टी की गंगोत्री कहूंगा क्‍योंकि इसका उदय दिल्‍ली से हुआ है। यदि आम आदमी पार्टी अपने वादे पूरे करने में सफल होती है तो गंगोत्री गंगा का रूप धारण कर लेगी। मगर, ध्‍यान रखने वाली बात यह है कि गंगा में बहुत सारे गंदे नाले भी आकर गिरने लगते हैं। यदि गंगा को साफ रखना है तो गंदे नालों को इसमें गिरने से रोकना होगा।

मुझे खुशी है कि आम आदमी पार्टी ने नरेंद्र मोदी की उस रणनीति के तहत विरोधियों का सामना किया, जो नरेंद्र मोदी ने लोक सभा चुनावों के दौरान अपनाई थी। लोक सभा चुनावों में जब नरेंद्र मोदी पर विरोधी निजी हमले कर रहे थे तो नरेंद्र मोदी स्‍वयं विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ रहे थे। जिस तरह नरेंद्र मोदी ने प्रियंका वाड्रा के शब्‍द 'नीच राजनीति' को 'नीच जाति की राजनीति' से जोड़कर पिछड़ी जाति से होने का परिचय दिया। उसी तरह 'उपद्रवी गोत्र' की आड़ में अरविंद केजरीवाल जी आप भी अपना 'गोत्र अग्रवाल' बताने से चूके नहीं। जब बीजेपी आप पर निजी हमले बोल रही थी तो आप दिल्‍ली की जनता से मुद्दों की बात कर रहे थे।

जिस तरह नरेंद्र मोदी ने देश के तमाम राजनीतिक दलों को स्‍वयं के खिलाफ बताकर स्‍वयं के कद को ऊंचा किया, उस तरह आप ने बीजेपी एवं केंद्र सरकार को एक साथ दिखाकर स्‍वयं के कद को ऊंचा किया। आप ने केंद्र सरकार बनाम अरविंद केजरीवाल कर पूरा मामला अपनी तरफ खींच लिया। जब बीजेपी आप पर कीचड़ उछालने का प्रयास कर रही थी तो आप नरेंद्र मोदी की तरह चतुराई से काम लेते हुए बीजेपी सरकार को चुनौती देते हुए दिखे। आप ने कहा, ''सरकार आपकी है, जांच करवा लो, जेल में डाल दो।'' जब कांग्रेस नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलती थी तो नरेंद्र मोदी का जवाब भी इस तरह का होता था।

अब एग्‍जिट पोल कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की तरह आप भी विजयी होने जा रहे हैं। दिल्‍ली की जनता आपको बहुमत देने जा रही है। मेरा तो इतना निवेदन है कि आप अपना घोषणा पत्र अब अपने सामने रखें। और उसके हिसाब से जल्‍द से जल्‍द रणनीति बनाएं। जब अतिआशावाद जन्‍म लेता है, तो उतावलापन भी तेजी के साथ पनपने लगता है। अब सवाल आपकी तरफ भी उछलेंगे। आप केवल 'जुमला था' कहकर नहीं बच सकते क्‍योंकि आप से जवाब विरोधी पार्टियां नहीं, बल्‍कि मेरे जैसे युवा भी मांगेंगे, जो गुजरात या देश के अन्‍य किसी राज्‍य से बैठकर आपको पुरजोर समर्थन कर रहे थे।

मुझे उम्‍मीद है कि अरविंद केजरीवाल दिल्‍ली को एक अच्‍छी सरकार मुहैया करवाएंगे क्‍योंकि आपकी पृष्‍ठभूमि राजनीति से संबंध नहीं रखती है। सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण बात जो मैं अंत में लिखने जा रहा हूं। वो यह है कि आप राजनीति को समझ चुके हैं। आप ने उस समझ के आधार पर एक बड़े प्रवक्‍ता को मात दे दी। मगर, अब आप शब्‍दों पर जरूर संयम बरतें। बात वो कहें, जो आप को भविष्‍य में भी उचित लगे, वो नहीं, जिस पर यूटर्न लेना पड़े।

हालांकि, आपका घोषणा पत्र भी एक राजनीतिक पार्टी सा था, क्‍योंकि उसमें वादों को पूरा करने की निश्‍चित समय सीमा नहीं थी। 'पांच साल केजरीवाल' से समझ आ रहा था कि आप पांच साल चाहते हैं। अब जनता ने आपको पांच साल भी दे दिए, यदि मैं एग्‍जिट पोल को सही मान लूं।

अंत में, फिर से बधाई देते हुए कहना चाहूंगा कि आम आदमी पार्टी के स्‍वयंसेवकों को खेल दिखा रहे मदारी की तरह नजरिया रखनी चाहिए, जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला। आजकल एक नया ट्रेंड चला है, यदि आप के पक्ष में लिखूं तो आपका समर्थक, विरोध में लिखूं, तो पूछ लिया जाता है, जनाब कितने पैसे मिले हैं। करीब करीब यह हाल सभी पार्टी समर्थकों का है, लेकिन आम आदमी पार्टी से अलग तरह के व्‍यवहार की उम्‍मीद रखते हैं क्‍योंकि इस पार्टी में राजनीतिक लोगों की भीड़ नहीं है। बस अच्‍छी एवं स्‍वच्‍छ राजनीति का परिचय दें।

जय हिंद

जीतन राम मांझी मुख्‍यमंत्री से मोहरे तक

जीतन राम मांझी का नाम उस समय उछलकर मीडियाई सुर्खियों में सम्‍मिलित हुआ, जब बिहार के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नीतिश कुमार ने लोक सभा चुनाव 2014 में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए मुख्‍यमंत्री पद से त्‍याग पत्र देकर जीतन राम मांझी को बिहार की सत्‍ता सुपुर्द की।

उसके बाद जीतन राम मांझी और मीडियाई सुर्खियों के बीच चोली दामन का रिश्‍ता बन गया। हालांकि, जीतन राम मांझी कहते रहे कि नीतीश और उनके बीच चोली दामन का संबंध है। आलम कुछ यूं बन गया था कि बिहार में मांझी बोलते तो ख़बर बनती। कभी कभार तो ऐसा लगने लगता कि मानो भाजपा के सांसद साक्षी महाराज और बिहार के मुख्‍यमंत्री जीतन राम मांझी के बीच 'कौन अधिक सुर्खियां बटोरेगा' प्रतियोगिता चल रही हो।

जीतन राम मांझी को मुख्‍यमंत्री बनाने का फैसला नीतीश कुमार का था, जिसका जेडीयू के शीर्ष नेतृत्‍व ने सम्‍मान किया था। इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति कहीं न कहीं काम कर रही थी। हालांकि, जो कुछ इस समय बिहार की राजनीति में घटित हो रहा है, वो भी वोट बैंक की राजनीति का हिस्‍सा है। उस समय जेडीयू को लग रहा था कि जीतन राम मांझी के जरिए दलित वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित किया जा सकता है। मगर, जेडीयू को इस कदम के बुरे प्रभाव का अंदाजा बहुत देर बाद लगा।

नौ महीनों बाद परिस्‍थितियां इस तरह की बन चुकी हैं कि मुख्‍यमंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी को अंगूठा दिखा रहा है। जीतन राम मांझी की गतिविधियों का नीतीश कुमार खेमे की तरफ से निरंतर विरोध किया जा रहा था, क्‍योंकि जीतन राम मांझी का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ रहा था। आलम कुछ यूं है कि पूरी जेडीयू एक तरफ खड़ी है, और मुख्‍यमंत्री जीतन राम कुछ समर्थकों के साथ एक तरफ।

अब जीतन राम मांझी नीति आयोग की बैठक के बहाने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे। इतना ही नहीं, भाजपा बिहार के शीर्ष नेता भी दिल्‍ली में डेरे डाले हुए हैं। जेडीयू को इस बात का अंदेशा तो लगभग एक दो महीने पहले ही लग गया था। मगर, पार्टी के बीच चल रही उठापटक को संभालने के लिए जेडीयू ने कुछ वक्‍त लिया और इस वक्‍त के दौरान जीतन राम मांझी भी अपना आधार बना गए।

मामला अधिक उस समय बिगड़ गया, जब जीतनराम मांझी ने शनिवार को राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। और नीतीश खेमे के 20 मंत्रियों ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नीतीश कुमार को विधायक दल का नया नेता चुना गया। और नीतीश कुमार 130 विधायकों का साथ होने का दावा करते हुए राजभवन पहुंचे। हालांकि, उनकी मुलाकात राज्‍यपाल से नहीं हो पाई। उधर, जीतन राम मांझी का दावा है कि नीतीश कुमार की बैठक एवं दावा अवैध है। इसके अलावा जेडीयू अध्‍यक्ष शरद यादव ने जीतन राम मांझी को मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देने को कहा है, यदि वो ऐसा नहीं करते तो राज्‍यपाल को निवेदन किया है कि उनको बरखास्‍त किया जाए, क्‍योंकि उनकी पार्टी ने विधायक दल का नया नेता चुन लिया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर जीतन राम मांझी को इस खेल में मिलेगा क्‍या ? क्‍योंकि जीतन राम मांझी के खिलाफ उनकी पार्टी अपना एतराज राज्‍यपाल को सौंप चुकी है, जिसको राज्‍यपाल नजरअंदाज नहीं कर सके। भले ही जीतन राम मांझी कह रहे हों कि मांझी की नाव कभी डुबती है क्‍या ? यदि राज्‍यपाल सोमवार को शरद यादव एवं नीतीश कुमार के दावे को स्‍वीकार करते हैं, तो जीतन राम मांझी का जाना तय है।

ऐसे में जीतन राम मांझी केवल एक मुख्‍यमंत्री से एक मोहरा बनकर रह जाएंगे। जीतन राम मांझी ने अपने हाथ आए सुनहरे अवसर को खो दिया। हो सकता है, यदि बिहार विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को जोरदार सफलता मिल जाए, तो मांझी को भी कुछ मिल जाए, मगर, एक मुख्‍यमंत्री का पद तो उनको बीजेपी में नहीं भी मिलेगा।

अंत कहूंगा मांझी चूक गए, और चूके हुए लोगों के लिए समाज में अधिक स्‍थान नहीं होता। घर का भेदी लंका ढाहे, कहावत को नकारात्‍मक रूप में देखा जाता है, सकारात्‍मक रूप में नहीं।

दिल्‍ली विस चुनाव - बीजेपी की बड़ी गलतियां

एग्‍जिट पोल के नतीजों को सही मान लिया जाए तो दिल्‍ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत का परचम लहराने जा रही है। यदि बीजेपी नेताओं के मुताबिक इसको नकारा भी दिया जाए तो भी भाजपा के लिए अति उल्‍लास की बात नहीं होगी क्‍योंकि भाजपा ने जितनी जान दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में लगाई, उतनी कहीं और नहीं।

नतीजा यह हुआ कि एक सामान्‍य विधान सभा का चुनाव केंद्रीय सरकार बनाम एक आम आदमी बन गया। कांग्रेस ने स्‍वयं को रिंग से बाहर रखा। इससे कांग्रेस को फायदा होगा या नहीं, यह बात को 10 फरवरी 2015 शाम तक स्‍पष्‍ट हो जाएगी। यदि एग्‍जिट पोल के नतीजों के विपरीत परिणाम आ भी जाते हैं तो भी भाजपा को इस चुनाव से बहुत कुछ सीखने की जरूरत रहेगी।

अति आत्‍मविश्‍वास - लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को मिले बहुमत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्‍व को अति आत्‍मविश्‍वासी एवं अहंकारी बना दिया। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार और अति आत्‍मविश्‍वास हमेशा संगठन को कमजोर करता है। अहंकार के कारण संगठन टूटने लगता है एवं अति आत्‍मविश्‍वास के कारण पार्टी कार्यकर्ता जीत को लेकर आश्‍वस्‍त हो जाते हैं।

किरण बेदी प्रवेश - भारतीय जनता पार्टी ने दिल्‍ली में किरण बेदी को अरविंद केजरीवाल के तोड़ के रूप में उतारा। मगर, बीजेपी के इस कदम से दिल्‍ली इकाई के शीर्ष नेता नाराज हो गए। वर्षों से जुड़े लोग अपने संगठन को छोड़ तो नहीं सकते, लेकिन शीर्ष नेताओं को सबक जरूर दे सकते हैं, जो एग्‍जिट पोल में साफ दिखाई दे रहा है, हालांकि, नतीजों तक इंतजार रहेगा।

प्रधानमंत्री की रैलियां - भाजपा ने नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाने की पुरजोर कोशिश की। इस कोशिश में बीजेपी ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि इससे नरेंद्र मोदी की छवि को अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे स्‍थानीय नेताओं का कद और कम हो जाएगा एवं एक नई पार्टी यानी कि आम आदमी पार्टी को बैठे बिठाए एक ऊंचाई मिल जाएगी। इसका आम आदमी पार्टी ने पुरजोर फायदा उठाया। आम आदमी पार्टी ने दिल्‍ली चुनावों में केंद्र सरकार के वादों को घसीटा, जो आज तक पूरे नहीं हुए।

पूरी पार्टी को उतारना - भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों समेत अपने सभी मुख्‍यमंत्रियों से लेकर सांसदों तक को चुनाव प्रचार में उतारकर अपने पांव पर कुल्‍हाड़ी मारने का काम किया। जनता की पूरी हमदर्दी आम आदमी पार्टी के पक्ष में चली गई। जनता में भ्रम तेजी से फैलने लगा कि आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी कुछ भी कर सकती है।

व्‍यक्‍तिगत हमले - अरविंद केजरीवाल पर लंबे समय से बीजेपी समर्थकों की तरफ से व्‍यक्‍तिगत हमले किए जा रहे हैं। जनता भी इससे ऊब चुकी है। भाजपा ने इसको दोहराकर साबित किया कि केजरीवाल के खिलाफ भाजपा के पास ठोस बातें नहीं हैं। बीजेपी के विज्ञापन बीजेपी पर भारी पड़ने लगे। चाहे उपद्रवी गोत्र हो या अन्ना को माला पहनाकर मृत घोषित करना हो। बीजेपी केजरीवाल को निशाना बनाने के चक्‍कर में अन्‍ना को उस समय माला पहना रही है, जब वो स्‍वयं अन्‍ना टीम की सदस्‍य रही किरण बेदी को मुख्‍यमंत्री पद की दावेदार घोषित कर रही है।

अवाम का खुलासा - चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले अवाम का जिन्‍न का बोतल से निकलना। और खुलासे के अगले दिन नरेंद्र मोदी का आम आदमी पार्टी पर निशाना साधना पीछे की तस्‍वीर को साफ कर रहा था। अवाम की बात में सच्‍चाई हो सकती है, मगर चुनावों के दौरान इसको केवल हथकंडे से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। खासकर, उस समय जब सरकार बीजेपी की हो।

बाहरी लोगों को टिकट - भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्‍ठ नेताओं को नाराज कर बाहर से आए नेताओं को धड़ाधड़ टिकट दिए, ताकि भाजपा को दिल्‍ली की सत्‍ता मिल जाए। मगर, उन वरिष्‍ठ नेताओं की मेहनत का क्‍या, जो वो सालों से करते आ रहे थे। इसका मतलब तो यह हुआ कि यदि किसी पार्टी को केंद्र में सत्‍ता किसी व्‍यक्‍ति की लोकप्रियता से मिल रही हो तो पार्टी के सभी नेताओं को दरकिनार किया जा सकता है।

मुद्दों की बात छूट गई - भाजपा ने लोक सभा चुनाव मुद्दों पर लड़े थे। बीजेपी स्‍वयं मानती है कि उसको विकास के नाम पर बहुमत मिला है। आज देश का हर नागरिक विकास चाहता है। जहां उसको एक उम्‍मीद की किरण नजर आती है, उसकी तरफ चल देता है। भाजपा ने दिल्‍ली में विकास के मुद्दों पर बात न करते हुए अपना पूरा चुनाव प्रचार केवल अरविंद केजरीवाल को रोकने तक सीमित कर दिया। जो एक राष्‍ट्रीय प्रतिष्‍ठा रखने वाली पार्टी को नहीं करना चाहिए था।

अंत में
भारतीय जनता पार्टी को इस बार दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में लगभग 55 सीटों पर जीत दर्ज करनी चाहिए थी, क्‍योंकि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और साथ में विकास पुरुष की लोकप्रियता।

सुंदरता और सफलता

सुंदरता की तरह सफलता भी अलग अलग स्‍थानों पर अलग अलग होती है, जिस तरह वेस्‍ट इंडीज की सुंदरी भारत में चूक सकती है, और भारत की सुंदरी वैश्‍विक मंच पर।

इस तरह सफलता का पैमाना भी कोई पक्‍का नहीं, कोई पैसे से सफलता माप रहा है, कोई लाइफ स्‍टाइल से, तो कोई लोगों की भीड़ से, तो कोई आनंद से।

सफलता वो है, जो तुम्‍हे पूर्ण कर दे, संतुष्‍ट कर दे, अन्‍यथा दौड़ तो अंत तक कस्तूरी मृग भी लगाता है, कस्‍तूरी के लिए। 

# सकारात्‍मक सोच का जादू

Thursday, February 5, 2015

कोई ऐसा 'हेलमेट' भी बनाओ

मैं सुबह सुबह ऑफिस के लिए रोज की तरह निकला। हां, आप भी सुबह में ही ऑफिस के लिए निकलते होंगे। मैं एसपी रिंग रोड़, अहमदाबाद के रास्‍ते ऑफिस जा रहा था। मेरे बाइक से आगे एक और बाइक था। उस बाइक के टिफिन टांगने वाली जगह पर हेलमेट टांगा हुआ था। बाइक वाहक से लिपटी एक कन्‍या थी। हेलमेट केवल ट्रैफिक पुलिस वालों को देखकर पहनने के लिए रखा गया था, मेरे अनुमान अनुसार। आप हेलमेट पहनने के कारण पीछे बैठे बाइक सवार से बात नहीं कर पाते क्‍योंकि आपकी बात उसको सुनाई नहीं देती।

मैं सोचने लगा कि यदि हेलमेट को इस तरह से बनाया जाए कि बाइक वाहक कुछ बोले तो पीछे बैठे बाइक सवार को स्‍पष्‍ट सुनाई दे और पीछे वाला बोले तो बाइक वाहक को सुनाई दे। शायद हो सकता है, टिफिन टांगने वाली जगह पर कोई हेलमेट न टांगे।

हालांकि, इस घटना के कुछ दिन बाद मैंने एक अन्‍य समाचार पढ़ा, जिसमें लिखा था कि आपके दिमाग में चल रहे विचारों को आप ऑडियो के रूप में सुन पाएंगे। मैं हैरत में पड़ गया। और सोचने लगा कि मेरे दिमाग में जो चल रहा है उसको ऑडियो के जरिए सुनकर क्‍या करूंगा ? इससे तो और अधिक परेशानी हो जाएगी। हां, एक बात जरूर है कि इससे उन बाइक वाहकों को फायदा होगा, जो अकेले चलते हैं। उनको लगेगा कि उसके साथ अब कोई दूसरा भी चल रहा है। हालांकि, विचार उनके ही होंगे, बस ऑडियो में तबदील होकर उन तक पहुंचेंगे।

एक अन्‍य हेलमेट के बारे में भी जानने को मिला, जो आपके तनाव को कम करता है। यह हेलमेट जापान में बनाया गया है। निर्माताओं का दावा है कि यदि आप इस हेलमेट को पहनने के बाद चिल्‍लाते हैं, तो आपका तनाव काफी हद तक कम हो जाएगा। इस हेलमेट में भी कुछ फायदा नजर आता है क्‍योंकि इस हेलमेट को पहनने के बाद आप तनाव मुक्‍त तो रहेंगे। मानो, आप ऑफिस से तनावपूर्ण निकले हैं। मगर, घर पहुंचने से पहले आप ने इस हेलमेट को पहनकर कुछ समय चिल्‍ला लिया तो घर बिल्‍कुल फ्रेश पहुंचेंगे। उसी तरह, यदि आप घर से तनावपूर्ण निकले हैं तो ऑफिस पहुंचने से पहले तनावमुक्‍त हो सकते हैं।

फिर भी, भारत के लिए मेरे वाला हेलमेट बहुत जरूरी है क्‍योंकि आजकल प्रेमी जोड़े बाइक पर चलते हुए एक दूसरे से बात करना पसंद करते हैं। मगर, हेलमेट पहनने के कारण वो बात नहीं कर पाते, इसलिए वो बीच में से हेलमेट को निकालकर टिफिन वाली जगह टांग देते हैं।

मैं नरेंद्र मोदी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन...

मैं नरेंद्र मोदी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन उनके पैदा किए जा रहे अति आशावाद का विरोधी हूं। शायद, मुझे इस तरह के स्‍पष्‍टीकरण की जरूरत भी नहीं थी। लेकिन बात शुरू करने के लिए स्‍पष्‍टीकरण अधिक बेहतर चुनाव लगा। हां, मैं नरेंद्र मोदी के अतिआशवाद का विरोधी हूं। और हमारे बुजुर्ग भी कहते हैं, अति नुकसानदेह होती है, वो फिर किसी भी मामले में क्‍यों न हो।

अति आशावाद, अति निराशावाद को जन्‍म देता है। कुछ समय पहले तक बॉलीवुड में फिल्‍में हिट या फ्लॉप होती थी। मगर, फ्लॉप फिल्‍मों के लिए एक नया शब्‍द बाजार में आया, सुपर फ्लॉप। इस शब्‍द का जन्‍म अति आशावाद के कारण हुआ। फिल्‍मों का प्रचार बड़े स्‍तर पर किया जाने लगा। फिल्‍म के बड़े स्‍तर पर होते प्रचार के कारण लोगों के भीतर अच्‍छी फिल्‍म होने का आशावाद पैदा होता है। लेकिन, फिल्‍म दूसरे ही दिन सिनेमा हाल की खिड़की पर दम तोड़ देती है। इस मामले में संजय लीला भंसाली की सांवरिया, रामगोपाल वर्मा की आग और यशराज बैनर्स की टश्‍न, धूम 3 सबसे बड़े उदाहरण हैं।

चुनावी रैलियों में जो नरेंद्र मोदी ने बड़े बड़े सीना ठोककर दावे किए थे, अब वो तेजी के साथ फुस हो रहे हैं। पिछले आठ महीनों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई सरकार ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जो उनके दावों का समर्थन करता हो। अब धीरे धीरे आशावाद निराशावाद में बदल रहा है।

सबसे बड़ी हैरानीजनक बात तो यह है कि लोक सभा चुनावों में जबरदस्‍त प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को दिल्‍ली में संघर्ष करना पड़ रहा है। दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बौखलाहट के बहुत सारे उदाहरण देखने को मिले। मगर, सबसे बड़ी और दिलचस्‍प बात नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में कही, ''बाजारू सर्वे।''

नरेंद्र मोदी भूल गए, जब लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 272 प्‍लस का लक्ष्‍य लेकर चल रही थी तो इस मीडिया ने उनके पक्ष में बहुत सारे सर्वे दिखाए थे, और इन्‍हीं सर्वों की वजह से ही भारतीय जनता पार्टी अपने निर्धारित लक्ष्‍य तक पहुंची। मगर, आज नरेंद्र मोदी उन्‍हीं सर्वों पर उंगली उठा रहे हैं।

इससे भी हैरानीजनक बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में लोगों को चुनावी सर्वों पर विश्‍वास न करने की अपील की और उसके कुछ घंटों पश्‍चात कुछ नए चुनावी सर्वे सामने आए, जो भारतीय जनता पार्टी को जीतते हुए दिखा रहे थे। जिनको नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने दूधारू सर्वों का नाम दिया। इस तरह नरेंद्र मोदी की अपील उनके अन्‍य प्रयोगों ( किरण बेदी, विज्ञापन धमाका, अवाम का खुलासा) की तरह उन पर भारी पड़ती नजर आ रही है।

एक अन्‍य बात धीरे धीरे नरेंद्र मोदी अपनी विश्‍वसनीयता खोते जा रहे हैं क्‍योंकि पिछले आठ महीनों में उनके यू टर्न अरविंद केजरीवाल को भी पीछे छोड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी निरंतर अपने विरोधियों को बोलने का मौका दे रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि दिल्‍ली में भारतीय जनता पार्टी की कम होती लोकप्रियता के लिए नरेंद्र मोदी जिम्‍मेदार हैं।

आग में घी का काम उनके करीबी एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख अमित शाह ने यह कह कर डाल दिया कि हर भारतीय के हिस्‍से 15-15 लाख रुपए वाली बात केवल राजनीतिक जुमला था। इस तरह भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी की कितनी बातों को राजनीतिक जुमला कहकर बचाव करते रहेंगे। आजकल न्‍यूज चैनलों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्‍ता उतने आक्रामक एवं उत्‍साह भरपूर नजर नहीं आते, जितना लोक सभा चुनावों से पहले आते थे क्‍योंकि उनकी पार्टी को सत्‍ता में आए लगभग तीन तिमाहियां गुजर चुकी हैं। अभी तक उनके पास कुछ ऐसा नहीं है, जो उनका बचाव कर सके।

पैट्रोलियम उत्‍पादों के दाम गिर रहे हैं, मगर, सामने कच्‍चे तेल के भाव भी गिर रहे हैं। इसका श्रेय भी नरेंद्र मोदी लेने से नहीं चूके, उन्‍होंने स्‍वयं को नसीब वाला कह डाला। मगर, सवाल तो यह है कि भारत में पैट्रोलियम उत्‍पादों के उतने भाव गिरे, जितने गिरने चाहिए थे। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं है।

अंत में
भारतीय जनता पार्टी दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में अपनी हार को नरेंद्र मोदी के दामन से अलग कर रही है। हालांकि, अख़बार, रेडियो एवं चैनल तो बोल रहे हैं कि चलो चलें मोदी के साथ। इसका एक अन्‍य कारण भी है क्‍योंकि यदि इसको नरेंद्र मोदी से जोड़ दिया जाए, तो अन्‍य राज्‍यों में, जहां चुनाव होने वाले हैं, वहां भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को बड़ा झटका लग सकता है।

Friday, January 30, 2015

आम आदमी पार्टी से सवाल पूछने का हक किसे और क्यों ?

भारतीय जनता पार्टी की ओर से शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए 5 सवालों की दूसरी किश्त पेश की। इस किश्‍त को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने पेश किया। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि भाजपा 5 फरवरी तक हर रोज अरविंद केजरीवाल से 5 नए सवाल पूछेगी। लेकिन, सवाल तो यह है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी किस हक से सवाल पूछ रही है ? क्‍या भारतीय जनता पार्टी को सवाल पूछने का हक है ? सबसे हैरानीजनक बात तो यह है कि इसकी दूसरी किश्‍त केंद्रीय मंत्री द्वारा जारी की गई है।  

यह तरीका भी सराहनीय नहीं है। यह केवल सुर्खियों में बने रहने का ढंग है। लोगों का ध्‍यान भटकाने का तरीका है। एक राष्ट्रीय पार्टी जन आंदोलन की कोख से पिछले साल जन्मीं पार्टी से कितने बचकाने सवाल पूछ रही है। बचकानेपन तो मीडिया भी कर रहा है, जो बीजेपी के बेतुके बयानों को महत्व दे रहा है।

बीजेपी का यह कदम सराहनीय कम मद्दा अधिक लगता है, विशेषकर उस समय जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता गली गली कूचे कूचे नुक्कड़ नुक्कड़ वोट मांग रहे हैं, जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी को जनादेश भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस ने नहीं दिया, बल्‍कि जनता ने दिया है, तो सवाल पूछने का हक भी जनता को है, और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता जनता के बीच घूम रहे हैं।

एक अन्य सवाल, जब अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी के सामने खुली बहस का विकल्‍प पहले से ही रख दिया है तो बीजेपी सुरक्षित कोने में खड़ी होकर क्यों खेल रही है ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास मुद्दे नहीं ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास आम आदमी पार्टी की चुनौती का जवाब नहीं ? भारतीय जनता पार्टी इतने बचकाने सवाल पूछ रही है, जिनका जनता से दूर दूर तक सरोकार नहीं है।

क्या बच्चों की कसम खाकर पलटना राष्ट्रीय गुनाह है ? यदि गुनाह है तो पिछले साढ़े छह दशक के दौरान जो गुनाह राजनेताओं ने किए हैं, उनका जवाब तो पहले बीजेपी एवं कांग्रेस आम आदमी पार्टी के सामने ना सही, लेकिन जनता के सामने तो रखे। इसका तो सीधा सीधा मतलब तो यह हुआ कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की जुबां लोहे पर लकीर, और नेताओं की जुबां पानी पर, और पानी पर खींची लकीर पर सवाल उठाना उचित नहीं है।

मैं यह नहीं कहता भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस पार्टी को अरविंद केजरीवाल से सवाल नहीं करने चाहिए। मैं कहता हूं कि दोनों पार्टियों को मिलकर आम आदमी पार्टी को घेरना चाहिए। मगर, इतने बचकाने सवालों से नहीं। दोनों पार्टियां ठोस मुद्दों पर बात करें। यदि अरविंद केजरीवाल की सामान्‍य बातों पर ही सवाल पूछने हैं, तो कांग्रेस, बीजेपी अपने नेता के चुनावी बयानों का री टेलीकास्ट करे। अपने गिरेबां में पहले झांके। इससे पहले दिल्‍ली भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस दोनों के पास रही है। अरविंद केजरीवाल को तो केवल 49 दिन के लिए दिल्‍ली मिली और उसके लिए अरविंद केजरीवाल को लोक सभा चुनावों में दोनों पार्टियां बहुत कुछ पूछ चुकी हैं। जो अभी पूछ रही हैं, वो सोशल मीडिया पर बैठे किसी पार्टी के भक्‍तों के लिए तो ठीक है, लेकिन राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेताओं के लिए वो बचकाने सवालों से अधिक कुछ नहीं है।

एक और बात आम आदमी पार्टी से जवाब मांगने का हक केवल और केवल जनता का है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज कल दिल्‍ली में सबसे अधिक भीड़ अरविंद केजरीवाल की रैलियों में हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की किरण बेदी भी भीड़ जुटाने में चूक रही हैं। कांग्रेस का हाल तो जग जाहिर है। आज जो कांग्रेस की स्‍थिति है, पिछले दिल्‍ली विधान सभा चुनावों में वो आम आदमी पार्टी की थी, केवल मीडिया की नजर में। आम आदमी पार्टी को मिलने जन समर्थन ने बड़े बड़े दिग्‍गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया।

यदि अरविंद केजरीवाल भगोड़ा है। यदि अरविंद केजरीवाल पलटीमार है। तो भारतीय जनता पार्टी को घबराने की जरूरत नहीं थी। यदि अरविंद केजरीवाल दिल्‍ली का भरोसा खो चुका था, तो भारतीय जनता पार्टी को किरण बेदी क्‍यों ? यदि जनता को अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी पर विश्वास होगा तो वो आम आदमी को वोट करेगी यदि नहीं होगा तो नहीं करेगी।

मगर, बीजेपी किस अधिकार से सवाल कर रही है ? क्या मोदी सरकार ने सौ दिन में काला धन वापस लाने के वादे को पूरा कर दिया ? क्या जम्मू कश्मीर में बाप बेटी या बाप बेटे की पार्टी के साथ मिलकर मोदी की भाजपा सरकार नहीं बनाएगी ? क्या सुभाष चंद्र बोस से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए गए हैं ? क्या नशा विरोधी मुहिम को शुरू करने से पहले पंजाब की मौजूदा सरकार से नाता तोड़ लिया गया है ? यह सवाल जनता से जुड़े हैं न कि पारिवारिक सदस्यों की कसम से। शायद यह ही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल की सार्वजनिक बहस की चुनौती को नजरंअदाज करते हुए एक तरफ सवाल दागने पर जोर दे रही है।

अंत में...

दिल्ली जीतने के लिए 250 रैलियां, 120 सांसदों की डियूटी, 13 राज्यों के कार्यकर्ता और दर्जनों मंत्रियों की तैनाती और प्रधानमंत्री की 4 रैलियां। बीजेपी में बेचैनी और अरविंद केजरीवाल के जनाधार का सबूत हैं। अब अगर आम आदमी पार्टी हार भी गई तो अधिक परेशानी की बात नहीं होगी। बीजेपी की तैयारी को देखकर विश्व विजेता बनने निकले सिकन्दर की याद आ गई जो पोरस से जीत कर भी अंत हार गया और वापस लौट गया। भारत को फतह नहीं कर पाया।

Thursday, January 29, 2015

क्‍या आप को पसंद वीआईपी कल्‍चर ?

अगर भारत में कोई गंदा कल्‍चर है तो वो है ''वीआईपी कल्‍चर''। हालांकि, कुछ लोग कह सकते हैं कि दूर के अंगूर खट्टे। उनका भी अपना तर्क है। वे भी सही हैं कि क्‍योंकि भारत में हर कोई वीआईपी बनना चाहता है। यह विरोधाभास उसी तरह का है, जिस तरह भ्रष्‍टाचार विरोधी समाज बेटी के लिए लड़का देखने जाता है और पूछता है कि लड़के को ऊपर से कमाई होती है या नहीं। किसी भी व्‍यक्‍ति को ऊपर की कमाई से एतराज नहीं, मगर, भ्रष्टाचार से सबको नफरत है।

उसी तरह वीआईपी कल्‍चर है। यह कल्‍चर अच्‍छा नहीं है। मगर, यह कल्‍चर सबको पसंद है। वीआईपी कल्‍चर में हम केवल नेताओं, मंत्रियों को शामिल नहीं कर सकते, यहां के अमीर भी वीआईपी हैं। बड़े बड़े प्राइवेट कार्यक्रमों के साथ साथ अब धार्मिक संस्‍थानों में भी वीआईपी कल्‍चर घुस मार गया। वहां भी साधारण भक्‍त और वीआईपी भक्‍त हो गए हैं।

इस बंटवारे ने राष्‍ट्र को दो हिस्‍सों में बांट दिया एक आमजन और एक वीआईपी। वीआईपी कल्‍चर के खिलाफ एनडीटीवी ने एक मुहिम चलाई है। यह मुहिम कितनी सफल होगी, यह कहना मुश्‍किल है, मगर, रविश कुमार की तस्‍वीर के नीचे लगा स्‍लोगन कहता है, ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।''

उस मुहिम की सफलता असफलता पर सवालिया निशान लगाने से पहले कुछ सवाल आप स्‍वयं से पूछें। क्‍या सच में हम भारत बदलना चाहते हैं ? क्‍या हम नहीं चाहते, जब हम ऑफिस जाते समय ट्रैफिक में फंसे हों, तो हमारे साथ सरकार का नुमाइंदा या मंत्री भी खड़ा हो, और उसकी गाड़ी को स्‍पेशल ट्रीटमेंट के साथ न निकाला जाए ? क्‍या हम नहीं चाहते कि जब पुलिस स्‍टेशन जाएं तो पुलिस हमारे साथ उसी तरह का व्‍यवहार करे, जिस तरह मंत्री साहेब के साथ होता है ? क्‍या हम नहीं चाहते कि भगवान के दर्शन के लिए वीआईपी और साधारण भक्‍त के बीच का अंतर खत्‍म हो ?

ऐसा नहीं कि भारत में बदलाव नहीं आए। भारत में समय के साथ साथ बहुत सारे बदलाव आएं हैं। आज का भारत बीते हुए भारत से बहुत अलग है। आज हम युवतियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। इतिहास रच रही हैं। आज की महिला पुरुष के पांव की जूती नहीं है।

कल तक लोग पुलिस थानों में भी जाने से डरते थे। पुलिस की गाड़ी गांव में घुसती थी तो लोग घरों में दुबक जाते थे या सड़क किनारे खड़े हो जाते थे। अब वो पहले से हालात नहीं, क्‍योंकि लोगों में जागरूकता आई है। यह जागरूकता ऐसे ही नहीं आई, इसलिए आवाज उठाई गई थी। मैं फिर कहता हूं कि ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।'' 

अब एनडीटीवी इंडिया लेकर आया है वीआईपी कल्‍चर के खिलाफ एक मुहिम, क्‍या हम लोग इस मुहिम का हिस्‍सा नहीं बन सकते ? हम दंगा फैलाने वाली भीड़ का हिस्‍सा बन सकते हैं तो इस समाज सुधारक मुहिम का क्‍यों नहीं ? यह मत सोचो कि कौन अगुवाई कर रहा है ? इस सफलता का सेहरा किसके सिर जाएगा ?

अंत में...
बस इतना याद रखिए, ''सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।''

#NoVIP

Tuesday, January 27, 2015

जाते जाते ओबामा भावुक कर गए

अमेरिका के राष्‍ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को मेरा नमस्‍कार। मुझे ख़बर मिली कि आज आप साउदी अरब को निकल चुके हैं। यदि आप रूकते भी तो मैं कौन सा आने वाला था क्‍योंकि उसके लिए भारतीय जनता पार्टी की सदस्‍यता लेनी पड़ती, हालांकि, यह केवल मिसेड कॉल से मिल जाती है। मगर, मिसेड कॉल वाली सदस्‍यता किसी काम की नहीं क्‍योंकि बीजेपी केवल जनाधार वाले या कांग्रेसी नेताओं को पैराशूट से उतारती है। मैं इन दोनों में शामिल नहीं हूं। आपको हंसी आ रही है। मैं चिंतित हो रहा था, कहीं आपको भी दिल्‍ली विधान सभा चुनावों की समाप्‍ति तक भारत में न रोक लिया जाए। आप से अधिक चिंता उन कुत्‍तों की थी, जो आपके सुरक्षा दस्‍तों के साथ आए थे, कहीं लव जिहाद में न पड़ जाएं क्‍योंकि मीडियाई ख़बरों में एक देसी का कुत्‍ता चल रहा था, और आपके विदेशी कुत्‍ते लापता थे। सुना था कि आपकी सुरक्षा व्‍यवस्‍था इतनी कड़ी है कि उसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता, चल छोड़ो, यह तो आम कुत्‍ता था, परिंदा थोड़ी ना।

अतिथि देवो भव: अर्थात "अतिथि भगवान होता है"। शायद, भारत से वापिस लौटते हुए आपको इस बात का एहसास हो गया था। इसलिए आपने अंत में जो 'धार्मिक आधार पर नहीं बंटना चाहिए देश' नसीहत दी, वो बड़ी सराहनीय थी। मगर मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि यह बात आप नरेंद्र मोदी को अकेले में भी कह सकते थे। कहीं यह आइडिया भी उनका तो नहीं था, क्‍योंकि आजकल उनकी कोई सुनता ही नहीं। उनकी एक चेतावनी आती है तो सामने से विपरीत में तीन बयान आ जाते हैं। मानो, महाभारत चल रहा हो। आप एक शक्‍तिशाली तीर छोड़ेंगे तो सामने बचाव में तीन चार तीर एक साथ छोड़ दिए जाएंगे। यह खूबसूरत सुर्खियां बटोरने वाला युद्ध आपके आने और दिल्‍ली विधान सभा चुनाव की घोषणा से पहले बराबरी पर चल रहा था। हमारा मीडिया महाभारत के संजय की भूमिका निभा रहा था। हालांकि, संजय दूरदर्शन की तरह केवल सूचना प्रदान करता था। मगर, आधुनिक संजय मिर्च मसाला डालकर एक टीआरपी वाली चटाकेदार डिश परोसता है, ताकि कई दिनों तक सी सी की आवाज आती रहे।

अब आप तो अपना एयर फोर्स वन लेकर निकल लिए, अब हम ही जानते हैं, आपके रचे आभा मंडल से बाहर आने के लिए हमारे आधुनिक संजय को कितना समय लगेगा। लहसुन प्‍याज की तरह अब आपको हर सब्‍जी में परोसा जाएगा। आपको यकीन न हो तो ऑनलाइन आप हमारे आधुनिक संजयों का प्रसारण सुन एवं देख सकते हैं, क्‍योंकि आप धृतराष्‍ट्र की तरह अंधे थोड़ी न हैं। आपको हंसी आएगी। आपको हमने दिल्‍ली चुनावों में भी घसीट लिया। भारतीय जनता पार्टी की मुख्‍यमंत्री पद की उम्‍मीदवार किरण बेदी ने कहा, बराक ओबामा ऐसे न थोड़ी आते मील दूर से चलकर। जनाब देखते हैं, आप हमारे राजनेताओं को। आप भारत को गरीब देशों में गिन सकते हैं, मगर, राजनीति में इनका तोड़ नहीं है, सच में आपके पास। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट आपके वहां से चलती है, मगर, उस पर चर्चाएं हम करते हैं। यदि आप इंटरनेट पर होने वाली चौपाल चर्चा छोड़ दें, तो तुम्‍हारा मार्क जुकरबर्ग, वो फेसबुक वाला छोकरा, रोड़पति हो जाएगा, आगे से सिर्फ ''क'' निकल जाएगा। ''क'' का महत्‍व समझते हैं आप।

आप भी सोच रहे होंगे कहां दिल्‍ली के चुनाव, कहां मैं व्‍हाइट हाउस का निवासी। जनाबेहुसैन मोदी का बस नहीं चल रहा था, वरना आपका व्‍हाइट हाउस पर भी छीन लें। यदि ग्‍लोबल चुनाव हों और एक व्‍यक्‍ति को ग्‍लोबल का मुखिया नियुक्‍त करना हो तो आप क्‍या सोचते हैं ? कि हमारे प्रधानमंत्री, जो आपको बड़ी गर्मजोशी से मिले, आपको जीतने देंगे। मैं कहता हूं, भूल जाओ। वो आपके देश से छोड़ो, हर देश के साथ ऐसा रिश्‍ता निकालते कि उन देशों की पीढ़ियां भी सोचती रह जाती। माहौल ऐसा बनता कि आप भी अपना एक बहुकीमती वोट नरेंद्र मोदी को देकर कहते, हां, बंदे में दम तो है।

यदि दम न होता तो आप अपनी कड़ी सुरक्षा व्‍यवस्‍था के साथ यहां थोड़ा होते जनाब हुसैन। आपको पता है कि इतनी कड़ी सुरक्षा के लिए भारत को कितना रुपया खर्च करना पड़ता, यदि इतना रुपया खर्च होता तो विपक्ष पगला जाता, जनता तो हमारी भोली भाली है। इसलिए नरेंद्र मोदी ने एक योजना बनाई, आपको आमंत्रित किया। उनको पता था, आप अकेले तो आएंगे नहीं, आप अपना पूरा ताम झाम लाएंगे, जो लेकर भी आए। राजनीति में मोदी का जवाब नहीं, यह बात तो आपको भी समझ आ गई होगी। एक हजार करोड़ खर्च कर आप भारत आए, सुरक्षा इंतजाम का सारा खर्च मिला जुलाकर बात कर रहा हूं। अब सोचो, यहां आकर यदि आप खाली हाथ जाते तो अमेरिका को क्‍या मुंह दिखाते, अंत आप उसी तरह फंसे हुए थे, जिस तरह मैं पहली सूरत की खरीददारी के वक्‍त, मुझे लग रहा था सौदा अच्‍छा नहीं, मगर, तबीयत ख़राब थी, पैसा काफी खर्च हो चुका था, अब सौदे को स्‍वीकृति देने के सिवाय मेरे पास भी कुछ नहीं था। मोदी को कहते हैं, हूं पक्‍का अमदाबादी शूं, अब तो आप भी मान रहे होंगे।

वरना, जितने खुशमिजाज आप आए थे। उतने खुशमिजाज आप जाने के समय न थे। यदि आप अधिक खुश होते, तो आप धर्म वाली नसीहत, साफ सुथरी बिजली, भारत को अपने निवेशकों के लिए अच्‍छी कानून व्‍यवस्‍था बनानी चाहिए इत्‍यादि तो न कहते। आप इतने खुश होते कि कुछ दिन और भारत में गुजारने के बारे में सोचते, यकीनन मोदी ने कहा होगा, कुछ दिन तो और गुजारिए भारत में। आप ने कहा होगा, नहीं नहीं, बस बस। आपके मन में संदेह तो पैदा हुआ होगा, कहीं मोदी से आप से बदले में अमेरिका का व्‍हाइट हाउस न छीन ले। मोदी से आपका डरना प्राकृतिक भी है, क्‍योंकि केशुभाई पटेल, एलके आडवाणी भुलाए नहीं भूलते।

आपने एक ख़बर का जिक्र करते हुए कहा, अब मिशेल ओबामा के अलावा एक और फैशन आइकन आ गया। हम तो अब तक मोदी जी को विकास पुरुष के नाम से जानते थे, आपने फैशन आइकन कहकर उनका कद छोटा कर दिया क्‍योंकि फैशन आइकन लम्‍बी रेस के घोड़े नहीं होते। हमारे यहां बहुत फैशन आइकन आए और चल दिए, क्‍योंकि फैशन गतिशील है। कल को कोई फैशन आइकन आ गया तो मोदी की लूल हो जाएंगे। हमारे जहां कभी धोनी फैशन आइकन थे। तो कभी हनी सिंह यो यो फैशन आइकन बन जाता है। दिल चाहता है के बाद से गजनी तक आमिर ख़ान भी यूथ फैशन आइकन रहे।

मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं, हमारे देश के लिए प्रधानमंत्री के रूप में विकास पुरुष को चुना है, हालांकि, यह दूसरी बात है कि वे व्‍यक्‍तिगत विकास पर ध्‍यान देते हैं। आप ने देखा, आप एक ही कोट सूट में घूमते रहे। हमारे प्रधानमंत्री ने कितने लिबास बदले। आखिर फोटो सेशन भी तो कुछ होता है कि नहीं। आपको हैरानी तो हुई होगी, जब आपने हमारे प्रधानमंत्री को लाखों रुपये की कीमत से तैयार सूट में देखा होगा, जिसपर लिखा था नरेंद्र दमोदर दास मोदी। आपको गुस्‍सा तो आया होगा कि मुख्‍यातिथि मैं हूं, और फूल कवरेज जनाब लेकर जा रहे हैं। आपको बुरा तो तब भी लगा होगा, जब नरेंद्र मोदी ने रूस से रिश्‍ते ख़राब न करने की बात आपको चुपके से कही होगी। गुस्‍सा तो मुझे भी आया था, जब आपने रूस के खिलाफ भारत की जमीं से जहर उगला था, जो आपकी पुरानी आदत है। जब आपने सईद हाफिज के सिर पर इनाम रखा तो घोषणा अपने व्‍हाइट हाउस से करने की बजाय भारत की राजधानी दिल्‍ली से की। बंदूक हमेशा आपकी रहती है, बस कंधा हमारा। आप अमेरिकी बहुत शातिर हैं। मगर, नरेंद्र मोदी को भी कम मत समझना क्‍योंकि वो 130 करोड़ भारत के नागरिकों को टिकाए हुए हैं।

वो जो बोलते हैं, वो करें न करें, लेकिन जो वो बोलते नहीं, वो हमेशा करते हैं, राउड़ी राठौड़ की तरह। इसलिए अधिकतर चर्चा में रहते हैं। मैं आपको धमकी नहीं दे रहा। मैं तो केवल चेतावनी दे रहा हूं। थोड़ा सा संभलकर चलना क्‍योंकि जो दस साल पहले आप ने राजनीतिक जुआ खेला था, अब उस जुए में आपके सामने भारत का सबसे चालाक पत्‍तेबाज बैठा है।

हालांकि, आजकल उनको नाक के तले वाले हिस्‍से की अधिक फिक्र है। हां, दिल्‍ली की। तभी तो उन्‍होंने मन की बात में कहा, ''बेन्जामिन फ्रेंकलिन का जीवन चरित्र हमें यह प्रेरणा देता है कि व्यक्ति को जीवन को बदलने के लिए समझदारी पूर्वक कैसे प्रयास करना चाहिए। मुझे यह बात प्रेरणा देती है कि झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला गरीब भी मेरी चिन्ता करता है। मैं अपना जीवन ऐसे लोगों की सेवा में लगा दूंगा।''। अभी कुछ दिन पहले अवैध कालोनियों को वैध किया। सुना है कि यह दिल्‍ली की तीस सीटों को प्रभावित करती हैं। अब देखना तो यह है कि आपकी तरह अंतिम समय फेंके इन पत्‍तों का असर दिल्‍ली पर देखने को मिलता है कि नहीं।

वैसे आप भी कम शातिर थोड़ी न हैं। हमको भी पता चल जाता है कि आप अमेरिका का कचरा भारत में बेचने निकले हैं। आपको पता है, आपके जाने के बाद एनडीटीवी पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन कहते हैं, 'अमेरिका में न्यूक्लियर एनर्जी का बड़े स्तर पर इस्तेमाल होता है, लेकिन पिछले कुछ वक्त से इसका विस्तार थम सा गया है। वहां कई सूबों में न्यूक्लियर एनर्जी के प्लांट लगाने की कोशिश हो रही है, लेकिन स्थानीय विरोध और रेडियोधर्मी कचरा प्रबंधन जैसे कई मुद्दे आड़े आ रहे हैं। इसलिए पिछले 30-35 सालों से वहां बड़ी कंपनियों के रियेक्टर नहीं बिक रहे।'

तुम चाहते हो। चीन पाकिस्‍तान के साथ चला जाए। इंडिया मीलों दूर वाशिंगटन के साथ जुड़ जाए, उसका पुराना कचरा खरीदने के लिए, रूस को तुम हमसे दूर करना चाहते हो, जिसका साहित्‍य गुलामी के दिनों में हमारा प्रेरक बना। आप बाजार की भाषा बोलते हैं। आपके संवाद बाजार की स्‍थितियों को देखते हुए लोगों की भावनाओं को ध्‍यान में रखते हुए लिखे जाते हैं। यदि आप शाह रुख ख़ान के इतने बड़े फैन थे, तो आपके एयरपोर्ट पर दो बार इस ख़ान को तलाशी के लिए न रोका जाता, केवल नाम की समानता के चलते। टोपी पहनाने के लिए आप लोगों ने पीआर एजेंसियां खोज रखी हैं। बात अभी भी देख दिखाई तक पहुंची है। लड़के को लड़की पसंद आएगी या नहीं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। वैसे एक अन्‍य बात आपको बता दूं, आप ने व्यापार बढ़ाने के लिए 3 अरब डालर के लोन देने की घोषणा की, जबकि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत में अगले पांच साल में 20 अरब डॉलर और जापान ने 35 अरब डॉलर के पूंजी निवेश की घोषणा की थी।

जय हिंद

Saturday, January 24, 2015

श्रीश्री ने क्‍यों ठुकरा दिया पद्म विभूषण ?

'द इंडियन एक्‍सप्रेस' में पद्म विभूषण के लिए सामने आए संभावित नामों में एक नाम अध्‍यात्‍म गुरू श्री श्री रविशंकर का भी था। बाबा रामदेव ने 'द इंडियन एक्‍सप्रेस' की ख़बर के आधार पर सरकार को पत्र लिखकर पुरस्‍कार लेने से मना कर दिया। इसके पश्‍चात ही श्री श्री रविशंकर जी द्वारा पुरस्‍कार ठुकरा देने की ख़बर मिली। बाबा रामदेव को पद्म विभूषण देने को लेकर विरोधी स्‍वर उठ रहे थे। हो सकता है कि आने वाले समय में अधिक जोर भी पकड़ लेते।

हालांकि, दूसरी तरफ श्रीश्री रविशंकर को सम्‍मानित करने पर लोगों को अधिक एतराज न होता, क्‍योंकि श्रीश्री बाबा रामदेव की तरह राजनीति में खुलकर नहीं आए, वे पर्दे के पीछे से नरेंद्र मोदी को समर्थन करते रहे हैं, उनके संस्‍थान से जुड़े महेश गिरि पूर्वी दिल्ली से सांसद बने और हेमा मालिनी आगरा से।

यदि श्रीश्री पद्म विभूषण को स्‍वीकार करते तो भी मेरे मन में सवाल उठता और नहीं कर रहे हैं तो इस स्‍थिति में भी सवाल तो उठेगा क्‍योंकि उनके वेबसाइट पर उनको मिले सम्‍मानों की एक लम्‍बी फेहरिस्‍त है। यदि श्रीश्री उन तमाम सम्‍मान को स्‍वीकार कर सकते हैं, तो इस सम्‍मान को क्‍यों ? इसका जवाब अंत में देना चाहूंगा।

फिलहाल मैं लौटता हूं, उस स्‍थिति पर यदि वे सम्‍मान लेते तो ? अगर 'द इंडियन एक्‍सप्रेस' की ख़बर अनुसार श्रीश्री के साथ साथ उसी मंच पर पंजाब के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता एलके आडवाणी को पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया जाता तो मैं सबसे पहले सरकार से सवाल करता कि पुरस्‍कार का विवरण किस आधार पर किया जा रहा है। इसका मापदंड क्‍या है ? क्‍योंकि एक ही मंच पर एंटी वायरस और वायरस को एक ही पुरस्‍कार से किस तरह सम्‍मानित किया जा सकता है। सवाल तो उठता ? उठना भी चाहिए था।

भले अदालतों ने बाबरी मस्‍जिद गिराने के मामले में भारतीय जनता पार्टी के तमात सीनियर नेताओं को बरी कर दिया हो, लेकिन हजारों लोगों की लाशों के जिम्‍मेदार वे नेता हैं, जिन्‍होंने लोगों के भीतर नफरत का बीज बोया। मस्‍जिद को गिराने के लिए लोगों में आक्रोश पैदा किया। कितने भी सफेद कपड़े पहन लें, यह दाग हमेशा बने रहेंगे, क्‍योंकि एक राम मंदिर बनाने की जद में न जाने कितने पाकिस्‍तान, बंग्‍लादेश में बने मंदिर एक दिन में तुड़वा दिए। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान में केवल एक ही दिन में तीस मंदिर तोड़े गए। उस समय हुए दंगों में करीब दो हजार लोगों की जान गई। उसके लिए जिम्‍मेदार नेतृत्‍व करने वाले नेता हैं। प्रकाश सिंह बादल, पंजाब के मुख्‍यमंत्री, जिनकी सरकार के मंत्री एवं करीबी रिश्‍तेदार पर पंजाब में नशा फैलाने का आरोप है। पंजाब नशे की गर्त में है, यह बात किसी से छुपी नहीं, पंजाब का बच्‍चा बच्‍चा शिरोमणि अकाली दल भाजपा गठबंधन से बनी सरकार को जिम्‍मेदार ठहरा रहा है।

उपरोक्‍त तथ्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह को सम्‍मानित करना। एलके आडवाणी को सम्‍मानित करना। और दूसरी तरफ उसी मंच पर देश विदेश में प्रेम का सबक पढ़ा रहे एक अध्‍यात्‍म गुरू श्रीश्री को सम्‍मानित करना कहां तक सही होगा ?

अब मैं दूसरे सवाल की तरफ लौटता हूं। आखिर श्रीश्री ने पद्म विभूषण लेने से इंकार क्‍यों कर दिया? ऐसा नहीं कि उनको पुरस्‍कार प्रिय नहीं हैं यदि ऐसा होता तो उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर सैंकड़ों पुरस्‍कारों का बड़ा सा विवरण न होता। उनको पुरस्‍कार प्रिय हैं। मगर, इस समय उनका पद्म विभूषण लेना, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाएगा, क्‍योंकि लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और श्रीश्री की निकटता जग जाहिर है। श्रीश्री को 1986 में योग शिरोमणि का पुरस्‍कार भारतीय राष्‍ट्रपति की तरफ से मिला था। उसके बाद भी बहुत सारे देश विदेश से पुरस्‍कार मिले। उन्‍होंने बड़े से छोटे सभी पुरस्‍कार हंसकर स्‍वीकार किए। मगर, पद्म विभूषण को लेकर उनका इंकार करना बताता है कि देश की राजनीतिक पार्टियों ने पुरस्‍कार की गरिमा किस कदर गिरा दी है। यदि आप अटल बिहारी वाजपेयी, मदन मोहन मालवीय को भारत रत्‍न देते हैं, और श्रीश्री को केवल पद्म विभूषण देकर खुश करने का प्रयास करते हैं तो कहीं न कहीं सरकार उनके कद को कम आंक रही है, क्‍योंकि श्रीश्री अध्‍यात्‍म जगत में बेहद सम्‍मानजनक शख्‍सियत हैं। उनको विदेशों से आए दिन सम्‍मान के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनको भारत रत्‍न कहा जा सकता है क्‍योंकि उनकी आभा आज विश्‍व के कई देशों को सम्‍मोहित कर रही है।

अंत में...
यदि राजनीतिक पार्टियां यूं ही सम्‍मानजनक पुरस्‍कारों की गरिमा को ठेस पहुंचाती रहेंगी तो शायद इन पुरस्‍कारों का अधिक मोल न रह जाएगा। यह केवल खुशामद एवं समर्थन का रिटर्न गिफ्ट बनकर रह जाएंगे।

मीडिया, राजनीति और लोकतंत्र

भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख अमित शाह ने पटना स्‍थित भारतीय जनता पार्टी के प्रादेशिक कार्यालय में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘आजतक का एजेंडा है आप पार्टी को लांच करने और दिल्ली चुनाव में जिताने का.पीत पत्रकारिता का इससे बडा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। अमित शाह की इस बात में सच्‍चाई हो सकती है। हो सकता है कि देश का नंबर वन हिन्‍दी न्‍यूज चैनल आज तक आम आदमी पार्टी को दिल्‍ली की सत्‍ता दिलाना चाहता हो।

ऐसा नहीं कि पहली बार किसी ने न्‍यूज चैनल पर अंगुली उठाई है। लोक सभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी बहुत सारे न्‍यूज चैनलों पर अंगुली उठाई थी। कुछ साल पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता एलके आडवाणी ने भोपाल में आयोजित एक समारोह में मीडिया पर अंगुली उठाई थी। किसी ने कहा है कि धुंआं तभी उठता है, जब कहीं आग लगी हो।

इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया किस तरह पक्षपाती हो रहा है। इसका अंदाजा भड़ास डॉट कॉम पर दयानंद पांडे के प्रकट विचारों से लगाया जा सकता है, जिसमें श्री पांडे लिखते हैं, ''इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में टीवी चैनल खुल्लम खुल्ला अरविंद केजरीवाल की आप और नरेंद्र मोदी की भाजपा के बीच बंट गए हैं। एनडीटीवी पूरी ताकत से भाजपा की जड़ खोदने और नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने में लग गया है। न्यूज 24 है ही कांग्रेसी। उसका कहना ही क्या! इंडिया टीवी तो है ही भगवा चैनल सो वह पूरी ताकत से भाजपा के नरेंद्र मोदी का विजय रथ आगे बढ़ा रहा है। ज़ी न्यूज, आईबीएन 7, एबीपी न्यूज वगैरह दिखा तो रहे हैं निष्पक्ष अपने को लेकिन मोदी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाने में एक दूसरे से आगे हुए जाते हैं। सो दिल्ली चुनाव की सही तस्वीर इन के सहारे जानना टेढ़ी खीर है। जाने दिल्ली की जनता क्या रुख अख्तियार करती है।''

दयानंद पांडे जो चित्र शब्‍दों से उकेर रहे हैं, वो लोक सभा चुनावों के दौरान भी मौजूद था। हालांकि, सत्‍ता विरोधी लहर होने के कारण लोग अधिक ध्‍यान नहीं दे रहे थे। इतना ही नहीं, हालिया आईबीएन 7 से पंकज श्रीवास्‍तव का जाना, आईबीएन 7 की निष्‍पक्ष पत्रकारिता पर सवालिया निशान लगाता है क्‍योंकि इस चैनल का मालिक रिलायंस ग्रुप है, जो पूरी तरह नरेंद्र मोदी से जुड़ा हुआ है, और इस चैनल के एडिटर उमेश उपाध्‍याय हैं, जो दिल्‍ली बीजेपी नेता सतीश उपाध्‍याय के भाई हैं। इसको देखते हुए चैनल के भीतर होने वाली निष्‍पक्ष पत्रकारिता साफ साफ नजर आती है।

पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने ट्विटर पर एक तस्‍वीर जारी की, जो इंडिया टीवी से जुड़ी हुई थी, और इस तस्‍वीर में इंडिया टीवी के वाहन में बैठे कर्मचारी भाजपा का झंडा लेकर सड़क पर चल रहे थे। यदि द इंडियन एक्‍सप्रेस का समाचार सही है तो जल्‍द ही रजत शर्मा को पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया जा सकता है। लोक सभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी की इंटरव्‍यू से पहले कमर वहीद नकवी का इंडिया टीवी को छोड़ना भी पक्षपाती पत्रकारिता को जग जाहिर करता है। हालांकि, इंडिया टीवी और आईबीएन 7 को लेकर अमित शाह कुछ नहीं बोलेंगे, क्‍योंकि यह चैनल उनके पक्षधर हैं। और उनकी पार्टी सत्‍ता में है।

राजनीति और मीडिया का परस्‍पर बनता संबंध जनमत के लिए घातक है। जनता न्‍यूज चैनलों पर विश्‍वास करती है। और हर किसी का अपना पसंदीदा एवं विश्‍वसनीय न्‍यूज चैनल होता है। हर ख़बर तब तक झूठी सी मालूम पड़ती है, जब तक व्‍यक्‍ति अपने पसंदीदा चैनल पर न देख ले। अगर विश्‍वसनीय मुखबिर ही गलत ख़बर देने लगेगा तो जनमत का हश्र तो हम कल्‍पना के जरिए सोच सकते हैं। झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में जुटे मीडिया हाउस लोकतंत्रिक देश को गर्त में ले जाएंगे क्‍योंकि लोकतंत्र का अस्‍तित्‍व विपक्ष के बिना जिंदा नहीं रह सकता, जिस तरह एक नदी दूसरे किनारे के बिना।

मीडिया और राजनीति को जोड़ने में पीआर एजेंसी नामक बिचौलिए सक्रिय हैं। इनकी सक्रियता लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। बिचौलिए जनता की नहीं, अपनी फिक्र करते हैं। पिछले लोक सभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने 714 करोड़ रुपए खर्च किए तो कांग्रेस ने 516 करोड़ रुपए खर्च किए। यदि दोनों का खर्च जोड़ दिया जाए तो कुल रकम 1230 करोड़ के करीब बनती है और भारत की आबादी केवल 125 करोड़ है। एक अनुमान अनुसार हर भारतीय के बैंक खाते में लगभग 12  रुपए आराम से आ सकते थे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं, यह पैसा केवल मुट्ठी भर लोगों के घरों में पहुंच गया। और भारतीयों के हिस्‍से विदेशों में पड़े काले धन की वापसी का सुंदर स्‍वप्‍न रह गया, जो शायद ही कभी पूरा हो। इस पैसे का बड़ा हिस्‍सा मीडिया हाउसों में पहुंचा। कुछ विदेशी पीआर एजेंसियां ले गई। पिछले चुनाव भारतीय राजनीतिक पार्टियों ने नहीं, बल्‍कि पीआर एजेंसियों ने लड़े थे। ऐसे में लोकतंत्र क्‍या दशा हो सकती है ? आप स्‍वयं सोच सकते हैं।

अंत में... 
मीडिया और राजनीति के बीच बढ़ती करीबी को रूकना होगा। वरना, मुट्ठी भर लोग अंग्रेजों की तरह देश के नागरिकों की जिन्‍दगियां खा जाएंगे। गरीब के हंसने और रोने पर भी टैक्‍स होगा। स्‍वप्‍न देखने की पाबंदी होगी। कुछ बिजनसमैन हमारा भविष्‍य लिखेंगे। रूस का साहित्‍य चोरी छुपे फिर से सक्रिय होगा। देश एक बार फिर किसी बड़ी क्रांति के लिए भीतर ही भीतर उबलेगा।

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Valentine Day अटल बिहार वाजपेयी अंधविश्‍वास अध्यात्म अन्‍ना हजारे अभिव्‍यक्‍ति अरविंद केजरीवाल अरुण जेटली अहमदाबाद आतंकवाद आप आबादी आम आदमी पार्टी आमिर खान आमिर ख़ान आरएसएस आर्ट ऑफ लीविंग आस्‍था इंटरनेट इंडिया इमोशनल अत्‍याचार इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस्‍लाम ईसाई उबर कैब एआईबी रोस्‍ट एनडीटीवी इंडिया एबीपी न्‍यूज एमएसजी ओएक्‍सएल ओह माय गॉड कटरीना कैफ कंडोम करण जौहर कांग्रेस किरण बेदी किसान कृश्‍न चन्‍दर क्रिकेट गजेंद्र चौहान गधा गरीबी गोपाला गोपाला घर वापसी चार्ली हेब्‍दो चुनाव चेतन भगत जन लोकपाल बिल जन समस्या जनसंख्या जन्‍मदिवस जापान जीतन राम मांझी जेडीयू जैन ज्योतिष टीम इंडिया टेक्‍नीकल टेक्‍नोलॉजी टेलीविजन टैलिप्राम्प्टर डाक विभाग डिजिटल इंडिया डिजीटल लॉकर डेरा सच्चा सौदा डॉ. अब्दुल कलाम तालिबान तेज प्रताप यादव द​ सन दिल्‍ली विधान सभा दिल्‍ली विधान सभा चुनाव देव अफीमची दैनिक जागरण दैनिक भास्कर द्वारकी धर्म धर्म परिवर्तन धोखा नई दुनिया नत्थुराम गोडसे नमो मंदिर नया संस्‍करण नरेंद्र मोद नरेंद्र मोदी नववर्ष नीतीश कुमार नीलगाय नूतन वर्ष पंजाब केसरी पंजाब सरकार पद्म विभूषण पवन कल्‍याण पाकिस्तान पान की दुकान पीके पेशावर हमला पोल प्‍यार प्रतिमा प्रमाणु समझौता प्रशासन प्रेम फिल्‍म जगत बजट सत्र बजरंग दल बराक ओबामा बाबा रामदेव बाहुबली बिग बॉस बिहार बीजेपी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बॉलीवुड भगवान शिव भगवानपुर मंदिर भाजपा भारत भारतीय जनता पार्टी मनोरंजन ममता बनर्जी महात्मा गांधी महात्मा मंदिर महाराष्‍ट्र महेंद्र सिंह धोनी माता पिता मार्कंडेय काटजू मीडिया मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुसलमान मुस्लिम मोबाइल मोहन भागवत युवा पीढ़ी रविश कुमार राज बब्बर राजकुमार हिरानी राजनाथ सिंह राजनीति राजस्‍थान सरकार रामदेव राहुल गांधी रिश्‍ते रेप रेल बजट रेलवे मंत्री रोमन रोमन हिन्दी लघु कथा लीला सैमसन लोक वेदना लोकतंत्र वर्ष 2014 वर्ष 2015 वसुंधरा राजे वाहन विज्ञापन वित्‍त मंत्री विदेशी विराट कोहली विवाह विश्‍व वीआईपी कल्‍चर वैंकेटश वैलेंटाइन डे वॉट्सएप व्यंग शरद पावर शरद यादव शार्ली एब्‍दे शिवसेना शुभ अशुभ शेनाज ट्रेजरीवाला श्रीश्री श्रीश्री रविशंकर सकारात्‍मक रविवार संत गुरमीत राम रहीम सिंह सफलता समाजवाद समाजवादी पार्टी सरकार सरदार पटेल सलमान खान साक्षी महाराज सिख सिख समुदाय सुकन्‍या समृद्धि खाता सुंदरता सुरेश प्रभु सोनिया गांधी सोशल मीडिया स्वदेशी हास्‍य व्‍यंग हिंदी कोट्स हिंदु हिंदू हिंदू महासभा हिन्दी हिन्‍दू संगठन हेलमेट हैकर हॉलीवुड