Thursday, February 26, 2015

'तू तड़ाक' और इलेक्ट्रोनिक मीडिया

बुधवार को कांग्रेस के 'जमीन वापसी आंदोलन' के दौरान मंच पर मौजूद अभिनेता एवं नेता राज बब्बर ने कहा, 'नरेंद्र मोदी किसानों की जमीन 4.5 करोड़ में उनका सूट खरीदने वाले लोगों को गिफ्ट करना चाहता है। मैं पूछना चाहता हूं नरेंद्र दामोदर दास मोदी से कि तू क्या जानता है। तू सिर्फ कॉरपोरेटरों से अपने सूट की बोली 4.5 करोड़ में लगवाना जानता है। यहां वे किसान बैठे हैं, जिनके बेटे सीमाओं पर तैनात हैं। मोदी तुझे क्या पता है?।'

राज बब्बर का बयान सुनकर मीडिया कांप गया। मीडिया को लगा, राज बब्बर ने अपनी सीमाएं पार कर दी। उसने तू शब्द का इस्तेमाल कर अभद्रता का परिचय दिया। चलो अच्छी बात है, मीडिया को शब्दों से ख़बर तो मिलने लगी। जब पत्रकारों की भीड़ बढ़ जाएगी, एवं ख़बरों का काल पड़ जाएगा, विशेषकर विवादित ख़बरों का, तो कुछ न कुछ तो लाना होगा। मीडिया भूल गया कि मौजूदा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक शेर के जरिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पर व्यंग्य करते हुए पूछा था-तू इधर, उधर की बात न कर, बता ये काफिला क्यों लूटा, मुझे रहगुजर की बात नहीं, तेरी रहबरी से सवाल है। तब तो मीडिया को तू शब्द सुनाई नहीं दिया।

यदि आप तू शब्द का अर्थ ढ़ूंढ़ने निकलेंगे तो आपको पता चलेगा कि सूफी फकीर की नजर में तू एवं यार एक हैं, अर्थात प्रभु, परमात्मा। आशिक की जुबां से निकला तू शब्द सम्मानजनक है। हिन्दी गीतों में तू का सर्वाधिक इस्तेमाल किया गया है, प्रेम भाव प्रकट करने के लिए। मेरी नजर में तू शब्द मैं के होने का संदेशा देता है, जो एक फर्क पैदा करता है, तू तभी होगा, यदि मैं का मौजूद बचा होगा। राज बब्बर ने तलख रवैये में सरकार से पूछा है, और उस सरकार से जिसका मुखिया 'मैं' शब्द का भरपूर इस्तेमाल करता है।

अंत में इतना कहूंगा.....
इलेक्ट्रोनिक मीडिया लेज चिप्स सा है। जिसकी पैकेजिंग लुभावनी है, जिसमें चिप्स कम और हवा अधिक होती है। असल में इलेक्ट्रोनिक मीडिया में पत्रकारिता उतनी ही बची है, जितनी लेज के पैकेज में चिप्स। सावधान! इंडिया।

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