मैं नरेंद्र मोदी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन उनके पैदा किए जा रहे अति आशावाद का विरोधी हूं। शायद, मुझे इस तरह के स्पष्टीकरण की जरूरत भी नहीं थी। लेकिन बात शुरू करने के लिए स्पष्टीकरण अधिक बेहतर चुनाव लगा। हां, मैं नरेंद्र मोदी के अतिआशवाद का विरोधी हूं। और हमारे बुजुर्ग भी कहते हैं, अति नुकसानदेह होती है, वो फिर किसी भी मामले में क्यों न हो।
अति आशावाद, अति निराशावाद को जन्म देता है। कुछ समय पहले तक बॉलीवुड में फिल्में हिट या फ्लॉप होती थी। मगर, फ्लॉप फिल्मों के लिए एक नया शब्द बाजार में आया, सुपर फ्लॉप। इस शब्द का जन्म अति आशावाद के कारण हुआ। फिल्मों का प्रचार बड़े स्तर पर किया जाने लगा। फिल्म के बड़े स्तर पर होते प्रचार के कारण लोगों के भीतर अच्छी फिल्म होने का आशावाद पैदा होता है। लेकिन, फिल्म दूसरे ही दिन सिनेमा हाल की खिड़की पर दम तोड़ देती है। इस मामले में संजय लीला भंसाली की सांवरिया, रामगोपाल वर्मा की आग और यशराज बैनर्स की टश्न, धूम 3 सबसे बड़े उदाहरण हैं।
चुनावी रैलियों में जो नरेंद्र मोदी ने बड़े बड़े सीना ठोककर दावे किए थे, अब वो तेजी के साथ फुस हो रहे हैं। पिछले आठ महीनों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई सरकार ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जो उनके दावों का समर्थन करता हो। अब धीरे धीरे आशावाद निराशावाद में बदल रहा है।
सबसे बड़ी हैरानीजनक बात तो यह है कि लोक सभा चुनावों में जबरदस्त प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में संघर्ष करना पड़ रहा है। दिल्ली विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बौखलाहट के बहुत सारे उदाहरण देखने को मिले। मगर, सबसे बड़ी और दिलचस्प बात नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में कही, ''बाजारू सर्वे।''
नरेंद्र मोदी भूल गए, जब लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 272 प्लस का लक्ष्य लेकर चल रही थी तो इस मीडिया ने उनके पक्ष में बहुत सारे सर्वे दिखाए थे, और इन्हीं सर्वों की वजह से ही भारतीय जनता पार्टी अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंची। मगर, आज नरेंद्र मोदी उन्हीं सर्वों पर उंगली उठा रहे हैं।
इससे भी हैरानीजनक बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में लोगों को चुनावी सर्वों पर विश्वास न करने की अपील की और उसके कुछ घंटों पश्चात कुछ नए चुनावी सर्वे सामने आए, जो भारतीय जनता पार्टी को जीतते हुए दिखा रहे थे। जिनको नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने दूधारू सर्वों का नाम दिया। इस तरह नरेंद्र मोदी की अपील उनके अन्य प्रयोगों ( किरण बेदी, विज्ञापन धमाका, अवाम का खुलासा) की तरह उन पर भारी पड़ती नजर आ रही है।
एक अन्य बात धीरे धीरे नरेंद्र मोदी अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं क्योंकि पिछले आठ महीनों में उनके यू टर्न अरविंद केजरीवाल को भी पीछे छोड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी निरंतर अपने विरोधियों को बोलने का मौका दे रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की कम होती लोकप्रियता के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं।
आग में घी का काम उनके करीबी एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख अमित शाह ने यह कह कर डाल दिया कि हर भारतीय के हिस्से 15-15 लाख रुपए वाली बात केवल राजनीतिक जुमला था। इस तरह भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी की कितनी बातों को राजनीतिक जुमला कहकर बचाव करते रहेंगे। आजकल न्यूज चैनलों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता उतने आक्रामक एवं उत्साह भरपूर नजर नहीं आते, जितना लोक सभा चुनावों से पहले आते थे क्योंकि उनकी पार्टी को सत्ता में आए लगभग तीन तिमाहियां गुजर चुकी हैं। अभी तक उनके पास कुछ ऐसा नहीं है, जो उनका बचाव कर सके।
पैट्रोलियम उत्पादों के दाम गिर रहे हैं, मगर, सामने कच्चे तेल के भाव भी गिर रहे हैं। इसका श्रेय भी नरेंद्र मोदी लेने से नहीं चूके, उन्होंने स्वयं को नसीब वाला कह डाला। मगर, सवाल तो यह है कि भारत में पैट्रोलियम उत्पादों के उतने भाव गिरे, जितने गिरने चाहिए थे। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं है।
अंत में
भारतीय जनता पार्टी दिल्ली विधान सभा चुनावों में अपनी हार को नरेंद्र मोदी के दामन से अलग कर रही है। हालांकि, अख़बार, रेडियो एवं चैनल तो बोल रहे हैं कि चलो चलें मोदी के साथ। इसका एक अन्य कारण भी है क्योंकि यदि इसको नरेंद्र मोदी से जोड़ दिया जाए, तो अन्य राज्यों में, जहां चुनाव होने वाले हैं, वहां भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को बड़ा झटका लग सकता है।
अति आशावाद, अति निराशावाद को जन्म देता है। कुछ समय पहले तक बॉलीवुड में फिल्में हिट या फ्लॉप होती थी। मगर, फ्लॉप फिल्मों के लिए एक नया शब्द बाजार में आया, सुपर फ्लॉप। इस शब्द का जन्म अति आशावाद के कारण हुआ। फिल्मों का प्रचार बड़े स्तर पर किया जाने लगा। फिल्म के बड़े स्तर पर होते प्रचार के कारण लोगों के भीतर अच्छी फिल्म होने का आशावाद पैदा होता है। लेकिन, फिल्म दूसरे ही दिन सिनेमा हाल की खिड़की पर दम तोड़ देती है। इस मामले में संजय लीला भंसाली की सांवरिया, रामगोपाल वर्मा की आग और यशराज बैनर्स की टश्न, धूम 3 सबसे बड़े उदाहरण हैं।
चुनावी रैलियों में जो नरेंद्र मोदी ने बड़े बड़े सीना ठोककर दावे किए थे, अब वो तेजी के साथ फुस हो रहे हैं। पिछले आठ महीनों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई सरकार ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जो उनके दावों का समर्थन करता हो। अब धीरे धीरे आशावाद निराशावाद में बदल रहा है।
सबसे बड़ी हैरानीजनक बात तो यह है कि लोक सभा चुनावों में जबरदस्त प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में संघर्ष करना पड़ रहा है। दिल्ली विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बौखलाहट के बहुत सारे उदाहरण देखने को मिले। मगर, सबसे बड़ी और दिलचस्प बात नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में कही, ''बाजारू सर्वे।''
नरेंद्र मोदी भूल गए, जब लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 272 प्लस का लक्ष्य लेकर चल रही थी तो इस मीडिया ने उनके पक्ष में बहुत सारे सर्वे दिखाए थे, और इन्हीं सर्वों की वजह से ही भारतीय जनता पार्टी अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंची। मगर, आज नरेंद्र मोदी उन्हीं सर्वों पर उंगली उठा रहे हैं।
इससे भी हैरानीजनक बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी अंतिम रैली में लोगों को चुनावी सर्वों पर विश्वास न करने की अपील की और उसके कुछ घंटों पश्चात कुछ नए चुनावी सर्वे सामने आए, जो भारतीय जनता पार्टी को जीतते हुए दिखा रहे थे। जिनको नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने दूधारू सर्वों का नाम दिया। इस तरह नरेंद्र मोदी की अपील उनके अन्य प्रयोगों ( किरण बेदी, विज्ञापन धमाका, अवाम का खुलासा) की तरह उन पर भारी पड़ती नजर आ रही है।
एक अन्य बात धीरे धीरे नरेंद्र मोदी अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं क्योंकि पिछले आठ महीनों में उनके यू टर्न अरविंद केजरीवाल को भी पीछे छोड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी निरंतर अपने विरोधियों को बोलने का मौका दे रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की कम होती लोकप्रियता के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं।
आग में घी का काम उनके करीबी एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख अमित शाह ने यह कह कर डाल दिया कि हर भारतीय के हिस्से 15-15 लाख रुपए वाली बात केवल राजनीतिक जुमला था। इस तरह भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी की कितनी बातों को राजनीतिक जुमला कहकर बचाव करते रहेंगे। आजकल न्यूज चैनलों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता उतने आक्रामक एवं उत्साह भरपूर नजर नहीं आते, जितना लोक सभा चुनावों से पहले आते थे क्योंकि उनकी पार्टी को सत्ता में आए लगभग तीन तिमाहियां गुजर चुकी हैं। अभी तक उनके पास कुछ ऐसा नहीं है, जो उनका बचाव कर सके।
पैट्रोलियम उत्पादों के दाम गिर रहे हैं, मगर, सामने कच्चे तेल के भाव भी गिर रहे हैं। इसका श्रेय भी नरेंद्र मोदी लेने से नहीं चूके, उन्होंने स्वयं को नसीब वाला कह डाला। मगर, सवाल तो यह है कि भारत में पैट्रोलियम उत्पादों के उतने भाव गिरे, जितने गिरने चाहिए थे। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं है।
अंत में
भारतीय जनता पार्टी दिल्ली विधान सभा चुनावों में अपनी हार को नरेंद्र मोदी के दामन से अलग कर रही है। हालांकि, अख़बार, रेडियो एवं चैनल तो बोल रहे हैं कि चलो चलें मोदी के साथ। इसका एक अन्य कारण भी है क्योंकि यदि इसको नरेंद्र मोदी से जोड़ दिया जाए, तो अन्य राज्यों में, जहां चुनाव होने वाले हैं, वहां भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को बड़ा झटका लग सकता है।
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