Monday, February 9, 2015

अरुण जेटली के नाम खुला पत्र

नमस्‍कार, अरुण जेटली जी। आप हमारे देश के वित्‍त मंत्री हैं। आप एक अच्‍छे नेता भी हैं। आप कई दशकों से राजनीति में हैं। यकीनन, आप देश के प्रधानमंत्री बनने के हकदार थे। लेकिन, आपका नसीब काम नहीं कर सका, और नसीबवाले नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए। चलो, काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता, किसी महान व्‍यक्‍ति ने कहा है। जो आपके हिस्‍से आया, उसको पूर्ण जिम्‍मेदारी से निभाएं।

मैं आपको पत्र बजट के संबंध में नहीं लिख रहा। मैं आप से किसी प्रकार की सुविधा या छूट देने की मांग करने वाला नहीं हूं क्‍योंकि नसीब वाले प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं, देश को कड़वी दवा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हमारा क्‍या है, जो वादे पूरे होंगे, उनको लेकर खुशी मनाएंगे, जो बाकी रहेंगे, उनको राजनीतिक जुमला समझकर भूल जाएंगे। हां, अच्‍छे दिन आने वाले हैं, राजनीतिक जुमला बनकर न रह जाए, इसकी दुआ करें।

हां, मैं आपको पत्र क्‍यों लिख रहा हूं ? मैंने पिछले दिनों आपकी एक प्रेस वार्ता देखी। मुझे समझ नहीं आया कि उस प्रेस वार्ता को बुलाने का मकसद क्‍या था ? जी हां, दिल्‍ली चुनाव से एक दिन पहले। हां, वो वाली, जिसमें आप ने आम आदमी पार्टी को अराजकतावादी कहा। यह बात तो दिल्‍ली चुनावों से पूर्व एक रैली में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी कह चुके थे, फिर आपको विशेष प्रेस वार्ता बुलाकर कहने की जरूरत समझ नहीं आई। हालांकि, आपका उतरा हुआ चेहरा मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व को व्‍यक्‍त कर रहा था। यकीनन, आप ने वो प्रेस वार्ता किसी दबाव में बुलाई।

चलो, जो भी हो, लेकिन मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं, जेपी आंदोलन। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आपका युवा नेतृत्‍व। कुछ याद आया। यदि याद आया तो पूछना चाहता हूं कि आज वो भ्रष्‍टाचार के खिलाफ खौलने वाला खून ठंड क्‍यों पड़ गया ? आज आपकी डगर पर कुछ युवा चल रहे हैं, और आपको उनमें अराजकतावाद दिखाई कैसे पड़ गया ? आप ने बाबा रामदेव की तुलना भी जेपी से कर डाली थी, क्‍योंकि बाबा रामदेव ने काले धन के खिलाफ सरकार विरोधी लहर पैदा की, हालांकि, उनके कुर्ते सलवार पर आज भी चुटकले बनते हैं। बाबा रामदेव में आपको अराजकता नजर नहीं आई। इंदिरा गांधी के खिलाफ चलाए अभियानों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की भूमिका में आपको अराजकतावाद नजर नहीं आया।

मैं समझता हूं, आपकी मजबूरी। आप अमृतसर से हारे हुए उम्‍मीदवार हैं और हारे हुए व्‍यक्‍ति की स्‍थिति को समझना अधिक कठिन नहीं है। उस हार ने आपको कमजोर कर दिया। अब नसीब वाले की कृपा से मंत्रीमंडल में हैं। अब उनके बने हुए रास्‍ते पर आपको चलना पड़ेगा। आपका मन माने या न माने। आज इंडियन एक्‍सप्रेस समाचार पत्र में प्रकाशित हुए कुछ विदेशी बैंक खाता धारकों के नाम पर आप ने कहा, कार्रवाई के लिए सबूत चाहिए। मैं आपकी बात से सहमत हूं, लेकिन, मैं आपको कुछ दिन पीछे लेकर जाना चाहता हूं। जब अवाम नामक एक जिन्‍न बोतल से बाहर निकला, और उसने आम आदमी पार्टी पर फर्जी चंदा लेने के आरोप जड़ दिए। और आप ने मीडिया से बातचीत करते हुए आम आदमी पार्टी पर निशाना साध दिया। हालांकि, आप का व्‍यवहार उस तरह का था, जिस तरह ग्रामीण संस्‍कारी महिला को सन्‍नी लियोने कहे, बहनजी आपका पल्‍लू सरक रहा है। आप ने अरविंद केजरीवाल से पूछ डाला, यदि वो आईआरएस अधिकारी होते तो क्‍या ? मैं हैरत में पड़ गया। मुझे लगा, जैसे जज पूछ रहा हो, चोर से यदि तुम जज होते तो क्‍या फैसला सुनाते ? आज आप उसी तरह के मामले में कार्रवाई के लिए सबूत मांग रहे हैं, उस दिन तो आप ने आंख झपकते मीडिया में आम आदमी पर हमला बोल दिया था। आज अम्‍बानी परिवार का नाम सबसे ऊपर था, तो आप कैसे बोलते ? हां, मैं समझ सकता हूं।

माननीय वित्‍त मंत्री जी आप ने वर्ष 2013 में यूपीए 2 को अध्‍यादेश लाने पर खूब खरी खोटी सुनाई थी। उन दिनों पूरा देश सुन रहा था। आप ने किस तरह पानी पी पी कर अध्‍यादेश लाने पर यूपीए 2 को कोसा था। मगर, आप के मुंह से एक शब्‍द तक नहीं निकला, जब आपकी सरकार ने सत्‍ता संभालते ही धड़ाधड़ एक के बाद एक अध्‍यादेश पारित कर दिए। हालांकि, गुप्‍त सूत्रों से ख़बर थी कि कुछ मंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम से खुश नहीं हैं। हो सकता है, उनमें आपका नाम शामिल हो या न भी हो। मगर, आप ने खुलकर कुछ नहीं कहा।

हो सकता है कि कुछ साल बीतने के बाद आपकी भी किताब बाजार में आए। उसमें कुछ धमाकेदार खुलासे हों। मीडिया टीआरपी बटोर लेगा। प्रकाशक पैसे कमा लेगा, लेकिन मेरी नजर में उस समय सनसनीखेज खुलासे करती किताब केवल समोसे रखकर खाने के काम आ सकती है, इससे अधिक कुछ नहीं। क्‍योंकि सांप के निकल जाने के बाद लीक पीटने का कोई फायदा नहीं होता। सचिन तेंदुलकर ने चैप्‍पल के खिलाफ कुछ खुलासे किए, मगर, उन खुलासों से क्‍या होने वाला है ? मनमोहन सिंह के खिलाफ बहुत कुछ लिखा गया ? इससे क्‍या फर्क पड़ता है ? हम अतीत को कभी बदल नहीं सकते, मगर, सुनहरा भविष्‍य जरूर गढ़ सकते हैं।

अंत में इतना कहूंगा, घुट घुट कर सोहरत की जिन्‍दगी जीने से बेहतर है, स्‍वतंत्र फकीर की जिन्‍दगी।

जय हिंद

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