एग्जिट पोल के नतीजों को सही मान लिया जाए तो दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत का परचम लहराने जा रही है। यदि बीजेपी नेताओं के मुताबिक इसको नकारा भी दिया जाए तो भी भाजपा के लिए अति उल्लास की बात नहीं होगी क्योंकि भाजपा ने जितनी जान दिल्ली विधान सभा चुनावों में लगाई, उतनी कहीं और नहीं।
नतीजा यह हुआ कि एक सामान्य विधान सभा का चुनाव केंद्रीय सरकार बनाम एक आम आदमी बन गया। कांग्रेस ने स्वयं को रिंग से बाहर रखा। इससे कांग्रेस को फायदा होगा या नहीं, यह बात को 10 फरवरी 2015 शाम तक स्पष्ट हो जाएगी। यदि एग्जिट पोल के नतीजों के विपरीत परिणाम आ भी जाते हैं तो भी भाजपा को इस चुनाव से बहुत कुछ सीखने की जरूरत रहेगी।
अति आत्मविश्वास - लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को मिले बहुमत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अति आत्मविश्वासी एवं अहंकारी बना दिया। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार और अति आत्मविश्वास हमेशा संगठन को कमजोर करता है। अहंकार के कारण संगठन टूटने लगता है एवं अति आत्मविश्वास के कारण पार्टी कार्यकर्ता जीत को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं।
किरण बेदी प्रवेश - भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में किरण बेदी को अरविंद केजरीवाल के तोड़ के रूप में उतारा। मगर, बीजेपी के इस कदम से दिल्ली इकाई के शीर्ष नेता नाराज हो गए। वर्षों से जुड़े लोग अपने संगठन को छोड़ तो नहीं सकते, लेकिन शीर्ष नेताओं को सबक जरूर दे सकते हैं, जो एग्जिट पोल में साफ दिखाई दे रहा है, हालांकि, नतीजों तक इंतजार रहेगा।
प्रधानमंत्री की रैलियां - भाजपा ने नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाने की पुरजोर कोशिश की। इस कोशिश में बीजेपी ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि इससे नरेंद्र मोदी की छवि को अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे स्थानीय नेताओं का कद और कम हो जाएगा एवं एक नई पार्टी यानी कि आम आदमी पार्टी को बैठे बिठाए एक ऊंचाई मिल जाएगी। इसका आम आदमी पार्टी ने पुरजोर फायदा उठाया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनावों में केंद्र सरकार के वादों को घसीटा, जो आज तक पूरे नहीं हुए।
पूरी पार्टी को उतारना - भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों समेत अपने सभी मुख्यमंत्रियों से लेकर सांसदों तक को चुनाव प्रचार में उतारकर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया। जनता की पूरी हमदर्दी आम आदमी पार्टी के पक्ष में चली गई। जनता में भ्रम तेजी से फैलने लगा कि आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी कुछ भी कर सकती है।
व्यक्तिगत हमले - अरविंद केजरीवाल पर लंबे समय से बीजेपी समर्थकों की तरफ से व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं। जनता भी इससे ऊब चुकी है। भाजपा ने इसको दोहराकर साबित किया कि केजरीवाल के खिलाफ भाजपा के पास ठोस बातें नहीं हैं। बीजेपी के विज्ञापन बीजेपी पर भारी पड़ने लगे। चाहे उपद्रवी गोत्र हो या अन्ना को माला पहनाकर मृत घोषित करना हो। बीजेपी केजरीवाल को निशाना बनाने के चक्कर में अन्ना को उस समय माला पहना रही है, जब वो स्वयं अन्ना टीम की सदस्य रही किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद की दावेदार घोषित कर रही है।
अवाम का खुलासा - चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले अवाम का जिन्न का बोतल से निकलना। और खुलासे के अगले दिन नरेंद्र मोदी का आम आदमी पार्टी पर निशाना साधना पीछे की तस्वीर को साफ कर रहा था। अवाम की बात में सच्चाई हो सकती है, मगर चुनावों के दौरान इसको केवल हथकंडे से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। खासकर, उस समय जब सरकार बीजेपी की हो।
बाहरी लोगों को टिकट - भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर बाहर से आए नेताओं को धड़ाधड़ टिकट दिए, ताकि भाजपा को दिल्ली की सत्ता मिल जाए। मगर, उन वरिष्ठ नेताओं की मेहनत का क्या, जो वो सालों से करते आ रहे थे। इसका मतलब तो यह हुआ कि यदि किसी पार्टी को केंद्र में सत्ता किसी व्यक्ति की लोकप्रियता से मिल रही हो तो पार्टी के सभी नेताओं को दरकिनार किया जा सकता है।
मुद्दों की बात छूट गई - भाजपा ने लोक सभा चुनाव मुद्दों पर लड़े थे। बीजेपी स्वयं मानती है कि उसको विकास के नाम पर बहुमत मिला है। आज देश का हर नागरिक विकास चाहता है। जहां उसको एक उम्मीद की किरण नजर आती है, उसकी तरफ चल देता है। भाजपा ने दिल्ली में विकास के मुद्दों पर बात न करते हुए अपना पूरा चुनाव प्रचार केवल अरविंद केजरीवाल को रोकने तक सीमित कर दिया। जो एक राष्ट्रीय प्रतिष्ठा रखने वाली पार्टी को नहीं करना चाहिए था।
अंत में
भारतीय जनता पार्टी को इस बार दिल्ली विधान सभा चुनावों में लगभग 55 सीटों पर जीत दर्ज करनी चाहिए थी, क्योंकि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और साथ में विकास पुरुष की लोकप्रियता।
नतीजा यह हुआ कि एक सामान्य विधान सभा का चुनाव केंद्रीय सरकार बनाम एक आम आदमी बन गया। कांग्रेस ने स्वयं को रिंग से बाहर रखा। इससे कांग्रेस को फायदा होगा या नहीं, यह बात को 10 फरवरी 2015 शाम तक स्पष्ट हो जाएगी। यदि एग्जिट पोल के नतीजों के विपरीत परिणाम आ भी जाते हैं तो भी भाजपा को इस चुनाव से बहुत कुछ सीखने की जरूरत रहेगी।
अति आत्मविश्वास - लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को मिले बहुमत ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अति आत्मविश्वासी एवं अहंकारी बना दिया। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार और अति आत्मविश्वास हमेशा संगठन को कमजोर करता है। अहंकार के कारण संगठन टूटने लगता है एवं अति आत्मविश्वास के कारण पार्टी कार्यकर्ता जीत को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं।
किरण बेदी प्रवेश - भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में किरण बेदी को अरविंद केजरीवाल के तोड़ के रूप में उतारा। मगर, बीजेपी के इस कदम से दिल्ली इकाई के शीर्ष नेता नाराज हो गए। वर्षों से जुड़े लोग अपने संगठन को छोड़ तो नहीं सकते, लेकिन शीर्ष नेताओं को सबक जरूर दे सकते हैं, जो एग्जिट पोल में साफ दिखाई दे रहा है, हालांकि, नतीजों तक इंतजार रहेगा।
प्रधानमंत्री की रैलियां - भाजपा ने नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाने की पुरजोर कोशिश की। इस कोशिश में बीजेपी ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि इससे नरेंद्र मोदी की छवि को अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे स्थानीय नेताओं का कद और कम हो जाएगा एवं एक नई पार्टी यानी कि आम आदमी पार्टी को बैठे बिठाए एक ऊंचाई मिल जाएगी। इसका आम आदमी पार्टी ने पुरजोर फायदा उठाया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनावों में केंद्र सरकार के वादों को घसीटा, जो आज तक पूरे नहीं हुए।
पूरी पार्टी को उतारना - भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों समेत अपने सभी मुख्यमंत्रियों से लेकर सांसदों तक को चुनाव प्रचार में उतारकर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया। जनता की पूरी हमदर्दी आम आदमी पार्टी के पक्ष में चली गई। जनता में भ्रम तेजी से फैलने लगा कि आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी कुछ भी कर सकती है।
व्यक्तिगत हमले - अरविंद केजरीवाल पर लंबे समय से बीजेपी समर्थकों की तरफ से व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं। जनता भी इससे ऊब चुकी है। भाजपा ने इसको दोहराकर साबित किया कि केजरीवाल के खिलाफ भाजपा के पास ठोस बातें नहीं हैं। बीजेपी के विज्ञापन बीजेपी पर भारी पड़ने लगे। चाहे उपद्रवी गोत्र हो या अन्ना को माला पहनाकर मृत घोषित करना हो। बीजेपी केजरीवाल को निशाना बनाने के चक्कर में अन्ना को उस समय माला पहना रही है, जब वो स्वयं अन्ना टीम की सदस्य रही किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद की दावेदार घोषित कर रही है।
अवाम का खुलासा - चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले अवाम का जिन्न का बोतल से निकलना। और खुलासे के अगले दिन नरेंद्र मोदी का आम आदमी पार्टी पर निशाना साधना पीछे की तस्वीर को साफ कर रहा था। अवाम की बात में सच्चाई हो सकती है, मगर चुनावों के दौरान इसको केवल हथकंडे से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। खासकर, उस समय जब सरकार बीजेपी की हो।
बाहरी लोगों को टिकट - भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर बाहर से आए नेताओं को धड़ाधड़ टिकट दिए, ताकि भाजपा को दिल्ली की सत्ता मिल जाए। मगर, उन वरिष्ठ नेताओं की मेहनत का क्या, जो वो सालों से करते आ रहे थे। इसका मतलब तो यह हुआ कि यदि किसी पार्टी को केंद्र में सत्ता किसी व्यक्ति की लोकप्रियता से मिल रही हो तो पार्टी के सभी नेताओं को दरकिनार किया जा सकता है।
मुद्दों की बात छूट गई - भाजपा ने लोक सभा चुनाव मुद्दों पर लड़े थे। बीजेपी स्वयं मानती है कि उसको विकास के नाम पर बहुमत मिला है। आज देश का हर नागरिक विकास चाहता है। जहां उसको एक उम्मीद की किरण नजर आती है, उसकी तरफ चल देता है। भाजपा ने दिल्ली में विकास के मुद्दों पर बात न करते हुए अपना पूरा चुनाव प्रचार केवल अरविंद केजरीवाल को रोकने तक सीमित कर दिया। जो एक राष्ट्रीय प्रतिष्ठा रखने वाली पार्टी को नहीं करना चाहिए था।
अंत में
भारतीय जनता पार्टी को इस बार दिल्ली विधान सभा चुनावों में लगभग 55 सीटों पर जीत दर्ज करनी चाहिए थी, क्योंकि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और साथ में विकास पुरुष की लोकप्रियता।
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