लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया तो मोदी लहर शब्द को जन्म दिया गया। ठीक नौ महीनों के बाद जब दिल्ली विधान सभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को रिकॉर्ड तोड़ बहुमत मिला तो मोदी लहर पर विराम लगा दिया गया।
हालांकि, यदि इसके बाद बीजेपी किसी क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करती है तो मोदी लहर में जान आ जाएगी। यह केवल शब्दावली के जरिये ख़बरों को मसालेदार बनाने की युक्त होती है। निर्देशक रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्स' नामक शानदार फिल्म में शेख हर बात से कहने से पहले, अम्मी कहती है, का इस्तेमाल करता है। उसकी बात पर साजन फर्नांडिस कहता है, तू तो अनाथ है ना, तो शेख कहता है, 'अम्मी कहती है' लगाने से बात में वजन आ जाता है।
बस, हर किसी को बात में वजन लाने की सूझती है। 'शब्द' जितना वजनदार होगा, स्टोरी या बात उतनी वजन दार होगी। तुम अपनी ओर से 'कुछ' कहो और बाद में, उसी 'कुछ' को तुम महात्मा गांधी या मार्टिन लूथर किंग के नाम से जोड़कर कहो। तुम महसूस करोगे कि बात में वजन आ रहा है।
शब्दों में वजन काम करता है। मोदी लहर भी इसी बीमारी की उपज है। इसको हम रचनात्मकता का नाम दे सकते हैं। जब कोई इस लहर को रोकेगा, तो उसका कद लहर वाले से यकीनन बड़ा हो जाएगा। जब आदमी बड़ा है तो कवरेज भी बड़ी होनी चाहिए। सिकंदर को रोकने वाला पोरस छोटा कैसे हो सकता है ? भले ही, पोरस ने सिकंदर पर जीत हासिल न की हो, लेकिन सिकंदर को रोकना भी कम नहीं हो सकता।
अगर, दिल्ली में 'मोदी लहर' की हवा निकली है, तो चिंता का विषय है। मगर, चिंता केवल बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों के लिए। मोदी लहर को दरकिनार कर दो। अगर, आप कहते हैं, नहीं नहीं मोदी लहर तो थी, तो मैं कहता हूं, लहर अगर थी तो सत्ता विरोधी। जिस पर सवार होकर नरेंद्र मोदी दिल्ली सिंहासन तक पहुंचे। अगर हवाएं उस तरफ हों, जिस तरफ आपकी नौका को किनारा चाहिए, तो आपको अपने हुनर पर गुमान नहीं करना चाहिए बल्कि परिस्थितियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे इस समय आपके पक्ष में हैं।
'मोदी लहर' ने वर्ष 2014 में जन्म लिया, मगर, दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के जरिये कांग्रेस के चारे खाने वर्ष 2013 में चित कर दिए थे। जो सीधे सीधे संकेत हैं कि लहर सत्ता विरोधी थी। कांग्रेस के भ्रष्टाचार से लोग तंग आ चुके थे। देश के पास विकल्प के तौर पर बीजेपी के अलावा दूसरा कोई था भी नहीं। बाकी सभी नेता क्षेत्रीय पार्टियों से आते हैं, जो या तो जनता परिवार से टूटकर बनी हैं, या कांग्रेस से।
अगर, मोदी लहर होती तो इसका असर उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडू में जरूर दिखाई पड़ता। वहीं, नवोदित आम आदमी पार्टी अकाली दल बीजेपी के गढ़ पंजाब से चार सांसद लाने में कामयाब न होती। हालांकि, अन्य राज्यों में परिस्थितियां पूर्ण रूप से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में थी। फिलहाल, आम आदमी पार्टी पर विश्वास करना मुश्किल था, क्योंकि लोग नए थे, रातोंरात उम्मीदवार मिले थे। बीजेपी के पीछे तमाम आध्यात्मिक, धार्मिक संस्थान, आरएसएस समेत अन्य हिंदू संगठन थे।
अगर, लोक सभा चुनावों के बाद के चुनावों पर नजर मारे तो देखेंगे कि बीजेपी ने महाराष्ट्र चुनाव जीता, मगर, सरकार अल्पमत में है यदि शिव सेना विरोध पर उतर आए, तो बीजेपी को एनसीपी का सहारा लेना होगा, जिसको नरेंद्र मोदी चुनावों के दिनों में नेचुरल करप्ट पार्टी या चाचे भतीजे की पार्टी कहते थे।
हरियाणा में सफलता का मुख्य कारण डेरे का समर्थन, वाड्रा डीएलएफ जमीन घोटाले का हरियाणा से जुड़े होना, हुड्डा सरकार का दस वर्षीय कार्यकाल, गोपाल कांडा का मामला, कांग्रेस के अंदर दरार, केंद्र में कांग्रेस का सफाया, भ्रष्टाचार की छवि हैं। मगर, जम्मू कश्मीर में बिखराव के नतीजे मिले, जिसके कारण वहां सरकार नहीं बन पाई। झारखंड को बदलाव की जरूरत थी एवं बाहरी दलों से आए नेताओं को टिकट देना अच्छा साबित हुआ।
देश बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। लोगों के बीच अब राजनीति को लेकर चर्चा होने लगी है। कल तक जनता किसी मुद्दे पर अधिक माथा मच्ची नहीं करती थी। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार देने के बाद दिल्ली की जनता ने नई पार्टी आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत देकर कहीं न कहीं अपनी समझ का परिचय दिया है। और लहर की धुन में रहने वाले नेताओं को सचेत किया है, 'लहर' वजन बढ़ाने के लिए अच्छा शब्द है, वरना जनादेश से बढ़कर कुछ नहीं है। लोक सभा में बीजेपी को बहुमत मिला क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों को अधिक सांसद देने का मतलब था, कांग्रेस की सरकार या खिचड़ी सरकार, जिससे देश को नुकसान होता।
अब न मोदी लहर काम करती है, न केजरीवाल लहर। केवल मुद्दे काम करते हैं, यदि आप मुद्दों की डिलिवरी देने में सफल रहते हैं, तो आपको बहुमत मिल सकता है। जो अन्य दलों ने लोक सभा चुनावों में गलती की थी, उसी तरह की गलती बीजेपी ने दिल्ली विधान सभा चुनावों में की। व्यक्तिगत हमले, मुद्दों से हटकर भाषणबाजी।
हालांकि, यदि इसके बाद बीजेपी किसी क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करती है तो मोदी लहर में जान आ जाएगी। यह केवल शब्दावली के जरिये ख़बरों को मसालेदार बनाने की युक्त होती है। निर्देशक रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्स' नामक शानदार फिल्म में शेख हर बात से कहने से पहले, अम्मी कहती है, का इस्तेमाल करता है। उसकी बात पर साजन फर्नांडिस कहता है, तू तो अनाथ है ना, तो शेख कहता है, 'अम्मी कहती है' लगाने से बात में वजन आ जाता है।
बस, हर किसी को बात में वजन लाने की सूझती है। 'शब्द' जितना वजनदार होगा, स्टोरी या बात उतनी वजन दार होगी। तुम अपनी ओर से 'कुछ' कहो और बाद में, उसी 'कुछ' को तुम महात्मा गांधी या मार्टिन लूथर किंग के नाम से जोड़कर कहो। तुम महसूस करोगे कि बात में वजन आ रहा है।
शब्दों में वजन काम करता है। मोदी लहर भी इसी बीमारी की उपज है। इसको हम रचनात्मकता का नाम दे सकते हैं। जब कोई इस लहर को रोकेगा, तो उसका कद लहर वाले से यकीनन बड़ा हो जाएगा। जब आदमी बड़ा है तो कवरेज भी बड़ी होनी चाहिए। सिकंदर को रोकने वाला पोरस छोटा कैसे हो सकता है ? भले ही, पोरस ने सिकंदर पर जीत हासिल न की हो, लेकिन सिकंदर को रोकना भी कम नहीं हो सकता।
अगर, दिल्ली में 'मोदी लहर' की हवा निकली है, तो चिंता का विषय है। मगर, चिंता केवल बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों के लिए। मोदी लहर को दरकिनार कर दो। अगर, आप कहते हैं, नहीं नहीं मोदी लहर तो थी, तो मैं कहता हूं, लहर अगर थी तो सत्ता विरोधी। जिस पर सवार होकर नरेंद्र मोदी दिल्ली सिंहासन तक पहुंचे। अगर हवाएं उस तरफ हों, जिस तरफ आपकी नौका को किनारा चाहिए, तो आपको अपने हुनर पर गुमान नहीं करना चाहिए बल्कि परिस्थितियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे इस समय आपके पक्ष में हैं।
'मोदी लहर' ने वर्ष 2014 में जन्म लिया, मगर, दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के जरिये कांग्रेस के चारे खाने वर्ष 2013 में चित कर दिए थे। जो सीधे सीधे संकेत हैं कि लहर सत्ता विरोधी थी। कांग्रेस के भ्रष्टाचार से लोग तंग आ चुके थे। देश के पास विकल्प के तौर पर बीजेपी के अलावा दूसरा कोई था भी नहीं। बाकी सभी नेता क्षेत्रीय पार्टियों से आते हैं, जो या तो जनता परिवार से टूटकर बनी हैं, या कांग्रेस से।
अगर, मोदी लहर होती तो इसका असर उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडू में जरूर दिखाई पड़ता। वहीं, नवोदित आम आदमी पार्टी अकाली दल बीजेपी के गढ़ पंजाब से चार सांसद लाने में कामयाब न होती। हालांकि, अन्य राज्यों में परिस्थितियां पूर्ण रूप से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में थी। फिलहाल, आम आदमी पार्टी पर विश्वास करना मुश्किल था, क्योंकि लोग नए थे, रातोंरात उम्मीदवार मिले थे। बीजेपी के पीछे तमाम आध्यात्मिक, धार्मिक संस्थान, आरएसएस समेत अन्य हिंदू संगठन थे।
अगर, लोक सभा चुनावों के बाद के चुनावों पर नजर मारे तो देखेंगे कि बीजेपी ने महाराष्ट्र चुनाव जीता, मगर, सरकार अल्पमत में है यदि शिव सेना विरोध पर उतर आए, तो बीजेपी को एनसीपी का सहारा लेना होगा, जिसको नरेंद्र मोदी चुनावों के दिनों में नेचुरल करप्ट पार्टी या चाचे भतीजे की पार्टी कहते थे।
हरियाणा में सफलता का मुख्य कारण डेरे का समर्थन, वाड्रा डीएलएफ जमीन घोटाले का हरियाणा से जुड़े होना, हुड्डा सरकार का दस वर्षीय कार्यकाल, गोपाल कांडा का मामला, कांग्रेस के अंदर दरार, केंद्र में कांग्रेस का सफाया, भ्रष्टाचार की छवि हैं। मगर, जम्मू कश्मीर में बिखराव के नतीजे मिले, जिसके कारण वहां सरकार नहीं बन पाई। झारखंड को बदलाव की जरूरत थी एवं बाहरी दलों से आए नेताओं को टिकट देना अच्छा साबित हुआ।
देश बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। लोगों के बीच अब राजनीति को लेकर चर्चा होने लगी है। कल तक जनता किसी मुद्दे पर अधिक माथा मच्ची नहीं करती थी। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार देने के बाद दिल्ली की जनता ने नई पार्टी आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत देकर कहीं न कहीं अपनी समझ का परिचय दिया है। और लहर की धुन में रहने वाले नेताओं को सचेत किया है, 'लहर' वजन बढ़ाने के लिए अच्छा शब्द है, वरना जनादेश से बढ़कर कुछ नहीं है। लोक सभा में बीजेपी को बहुमत मिला क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों को अधिक सांसद देने का मतलब था, कांग्रेस की सरकार या खिचड़ी सरकार, जिससे देश को नुकसान होता।
अब न मोदी लहर काम करती है, न केजरीवाल लहर। केवल मुद्दे काम करते हैं, यदि आप मुद्दों की डिलिवरी देने में सफल रहते हैं, तो आपको बहुमत मिल सकता है। जो अन्य दलों ने लोक सभा चुनावों में गलती की थी, उसी तरह की गलती बीजेपी ने दिल्ली विधान सभा चुनावों में की। व्यक्तिगत हमले, मुद्दों से हटकर भाषणबाजी।
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