सुना है कि पुरखों की घर वापसी अभियान यूपी बिहार में तेजी के साथ चल रहा था। चल सकता है क्योंकि इसका नेतृत्व संघ परिवार कर रहा है। धर्म परिवर्तन को पुरखों की घर वापसी का नाम दे दिया गया, ताकि देश में धर्म परिवर्तन के नाम पर कहीं हल्ला न हो जाए।
मेरे मन में यकायक एक सवाल उस समय उठ खड़ा हुआ, जब पुरखों की घर वापसी के दौरान एक युवक ने मीडिया प्रतिनिधि से कहा, ''हमारे हितों की हमेशा अनदेखी की गई है, अब हमें लगता है कि देश की सरकार अब हम को राहत मुहैया करवाएगी।''
इस नौजवान के लिए धर्म परिवर्तन अधिक मयाने नहीं रखता, इसके लिए सुविधाएं अधिक महत्वपूर्ण हैं। अगर मैं उसके संवाद को गहनता से समझने की कोशिश करूं। इस युवक के शब्द भारत की सरकारों के मुंह पर जोरदार चांटा भी हैं, विशेषकर स्वयं को धर्मनिष्पक्ष का तमगा देने वाली सरकारों के मुंह पर।
दूसरा सवाल, इस संवाद से उठता है कि यदि युवक के पास सुविधाएं होती, यदि उनके साथ बेगानों सा व्यवहार न होता, तो क्या पुरखों की घर वापसी का विचार उनके जेहन में उतरता। बिल्कुल नहीं। एक अन्य बात, जो कहने जा रहा हूं, वो यह है कि ईसाइयत ने विश्व भर विशेषकर भारत यूं ही पैर नहीं पसारे, इसका मुख्य कारण था, असहाय लोगों की बड़ी जमात, जिनको सहारे की जरूरत थी, उनको हमदर्दी की जरूरत थी। मौत के किनारे खड़े व्यक्ति के लिए जीवन से बड़ा धर्म कुछ नहीं है तथा भूखे के लिए रोटी से बड़ा शायद ही अन्य धर्म हो।
पुरखों की घर वापसी से स्पष्ट होता है कि इनके पूर्वज जीवन जीने की लालसा में अपना धर्म छोड़कर दूसरे के धर्म में गए होंगे, तभी तो पुरखों के घर वापसी हो रही है। आज यह लोग जिस धर्म में प्रवेश कर रहे हैं, कल को उसकी सत्ता न नहीं, एवं जिस धर्म को छोड़कर आ रहे हैं, उनके हाथ में सत्ता आ गयी, तो फिर पुनः वापसी। शायद सदियों से यूं चलता आया हो, क्योंकि मानव धर्म के साथ कभी पैदा नहीं हुआ, वरना विश्व में आज हजारों धर्म संप्रदाय नहीं होते।
आज जो लोग पुरखों की घर वापसी के जरिये हिंदु धर्म में प्रवेश कर रहे हैं, क्या हिन्दु समाज उनको दिल से अपनाने के लिए तैयार रहेगा, क्या उनके लिए अपने घरों के दरवाजे उसी तरह खोलेगा, जिस तरह अन्य हिन्दु या अपनी बिरादरी के लोगों के लिए खोलता है या फिर यह लोग बीच अधर में लटककर रह जाएंगे। जिस युग में हम जीवन बसर कर रहे हैं, वहां तेजी से एक नयी जात बिरादरी जन्म ले रही हैं, जिसको आर्थिक रूप से देखने की जरूरत है, जहां अमीर तथा गरीब हैं, जहां पैसा धर्म होने जा रहा है। रिश्ते से पहले जात बिरादरी नहीं, अब आर्थिक स्थिति महत्वपूर्ण होने लगी है।
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