धर्म परिवर्तन के मामले में देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मौन रहकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पीछे छोड़ दिया। गुप्त ख़बरों ने अनुसार, नरेंद्र मोदी ने सख्त संदेश देने के लिए अपने सांसदों एवं पार्टी वर्करों को खूब लताड़ लगाई। मगर, सार्वजनिक मंच से एक भी शब्द उनकी जुबान से नहीं निकल पा रहा है।
प्रधान मंत्री का मौन अपने आप में बहुत कुछ कहता है। विशेषकर, उस समय जब देश का प्रधान मंत्री छोटे छोटे मामलों में तो टि्वट कर अपनी राय जनता के बीच रख रहा हो और धर्म परिवर्तन के मामले में खुलकर एक शब्द भी न कहे। हालांकि, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो धर्म परिवर्तन पर संघ और बीजेपी की विचारधारा को अलग अलग कहकर मामले में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
पाकिस्तान की लाल मस्जिद के मौलाना ने जब एक टेलीविजन चैनल पर तालिबान के विपरीत प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया था, तो वहां की जनता ने लाल मस्जिद के बहार एकत्र होकर रोष प्रदर्शन किया था। मगर, भारत में प्रधान मंत्री के मौन के खिलाफ केवल राजनीतिक दल अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं, जिसको मीडिया केवल और केवल सियासी खेल का एक हिस्सा कहकर नकार देता है।
नरेंद्र मोदी की चुप्पी उस समय अधिक काटने लगती है। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत कहते हैं, 'जवानों की जवानी जाने से पहले देश एक हिंदू राष्ट्र होगा।' इससे पहले देश के सरकारी चैनलों पर मोहन भागवत के एक समारोह का लाइव प्रसारण दिखाया गया था, जो कहीं न कहीं सरकार और संघ के बीच के रिश्ते को उजागर करता है। हालांकि, मीडिया में बीजेपी नेता और सरसंघसंचालक दोनों इस रिश्ते को सिरे से खारिज करते हैं। किसी ने कहा कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते।
हालांकि, देश के प्रधानमंत्री पर्दे में रहकर खेल खेलने में विश्वास करते हैं। इस तरह से उनकी भूमिका प्रयत्क्ष होने की बजाय अप्रयत्क्ष हो जाती है। आप उन पर सीखी उंगली नहीं उठा पाएंगे। उनका हिंदू राष्ट्रवादी होना पर्दे में रहता है, विकास पुरुष होना बाहर। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनको राजधर्म निभाने की बात कहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
जबकि संघ सर संचालक मोहन भागवत खुल्लम खुला खेल खेलने का दम रखते हैं। तभी तो अब मोहन भागवत सीधे तौर पर हिंदुत्व की बात उछाल रहे हैं। हालांकि, उन्होंने चुनावों के दौरान भी आरएसएस स्वयं सेवकों को चेतावनी दे दी थी कि हम नमो नमो करने के लिए नहीं हैं।
कहीं न कहीं, मोदी आरएसएस से कटने का प्रयास कर रहे हैं। मगर, संघ सर संचालक जवानों की जवानी जाने से पहले हिंदू राष्ट्र की बात रखते हुए प्रधानमंत्री को मैदान में लाने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अब संघ ने एक नया जाल बुना है। उम्मीद है कि जिसमें नरेंद्र मोदी जरूर फंसेंगे।
अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार गुजरात के अहमदाबाद शहर के बाहरी इलाके में संघ की ओर से एक प्रोग्राम का आयोजन किया जा रहा है। यह समारोह संघ की ताकत का प्रदर्शन करने के लिए किया जा रहा है। इस समारोह में मुख्यातिथि के तौर पर नरेंद्र मोदी को शामिल करने के लिए न्यौता भेज दिया गया है। संघ ने उस समय का चुनाव किया है। जब देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के दौरे पर होंगे। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इस समारोह को नरेंद्र मोदी के गुरू वकील साहिब की याद में मनाया जा रहा है।
संघ सरसंचालक मोहन भागवत भी अच्छे रणनीतिकार हैं। इस बात को अंदाजा तो समारोह की आयोजन तारीख और समर्पण से लगाया जा रहा है। अब नरेंद्र मोदी अपने गुरू को समर्पित समारोह में आएंगे या नहीं, यह बात तो मोदी पर निर्भर करती है। मगर, मोहन भागवत ने खूबसूरत जाल बुन दिया है। इस देखते हुए हम कह सकते हैं कि मोदी सेर हैं तो भागवत सवा सेर हैं।
प्रधान मंत्री का मौन अपने आप में बहुत कुछ कहता है। विशेषकर, उस समय जब देश का प्रधान मंत्री छोटे छोटे मामलों में तो टि्वट कर अपनी राय जनता के बीच रख रहा हो और धर्म परिवर्तन के मामले में खुलकर एक शब्द भी न कहे। हालांकि, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो धर्म परिवर्तन पर संघ और बीजेपी की विचारधारा को अलग अलग कहकर मामले में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
पाकिस्तान की लाल मस्जिद के मौलाना ने जब एक टेलीविजन चैनल पर तालिबान के विपरीत प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया था, तो वहां की जनता ने लाल मस्जिद के बहार एकत्र होकर रोष प्रदर्शन किया था। मगर, भारत में प्रधान मंत्री के मौन के खिलाफ केवल राजनीतिक दल अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं, जिसको मीडिया केवल और केवल सियासी खेल का एक हिस्सा कहकर नकार देता है।
नरेंद्र मोदी की चुप्पी उस समय अधिक काटने लगती है। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत कहते हैं, 'जवानों की जवानी जाने से पहले देश एक हिंदू राष्ट्र होगा।' इससे पहले देश के सरकारी चैनलों पर मोहन भागवत के एक समारोह का लाइव प्रसारण दिखाया गया था, जो कहीं न कहीं सरकार और संघ के बीच के रिश्ते को उजागर करता है। हालांकि, मीडिया में बीजेपी नेता और सरसंघसंचालक दोनों इस रिश्ते को सिरे से खारिज करते हैं। किसी ने कहा कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते।
हालांकि, देश के प्रधानमंत्री पर्दे में रहकर खेल खेलने में विश्वास करते हैं। इस तरह से उनकी भूमिका प्रयत्क्ष होने की बजाय अप्रयत्क्ष हो जाती है। आप उन पर सीखी उंगली नहीं उठा पाएंगे। उनका हिंदू राष्ट्रवादी होना पर्दे में रहता है, विकास पुरुष होना बाहर। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनको राजधर्म निभाने की बात कहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
जबकि संघ सर संचालक मोहन भागवत खुल्लम खुला खेल खेलने का दम रखते हैं। तभी तो अब मोहन भागवत सीधे तौर पर हिंदुत्व की बात उछाल रहे हैं। हालांकि, उन्होंने चुनावों के दौरान भी आरएसएस स्वयं सेवकों को चेतावनी दे दी थी कि हम नमो नमो करने के लिए नहीं हैं।
कहीं न कहीं, मोदी आरएसएस से कटने का प्रयास कर रहे हैं। मगर, संघ सर संचालक जवानों की जवानी जाने से पहले हिंदू राष्ट्र की बात रखते हुए प्रधानमंत्री को मैदान में लाने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अब संघ ने एक नया जाल बुना है। उम्मीद है कि जिसमें नरेंद्र मोदी जरूर फंसेंगे।
अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार गुजरात के अहमदाबाद शहर के बाहरी इलाके में संघ की ओर से एक प्रोग्राम का आयोजन किया जा रहा है। यह समारोह संघ की ताकत का प्रदर्शन करने के लिए किया जा रहा है। इस समारोह में मुख्यातिथि के तौर पर नरेंद्र मोदी को शामिल करने के लिए न्यौता भेज दिया गया है। संघ ने उस समय का चुनाव किया है। जब देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के दौरे पर होंगे। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इस समारोह को नरेंद्र मोदी के गुरू वकील साहिब की याद में मनाया जा रहा है।
संघ सरसंचालक मोहन भागवत भी अच्छे रणनीतिकार हैं। इस बात को अंदाजा तो समारोह की आयोजन तारीख और समर्पण से लगाया जा रहा है। अब नरेंद्र मोदी अपने गुरू को समर्पित समारोह में आएंगे या नहीं, यह बात तो मोदी पर निर्भर करती है। मगर, मोहन भागवत ने खूबसूरत जाल बुन दिया है। इस देखते हुए हम कह सकते हैं कि मोदी सेर हैं तो भागवत सवा सेर हैं।
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