Wednesday, December 31, 2014

कोहरा भरी रातों में नूतन वर्ष का आगमन

छत पर कोहरे का पहरा। कड़ाके की ठंड में शरीर का ठिठुरना। आधी रात को रजाई से निकलने के लिए मन को तैयार करना। एकाएक याद आ गया। सोसायटी के बाहर डीजे लगा हुआ है। सोसासटी के रहवासियों को जमवाड़ा है। कोहरे की गैरहाजिरी में भी ठंड अंगद की तरह पैर जमाए हुए है, लेकिन ठंड को ठेंगा दिखाते हुए हिंदी और गुजराती गीतों की धुनों पर रहवासियों के पैर थिरक रहे हैं।

मेरी सोसायटी के रहवासी ही नहीं, आज पूरा विश्‍व नूतन वर्ष की पूर्व मध्‍य रात्रि का जश्‍न मनाने में मस्‍त है। देश विदेश की झलकियां दिखाने के लिए न्‍यूज चैनलों के कैमरे लग चुके हैं। अब जब पूरे विश्‍व को कैद करने के लिए हर न्‍यूज चैनल आमादा है। तभी मैं महसूस कर रहा हूं कि आज वो पहले से उत्‍सुकता नहीं है। वो दिन भी कुछ और थे, जब गर्म रजाई से निकलकर खुले आंगन में आकर ठंड से कहते थे, आज की रात दूरदर्शन पर नववर्ष का विश्‍व दर्शन करेंगे, जो भी हो जाए।

गांव में गिने चुने टेलीविजन हुआ करते थे। चैनलों की अधिक भीड़ न थी, दूरदर्शन अकेला शेर था। दिन में तय हो जाता था, आज रात टेलीविजन को नियमित जगह से हटाकर किसी अन्‍य जगह सेट कर लेना, जहां परिवार वालों को दिक्‍कत न हो। रात को छत से कोहरे से लड़ते हुए किसी विशेष घर में प्रवेश करने एवं टेलीविजन को ठंड में ठिठुरते हुए देखने का अपना ही मजा था।

ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी रात को टेलीविजन को बड़े चाव से देखा जाता है। हालांकि, घर घर टेलीविजन आने के कारण वो पहले सी उत्‍सुकता कहीं नजर नहीं आती। शहरों में बड़े बड़े प्रोग्रामों का आयोजन, महंगे महंगे टिकट, प्रेमी प्रेमिका का सिनेमा हाल जाना, लोगों का नाचना गाना, शराब शबाब और कबाब का मिलन अब आम सी बात हो चली है।

अंत में
जापान में एक परंपरा है कि आधी रात को बौद्ध मंदिर में 108 घंटी बजाई जाती है। यह घंटी 108 मानसिक स्‍थिति से जुड़े तत्‍वों का प्रतिनिधित्‍व करती है, जो व्‍यक्‍ति को अनैतिक कार्रवाई के लिए उकसाते हैं, जैसे कि क्रोध इत्‍यादि। मानता है कि इस तरह करने से नकारात्‍मकता उनके जीवन से बाहर जाती है।

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