Saturday, December 20, 2014

एमएसजी - द मेसेंजर ऑफ गॉड, समाज और नजरिया

एक फिल्मी वेबसाइट पर 'एमएसजी-द मेसेंजर ऑफ गॉड' का विज्ञापन देखा। जब गौर से देखा तो पाया, यह पोस्टर डेरा सच्चा सौदा के संत गुरमीत राम रहीम सिंह की आगामी फिल्म का है, जो 16 जनवरी को 4 भाषाओं में रिलीज होने जा रही है। इस विज्ञापन ने पीछे के रहस्य को जानने की उत्सुकता पैदा की। मैंने 'एमएसजी-द मेसेंजर ऑफ गॉड' का ट्रेलर देखा, जो किसी हिन्दी फिल्म को मात दिए जा रहा था, इसमें सबसे निराली बात तो यह थी कि पहली बार किसी अध्यात्म गुरू ने बड़े पर्दे पर इस तरह उतरने का साहस किया, विशेषकर उस समय जब देश में कुछ लोग देशभर में बरसों से संचालित डेरों को बंद करवाने के लिए कोशिशें कर रहे हैं, क्योंकि इन डेरों में बढ़ती अनुयायियों की आस्था एवं संख्या उनकी सदियों पुरानी जमी जमाई दुकानदारी को बहुत बड़ा सेटबैक लगा रही है।

इस डेरे के साथ मेरा 25 साल पुराना रिश्ता है। जब मैं चार पांच साल का था, तब से इस डेरे के संबंध में जानता हूं क्योंकि मेरे तत्कालीन गांव दारेवाला में डेरा सच्चा सौदा, सिरसा से संबद्घ एक छोटा सा डेरा था, जहां मैं अक्सर जाता था, अपने पिता के साथ या सत्संग में मां के साथ। मेरी मां ने डेरा सच्चा सौदा, सिरसा से नाम शब्द भी लिया हुआ था। एक रात अचानक वो नाम सिमरण करते हुए इतनी ध्यान मग्न हो गई कि उनके भीतर चल रहा मंत्र जाप जुबान पर आ गया। मैं जाग रहा था, उनको लगा उससे कुछ पाप हो गया क्योंकि नाम शब्द किसी को बताना नहीं होता। मैंने उनको इसके लिए पिता जी अर्थात डेरा गद्दीनशीन संत से मन में माफी मांगते हुए देखा। हालांकि, इसके पीछे का तर्क कुछ और है, मगर उनको हमेशा लगा कि उनसे पाप हो गया। गुप्त नाम शब्द गुरू शिष्य के बीच एक संबंध कायम करता है। जब आप समर्पण भाव से नत्मस्तक होते हैं, तो गुरू अपनी पूरी कृपा आप पर उडेलता है। शायद, इसलिए नाम शब्द को उजागर करने की मनाही होगी, जैसा मुझे सालों बाद अनुभव हुआ।

हालांकि, मैं जीवन में एक बार डेरा सच्चा सौदा सिरसा गया हूं, वो भी उसी समय के दौरान। उसके बाद मन में जाने का विचार तो कई बार उठा, मगर जाना नहीं हुआ। मेरे अन्य परिचित भी डेरे से जुड़े हुए हैं, जो सत्संग में, डेरे में निरंतर जाते हैं। उनके कारण डेरा सच्चा सौदा सिरसा के अच्छे पक्ष अब भी मेरे सामने आते रहते हैं। हालांकि, कथित बुरे पक्षों के लिए मीडिया संस्थान समय समय पर जानकारी देते हैं, जो आरोपों के कारण उभरकर सामने आते हैं। हालांकि, जिनको पहली दृष्टि से सत्य मान लेना भी मुश्किल है।

समय के साथ साथ डेरा सच्चा सौदा, सिरसा का दायरा विशाल होता चला गया। आज विश्व भर में डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हैं, जो डेरा सच्चा सौदा में अपार आस्था एवं श्रद्घा रखते हैं। इसका अंदाजा 'एमएसजी-द मेसेंजर ऑफ गॉड' के ट्रेलर की लोकप्रियता से लगाया जा सकता है। हालांकि, 'एमएसजी-द मेसेंजर ऑफ गॉड' के ट्रेलर रिलीज होने के साथ साथ डेरा सच्चा सौदा पर मीडियाई एवं विरोधी लोगों के शब्दी हमले होने शुरू हो जाएंगे एवं कुछ जगहों पर तो फिल्म के रिलीज को लेकर विवाद होना शुरू भी हो चुका है।

मीडिया भी आखिर इस बात को किस तरह हजम करेगा कि एक अध्यात्म गुरू बड़े पर्दे पर एक फिल्मी नायक की तरह उतर रहा है। दूसरी बात तो यह है कि इस तरह का कार्य भारत में पहली बार हो रहा है। हालांकि, स्वयं को परमात्मा का संदेशवाहक बताना या घोषित करना नई बात नहीं।

मगर, जब जब समाज में किसी महान आत्मा ने स्वयं को परमात्मा या उसका दूत घोषित किया, तो समाज ने उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया, कुछेक लोगों को छोड़कर। इसका एक उदाहरण यूनान के संत मंसूर हैं, जिनको 26 मार्च, 922 ई. को अत्यंत क्रूर तरीके से जन समुदाय के सामने मृत्युदण्ड दे दिया गया। जानकार कहते हैं कि पहले उनके पैर काटे गए, फिर हाथ और अंत में सिर। इस दौरान संत मंसूर निरंतर मुस्कुराते रहे, मानो कह रहे हों कि परमात्मा से मेरे मिलने की राह को काट सकते हो तो काटो। आज हम जितने भी महान पुरुषों या मानव रूपी परमात्माओं को पूजते हैं, उनके जीवन को जब हम जानने का प्रयास करेंगे तो तत्कालीन समाज ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, क्योंकि समाज कभी नहीं चाहता कि उन सा दिखने वाला इंसान, उनसे अलग जाकर स्वयं को भगवान या उसके दूत की उपाधि दे। जबकि संत गुरमीत राम रहीम सिंह अभिनीत फिल्म का नाम ही 'परमात्मा का संदेशवाहक'।

और, भारतीय लोग केवल साधू संतों को जंगलों में भटकता हुआ देखना चाहते हैं। लोगों की मानसिकता है कि जो साधू संत स्वयं को अधिक से अधिक कष्ट देते हैं, उन पर भगवान की ज्यादा से ज्यादा कृपा बरसती है। जो उनकी तरह सुविधाजनक जीवन जीते हैं, भला वो कैसे साधू संत हो सकते हैं। हालांकि, मेरा मानना है कि साधु या संत तो हृदय से हुआ जाता है। राजा जनक अमीर था, मगर हृदय किसी साधू संत से कम विशाल न था। ईश्वर ने आपको जीवन दिया है, जीने के लिए दिया है। दूसरों की मदद करने, दूसरों को मार्ग दिखाने के लिए दिया है। साधू संत तो राग बैराग से दूर भीतराग में रहता है। जहां किसी चीज के प्रति न तो राग है न बैराग है। वहां तो मिट्टी भी सोना है और सोना भी मिट्टी है।

डेरा सच्चा सौदा को कुछ लोग रामपाल आश्रम की दृष्टि से देखने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, एक अदालत तक ने डेरा सच्चा सौदा को रामपाल आश्रम का दूसरा रूप होने तक की संज्ञा दे दी। जबकि डेरा सच्चा सौदा सिरसा का दूसरा सुनहरा पक्ष भी है। जिसके आधार पर आज डेरा सच्चा सौदा विश्व भर में अपने अनुयायी बनाए हुए है। वो है समाज कल्याण। जब जब भी किसी प्राकृतिक आपदा ने देश विदेश के किसी कोने को प्रभावित किया तो डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों ने घटनास्थल पर पहुंचकर पीड़ितों की मदद की है। उनको नया जीवन शुरू करने की प्रेरणा दी। गरीबों को घर दिए। विधवा एवं विकलांगों के घर बसाए। वेश्वावृत्ति में फंसी महिलाओं को आम धारा में लाने के लिए प्रयत्न किए। डेरा सच्चा सौदा से जुड़ने के कारण बहुत सारे लोगों ने शराब पीना तक छोड़ दिया, जिसके कारण बहुत सारे घर बर्बाद होने से बच गए। फिर रक्तदान की बात हो या किसी सफाई अभियान की बात हो, डेरा सच्चा सौदा, सिरसा ने रिकॉर्ड बनाए।

एक पुरानी कहानी है कि अगर आपने अपने घर की दीवार के साथ किसी फलदार पेड़ को लगाया हुआ है तो फलों के दिनों में पत्थरों के लिए तैयार रहें। डेरा सच्चा सौदा, सिरसा पर इल्जाम लगने का दौर उस समय शुरू हुआ, जब डेरा सच्चा सौदा तेजी के साथ विस्तार कर रहा था। समाज कल्याण के कार्यों में नए कीर्तिमान रच रहा था। लोग डेरे के कार्यों से प्रभावित होकर डेरा सिरसा के साथ जुड़ रहे थे। इससे बहुत सारे लोगों को नुकसान हो रहा था, जिसमें कुछेक धार्मिक संस्थान एवं शराब माफिया शामिल हैं।

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