Saturday, December 27, 2014
मोदी शीत लहर, कोहरे के दिन और कांग्रेस चिंतन
कोहरे के दिनों में नारियल तेल बोतल से बाहर आना बंद कर देता है। नसों में रक्त भी जमा जमा सा लगता है। हाथों को मसलने के सिवाये कुछ दूसरा सूझता भी नहीं है। मगर, ऐसे कोहरे के दिनों में सबसे पुरानी पार्टी के दिमागी कलपुर्जे हरकत करने लगे हैं। सुनने में आया है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अब जनता से जानना चाहेगी कि कहीं उसकी हिंदू विरोधी छवि तो नहीं बन गई।
कांग्रेसी नेताओं ने अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सोच को नमन तो किया होगा। नमन तो बनता है, क्योंकि निरंतर रसतल में जा रही कांग्रेस को आत्ममंथन की बड़ी जरूरत है, और आत्ममंथन के लिए तांबू गाढ़ने इत्यादि की परंपरा रही है। ऐसे आदेश पारित हो सकता था, मगर ऐसा नहीं हुआ। और गलती से आत्ममंथन के लिए चुनाव स्थल में दिल्ली या कश्मीर घाटी तय हो जाती तो क्या होता ? चलो। कोहरे के दिनों में कुछ तो सूझ रहा है। वरना, इस मौसम में हाथ को हाथ ही सूझता है या रजाई इत्यादि।
मगर, हैरानी तो इस बात की है कि कांग्रेस को धर्म से आगे कुछ सूझता नहीं। कांग्रेस की इस समझ ने उसको रसतल में उतार दिया। उतना भाजपा ने हिंदू समुदाय को विश्वास नहीं दिलाया, जितना कांग्रेस ने अपने भाषणों में लोगों को विश्वास दिलाया कि भारतीय जनता पार्टी के बिना हिंदू समुदाय का दूसरा कोई भला नहीं कर पाएगा। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने हिंदुत्व वाले मास्क को उतारकर चुनाव लड़ने का पूरा प्रयत्न किया। अंत, भाजपा सफल भी हुई।
भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी की उस छवि का इस्तेमाल किया, जिसका क्रिएशन स्वयं नरेंद्र मोदी ने बारह साल में किया था। नरेंद्र मोदी ने अपने आलोचक परंपरागत मीडिया से दूरी करते हुए नए उभरते सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाया, जो युवा पीढ़ी से संवाद का सबसे बड़ा माध्यम है। लोकप्रियता का रॉकेट लगने से नरेंद्र मोदी का कद इतना ऊंचा हो गया कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का कद छोटा लगने लगा।
इसको कांग्रेस समय रहते भांप नहीं पाई। यकीनन, नरेंद्र मोदी के प्रति भाजपा के कार्यकर्ताओं ने उसी तरह का जोश एवं उत्साह दिखाया, जो राहुल गांधी के राजनीतिक प्रवेश पर कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं ने दिखाया था। मगर, राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाए रखने में असफल रहे। इसका मुख्य कारण है कि राहुल गांधी राजनीति में दिल से नहीं आए। उनको केवल विरासत संभालने के लिए राजनीति में उतारा गया है। जब जब उनको जिम्मेदारी लेने के लिए आगे किया गया, तब तब उन्होंने जिम्मेदारी उठाने से इंकार कर दिया। और, आप इतिहास के पन्ने पलटकर देख लें। जब जब भी किसी साम्राज्य का दायित्व किसी कमजोर शासक के पास गया है। उस साम्राज्य का विध्वंस हुआ है।
कांग्रेस को एक गैर गांधी परिवार नेता की जरूरत थी। उसको कांग्रेस ने कभी स्वीकार नहीं किया। इसका दूसरा कारण यह भी रहा है कि इसके दावेदार बहुत निकल आते और कांग्रेस पार्टी की अखंडता खतरे में पड़ जाती, इसलिए कांग्रेस कभी सोनिया गांधी के प्रभामंडल से बाहर आने को तैयार नहीं हो पाई। आज जो राजनीतिक दल अन्य राज्यों में मजबूत स्थिति में हैं, वो कांग्रेस से निकले हुए नेताओं के हैं। जनता तो आज भी कांग्रेस नेताओं के साथ है, मगर अब कांग्रेस के चेहरे अलग अलग हो गए हैं।
और, ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी एक सुसंगठित संगठन के रूप में उभरकर सामने आई। भाजपा ने वो साहस किया जो कांग्रेस नहीं कर पाई। शायद, भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं था, अब सब कुछ दांव पर लगाने का समय था, जो भाजपा के नेतृत्व ने किया। नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बनाना भाजपा के लिए आसान न था, मगर भाजपा नेतृत्व ने साहस दिखाया। अपने कुछ नेताओं को दरकिनार किया, जो शायद समय की बड़ी जरूरत थी। और, नरेंद्र मोदी ने अपनी नई छवि का पूर्ण सहारा लिया। विकास के रथ पर सवार हो गए और सीधे दिल्ली की सत्ता तक पहुंच गए।
मोदी ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि अन्य राज्यों में भी राजनीतिक समीकरण बदल गए और कांग्रेस जैसी पार्टी को जनता से संवाद करने की सूझने लगी है। मगर, हैरानी है कि कांग्रेस उस मुद्दे पर लोगों से पूछने निकल रही है, जो उसकी हार का सबसे बड़ा कारक है। अब कांग्रेस को समझ आना चाहिए कि जनता को केवल धर्म के नाम पर ठगा नहीं जा सकता है।
कांग्रेस को भाजपा के प्रमुख अमित शाह की बात को उदारहृदय से स्वीकार करना चाहिए, जो राजनीतिक विश्लेषक लंबे समय से कह रहे हैं कि राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता नहीं है। और, कांग्रेस का रिमोर्ट केवल सोनिया गांधी के हाथों मे है। कांग्रेस को गैर गांधी परिवार नेता पर विचार करना होगा, जो कांग्रेस को रसतल से बाहर निकालने के लिए समक्ष हो। सबसे अहम बात तो यह कि नया नेता कांग्रेस के प्रति जवाबदेह हो, नहीं कि गांधी परिवार के लिए।
वरना, जिस तरह अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा देशव्यापी अभियान चला रही है। उसको देखते हुए लगता है कि जल्द ही कांग्रेस के कुछ बड़े नेता बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। राजनीति अवसरवाद का दूसरा नाम बन चुकी है, इसलिए कांग्रेस को नेताओं को लेकर आश्वस्त होने से बचना चाहिए। कांग्रेस को धर्म से ऊपर उठकर देश के अन्य मुद्दों पर बात करनी चाहिए। साथ ही, एक अच्छे विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए।
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