भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने नत्थुराम गोडसे की प्रशंसा करने के बाद माफी मांगते हुए मामले को रफा दफा करने का प्रयास किया। मगर, यह प्रयास सफल होता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि नत्थुराम गोडसे की शुरूआती संस्था हिंदू महासभा अब चाहती है कि देश के किसी बड़े शहर में गोडसे की प्रतिमा लगाई जाए।
इसके लिए हिंदू महासभा केंद्र सरकार को पत्र लिखने का मन बना चुकी है क्योंकि नत्थुराम गोडसे की प्रतिमा बनकर तैयार हो चुकी है, जिसका जुलाई महीने में आर्डर दिया गया था। इस संगठन ने का कहना है यदि सरकार उनको स्वीकृति नहीं देती तो वो इस प्रतिमा को अपने परिसर में लगाएंगे।
मान लेते हैं कि हिंदू महासभा की मांग केंद्र सरकार ने मान ली, क्योंकि हिंदू सभा से आरएसएस निकला है, और भाजपा आरएसएस का एक राजनीतिक वेंचर है। इस प्रतिमा को लगाने के लिए जगह की भी अलाटमेंट भी कर दी और गलती से यह प्रतिमा गांधी की प्रतिमा के सामने किसी सर्कल पर लग गई । और उसका धूम धाम से अनावरण भी हो गया। भाजपा के किसी सांसद ने फूल मालाएं अर्पित करने के बाद मीडिया में आकर बाद में माफी भी मांग ली।
अब सवाल तो यह उठता है कि प्रतिमा के नीचे नत्थुराम गोडसे के संदर्भ में क्या लिखा जाएगा ? यदि नत्थुराम गोडसे की महिमा लिखी जाती है तो महात्मा गांधी की प्रतिमाओं का क्या ? जो वर्षों से किसी न किसी सर्कल चौराहे पर खड़ी प्रदूषण की मार झेल रही हैं। जिनकी याद प्रशासन को केवल जयंती एवं पुनःतिथि पर आती है। वैसे तो किसी महान व्यक्तित्व को प्रतिमा की जरूरत नहीं होती। प्रतिमा, केवल प्रतीक होती है, ताकि प्रतिमा को देखकर किसी के अनजान मन में उसके बारे में जानने जिज्ञासा उठे, और वो उस प्रतिमा के पीछे के व्यक्तित्व को जाने।
मगर हिंदू महासभा नत्थुराम गोडसे को किसी तरह पेश करेगी। सबसे बड़ा सवाल है। यदि नत्थुराम गोडसे का व्यक्तित्व एक स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास कर्मचंद गांधी से बड़ा हो गया तो राष्ट्रपिता की नोटों पर छपी तस्वीर पूरे राष्ट्र को मुंह चिढ़ाएगी। अहिंसा के पुजारी के रूप में महात्मा गांधी को भारत के साहित्यकारों ने विश्व भर में प्रसिद्घ कर दिया, मगर उसकी हत्या के दोषी की प्रतिमा जब विदेशी सैलानी सड़क पर देखेंगे, तो अपने मन से सवाल जरूर पूछेगा कि दोनों में से सही कौन और गलत कौन है ?
अंतः किसी दिन अचानक दोनों प्रतिमाओं के बीच संवाद होना शुरू हो गया तो, शायद बापूजी कहेंगे, 'गोडसे, आज तुम मेरे सामने खड़े हो, यदि तुम चाहो तो आज फिर से मेरी मूर्ति को ध्वस्त कर सकते हो, मेरे शरीर की भांति। मगर मेरे विचार तो मुक्त पक्षियों की तरह सीमाएं पार जा चुके हैं। आज पूरा विश्व मेरे विचारों को सम्मान देता है। विचारों को लेकर विरोध कहां नहीं होता, तुम भी लोगों में शामिल हो, जो मुझे पसंद नहीं करते हैं। इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, मगर तुम्हारी गोली ने मुझे और तुझे अमर कर दिया, फर्क इतना है कि तुम्हारी विचार धारा को मानने वाले तुम को सही कहते हैं, और मेरे विचारों को मानने वाले मुझे,।'
इसके लिए हिंदू महासभा केंद्र सरकार को पत्र लिखने का मन बना चुकी है क्योंकि नत्थुराम गोडसे की प्रतिमा बनकर तैयार हो चुकी है, जिसका जुलाई महीने में आर्डर दिया गया था। इस संगठन ने का कहना है यदि सरकार उनको स्वीकृति नहीं देती तो वो इस प्रतिमा को अपने परिसर में लगाएंगे।
मान लेते हैं कि हिंदू महासभा की मांग केंद्र सरकार ने मान ली, क्योंकि हिंदू सभा से आरएसएस निकला है, और भाजपा आरएसएस का एक राजनीतिक वेंचर है। इस प्रतिमा को लगाने के लिए जगह की भी अलाटमेंट भी कर दी और गलती से यह प्रतिमा गांधी की प्रतिमा के सामने किसी सर्कल पर लग गई । और उसका धूम धाम से अनावरण भी हो गया। भाजपा के किसी सांसद ने फूल मालाएं अर्पित करने के बाद मीडिया में आकर बाद में माफी भी मांग ली।
अब सवाल तो यह उठता है कि प्रतिमा के नीचे नत्थुराम गोडसे के संदर्भ में क्या लिखा जाएगा ? यदि नत्थुराम गोडसे की महिमा लिखी जाती है तो महात्मा गांधी की प्रतिमाओं का क्या ? जो वर्षों से किसी न किसी सर्कल चौराहे पर खड़ी प्रदूषण की मार झेल रही हैं। जिनकी याद प्रशासन को केवल जयंती एवं पुनःतिथि पर आती है। वैसे तो किसी महान व्यक्तित्व को प्रतिमा की जरूरत नहीं होती। प्रतिमा, केवल प्रतीक होती है, ताकि प्रतिमा को देखकर किसी के अनजान मन में उसके बारे में जानने जिज्ञासा उठे, और वो उस प्रतिमा के पीछे के व्यक्तित्व को जाने।
मगर हिंदू महासभा नत्थुराम गोडसे को किसी तरह पेश करेगी। सबसे बड़ा सवाल है। यदि नत्थुराम गोडसे का व्यक्तित्व एक स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास कर्मचंद गांधी से बड़ा हो गया तो राष्ट्रपिता की नोटों पर छपी तस्वीर पूरे राष्ट्र को मुंह चिढ़ाएगी। अहिंसा के पुजारी के रूप में महात्मा गांधी को भारत के साहित्यकारों ने विश्व भर में प्रसिद्घ कर दिया, मगर उसकी हत्या के दोषी की प्रतिमा जब विदेशी सैलानी सड़क पर देखेंगे, तो अपने मन से सवाल जरूर पूछेगा कि दोनों में से सही कौन और गलत कौन है ?
अंतः किसी दिन अचानक दोनों प्रतिमाओं के बीच संवाद होना शुरू हो गया तो, शायद बापूजी कहेंगे, 'गोडसे, आज तुम मेरे सामने खड़े हो, यदि तुम चाहो तो आज फिर से मेरी मूर्ति को ध्वस्त कर सकते हो, मेरे शरीर की भांति। मगर मेरे विचार तो मुक्त पक्षियों की तरह सीमाएं पार जा चुके हैं। आज पूरा विश्व मेरे विचारों को सम्मान देता है। विचारों को लेकर विरोध कहां नहीं होता, तुम भी लोगों में शामिल हो, जो मुझे पसंद नहीं करते हैं। इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, मगर तुम्हारी गोली ने मुझे और तुझे अमर कर दिया, फर्क इतना है कि तुम्हारी विचार धारा को मानने वाले तुम को सही कहते हैं, और मेरे विचारों को मानने वाले मुझे,।'
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