देश ने जनादेश देकर जादूगर नहीं, प्रधानमंत्री को चुना है। यह बात में खुले मन से स्वीकार करता हूं। मगर, एक प्रधान मंत्री से जादूगर सी अपेक्षाएं किस तरह पनपी, यह भी अपने आप में एक सवाल है। चुनावों के समय रैलियों में हो रहे तबाड़ तोड़ लाजवाब शब्दों से रंगे भाषण भारतीय जनता में नयी ऊर्जा का संचार कर रहे थे। भाषणों में इस्तेमाल हो रहे जुमले अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्मों के संवादों की तरह लोगों के हृदयों को छू रहे थे, जिनको कुछ पेशेवर संवाद लेखकों ने लिखा था। भाषण में प्रस्तुत किए जा रहे गलत तथ्य भी सत्य मालूम पड़ रहे थे।
भारतीय राजनीति के पटल पर एक नायक जनता को अपने संवादों से आकर्षित कर रहा था। अब लालू प्रसाद यादव के गुदगुदाने वाले जुमले मजा न दे रहे थे। अब जनता एक बार फिर एंग्री यंगमैन को पसंद करने लगी थी, जो सीधे सीधे विरोधी पार्टियों को ललकार रहा था। चुनावों ने अचंभित कर देने वाले नतीजे दिए, यह उसी तरह के नतीजे थे, जैसे चुटकले रजनीकांत को लेकर बाजार में प्रचलित हैं।
रजनीकांत को बड़े पर्दे पर आप शौचालय में जाते हुए न देखेंगे, क्योंकि उसके लिए निर्देशक को गुदगुद या चक्रवर्ती तूफान का सृजन करना होगा अथवा रजनीकांत का अस्तित्व खो जाएगा। रजनीकांत की छवि को अति काल्पनिक चीजों से इतना जोड़ दिया गया है कि अब उसको साधारण कल्पना में देखना बेईमानी होगा क्योंकि साधारण चीजें तो तुषार कपूर भी कर लेता है। अब रजनीकांत अगर क्रिकेट के मैदान में खड़ा शॉट मारे तो गेंद मंगल गृह पर होनी चाहिए, अन्यथा छक्का तो बाउंडरी के पार युवराज सिंह भी लगा सकता है।
प्रचार कुछ भी कर सकता है। आपको किसी भी छवि में बांध देता है। कुछ इस तरह का देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुआ है। मीडिया प्रचार ने जनता के मन में इस तरह की छवि को मजबूत कर दिया कि नरेंद्र मोदी के हाथ रखने से लौह भी सोने में बदल जाएगा। अमेरिका उसके सामने नत्मस्तक हो जाएगा। पाकिस्तान तो किसी भी कानून को लागू करने से पहले नरेंद्र मोदी की सही मांगेगा।
जब आपका इतना बड़ा कदम बना दिया जाए, तो आपको उसके अनुरूप भी आगे बढ़ना पड़ता है, आप अपनी तुलना साधारण लोगों से नहीं कर सकते। टेलीविजन विज्ञापनों के बाद बच्चे भी पांच मिनट में बनने वाली मैगी चाहते हैं, उनको भूख मिटाने के लिए दस बीस मिनट बैठकर खाने के लिए इंतजार करना मुश्किल है। सेल्फी भी हाथों हाथ फेसबुक पर आपकी उपस्थिति संबंधित लोगों को बताती है। इस तेजी से बदलते समय में अब आप अपनी रफ्तार कम नहीं रख सकते।
अब मुम्बई या अन्य भीड़ भाड़ वाले क्षेत्रों में दूसरों की उम्मीद से कम स्पीड पर गाड़ी नहीं दौड़ा सकते, क्योंकि वहां भीड़ एक दूसरे पर जल्द चलने का दबाव बनाती है। अगर इंस्टेंट का लोचा न होता तो शायद बुलेट ट्रेन की भारत को अभिलाषा न होती, शायद लोग पैदल धीमी गति से अपने कार्यस्थलों की तरफ बढ़ रहे होते।
चुनावों से पहले भाजपा इतनी तेजी से हमले बोल रही थी, तो जनता को लगता यह सुपर फास्ट ट्रेन सबसे बेहतर है। कांग्रेस जैसी पैसेंजर गाड़ी में सफर करना मुश्किल है। उसी तरह, जिस तरह आज वाट्सएप एवं फेसबुक पर मोबाइल के जरिए उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए टू जी का इस्तेमाल करना। नई सरकार है नई जनता है। अब आप बातों से लोगों का पेट नहीं भर सकते। आपको नतीजे दिखाने होंगे, अन्यथा जनता मोबाइल पोर्टबिलिटी की अवधारणा से अवगत हो चुकी है। विज्ञापन देखने के बाद एक बार तो सर्फ एक्सल खरीद सकती है, मगर टाइड सी सफेदी देने पर टाइड को खरीदना ही बेहतर समझती है। आप बुलेट ट्रेन हैं, इसलिए पैसेंजर ट्रेन का मजा जनता को आनंद न देगा। इंस्टेंट का जमाना है। अब गुजरात में भी जनता इंस्टेंट खमण ढोकला बाजार से लाना पसंद करने लगी है। उसको भी माथा पच्ची एवं घंटों इंतजार करना पसंद नहीं आ रहा है। हालांकि इंस्टेंट में मेहनत वाला मजा नहीं होता, मगर इंस्टेंट की लत लग चुकी है।
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Ekdam sahi aalekh ..jo aaj ki rajniti paristhiti ko vyakt karati hai..aabhar
ReplyDeleteEkdam sahi aalekh ..jo aaj ki rajniti paristhiti ko vyakt karati hai..aabhar
ReplyDeleteकमाल का आलेख लिखा है बिल्किल सहमत हूँ। मुझे तो किसी चमत्कार की आशा नहीं। सुसाघन की बजाये कुसाशं का बोल बाला दिख रहा है। काले धन का पता नहीं महिलायें अभी भः असुरक्षित सीमाओं पर जवान शहीद हो रहे हैं।आदि आदि ।
ReplyDeleteकमाल का आलेख लिखा है बिल्किल सहमत हूँ। मुझे तो किसी चमत्कार की आशा नहीं। सुसाघन की बजाये कुसाशं का बोल बाला दिख रहा है। काले धन का पता नहीं महिलायें अभी भः असुरक्षित सीमाओं पर जवान शहीद हो रहे हैं।आदि आदि ।
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