राजकुमार हिरानी का 'पीके'। मुन्नाभाई से अलग नहीं है। मुन्नाभाई जेल में थे, इसलिए राजकुमार हिरानी ने अपनी बात कहने के लिए 'पीके' को चुन लिया। उनका 'पीके' एक दूर दुनिया से आता है, जिसके जहां पर अभी धर्म की महामारी नहीं फैली। अनजान जगह पर आने के बाद पीके लोगों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करते हुए उनकी भाषा को सीखने का प्रयास करता है।
मगर, हमेशा अनजान लोगों की सीधी बातें उलटी पड़ जाती हैं। पीके को लगता है कि इस दुनिया में भगवान एक ही है और वो उसकी समस्या का समाधान कर सकता है। जैसे ठोकर खाने के बाद अकल आ जाती है, वैसे ही पीके को भी अकल आती है।
धीरे धीरे, उसको समझ पड़ने लगता है कि कौन से धर्म के देवता की मूर्ति पर शराब चढ़ सकती है, और कौन से भगवान को नारियल से खुश किया जाता है। इस फिल्म को देखते वक्त आपको अपनी सोच एक पागल व्यक्ति पर केंद्रित करनी होगी, जिसको आपके रीति रिवाज नहीं पता हैं, जो आपके कर्म कांडों से दूर है। वो नेक दिल से कर्म कांड करना चाहता है। वो एक सच्चे अनुयायी की तरह हर कुछ करता है। भले ही फिर इस्लाम के अल्लाह को खुश करने की बात हो। यहां हिंदू देव को प्रसन्न करने की बात हो या फिर ईसा मसीह को मनाने की बात हो।
पीके अनजान दुनिया में पहुंचे एक व्यक्ति की कहानी है। जो रेगिस्तान में किसी दुनिया से उतरता है। उसका एक यंत्र चोरी हो जाता है। अब उसकी तलाश में वो दर बर दर भटकता है। जाहिर सी बात है, यदि वो हिन्दुस्तान की धरती पर उतरा है, तो यहां पर उसका पाला भगवान से तो पड़ना ही चाहिए।
हम अपने तरीकों से सोचते हैं। सावन के अंधे को सब हरा दिखता है। उसी तरह, जब पीके अपने राजस्थानी दोस्त संजय दत्त का हाथ छूता है तो उसको उसमें समलिंगी नजर आने लगता है। वो महिलाओं का हाथ छूने निकलता है तो भीड़ उसके पीछे पड़ जाती है। लेकिन, उसकी समस्या दूसरी है। मगर, मानव उसको अपने नजरिया से हल करने की कोशिश करता है।
उसका दोस्त उसको वेश्या के यहां ले जाता है। जहां से पीके भोजपुरी सीखकर निकलता है। पीके के लिए कपड़ों का जुगाड़ केवल डांसिंग गाड़ियों से होता है। उड़ती गाड़ियों का मतलब होता है रोहित शेट्टी और अब आप हिलती गाड़ियों का मतलब राजकुमार हिरानी कह सकते हैं। हालांकि, बच्चों के सामने आप हिलती गाड़ियों की पूर्ण रूप से व्याख्या नहीं कर पाएंगे। इसके लिए आपको झूठ का सहारा लेना होगा।
ऐसा नहीं कि भगवान मदद नहीं करते, जब पीके एक कार्यक्रम में शिवजी की वेशभूषा धारे व्यक्ति का पीछा करता है तो वह अपनी खोई हुई चीज के पास पहुंच जाता है। जो सीन कहीं न कहीं भगवान में आस्था रखने के तर्क को सही ठहराता है। आप धर्म के नाम पर होने वाले ढोंग को तो नकार सकते हैं, लेकिन इस सृष्टि को चलाने वाले को नहीं, उसको आप किसी भी नाम से पुकार सकते हैं।
कहानी में आगे मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए नजर आता है। पीके मीडिया के साथ मिलकर एक ढोंगी बाबा की ताल ठोकता है, जिसके भक्तों ने पूर्व में न्यूज चैनल के एडिटर को खिलाफ छापने पर त्रिशूल का मार्क दिया था। मीडिया के कारण पूरे देश में एक जागरूकता का माहौल उत्पन्न होता है। लोग अपने मोबाइलों से वीडियो क्लिप बनाना बनाना न्यूज चैनल को भेजने लगते हैं। फिल्म के अंत में राजकुमार हिरानी शुरूआत में टूटी हुई प्रेम कहानी को एक सुखद अंत देते हैं।
इस फिल्म को आप सीधे तौर पर एक मनोरंजक एवं व्यवसाय को ध्यान में रखकर बनाई फिल्म कह सकते हैं, जहां पर दर्शकों के लिए हिलती गाड़ियां, जेब से गिरते कंडोम, किसिंग सीन हैं। हालांकि, इस फिल्म का काफी हिस्सा धर्म के नाम पर दुकानें खोलने वाले लोगों पर आधारित है।
इस फिल्म में आपको ओह माय गॉड जैसे तर्क नहीं मिलेंगे। ओह माय गॉड धर्म में चल रहे पाखंडों को केंद्र में रखकर रची गई एक लीक से हटकर फिल्म थी। उस फिल्म में आपको राजकुमार हिरानी वाला मसाला नहीं मिलेगा। इस फिल्म में एक नौजवान लड़की अपने न्यूज चैनल के संपादक के सामने खड़ी होकर सेक्स की बातों पर खूब हंसती है। जो कहीं न कहीं बदलते परिवेश को उजागर करती है।
इस फिल्म को लेकर होने वाला विरोध कहीं न कहीं फिल्म के प्रचार का हथकंडा है। आमिर ख़ान से बेहतर प्रचार रणनीति बॉलीवुड के किसी भी अभिनेता के पास नहीं है। इस फिल्म को पूर्ण रूप से गुप्त रखा गया था और फिल्म के रिलीज के साथ ही समर्थक और विरोधी खड़े किए गए। फिल्म को अधिक महत्व मिलेगा। लोगों के भीतर देखने की उत्सुकता जागी।
मगर, हमेशा अनजान लोगों की सीधी बातें उलटी पड़ जाती हैं। पीके को लगता है कि इस दुनिया में भगवान एक ही है और वो उसकी समस्या का समाधान कर सकता है। जैसे ठोकर खाने के बाद अकल आ जाती है, वैसे ही पीके को भी अकल आती है।
धीरे धीरे, उसको समझ पड़ने लगता है कि कौन से धर्म के देवता की मूर्ति पर शराब चढ़ सकती है, और कौन से भगवान को नारियल से खुश किया जाता है। इस फिल्म को देखते वक्त आपको अपनी सोच एक पागल व्यक्ति पर केंद्रित करनी होगी, जिसको आपके रीति रिवाज नहीं पता हैं, जो आपके कर्म कांडों से दूर है। वो नेक दिल से कर्म कांड करना चाहता है। वो एक सच्चे अनुयायी की तरह हर कुछ करता है। भले ही फिर इस्लाम के अल्लाह को खुश करने की बात हो। यहां हिंदू देव को प्रसन्न करने की बात हो या फिर ईसा मसीह को मनाने की बात हो।
पीके अनजान दुनिया में पहुंचे एक व्यक्ति की कहानी है। जो रेगिस्तान में किसी दुनिया से उतरता है। उसका एक यंत्र चोरी हो जाता है। अब उसकी तलाश में वो दर बर दर भटकता है। जाहिर सी बात है, यदि वो हिन्दुस्तान की धरती पर उतरा है, तो यहां पर उसका पाला भगवान से तो पड़ना ही चाहिए।
हम अपने तरीकों से सोचते हैं। सावन के अंधे को सब हरा दिखता है। उसी तरह, जब पीके अपने राजस्थानी दोस्त संजय दत्त का हाथ छूता है तो उसको उसमें समलिंगी नजर आने लगता है। वो महिलाओं का हाथ छूने निकलता है तो भीड़ उसके पीछे पड़ जाती है। लेकिन, उसकी समस्या दूसरी है। मगर, मानव उसको अपने नजरिया से हल करने की कोशिश करता है।
उसका दोस्त उसको वेश्या के यहां ले जाता है। जहां से पीके भोजपुरी सीखकर निकलता है। पीके के लिए कपड़ों का जुगाड़ केवल डांसिंग गाड़ियों से होता है। उड़ती गाड़ियों का मतलब होता है रोहित शेट्टी और अब आप हिलती गाड़ियों का मतलब राजकुमार हिरानी कह सकते हैं। हालांकि, बच्चों के सामने आप हिलती गाड़ियों की पूर्ण रूप से व्याख्या नहीं कर पाएंगे। इसके लिए आपको झूठ का सहारा लेना होगा।
ऐसा नहीं कि भगवान मदद नहीं करते, जब पीके एक कार्यक्रम में शिवजी की वेशभूषा धारे व्यक्ति का पीछा करता है तो वह अपनी खोई हुई चीज के पास पहुंच जाता है। जो सीन कहीं न कहीं भगवान में आस्था रखने के तर्क को सही ठहराता है। आप धर्म के नाम पर होने वाले ढोंग को तो नकार सकते हैं, लेकिन इस सृष्टि को चलाने वाले को नहीं, उसको आप किसी भी नाम से पुकार सकते हैं।
कहानी में आगे मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए नजर आता है। पीके मीडिया के साथ मिलकर एक ढोंगी बाबा की ताल ठोकता है, जिसके भक्तों ने पूर्व में न्यूज चैनल के एडिटर को खिलाफ छापने पर त्रिशूल का मार्क दिया था। मीडिया के कारण पूरे देश में एक जागरूकता का माहौल उत्पन्न होता है। लोग अपने मोबाइलों से वीडियो क्लिप बनाना बनाना न्यूज चैनल को भेजने लगते हैं। फिल्म के अंत में राजकुमार हिरानी शुरूआत में टूटी हुई प्रेम कहानी को एक सुखद अंत देते हैं।
इस फिल्म को आप सीधे तौर पर एक मनोरंजक एवं व्यवसाय को ध्यान में रखकर बनाई फिल्म कह सकते हैं, जहां पर दर्शकों के लिए हिलती गाड़ियां, जेब से गिरते कंडोम, किसिंग सीन हैं। हालांकि, इस फिल्म का काफी हिस्सा धर्म के नाम पर दुकानें खोलने वाले लोगों पर आधारित है।
इस फिल्म में आपको ओह माय गॉड जैसे तर्क नहीं मिलेंगे। ओह माय गॉड धर्म में चल रहे पाखंडों को केंद्र में रखकर रची गई एक लीक से हटकर फिल्म थी। उस फिल्म में आपको राजकुमार हिरानी वाला मसाला नहीं मिलेगा। इस फिल्म में एक नौजवान लड़की अपने न्यूज चैनल के संपादक के सामने खड़ी होकर सेक्स की बातों पर खूब हंसती है। जो कहीं न कहीं बदलते परिवेश को उजागर करती है।
इस फिल्म को लेकर होने वाला विरोध कहीं न कहीं फिल्म के प्रचार का हथकंडा है। आमिर ख़ान से बेहतर प्रचार रणनीति बॉलीवुड के किसी भी अभिनेता के पास नहीं है। इस फिल्म को पूर्ण रूप से गुप्त रखा गया था और फिल्म के रिलीज के साथ ही समर्थक और विरोधी खड़े किए गए। फिल्म को अधिक महत्व मिलेगा। लोगों के भीतर देखने की उत्सुकता जागी।
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