हालांकि, कुछ साल पहले सोशल मीडिया को परंपरागत मीडिया जगत भी अधिक महत्व नहीं देता था क्योंकि परंपरागत मीडिया की नजर में सोशल मीडिया अछूत था। मगर, समय के साथ साथ इसकी बढ़ती लोकप्रियता ने परंपरागत मीडिया को अपना नजरिया बदलने पर मजबूर कर दिया।
देश के ही नहीं, बल्कि विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना पर लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया के बढ़ते प्रचलन ने परंपरागत मीडिया को इसका अनुसरण करने तक विवश कर दिया। मानो कि किसी तानाशाह को उतारकर सिंहासन पर प्रजा बैठ गई। परिस्थितियों ने कुछ इस तरह करवट बदली कि परंपरागत मीडिया इसके प्रभाव में स्वयं को चलाने लगा। मीडिया की अधिकतर ख़बरें सोशल मीडिया के मूड को देखकर तूल पकड़ती हैं। यहां से ही टीआरपी का मसाला उठाया जाता है।
इसकी ताजा उदाहरण पिछले दिनों पेशावर के एक आर्मी स्कूल में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देखने को मिली। सोशल मीडिया पर भारत की तरफ से पाकिस्तान के हादसे पर संवेदनाएं प्रकट की गई एवं उसके तत्काल बाद पाकिस्तान के साथ खड़े होने की लहर ने दम पकड़ा। मीडिया ने भी अपनी हमदर्दी प्रकट की। इसको देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खूब जांचा, जो सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल कर देश की सत्ता तक पहुंचे।
देश के ही नहीं, बल्कि विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना पर लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया के बढ़ते प्रचलन ने परंपरागत मीडिया को इसका अनुसरण करने तक विवश कर दिया। मानो कि किसी तानाशाह को उतारकर सिंहासन पर प्रजा बैठ गई। परिस्थितियों ने कुछ इस तरह करवट बदली कि परंपरागत मीडिया इसके प्रभाव में स्वयं को चलाने लगा। मीडिया की अधिकतर ख़बरें सोशल मीडिया के मूड को देखकर तूल पकड़ती हैं। यहां से ही टीआरपी का मसाला उठाया जाता है।
इसकी ताजा उदाहरण पिछले दिनों पेशावर के एक आर्मी स्कूल में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देखने को मिली। सोशल मीडिया पर भारत की तरफ से पाकिस्तान के हादसे पर संवेदनाएं प्रकट की गई एवं उसके तत्काल बाद पाकिस्तान के साथ खड़े होने की लहर ने दम पकड़ा। मीडिया ने भी अपनी हमदर्दी प्रकट की। इसको देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खूब जांचा, जो सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल कर देश की सत्ता तक पहुंचे।
पाकिस्तान के लोगों ने भारतीयों की इस संवेदना को गंभीरता से लिया। इसका नतीजा 18 दिसंबर 2014 को उस समय देखने को मिला, जब आतंकवाद विरोधी अदालत ने मुम्बई आतंकवादी हमले के मुख्य आरोपियों में शामिल जकीउर रहमान लखवी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया एवं पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने इसका पुरजोर विरोध गया। इस जनता के दबाव के आगे सरकार ने जकीउर रहमान लखवी के खिलाफ उच्च अदालत में जाने की बात कही एवं मेंटिनेंस ऑफ़ पब्लिक ऑर्ड क़ानून के तहत उसको नजरबंद कर लिया। लखवी फ़िलहाल रावलपिंडी की अडयाला जेल में हैं।
इसको एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा सकता है। जो काम शायद आज तक हमारे राजनेता नहीं कर पाए, वो सोशल मीडिया के जरिये कहीं न कहीं होता नजर आ रहा है। सोशल मीडिया के बारे में बहुत सारे किस्से हैं, जिनमें बिछड़ों के मिलने का जिक्र मिलेगा। अगर इन किस्सों की फेहरिस्त में दो पड़ोसी देशों के मिलन का किस्सा भी जुड़ जाए तो किस्सों की फेहरिस्त को चार चांद लग जाएं।
अगर दोनों देशों के लोग कुछ मामलों में एक जैसी यूं खुलकर अपनी प्रतिक्रिया दें, तो हो सकता है कि देश के हुकमरान भी जनता की आवाज को नजरअंदाज न कर पाएं, जो बरसों से होता आ रहा है, वो आगे न हो। उम्मीद करता हूं कि अलगे आने वाले कुछ बरसों में भारत पाकिस्तान के बीच सोशल मीडिया के जरिये एक अच्छा संवाद कायम हो। वहां की जनता और यहां की जनता एक दूसरे को समझने का प्रयास करें और उस समझ से उत्पन्न होने वाली तारंगें देश के हुकमरानों की रूह तक पहुंचें। हालांकि, यह खुला मंच होने के कारण कुछ शरारती तत्व इसका इस्तेमाल दोनों देशों के बीच दरार डालने के लिए कर सकते हैं। फिर भी सकारात्मक सोच रखना, सुनहरे कल की आशा को बनाए रखना है।
इसको एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा सकता है। जो काम शायद आज तक हमारे राजनेता नहीं कर पाए, वो सोशल मीडिया के जरिये कहीं न कहीं होता नजर आ रहा है। सोशल मीडिया के बारे में बहुत सारे किस्से हैं, जिनमें बिछड़ों के मिलने का जिक्र मिलेगा। अगर इन किस्सों की फेहरिस्त में दो पड़ोसी देशों के मिलन का किस्सा भी जुड़ जाए तो किस्सों की फेहरिस्त को चार चांद लग जाएं।
अगर दोनों देशों के लोग कुछ मामलों में एक जैसी यूं खुलकर अपनी प्रतिक्रिया दें, तो हो सकता है कि देश के हुकमरान भी जनता की आवाज को नजरअंदाज न कर पाएं, जो बरसों से होता आ रहा है, वो आगे न हो। उम्मीद करता हूं कि अलगे आने वाले कुछ बरसों में भारत पाकिस्तान के बीच सोशल मीडिया के जरिये एक अच्छा संवाद कायम हो। वहां की जनता और यहां की जनता एक दूसरे को समझने का प्रयास करें और उस समझ से उत्पन्न होने वाली तारंगें देश के हुकमरानों की रूह तक पहुंचें। हालांकि, यह खुला मंच होने के कारण कुछ शरारती तत्व इसका इस्तेमाल दोनों देशों के बीच दरार डालने के लिए कर सकते हैं। फिर भी सकारात्मक सोच रखना, सुनहरे कल की आशा को बनाए रखना है।
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