कटरीना कैफ को राष्ट्रपति बनाने की सलाह देते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और प्रेस परिषद् के पूर्व चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने जो हमारे राजनेताओं पर तंज कसा है। उसको समझने की जरूरत है।
हालांकि, मीडिया ने इसको केवल टीआरपी के लिए इस्तेमाल कर लिया क्योंकि उसको लगा कि काटजू ने बॉलीवुड अभिनेत्री कटरीना कैफ को देश का राष्ट्रपति बनाने की सलाह दी है।
आज का दिन कटरीना कैफ की खूबसूरत फोटोओं के क्लोज बनाए जाएंगे। एक तरफ काटजू का फोटो हो सकता है,जिसने कटरीना कैफ के खूबसूरत कहा। भले ही, मीडिया उसको कातिल अदाओं वाली कहकर पुकारता हो, क्या फर्क पड़ता है।
मीडिया की सोच ख़बर को इस तरह परोसेगी कि काटजू का व्यंग या तंज इसमें दबकर रह जाएगा। सच कहूं तो मीडिया ने मार्कंडेय काटजू के साथ विवादित शब्द जोड़ देना चाहिए क्योंकि मीडिया उसी अंश को उठाता है, जहां कुछ विवादित होने का संदेह उत्पन्न हो रहा हो।
हालांकि काटजू ने लिखा है, 'मैं चुनाव में हमेशा से ही सुंदर महिलाओं जैसे कि फिल्मी अभिनेत्रियों के चयन का समर्थन करता हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि नेता हमेशा चांद दिलाने की बात करेंगे लेकिन कभी जनता के हित का काम नहीं करेंगे।'
आगे लिखते हैं 'चूंकि आपको किसी न किसी का चुनाव तो करना ही है तो क्यों नहीं कम से कम सुंदर चेहरे के लिए वोट दिया जाए। कम से कम मीडिया में उस सुंदर चेहरे को देख कर आपको क्षणिक खुशी तो होगी। नहीं तो आपको अंत में ऐसे तो कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।'
काटजू ने अपने ब्लॉग की शुरूआत में लिखा है कि पिछले दिनों क्रोएशिया में एक सुंदर महिला राष्ट्रपति बनी हैं। आर्थिक रूप से बीमार क्रोएशिया जब मिस ग्रैबर किटरोविक को अपना राष्ट्रपति बना सकता है तो हम क्यों नहीं?
भारतीय नेताओं पर यह तंज खूब जमता है। कोरी बातों के अलावा अब तक हमको मिला ही क्या है ? चुनावों के दिनों में वादों की बौछार होती है। चुनावों के बाद जनता की किसी नेता को दरकार होती है।
जनता बेचारी सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटती रहती है। हमारी फाइलें एक टेबल से दूसरे टेबल तक जाने के लिए गांधीछाप का इंतजार करती हैं। सरकारी कार्यालय का सेवादार भी अपने आपको देश के प्रधानमंत्री से कम नहीं समझता। उसके उच्च अधिकारियों के आगे साहिब शब्द तो अपने आप जुड़ जाता है।
यदि ऐसी परिस्थितियों में चेहरा भी खूबसूरत न हो तो मुश्किल अधिक हो जाती है। काम निकलवाने के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं। बेढबे चेहरे देखने पड़ते हैं। हालांकि, हम समझ सकते हैं कि खूबसूरती के आधार पर हम उच्च पदों का बंटवारा नहीं कर सकते।
फिर भी यह एक तंज था। हमारी राजनीति पर। इसको उसी रूप में समझना चाहिए। हालांकि, समस्या यह है कि लोग अपनी समझ के अनुसार उसका अर्थ बना लेते हैं। मगर, जब मीडिया अर्थ निकालता है तो उसका प्रभाव दूर तलक जाता है। इस बात को समझना अति जरूरी है।
हालांकि, मीडिया ने इसको केवल टीआरपी के लिए इस्तेमाल कर लिया क्योंकि उसको लगा कि काटजू ने बॉलीवुड अभिनेत्री कटरीना कैफ को देश का राष्ट्रपति बनाने की सलाह दी है।
आज का दिन कटरीना कैफ की खूबसूरत फोटोओं के क्लोज बनाए जाएंगे। एक तरफ काटजू का फोटो हो सकता है,जिसने कटरीना कैफ के खूबसूरत कहा। भले ही, मीडिया उसको कातिल अदाओं वाली कहकर पुकारता हो, क्या फर्क पड़ता है।
मीडिया की सोच ख़बर को इस तरह परोसेगी कि काटजू का व्यंग या तंज इसमें दबकर रह जाएगा। सच कहूं तो मीडिया ने मार्कंडेय काटजू के साथ विवादित शब्द जोड़ देना चाहिए क्योंकि मीडिया उसी अंश को उठाता है, जहां कुछ विवादित होने का संदेह उत्पन्न हो रहा हो।
हालांकि काटजू ने लिखा है, 'मैं चुनाव में हमेशा से ही सुंदर महिलाओं जैसे कि फिल्मी अभिनेत्रियों के चयन का समर्थन करता हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि नेता हमेशा चांद दिलाने की बात करेंगे लेकिन कभी जनता के हित का काम नहीं करेंगे।'
आगे लिखते हैं 'चूंकि आपको किसी न किसी का चुनाव तो करना ही है तो क्यों नहीं कम से कम सुंदर चेहरे के लिए वोट दिया जाए। कम से कम मीडिया में उस सुंदर चेहरे को देख कर आपको क्षणिक खुशी तो होगी। नहीं तो आपको अंत में ऐसे तो कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।'
काटजू ने अपने ब्लॉग की शुरूआत में लिखा है कि पिछले दिनों क्रोएशिया में एक सुंदर महिला राष्ट्रपति बनी हैं। आर्थिक रूप से बीमार क्रोएशिया जब मिस ग्रैबर किटरोविक को अपना राष्ट्रपति बना सकता है तो हम क्यों नहीं?
भारतीय नेताओं पर यह तंज खूब जमता है। कोरी बातों के अलावा अब तक हमको मिला ही क्या है ? चुनावों के दिनों में वादों की बौछार होती है। चुनावों के बाद जनता की किसी नेता को दरकार होती है।
जनता बेचारी सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटती रहती है। हमारी फाइलें एक टेबल से दूसरे टेबल तक जाने के लिए गांधीछाप का इंतजार करती हैं। सरकारी कार्यालय का सेवादार भी अपने आपको देश के प्रधानमंत्री से कम नहीं समझता। उसके उच्च अधिकारियों के आगे साहिब शब्द तो अपने आप जुड़ जाता है।
यदि ऐसी परिस्थितियों में चेहरा भी खूबसूरत न हो तो मुश्किल अधिक हो जाती है। काम निकलवाने के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं। बेढबे चेहरे देखने पड़ते हैं। हालांकि, हम समझ सकते हैं कि खूबसूरती के आधार पर हम उच्च पदों का बंटवारा नहीं कर सकते।
फिर भी यह एक तंज था। हमारी राजनीति पर। इसको उसी रूप में समझना चाहिए। हालांकि, समस्या यह है कि लोग अपनी समझ के अनुसार उसका अर्थ बना लेते हैं। मगर, जब मीडिया अर्थ निकालता है तो उसका प्रभाव दूर तलक जाता है। इस बात को समझना अति जरूरी है।
अंत में....
हां, यदि काटजू की जगह महिला होती तो शायद किसी अभिनेता का नाम लेती। वो अक्षय कुमार, सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, अजय देवगन, रणबीर कपूर हो सकता था। सुंदरता का पैमाना भी अपना अपना होता है।
No comments:
Post a Comment
अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए आपका धन्यवाद