साक्षी महाराज! महाराज! महाराज! उनकी विकास नीति के बारे में सुनकर कुछ ऐसा ही मुंह से निकलेगा। उनकी विकास नीति पर बात करनी चाहिए। केंद्र सरकार को गंभीरता पूर्ण सोचना चाहिए। बकायदा अमल में लाने के लिए विशेष संसदीय सत्र बुलाना चाहिए। यदि बात न बन पा रही हो तो अध्यादेश लाना चाहिए।
साक्षी महाराज अद्भुत हैं। उनके विचार अद्भुत कैसे न होंगे। हिंदू धर्म ख़तरे में है। जब धर्म ख़तरे में हो, तो धर्म को बचाने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए। साक्षी महाराज कुछ भी तो गलत नहीं कह रहे, वो तो कह रहे हैं कि हिंदू महिला को चार चार बच्चे पैदा करने चाहिए। आखिर, महिलाएं बच्चे पैदा करने के लिए तो इस दुनिया में आई हैं। उनका अन्य कोई उद्देश्य थोड़ा है।
साक्षी महाराज को क्या फर्क पड़ता है ? यदि इससे देश में भूखमरी बढ़ जाए। क्या फर्क पड़ता है ? यदि किसी के पास सिर ढकने के लिए छत न हो। बस धर्म की नींव कहीं कमजोर न हो जाए। धर्म को मजबूत करने के लिए गरीबी के दिनों से गुजारने पड़े तो क्या बड़ी बात है ? आप इतना सा कार्य नहीं कर सकते।
शर्म तो मुझे इस बात पर आती है कि इक्कीसवीं सदी का भारत आज भी मूर्ख लोगों को देश चलाने की आज्ञा देता है। सबसे अधिक शर्म उन लोगों पर आती है, जो साधू संन्यासी की गरिमा को चोट पहुंचा रहे हैं। हिंदू धर्म को ख़तरा कम होती आबादी से नहीं, बल्कि ऐसे साधू संन्यासियों से है, जिनको संन्यास का सही अर्थ भी पता नहीं। जिनके हाथ में गीता तो है, लेकिन आत्मसात की बात आने पर गीता का एक श्लोक भी नहीं है।
हिंन्दू धर्म को ख़तरा हिंदू धर्म के ठेकेदारों से है या उन लोगों से जिनको समाज में जब इज्जत नहीं मिलती को साधू बनने निकल पड़ते हैं। जब साधू संन्यासी के रूप में हिट होते ही अपने पुराने रंग रूप में उतर आते हैं। अपने अंदर का तनाव समाज में फैलाने निकल पड़ते हैं। हमारे गांव में एक कहावत है साधू नूं की नाल स्वादां। साधूवत को पाना इतना आसान नहीं है। साधूवत वो स्थिति है, जहां सब अपना हो जाता है। कुछ भी गैर नहीं बचता। जब सब अपना हो जाता है तो ख़तरे का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता है। ख़तरा तो वहां है, जहां मेरा बलवान है। घर गृहस्थी छोड़कर संन्यास को निकलने बाबा जब आम धारा में रहने वाले लोगों को नसीहत सलाह देते हैं तो हैरानी होती है।
महाराज ने बड़े आराम से कहा, चार बच्चे पैदा करो। एक को सीमा पर भेज दें। एक को साधू संन्यासी के साथ भेज दें। सांसद बन चुके साक्षी महाराज को शायद गृहस्थ जीवन की दुख तकलीफों की जानकारी नहीं है। उनको नहीं पता कि आज बीस हजार महीना कमाने वाला भी अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाता है। साक्षी महाराज के इस फार्मूले ने जमींदारों को मजदूर बनाकर रख दिया। बीस बीस एकड़ जमीन के मालिकों के बच्चे आज दो दो एकड़ जमीन के मालिक रह गए। साक्षी महाराज ने शायद बनारस के घाटों, महानगर की सड़कों पर एवं मंदिरों के बाहर भीख मांगने वालों की बढ़ती संख्या को नहीं देखा।
भारत आबादी के मामले में चीन से केवल कुछ लाख संख्या पीछे है। विश्व में आबादी के मामले में दूसरा स्थान भारत के पास है। आज विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश हो, जहां पर भारतीय मूल का निवासी न हो। 1980 में एक सांसद के सवाल पर सरकार ने कहा था, दुनिया के 180 देशों में भारतीय रहते हैं। आज उस बात को करीबन तीन दशक हो चले हैं। आप सहज की अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत की आबादी विश्व के किस छोर तक पहुंच गई होगी। लेबर ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर तीसरा स्नातक पास युवा बेरोजगार है। साक्षी महाराज, आप आप सरकार में हैं, पहले इस समस्या का समाधान लाएं। उसके बाद देश की जनता आपकी विकास नीति पर ध्यान दे सकती है। साथ ही, एक अन्य बात, आज की पढ़ी लिखी महिला करियर एवं हेल्थ के प्रति संवेदनशील हो चुकी है। ऐसे में कितने घरों में घरेलू हिंसा होगी, आपको इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा।
हां। आपकी विकास नीति बुरी नहीं होगी। यदि आप महिलाओं से बात करें। उनको बीस से पच्चीस लाख रुपया दें, उने सुरक्षित भविष्य के लिए। स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाएं। उस तरह की परिस्थितियां मुहैया करवाएं, जहां वो प्रसव पीड़ा से गुजरते हुए थोड़ा सा सुखद महसूस करें।
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