अभिव्यकित मीडिया का अधिकार है। अधिकार के साथ कुछ दायित्व भी होते हैं। यदि दायित्वों को दरकिनार अभिव्यक्ति के नाम पर अपनी खुन्नस निकालना शुरू कर देंगे, तो शायद अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति न रहकर खुन्नस निकालने का एक जरिया बन जाएगी।
आज 07 जनवरी 2015 को पेरिस स्थित चार्ली हेब्दो के कार्यालय में जो कुछ हुआ, वो इसी का नतीजा है। हालांकि, ऐसा नहीं कि साप्ताहिक पत्रिका चार्ली हेब्दो ने पिछले दिनों आईएसआईएस के मुखिया अबु बक्र अल बगदादी का कार्टून छापा और आतंकवादियों ने हमला बोल दिया। दरअसल, फ्रांस के अंदर चार्ली हेब्दो और मुस्लिम समुदाय के बीच लम्बे समय से एक युद्ध चल रहा था।
इस्लाम को लेकर व्यंगात्मक लेखन एवं प्रकाशन के कारण चार्ली हेब्दो को कई बार विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि, आलोचनाओं और विरोध के बावजूद मैगजीन ने अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर कभी अपनी शैली से समझौता नहीं किया। उनके अड़ियल रवैया का एक उदाहरण उनकी एक इंटरव्यू से मिलता है, जो उन्होंने वर्ष 2012 में दी थी। इस इंटरव्यू में स्टीफन ने कहा था कि, "ना मेरे पास बीवी है, ना बच्चे हैं, और ना ही कार हैं घुटनों के बल जीने से अच्छा होगा की मैं जान दे दूं"।
दरअसल, चार्ली हेब्दो और मुस्लिम समुदाय के बीच उस समय तनाव पनपना शुरू हुआ था, जब पत्रिका ने वर्ष 2007 में मोहम्मद के आपत्तिजनक कार्टून छापे थे, जो पहले डेनमार्क के एक समाचार पत्र में प्रकाशित हुए थे। इसके कारण फ्रांस के दो मुस्लिम संगठन क्रोधित हुए थे और उन्होंने पत्रिका पर केस भी ठोका था। इसके बाद वर्ष 2011 में पत्रिका ने 'शरिया एब्दो' नाम से अपना विशेष संस्करण निकालने का ऐलान करते हुए कहा था कि इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद उनकी पत्रिका के गेस्ट एडिटर इन चीफ होंगे।
पत्रिका के पहले पन्ने पर पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर को यह कहते हुए छापा था- अगर हंसते-हंसते आप मरते नहीं हैं, तो 100 कोड़े पड़ेंगे। अंतिम पृष्ठ पर मोहम्मद को लाल रंग की नाक में यह कहते हुए दिखाया गया था- हां, इस्लाम और हास्य साथ-साथ चल सकते हैं। 2 नवंबर 2011 को पत्रिका के कार्यालय पर बम से हमला हुआ और वेबसाइट हैक किया गया था।
सितंबर 2012 में मैगजीन ने पैगंबर पर व्यंग्यात्मक कार्टूनों की पूरी श्रृंखला प्रकाशित की, जिनमें से कुछेक कार्टून तो बेहद अश्लील थे। पत्रिका ने कार्टूनों की श्रृंखला उस समय प्रकाशित की जब इस्लाम पर आधारित एक फिल्म के विरोध में अमेरिका के दूतावासों पर हमले हुए थे।
हैरानी की बात यह है कि आज चार्ली हेब्दो पर उस समय हमला हुआ। जब फ्रांस एक बुरी स्थिति में फंसा हुआ है। फ्रांस में एक उपन्यास को लेकर विवाद चल रहा है। इस उपन्यास में दावा किया गया है कि 2022 तक फ्रांस एक इस्लामिक देश बन जाएगा। इसका राष्ट्रपति एक मुस्लिम होगा। यहां की महिलाएं बुर्के में होंगी। उनको नौकरी छोड़नी पड़ेगी। किसी को भी चार शादियां करने की इजाजत होगी। यह उपन्यास प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक की कल्पना की उपज है। 'सबमिशन' नामक इस उपन्यास को कुछ लोग कड़वी सच्चाई के रूप में देख रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि आज का धर्मनिरपेक्ष देश फ्रांस एक दुविधा की परिस्थिति के बीच से गुजर रहा है। वहां के लोग डरे हुए हैं। उनके मनों में भय बन रहा है कि उनका देश धर्म निरपेक्षता को खो देगा।
आज फ्रांस में जो हुआ, वो इस्लाम को चोट पहुंचाने वाला है। इससे इस्लाम का भला नहीं बल्कि इस्लाम बदनाम होगा। आज किसी भी देश में हमला होता है तो बदनाम इस्लाम होता है। चरमपंथी हमला करके निकल लेते हैं, मगर, उसका भुगतान देश के आम इस्लाम अनुयायियों को भुगतना पड़ता है। भारत के बॉलीवुड सितारे शाहरुख खान को अमेरिकी एयरपोर्ट पर केवल नाम के कारण रोक लिया जाता है। उसकी तलाशी ली जाती है।
सिडनी कैफे में हुए हमले के बाद वहां की सरकार ने सख्त शब्दों में कहा था, इस्लाम चरमपंथियों को देश में घुसने नहीं देंगे। उसके बाद पेशावर में दर्दनाक हादसा देखने को मिला। सीरिया और इराक की स्थितियां किसी से छुपी नहीं हैं। ऐसे में इस्लाम के अनुयायियों को भी अब अपने चरमपंथियों से लड़ने की स्वयं जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि दिन प्रति दिन ख़राब हो रही इस्लाम की छवि को बचाया जाए।
हंगू के 17 वर्षीय पाकिस्तानी स्कूली बच्चे एत्जाज हसन की तरह, जिसने अपनी जान गंवाकर अपने जैसे दो हजार बच्चों को जिन्दगी दी। अगर वो चाहता तो कायर की तरह भाग निकलता, और जेहाद के नाम पर दो हजार बच्चों की बलि चढ़ जाती। हालांकि, साल के अंत में पेशावर में आतंकवादी अपने मंसूबों को सफल कर गए। सरकार मुंह ताकती रह गई क्योंकि इस स्कूल के बाहर कोई एत्जाज हसन न था, जो पेशावर आर्मी के बच्चों को बचा लेता।
दूसरी तरफ, मीडिया को भी अपनी अभिव्यक्ति के साथ साथ अपने दायित्वों को भी याद रखना होगा। सस्ती लोकप्रियता के लिए महान आत्माओं का मजाक उड़ाने और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से बचना चाहिए। समाज के भीतर पाखंड करने वालों पर तंज कसना चाहिए। लोगों को गुमराह करने वालों पर तंज कसना चाहिए। जो स्वयं को दुनिया में स्थापित करके चले गए, उन पर उंगलियां उठाना। उनका मजाक बनाना किस तरह की अभिव्यक्ति है।
आज 07 जनवरी 2015 को पेरिस स्थित चार्ली हेब्दो के कार्यालय में जो कुछ हुआ, वो इसी का नतीजा है। हालांकि, ऐसा नहीं कि साप्ताहिक पत्रिका चार्ली हेब्दो ने पिछले दिनों आईएसआईएस के मुखिया अबु बक्र अल बगदादी का कार्टून छापा और आतंकवादियों ने हमला बोल दिया। दरअसल, फ्रांस के अंदर चार्ली हेब्दो और मुस्लिम समुदाय के बीच लम्बे समय से एक युद्ध चल रहा था।
इस्लाम को लेकर व्यंगात्मक लेखन एवं प्रकाशन के कारण चार्ली हेब्दो को कई बार विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि, आलोचनाओं और विरोध के बावजूद मैगजीन ने अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर कभी अपनी शैली से समझौता नहीं किया। उनके अड़ियल रवैया का एक उदाहरण उनकी एक इंटरव्यू से मिलता है, जो उन्होंने वर्ष 2012 में दी थी। इस इंटरव्यू में स्टीफन ने कहा था कि, "ना मेरे पास बीवी है, ना बच्चे हैं, और ना ही कार हैं घुटनों के बल जीने से अच्छा होगा की मैं जान दे दूं"।
दरअसल, चार्ली हेब्दो और मुस्लिम समुदाय के बीच उस समय तनाव पनपना शुरू हुआ था, जब पत्रिका ने वर्ष 2007 में मोहम्मद के आपत्तिजनक कार्टून छापे थे, जो पहले डेनमार्क के एक समाचार पत्र में प्रकाशित हुए थे। इसके कारण फ्रांस के दो मुस्लिम संगठन क्रोधित हुए थे और उन्होंने पत्रिका पर केस भी ठोका था। इसके बाद वर्ष 2011 में पत्रिका ने 'शरिया एब्दो' नाम से अपना विशेष संस्करण निकालने का ऐलान करते हुए कहा था कि इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद उनकी पत्रिका के गेस्ट एडिटर इन चीफ होंगे।
पत्रिका के पहले पन्ने पर पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर को यह कहते हुए छापा था- अगर हंसते-हंसते आप मरते नहीं हैं, तो 100 कोड़े पड़ेंगे। अंतिम पृष्ठ पर मोहम्मद को लाल रंग की नाक में यह कहते हुए दिखाया गया था- हां, इस्लाम और हास्य साथ-साथ चल सकते हैं। 2 नवंबर 2011 को पत्रिका के कार्यालय पर बम से हमला हुआ और वेबसाइट हैक किया गया था।
सितंबर 2012 में मैगजीन ने पैगंबर पर व्यंग्यात्मक कार्टूनों की पूरी श्रृंखला प्रकाशित की, जिनमें से कुछेक कार्टून तो बेहद अश्लील थे। पत्रिका ने कार्टूनों की श्रृंखला उस समय प्रकाशित की जब इस्लाम पर आधारित एक फिल्म के विरोध में अमेरिका के दूतावासों पर हमले हुए थे।
हैरानी की बात यह है कि आज चार्ली हेब्दो पर उस समय हमला हुआ। जब फ्रांस एक बुरी स्थिति में फंसा हुआ है। फ्रांस में एक उपन्यास को लेकर विवाद चल रहा है। इस उपन्यास में दावा किया गया है कि 2022 तक फ्रांस एक इस्लामिक देश बन जाएगा। इसका राष्ट्रपति एक मुस्लिम होगा। यहां की महिलाएं बुर्के में होंगी। उनको नौकरी छोड़नी पड़ेगी। किसी को भी चार शादियां करने की इजाजत होगी। यह उपन्यास प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक की कल्पना की उपज है। 'सबमिशन' नामक इस उपन्यास को कुछ लोग कड़वी सच्चाई के रूप में देख रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि आज का धर्मनिरपेक्ष देश फ्रांस एक दुविधा की परिस्थिति के बीच से गुजर रहा है। वहां के लोग डरे हुए हैं। उनके मनों में भय बन रहा है कि उनका देश धर्म निरपेक्षता को खो देगा।
आज फ्रांस में जो हुआ, वो इस्लाम को चोट पहुंचाने वाला है। इससे इस्लाम का भला नहीं बल्कि इस्लाम बदनाम होगा। आज किसी भी देश में हमला होता है तो बदनाम इस्लाम होता है। चरमपंथी हमला करके निकल लेते हैं, मगर, उसका भुगतान देश के आम इस्लाम अनुयायियों को भुगतना पड़ता है। भारत के बॉलीवुड सितारे शाहरुख खान को अमेरिकी एयरपोर्ट पर केवल नाम के कारण रोक लिया जाता है। उसकी तलाशी ली जाती है।
सिडनी कैफे में हुए हमले के बाद वहां की सरकार ने सख्त शब्दों में कहा था, इस्लाम चरमपंथियों को देश में घुसने नहीं देंगे। उसके बाद पेशावर में दर्दनाक हादसा देखने को मिला। सीरिया और इराक की स्थितियां किसी से छुपी नहीं हैं। ऐसे में इस्लाम के अनुयायियों को भी अब अपने चरमपंथियों से लड़ने की स्वयं जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि दिन प्रति दिन ख़राब हो रही इस्लाम की छवि को बचाया जाए।
हंगू के 17 वर्षीय पाकिस्तानी स्कूली बच्चे एत्जाज हसन की तरह, जिसने अपनी जान गंवाकर अपने जैसे दो हजार बच्चों को जिन्दगी दी। अगर वो चाहता तो कायर की तरह भाग निकलता, और जेहाद के नाम पर दो हजार बच्चों की बलि चढ़ जाती। हालांकि, साल के अंत में पेशावर में आतंकवादी अपने मंसूबों को सफल कर गए। सरकार मुंह ताकती रह गई क्योंकि इस स्कूल के बाहर कोई एत्जाज हसन न था, जो पेशावर आर्मी के बच्चों को बचा लेता।
दूसरी तरफ, मीडिया को भी अपनी अभिव्यक्ति के साथ साथ अपने दायित्वों को भी याद रखना होगा। सस्ती लोकप्रियता के लिए महान आत्माओं का मजाक उड़ाने और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से बचना चाहिए। समाज के भीतर पाखंड करने वालों पर तंज कसना चाहिए। लोगों को गुमराह करने वालों पर तंज कसना चाहिए। जो स्वयं को दुनिया में स्थापित करके चले गए, उन पर उंगलियां उठाना। उनका मजाक बनाना किस तरह की अभिव्यक्ति है।
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