Tuesday, January 13, 2015

पेरिस जनाक्रोश - 'शार्ली एब्दो' के पक्ष में नहीं, 'इस्लामी चरमपंथ' के विरोध में

विश्व में फ्रांस का पेरिस शहर प्रेम का प्रतीक है। उसी तरह जिस तरह ज्योतिष में शुक्र ग्रह। पिछले दिनों पेरिस की सड़कों पर जनाक्रोश देखा गया। लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे। हालांकि, इसको 'शार्ली एब्दो' के पक्ष में देखा जा रहा है, क्योंकि कुछ दिन पहले 'शार्ली एब्दो' को आतंकवादियों ने निशाना बनाया था।

मुझे लगता है कि यह जनाक्रोश केवल शार्ली एब्दो पक्ष में नहीं, बल्कि इस्लामी चरमपंथ के विरोध में था क्योंकि इस जनाक्रोश में बड़ी तादाद में ऐसे लोग थे, जो इस्लामी चरमपंथ के विरोध में तो थे, लेकिन शार्ली एब्दो के द्वारा प्राकाशित किए जाने वाले पैगम्बर के अश्लील कार्टूनों के हिमायती नहीं थे।

इसमें दो राय नहीं कि शार्ली एब्दो के कार्टून काफी आपत्तिजनक थे। इसलिए उनका भी विरोध होना उतना ही जरूरी है, जितना इस्लामी चरमपंथ का। 'इस्लामी चरमपंथ' जो काम अपने हथियारों से करता है, वो ही काम शार्ली एब्दो अपनी कलम से कर रहा है। दोनों ही समाज में नफरत को फैला रहे हैं। हालांकि, तरीके अलग अलग हैं।

यदि शार्ली एब्दो पैगम्बर को अलग कर अपने युद्ध को इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ जारी रखता है तो उसके प्रयास को सराहनीय कदम कहा जा सकता है। यदि वो अपनी जिद्द पर अडिंग रहते हुए इस्लामी चरमपंथ के साथ पैगम्बर को भी बीच में रखता है तो इससे शायद उन मुस्लिम लोगों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचेगी, जो पेरिस में हुए जनाक्रोश का हिस्सा हैं। जो कह रहे थे, हम मुस्लिम हैं, लेकिन आतंकवादी नहीं। या उस नौजवान को जो कह रथ था, जिन्होंने मेरे भाई को मारा, वो नकली मुस्लिम हैं।

हालांकि, भारत एवं पाकिस्तानी मुस्लिम समुदाय ने इस्लामी आतंवाद के खिलाफ एक शब्द तक नहीं कहा। हैरानी तो तब होती है, जब हाजी याकूब कुरैशी जैसे नेता चरमपंथ का हिस्सा बने नौजवानों को सम्मानित करने की बात कह डालते हैं। शार्ली एब्दो पर हुए हमले को मुस्लिम दबी आवाज में इसलिए भी सही मानते हैं, क्योंकि शार्ली एब्दो ने पैगम्बर के अश्लील कार्टून भी प्रकाशित किए थे, जो उसको नहीं करने चाहिए थे। बात रखने के तरीके होते हैं, मगर सभी सीमाएं लांघकर अश्लीलता पर उतर आना भी अभिव्यक्ति नहीं कहलाता है।

पाकिस्तान तो पेशेवर हमले के बाद भी अच्छे बुरे आतंकवाद की पहेली से बाहर नहीं निकल पा रहा है। हैरानी तो उस समय भी हुई थी, जब लाल मस्जिद के मौलवी ने पेशावर बाल संहार की आलोचना करने से टेलीविजन पर साफ मना कर दिया था। वहीं, पश्चिमी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर इस्लामी चरमपंथियों को संदेश दिया है कि इस्लाम तथा इस्लामी चरमपंथ में अंतर है। यह प्रतिक्रिया उसी तरह की है, जिस तरह भारत के हिंदू अपने चरमपंथी गुटों के प्रति प्रकट करते हैं।

आतंकवाद एवं मजहब को एक पलड़े में नहीं रखा जा सकता। एक समय सिख धर्म पर भी आतंकवाद का मार्का लग गया था। मगर, उसी धर्म के कुछेक लोगों ने सिख धर्म पर लग रहे आतंकवाद के ठप्पे को धो डाला। अब वैसा ही कदम इस्लाम के अनुयायियों को उठाना होगा। पेरिस का जनाक्रोश तो इस्लामी समुदाय के लिए एक शुरूआत है। इस शुरूआत को आगे बढ़ाना चाहिए। इस्लाम एवं इस्लामी चरमपंथ को अलग करना चाहिए। साथ ही, मीडिया को, विशेषकर शार्ली एब्दो जैसे मीडिया संस्थान को नफरत फैलाने वाली समाग्री प्राकाशित करने से बचना चाहिए।

हालांकि, एक समाचार के मुताबिक शार्ली एबदो मैगजीन के वकील ने सोमवार को जानकारी दी पत्रिका के आने वाले एडिशन में पैगंबर मोहम्मद के रेखाचित्र और कार्टून प्रमुखता से छापे जाएंगे। मैगजीन के कॉलमनिस्ट पैट्रिक पेलक्स ने कहा कि यह इश्यू बुधवार को आएगा। खास बात यह है कि इस मैगजीन को 16 भाषाओं में दुनियाभर में रिलीज किया जाएगा। फ्रांस को इसके संबंध में कड़े कदम उठाने चाहिए, क्योंकि अभिव्यक्ति के नाम पर आप कुछ भी नहीं छाप सकते क्योंकि कहीं न कहीं, इससे एक बड़े जन समूह की भावनाएं जुड़ी हैं। और इससे सौहार्द बिगड़ता है, बनता नहीं है।

अंत में...
पेरिस के मार्च की विशेष बात यह थी कि उसमें विश्व के लगभग 40  देशों के राष्ट्राध्यक्ष या उनके प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें ज्यादातर पश्चिमी देशों के राष्ट्राध्यक्ष ही थे,  लेकिन नाइजीरिया और फलस्तीन जैसे देशों के प्रमुख भी शामिल हुए। शार्ली एबदो  पर हमले की इतनी बड़ी प्रतिक्रिया से यह तो साफ होता ही है कि इस हमले ने दुनिया के प्रगतिशील और उदार तबकों को बुरी तरह हिला दिया है।

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