भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख अमित शाह ने पटना स्थित भारतीय जनता पार्टी के प्रादेशिक कार्यालय में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘आजतक का एजेंडा है आप पार्टी को लांच करने और दिल्ली चुनाव में जिताने का.पीत पत्रकारिता का इससे बडा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। अमित शाह की इस बात में सच्चाई हो सकती है। हो सकता है कि देश का नंबर वन हिन्दी न्यूज चैनल आज तक आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता दिलाना चाहता हो।
ऐसा नहीं कि पहली बार किसी ने न्यूज चैनल पर अंगुली उठाई है। लोक सभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी बहुत सारे न्यूज चैनलों पर अंगुली उठाई थी। कुछ साल पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी ने भोपाल में आयोजित एक समारोह में मीडिया पर अंगुली उठाई थी। किसी ने कहा है कि धुंआं तभी उठता है, जब कहीं आग लगी हो।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया किस तरह पक्षपाती हो रहा है। इसका अंदाजा भड़ास डॉट कॉम पर दयानंद पांडे के प्रकट विचारों से लगाया जा सकता है, जिसमें श्री पांडे लिखते हैं, ''इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में टीवी चैनल खुल्लम खुल्ला अरविंद केजरीवाल की आप और नरेंद्र मोदी की भाजपा के बीच बंट गए हैं। एनडीटीवी पूरी ताकत से भाजपा की जड़ खोदने और नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने में लग गया है। न्यूज 24 है ही कांग्रेसी। उसका कहना ही क्या! इंडिया टीवी तो है ही भगवा चैनल सो वह पूरी ताकत से भाजपा के नरेंद्र मोदी का विजय रथ आगे बढ़ा रहा है। ज़ी न्यूज, आईबीएन 7, एबीपी न्यूज वगैरह दिखा तो रहे हैं निष्पक्ष अपने को लेकिन मोदी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाने में एक दूसरे से आगे हुए जाते हैं। सो दिल्ली चुनाव की सही तस्वीर इन के सहारे जानना टेढ़ी खीर है। जाने दिल्ली की जनता क्या रुख अख्तियार करती है।''
दयानंद पांडे जो चित्र शब्दों से उकेर रहे हैं, वो लोक सभा चुनावों के दौरान भी मौजूद था। हालांकि, सत्ता विरोधी लहर होने के कारण लोग अधिक ध्यान नहीं दे रहे थे। इतना ही नहीं, हालिया आईबीएन 7 से पंकज श्रीवास्तव का जाना, आईबीएन 7 की निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवालिया निशान लगाता है क्योंकि इस चैनल का मालिक रिलायंस ग्रुप है, जो पूरी तरह नरेंद्र मोदी से जुड़ा हुआ है, और इस चैनल के एडिटर उमेश उपाध्याय हैं, जो दिल्ली बीजेपी नेता सतीश उपाध्याय के भाई हैं। इसको देखते हुए चैनल के भीतर होने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता साफ साफ नजर आती है।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने ट्विटर पर एक तस्वीर जारी की, जो इंडिया टीवी से जुड़ी हुई थी, और इस तस्वीर में इंडिया टीवी के वाहन में बैठे कर्मचारी भाजपा का झंडा लेकर सड़क पर चल रहे थे। यदि द इंडियन एक्सप्रेस का समाचार सही है तो जल्द ही रजत शर्मा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा सकता है। लोक सभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी की इंटरव्यू से पहले कमर वहीद नकवी का इंडिया टीवी को छोड़ना भी पक्षपाती पत्रकारिता को जग जाहिर करता है। हालांकि, इंडिया टीवी और आईबीएन 7 को लेकर अमित शाह कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह चैनल उनके पक्षधर हैं। और उनकी पार्टी सत्ता में है।
राजनीति और मीडिया का परस्पर बनता संबंध जनमत के लिए घातक है। जनता न्यूज चैनलों पर विश्वास करती है। और हर किसी का अपना पसंदीदा एवं विश्वसनीय न्यूज चैनल होता है। हर ख़बर तब तक झूठी सी मालूम पड़ती है, जब तक व्यक्ति अपने पसंदीदा चैनल पर न देख ले। अगर विश्वसनीय मुखबिर ही गलत ख़बर देने लगेगा तो जनमत का हश्र तो हम कल्पना के जरिए सोच सकते हैं। झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में जुटे मीडिया हाउस लोकतंत्रिक देश को गर्त में ले जाएंगे क्योंकि लोकतंत्र का अस्तित्व विपक्ष के बिना जिंदा नहीं रह सकता, जिस तरह एक नदी दूसरे किनारे के बिना।
मीडिया और राजनीति को जोड़ने में पीआर एजेंसी नामक बिचौलिए सक्रिय हैं। इनकी सक्रियता लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। बिचौलिए जनता की नहीं, अपनी फिक्र करते हैं। पिछले लोक सभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने 714 करोड़ रुपए खर्च किए तो कांग्रेस ने 516 करोड़ रुपए खर्च किए। यदि दोनों का खर्च जोड़ दिया जाए तो कुल रकम 1230 करोड़ के करीब बनती है और भारत की आबादी केवल 125 करोड़ है। एक अनुमान अनुसार हर भारतीय के बैंक खाते में लगभग 12 रुपए आराम से आ सकते थे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं, यह पैसा केवल मुट्ठी भर लोगों के घरों में पहुंच गया। और भारतीयों के हिस्से विदेशों में पड़े काले धन की वापसी का सुंदर स्वप्न रह गया, जो शायद ही कभी पूरा हो। इस पैसे का बड़ा हिस्सा मीडिया हाउसों में पहुंचा। कुछ विदेशी पीआर एजेंसियां ले गई। पिछले चुनाव भारतीय राजनीतिक पार्टियों ने नहीं, बल्कि पीआर एजेंसियों ने लड़े थे। ऐसे में लोकतंत्र क्या दशा हो सकती है ? आप स्वयं सोच सकते हैं।
अंत में...
मीडिया और राजनीति के बीच बढ़ती करीबी को रूकना होगा। वरना, मुट्ठी भर लोग अंग्रेजों की तरह देश के नागरिकों की जिन्दगियां खा जाएंगे। गरीब के हंसने और रोने पर भी टैक्स होगा। स्वप्न देखने की पाबंदी होगी। कुछ बिजनसमैन हमारा भविष्य लिखेंगे। रूस का साहित्य चोरी छुपे फिर से सक्रिय होगा। देश एक बार फिर किसी बड़ी क्रांति के लिए भीतर ही भीतर उबलेगा।
ऐसा नहीं कि पहली बार किसी ने न्यूज चैनल पर अंगुली उठाई है। लोक सभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी बहुत सारे न्यूज चैनलों पर अंगुली उठाई थी। कुछ साल पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी ने भोपाल में आयोजित एक समारोह में मीडिया पर अंगुली उठाई थी। किसी ने कहा है कि धुंआं तभी उठता है, जब कहीं आग लगी हो।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया किस तरह पक्षपाती हो रहा है। इसका अंदाजा भड़ास डॉट कॉम पर दयानंद पांडे के प्रकट विचारों से लगाया जा सकता है, जिसमें श्री पांडे लिखते हैं, ''इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में टीवी चैनल खुल्लम खुल्ला अरविंद केजरीवाल की आप और नरेंद्र मोदी की भाजपा के बीच बंट गए हैं। एनडीटीवी पूरी ताकत से भाजपा की जड़ खोदने और नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने में लग गया है। न्यूज 24 है ही कांग्रेसी। उसका कहना ही क्या! इंडिया टीवी तो है ही भगवा चैनल सो वह पूरी ताकत से भाजपा के नरेंद्र मोदी का विजय रथ आगे बढ़ा रहा है। ज़ी न्यूज, आईबीएन 7, एबीपी न्यूज वगैरह दिखा तो रहे हैं निष्पक्ष अपने को लेकिन मोदी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाने में एक दूसरे से आगे हुए जाते हैं। सो दिल्ली चुनाव की सही तस्वीर इन के सहारे जानना टेढ़ी खीर है। जाने दिल्ली की जनता क्या रुख अख्तियार करती है।''
दयानंद पांडे जो चित्र शब्दों से उकेर रहे हैं, वो लोक सभा चुनावों के दौरान भी मौजूद था। हालांकि, सत्ता विरोधी लहर होने के कारण लोग अधिक ध्यान नहीं दे रहे थे। इतना ही नहीं, हालिया आईबीएन 7 से पंकज श्रीवास्तव का जाना, आईबीएन 7 की निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवालिया निशान लगाता है क्योंकि इस चैनल का मालिक रिलायंस ग्रुप है, जो पूरी तरह नरेंद्र मोदी से जुड़ा हुआ है, और इस चैनल के एडिटर उमेश उपाध्याय हैं, जो दिल्ली बीजेपी नेता सतीश उपाध्याय के भाई हैं। इसको देखते हुए चैनल के भीतर होने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता साफ साफ नजर आती है।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने ट्विटर पर एक तस्वीर जारी की, जो इंडिया टीवी से जुड़ी हुई थी, और इस तस्वीर में इंडिया टीवी के वाहन में बैठे कर्मचारी भाजपा का झंडा लेकर सड़क पर चल रहे थे। यदि द इंडियन एक्सप्रेस का समाचार सही है तो जल्द ही रजत शर्मा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा सकता है। लोक सभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी की इंटरव्यू से पहले कमर वहीद नकवी का इंडिया टीवी को छोड़ना भी पक्षपाती पत्रकारिता को जग जाहिर करता है। हालांकि, इंडिया टीवी और आईबीएन 7 को लेकर अमित शाह कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह चैनल उनके पक्षधर हैं। और उनकी पार्टी सत्ता में है।
राजनीति और मीडिया का परस्पर बनता संबंध जनमत के लिए घातक है। जनता न्यूज चैनलों पर विश्वास करती है। और हर किसी का अपना पसंदीदा एवं विश्वसनीय न्यूज चैनल होता है। हर ख़बर तब तक झूठी सी मालूम पड़ती है, जब तक व्यक्ति अपने पसंदीदा चैनल पर न देख ले। अगर विश्वसनीय मुखबिर ही गलत ख़बर देने लगेगा तो जनमत का हश्र तो हम कल्पना के जरिए सोच सकते हैं। झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में जुटे मीडिया हाउस लोकतंत्रिक देश को गर्त में ले जाएंगे क्योंकि लोकतंत्र का अस्तित्व विपक्ष के बिना जिंदा नहीं रह सकता, जिस तरह एक नदी दूसरे किनारे के बिना।
मीडिया और राजनीति को जोड़ने में पीआर एजेंसी नामक बिचौलिए सक्रिय हैं। इनकी सक्रियता लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। बिचौलिए जनता की नहीं, अपनी फिक्र करते हैं। पिछले लोक सभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने 714 करोड़ रुपए खर्च किए तो कांग्रेस ने 516 करोड़ रुपए खर्च किए। यदि दोनों का खर्च जोड़ दिया जाए तो कुल रकम 1230 करोड़ के करीब बनती है और भारत की आबादी केवल 125 करोड़ है। एक अनुमान अनुसार हर भारतीय के बैंक खाते में लगभग 12 रुपए आराम से आ सकते थे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं, यह पैसा केवल मुट्ठी भर लोगों के घरों में पहुंच गया। और भारतीयों के हिस्से विदेशों में पड़े काले धन की वापसी का सुंदर स्वप्न रह गया, जो शायद ही कभी पूरा हो। इस पैसे का बड़ा हिस्सा मीडिया हाउसों में पहुंचा। कुछ विदेशी पीआर एजेंसियां ले गई। पिछले चुनाव भारतीय राजनीतिक पार्टियों ने नहीं, बल्कि पीआर एजेंसियों ने लड़े थे। ऐसे में लोकतंत्र क्या दशा हो सकती है ? आप स्वयं सोच सकते हैं।
अंत में...
मीडिया और राजनीति के बीच बढ़ती करीबी को रूकना होगा। वरना, मुट्ठी भर लोग अंग्रेजों की तरह देश के नागरिकों की जिन्दगियां खा जाएंगे। गरीब के हंसने और रोने पर भी टैक्स होगा। स्वप्न देखने की पाबंदी होगी। कुछ बिजनसमैन हमारा भविष्य लिखेंगे। रूस का साहित्य चोरी छुपे फिर से सक्रिय होगा। देश एक बार फिर किसी बड़ी क्रांति के लिए भीतर ही भीतर उबलेगा।
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