हिन्दी मूल के 'इंग्लिश' युवा उपन्यासकार चेतन भगत अपने लेख के जरिये पूछते हैं, ''रोमन हिन्दी के बारे में क्या ख्याल ?''। मेरे ख्याल से पहले मैं पूछना चाहूंगा, चेतन भगत से, जिस हिन्दी दैनिक समाचार पत्र में रोमन हिन्दी बाबत लेख के रूप में उनका विचार सामने आया है, क्या उन्होंने उस अख़बार को रोमन लिपि का इस्तेमाल करने की सलाह दे दी या नहीं ? लेख लिखने से पहले क्या उन्होंने समाचार पत्र की पाठक संख्या पर नजर मारी या नहीं ? चल पाठक संख्या की बात छोड़ो, कम से कम आप ने उस अख़बार की टैगलाइन तो पढ़ी होगी, जो मुझे कह रही है, ''आप पढ़ रहे हैं देश का नंबर 1 अख़बार''। जो मुझे साफ साफ बता रही है कि अख़बार हिन्दी देवनगरी में होने के बावजूद नंबर वन है। उसके नंबर वन होने से पता चलता है कि उसकी पाठक संख्या कहीं न कहीं अन्य हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों से अधिक है।
लेख में कहा गया है कि युवाओं पर हिन्दी को थोपा जा रहा है, तो मैं आपको पंजाब की तरफ नजर मारने के लिए कहता हूं। जहां आज आधा दर्जन से अधिक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं, जिसमें दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला, दैनिक सवेरा टाइम्स सवेरा इत्यादि शामिल हैं। इनकी पाठक संख्या आज लाखों में है, केवल पंजाब के अंदर। छोटे छोटे कसबों तक हिन्दी समाचार पत्रों की पहुंच बन चुकी है। आलम यह है कि क्षेत्रीय भाषा के समाचार पत्र पाठक संख्या में पिछड़ रहे हैं। इसके अलावा राजस्थान से प्रकाशित होने वाला दैनिक समाचार पत्र पत्रिका आज भारत के गैर हिन्दी इलाकों में प्रकाशित हो रहा है। इतना ही नहीं, दिन प्रति दिन उसकी पाठक संख्या बढ़ रही है। वहीं, रांची से प्रकाशित होने वाला प्रभात ख़बर बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, असम तक अपनी पहचान बनाए हुए है।
आपने कहा, हिन्दी फिल्म जगत में आज भी पटकथा रोमन हिन्दी में लिखी जाती है। बिल्कुल लिखी जाती होगी, लेकिन किसी फिल्म को सफल बनाने के लिए हिन्दी मीडिया का सहारा लेना पड़ता है। हिन्दी मीडिया के बिना हिन्दी फिल्म जगत का अधिक बावजूद नहीं है। तुम्हारी नजर में इंग्लिश तरक्की के रास्ते खोलती है, हो सकता है क्योंकि तुमने अपने उपन्यास इंग्लिश में लिखे और धन कमाया। मगर, आप 65 फीसद आबादी तक तब पहुंचे, जब आपके इंग्लिश उपन्यास को हिन्दी पटकथा में रूपांतरण होकर सिनेमा खिड़की पर पहुंचे। रही बात तरक्की के द्वार खोलने की तो मैं आपको बता दूं, आज बाजार में बिकने वाले चीन के गैर ब्रांडेड स्मार्ट फोन भी हिन्दी भाषा के अनुकूल हैं।
विश्व की सबसे बड़ी एवं लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक भी हिन्दी संस्करण उपलब्ध करवाती है। उसको भी हिन्दी देवनगरी की ताकत का अंदाजा है। इसके अलावा, आज इंटरनेट पर वेब डोमेन नेम भी हिन्दी में उपलब्ध है। हिन्दी की वेबसाइटों की तो संख्या भी गिनती से बाहर होती जा रही है। दिलचस्प बात तो यह है कि रूस रेडियो, चीन, डॉयचे वेले, बीबीसी जैसे मीडिया समूह भी अपनी वेबसाइट को हिन्दी देवनगरी में चला रहे हैं। यदि उनको पाठक संख्या न मिलती तो शायद यह समाचार पोर्टल बंद हो जाते। इसके अलावा गूगल ने भी अपने हिन्दी ब्लॉगरों के लिए विज्ञापन के द्वार खोल दिए हैं। उसको भी समझ आ गया है, आपके लेख का अंतिम वाक्य, वक्त के साथ बदलना जरूरी है।
अंत में
मेरा ख्याल यह है कि आपको हिन्दी देवनगरी में अपना अगला उपन्यास लिखना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि हिन्दी तेजी से अपने पैर पसार रही है। नि:संदेह इंग्लिश का बाजार बढ़ रहा है, लेकिन हिन्दी देवनगरी को कम समझने की भूल न करना।
लेख में कहा गया है कि युवाओं पर हिन्दी को थोपा जा रहा है, तो मैं आपको पंजाब की तरफ नजर मारने के लिए कहता हूं। जहां आज आधा दर्जन से अधिक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं, जिसमें दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला, दैनिक सवेरा टाइम्स सवेरा इत्यादि शामिल हैं। इनकी पाठक संख्या आज लाखों में है, केवल पंजाब के अंदर। छोटे छोटे कसबों तक हिन्दी समाचार पत्रों की पहुंच बन चुकी है। आलम यह है कि क्षेत्रीय भाषा के समाचार पत्र पाठक संख्या में पिछड़ रहे हैं। इसके अलावा राजस्थान से प्रकाशित होने वाला दैनिक समाचार पत्र पत्रिका आज भारत के गैर हिन्दी इलाकों में प्रकाशित हो रहा है। इतना ही नहीं, दिन प्रति दिन उसकी पाठक संख्या बढ़ रही है। वहीं, रांची से प्रकाशित होने वाला प्रभात ख़बर बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, असम तक अपनी पहचान बनाए हुए है।
आपने कहा, हिन्दी फिल्म जगत में आज भी पटकथा रोमन हिन्दी में लिखी जाती है। बिल्कुल लिखी जाती होगी, लेकिन किसी फिल्म को सफल बनाने के लिए हिन्दी मीडिया का सहारा लेना पड़ता है। हिन्दी मीडिया के बिना हिन्दी फिल्म जगत का अधिक बावजूद नहीं है। तुम्हारी नजर में इंग्लिश तरक्की के रास्ते खोलती है, हो सकता है क्योंकि तुमने अपने उपन्यास इंग्लिश में लिखे और धन कमाया। मगर, आप 65 फीसद आबादी तक तब पहुंचे, जब आपके इंग्लिश उपन्यास को हिन्दी पटकथा में रूपांतरण होकर सिनेमा खिड़की पर पहुंचे। रही बात तरक्की के द्वार खोलने की तो मैं आपको बता दूं, आज बाजार में बिकने वाले चीन के गैर ब्रांडेड स्मार्ट फोन भी हिन्दी भाषा के अनुकूल हैं।
विश्व की सबसे बड़ी एवं लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक भी हिन्दी संस्करण उपलब्ध करवाती है। उसको भी हिन्दी देवनगरी की ताकत का अंदाजा है। इसके अलावा, आज इंटरनेट पर वेब डोमेन नेम भी हिन्दी में उपलब्ध है। हिन्दी की वेबसाइटों की तो संख्या भी गिनती से बाहर होती जा रही है। दिलचस्प बात तो यह है कि रूस रेडियो, चीन, डॉयचे वेले, बीबीसी जैसे मीडिया समूह भी अपनी वेबसाइट को हिन्दी देवनगरी में चला रहे हैं। यदि उनको पाठक संख्या न मिलती तो शायद यह समाचार पोर्टल बंद हो जाते। इसके अलावा गूगल ने भी अपने हिन्दी ब्लॉगरों के लिए विज्ञापन के द्वार खोल दिए हैं। उसको भी समझ आ गया है, आपके लेख का अंतिम वाक्य, वक्त के साथ बदलना जरूरी है।
अंत में
मेरा ख्याल यह है कि आपको हिन्दी देवनगरी में अपना अगला उपन्यास लिखना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि हिन्दी तेजी से अपने पैर पसार रही है। नि:संदेह इंग्लिश का बाजार बढ़ रहा है, लेकिन हिन्दी देवनगरी को कम समझने की भूल न करना।
दिलचस्प तथ्य
दैनिक जागरण ने बहुत पहले रोमन हिन्दी के पाठकों के लिए वेबसाइट बना दी है। हालांकि, यह कितनी सार्थक है या इस पर कितने पाठक पहुंचते हैं, यह तो जागरण प्रकाशन ही जानता है।
मगर, आप 65 फीसद आबादी तक तब पहुंचे, जब आपके इंग्लिश उपन्यास को हिन्दी पटकथा में रूपांतरण होकर सिनेमा खिड़की पर पहुंचे। रही बात तरक्की के द्वार खोलने की तो मैं आपको बता दूं, आज बाजार में बिकने वाले चीन के गैर ब्रांडेड स्मार्ट फोन भी हिन्दी भाषा के अनुकूल हैं। हिंदी को समर्पित और उसकी उपयोगिता , सार्थकता को व्यक्त करती दमदार पोस्ट कुलवंत जी
ReplyDeleteIndia is divided by complex scripts but not by phonetic sounds needs simple nukta and shirorekha free Gujanagari script at national level along with Roman script.
Writing Hindi in Roman script is nothing but reviving our old Brahmi script which was modified by Roman people to their use. We need more research in this area.
Think,In internet age,Why all Indian languages are taught to others in Roman script but not in a complex Devanagari script?
Why some Devanagari scripted languages are slowly disappearing?
Which script will unite sister languages(Urdu/Hindi)?
If Hindi can be learned in a complex Urdu script then why it can't be done in easy regional Gujanagari script?
We need to. Provide education to children in a simple Gujanagari script and free India from complex scripts.
One may go through these links.
http://www.omniglot.com/writing/brahmi.htm
http://www.omniglot.com/writing/gujarati.htm
Also we need standard Roman Alphabet to write Hindi in Roman script
Each consonant produces these 15 sounds when combined with vowels.
્,ા,િ,ી,ુ,ૂ,ૅ,ે,ૈ,ૉ,ો,ૌ,ં ,ં,ઃ
ə ɑ ɪ iː ʊ uː æ ɛ əɪ ɔ o əʊ əm ən əh .........IPA........ɑɪ ,ɑʊ,æʊ,
ạ ā i ī u ū ă e ại ǒ o ạu ạm ạn ạh.........Gujạlish
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a,a:,i,i:,u,u:,ae,e,ai,o:,o,au,am,an,ah
https://groups.google.com/forum/?hl=en&fromgroups=#!topic/hindishikshakbandhu/aP2VEOwD0cQ
https://amrutmanthan.files.wordpress.com/2010/07/amrutmanthan_hindi-will-destroy-marathi-language_tamil-tribune_100728.pdf
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India is divided by complex scripts but not by phonetic sounds needs simple nukta and shirorekha free Gujanagari script at national level along with Roman script.
Writing Hindi in Roman script is nothing but reviving our old Brahmi script which was modified by Roman people to their use. We need more research in this area.
Think,In internet age,Why all Indian languages are taught to others in Roman script but not in a complex Devanagari script?
Why some Devanagari scripted languages are slowly disappearing?
Which script will unite sister languages(Urdu/Hindi)?
If Hindi can be learned in a complex Urdu script then why it can't be done in easy regional Gujanagari script?
We need to. Provide education to children in a simple Gujanagari script and free India from complex scripts.
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Also we need standard Roman Alphabet to write Hindi in Roman script
Each consonant produces these 15 sounds when combined with vowels.
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