हम किसी धमकी की वजह से अपने तरीके नहीं बदल सकते। हम सिर्फ इसलिए फुटबॉल खेलना नहीं छोड़ सकते कि आतंकी हमले की धमकी दी गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा का यह बयान उस समय आया था, जब उत्तरी कोरिया की धमकी के बाद सोनी पिक्चर्स ने अपनी विवादित फिल्म 'द इंटरव्यू' को रिलीज करने से आना कानी करना शुरू कर दिया था।
अमेरिका राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने सोनी पिक्चर्स के फिल्म रिलीज न करने के फैसले की आलोचना की थी। साथ ही कहा था, ''कोई तानाशाह अमेरिका को अपने वश में नहीं कर सकता, वो हमारी अभिव्यक्ति के अधिकार को क्षीण नहीं कर सकता।''
अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कड़े स्टैंड के पीछे कारण कुछ भी हो, चाहे उत्तरी कोरिया के खिलाफ सालों पुरानी दुश्मनी ही क्यों न हो। मगर, उन्होंने आतंकवादी हमले की धमकी के आगे भी घुटने नहीं टेके। इसके विपरीत भारत में सरकार मुट्ठी भर लोगों के सामने घुटने टेक देती है। और मुट्ठी भर अपनी दादागिरी से अधिकारों का हनन करते हैं। शर्म आती है, जब भारत के प्रधानमंत्री या राज्यों के मुख्यमंत्री बाराक ओबामा की तरह स्टैंड नहीं लेते।
इसका ताजा उदहरण पंजाब सरकार का एमएसजी मैसेंजर आफ गॉड को बैन करना है। पंजाब सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी। इस फिल्म को बिना देखे, केवल कुछ लोगों की धमकियों के कारण बैन करना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। यह वो ही पंजाब सरकार है, जो चुनावों के दिनों में 1984 दंगों पर आधारित फिल्म को दिन रात केबल पर प्रसारित होने के लिए छूट देती है। पंजाब में अकाली दल की सरकार है, जो सीधे तौर पर सिख वोटरों पर टिकी हुई है। ऐसे पंजाब सरकार सिख संगठनों के साथ सीधे तौर पर टकराव नहीं चाहेगी, क्योंकि उसके सहयोगी बीजेपी के साथ संबंध अच्छे नहीं चल रहे। यदि सरकार इस तरह का कदम नहीं उठती तो उसका वोट बैंक चला जाएगा।
यदि अपने स्वार्थ की जद में सरकार अपना राज्य धर्म निभाने से चूकने लगेगी, तो देश में कुछ संगठन सरकार से बड़ा कद कर लेंगे, जो आने वाले कल के लिए अच्छे संकेत नहीं, विशेषकर उस समय जब भारत की युवा पीढ़ी पश्चिमी देशों की तरह आजाद ख्यालात के साथ जीने के लिए उत्सुक है।
जिस फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया है। दरअसल, उस फिल्म में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह ने स्वयं अभिनय किया है। सवाल तो यह है कि यदि उनके अनुयायी उनको अभिनय करते हुए देखना चाहते हैं, तो देश के अन्य धर्म गुरूओं को इससे एतराज क्यों ?
दूसरी बात, जब फिल्म को संबंधित विभागों से मंजूरी मिली चुकी है तो विरोध करने वालों को पहले फिल्म देखनी चाहिए। यदि कुछ आपत्तिजनक सामने आता है तो देश में कानून है, उसका सहारा लेकर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। इस तरह सड़कों पर उतरकर तनावपूर्ण स्थितियां पैदा कर देश के अधिकारों का हनन करना कहां तक उचित है ?
यदि फिल्म पंजाब की तरह अन्य राज्यों के सिनेमा घरों में रिलीज नहीं पाई। तो भी क्या ? इसको द इंटरव्यू की तरह इंटरनेट के जरिये रिलीज किया जा सकता है। आज इंटरनेट पूरे विश्व में फैला हुआ है। फिल्म को लेकर खड़े किए जाने वाले विवाद से नैगेटिव पब्लिसिटी तो हो रही है। जो फिल्म के लिए अच्छी बात है। जो नहीं देखने वाले थे, जिनको डेरे संबंधी जानकारी भी नहीं थी, अब वो फिल्म को एक बार जरूर देखेंगे। आप किसी को देखने से रोक तो सकते नहीं।
ज्ञात रहे कि विरोधों के बावजूद अंत द इंटरव्यू फिल्म रिलीज हुई। दर्शकों ने धड़ल्ले से डाउनलोड कर देखी। कुछ घंटों में करोड़ों' यूजर्स ने फिल्म को डाउनलोड किया। शायद, फिल्म को सामान्य रूप में रिलीज होने पर उतने दर्शक न मिलते, जितने उसको अब मिल रहे थे। विवादित चीजों को हमेशा अधिक दर्शक एवं पाठक मिलते हैं।
इस मामले में पंजाब सरकार का रवैया बेहद शर्मनाक है। उसकी आलोचना होनी चाहिए। देश के प्रधानमंत्री को इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए। अन्यथा सोशल मीडिया के जरिया केवल सूचना मिलेगी, "मर गया पेरुमल मुरुगन। वो ईश्वर नहीं कि दोबारा आए। अब वो पी मुरुगन है, बस एक शिक्षक। उसे अकेला छोड़ दो।"
हालांकि, नेताओं से इस तरह की अपेक्षा करना बेईमानी होगी क्योंकि भारत के हर राज्य की सरकार ने अभिव्यक्ति का गला घोंटने के लिए समय समय पर किताबों, फिल्मों एवं अन्य चीजों पर प्रतिबंध लगाएं हैं। आमिर ख़ान की फना भी गुजरात में रिलीज नहीं हो पाई थी।
अंत में
शायद, आज किताबों, फिल्मों को विवादित किए बिन बेचना मुश्किल सा होता जा रहा है। जब तक आप विवादित नहीं होते, तब तक शायद ख्याति भी नहीं मिलती। आधुनिक समय में विवादित शब्द लोकप्रियता का समानार्थी बनता जा रहा है।
अमेरिका राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने सोनी पिक्चर्स के फिल्म रिलीज न करने के फैसले की आलोचना की थी। साथ ही कहा था, ''कोई तानाशाह अमेरिका को अपने वश में नहीं कर सकता, वो हमारी अभिव्यक्ति के अधिकार को क्षीण नहीं कर सकता।''
अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कड़े स्टैंड के पीछे कारण कुछ भी हो, चाहे उत्तरी कोरिया के खिलाफ सालों पुरानी दुश्मनी ही क्यों न हो। मगर, उन्होंने आतंकवादी हमले की धमकी के आगे भी घुटने नहीं टेके। इसके विपरीत भारत में सरकार मुट्ठी भर लोगों के सामने घुटने टेक देती है। और मुट्ठी भर अपनी दादागिरी से अधिकारों का हनन करते हैं। शर्म आती है, जब भारत के प्रधानमंत्री या राज्यों के मुख्यमंत्री बाराक ओबामा की तरह स्टैंड नहीं लेते।
इसका ताजा उदहरण पंजाब सरकार का एमएसजी मैसेंजर आफ गॉड को बैन करना है। पंजाब सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी। इस फिल्म को बिना देखे, केवल कुछ लोगों की धमकियों के कारण बैन करना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। यह वो ही पंजाब सरकार है, जो चुनावों के दिनों में 1984 दंगों पर आधारित फिल्म को दिन रात केबल पर प्रसारित होने के लिए छूट देती है। पंजाब में अकाली दल की सरकार है, जो सीधे तौर पर सिख वोटरों पर टिकी हुई है। ऐसे पंजाब सरकार सिख संगठनों के साथ सीधे तौर पर टकराव नहीं चाहेगी, क्योंकि उसके सहयोगी बीजेपी के साथ संबंध अच्छे नहीं चल रहे। यदि सरकार इस तरह का कदम नहीं उठती तो उसका वोट बैंक चला जाएगा।
यदि अपने स्वार्थ की जद में सरकार अपना राज्य धर्म निभाने से चूकने लगेगी, तो देश में कुछ संगठन सरकार से बड़ा कद कर लेंगे, जो आने वाले कल के लिए अच्छे संकेत नहीं, विशेषकर उस समय जब भारत की युवा पीढ़ी पश्चिमी देशों की तरह आजाद ख्यालात के साथ जीने के लिए उत्सुक है।
जिस फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया है। दरअसल, उस फिल्म में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह ने स्वयं अभिनय किया है। सवाल तो यह है कि यदि उनके अनुयायी उनको अभिनय करते हुए देखना चाहते हैं, तो देश के अन्य धर्म गुरूओं को इससे एतराज क्यों ?
दूसरी बात, जब फिल्म को संबंधित विभागों से मंजूरी मिली चुकी है तो विरोध करने वालों को पहले फिल्म देखनी चाहिए। यदि कुछ आपत्तिजनक सामने आता है तो देश में कानून है, उसका सहारा लेकर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। इस तरह सड़कों पर उतरकर तनावपूर्ण स्थितियां पैदा कर देश के अधिकारों का हनन करना कहां तक उचित है ?
यदि फिल्म पंजाब की तरह अन्य राज्यों के सिनेमा घरों में रिलीज नहीं पाई। तो भी क्या ? इसको द इंटरव्यू की तरह इंटरनेट के जरिये रिलीज किया जा सकता है। आज इंटरनेट पूरे विश्व में फैला हुआ है। फिल्म को लेकर खड़े किए जाने वाले विवाद से नैगेटिव पब्लिसिटी तो हो रही है। जो फिल्म के लिए अच्छी बात है। जो नहीं देखने वाले थे, जिनको डेरे संबंधी जानकारी भी नहीं थी, अब वो फिल्म को एक बार जरूर देखेंगे। आप किसी को देखने से रोक तो सकते नहीं।
ज्ञात रहे कि विरोधों के बावजूद अंत द इंटरव्यू फिल्म रिलीज हुई। दर्शकों ने धड़ल्ले से डाउनलोड कर देखी। कुछ घंटों में करोड़ों' यूजर्स ने फिल्म को डाउनलोड किया। शायद, फिल्म को सामान्य रूप में रिलीज होने पर उतने दर्शक न मिलते, जितने उसको अब मिल रहे थे। विवादित चीजों को हमेशा अधिक दर्शक एवं पाठक मिलते हैं।
इस मामले में पंजाब सरकार का रवैया बेहद शर्मनाक है। उसकी आलोचना होनी चाहिए। देश के प्रधानमंत्री को इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए। अन्यथा सोशल मीडिया के जरिया केवल सूचना मिलेगी, "मर गया पेरुमल मुरुगन। वो ईश्वर नहीं कि दोबारा आए। अब वो पी मुरुगन है, बस एक शिक्षक। उसे अकेला छोड़ दो।"
हालांकि, नेताओं से इस तरह की अपेक्षा करना बेईमानी होगी क्योंकि भारत के हर राज्य की सरकार ने अभिव्यक्ति का गला घोंटने के लिए समय समय पर किताबों, फिल्मों एवं अन्य चीजों पर प्रतिबंध लगाएं हैं। आमिर ख़ान की फना भी गुजरात में रिलीज नहीं हो पाई थी।
अंत में
शायद, आज किताबों, फिल्मों को विवादित किए बिन बेचना मुश्किल सा होता जा रहा है। जब तक आप विवादित नहीं होते, तब तक शायद ख्याति भी नहीं मिलती। आधुनिक समय में विवादित शब्द लोकप्रियता का समानार्थी बनता जा रहा है।
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