सुबह सुबह का समय था। रोजमर्रा की तरह काम पर निकला था। सरखेज गांधीनगर हाइवे पर सोला ब्रिज के समीप सड़क के किनारे सरेआम एक लड़की अपने प्रेमी के साथ हॉलीवुड स्टाइल में किस कर रही थी। लड़की इसलिए, क्योंकि लड़की के हाथ लड़के के सिर को अपनी ओर खींचे हुए थे, जो मोटरसाइकिल का सहारा लिए खड़ा था। मैं एक पंछी झलक के साथ आगे निकल गया। इसलिए, यह समझ नहीं पाया कि यह लव जिहाद था या बहू लाओ अभियान का दृश्य। जो भी हो, मगर यह इस बात का प्रतीक है कि भारतीय समाज में एक नया समाज जन्म ले रहा था, जो कह रहा है, 'पहाड़ में जाए जनता, शुरू हो जाओ जहां मूड बनता! या आप कह सकते हैं कि आज पहली तारीख है, कुछ मीठा हो जाए।
पहली तारीख से याद आया। नूतन वर्ष की बधाई हो। बधाई देते हुए डर भी लग रहा है। कहीं आप भी प्रतिक्रिया में निम्न पंक्तियां न कह दें। ''ईसाई और अंग्रेजी नूतन वर्ष को धूमधाम से मनाने वाले हिंदुओं पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है, 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना''। वॉट्सएप आजकल इस तरह की प्रक्रिया आ रही है। इसलिए कह रहा हूं, भारत में तेजी से दो समाज उभर रहे हैं, एक जो पश्चिमी रंग में डूबने के लिए तैयार है, दूसरा जो विश्व की महाशक्ति बनना चाहता है, मगर अपने मूल रंग में रहना चाहता है।
एक युवा पीढ़ी खुलेपन में जीने के लिए कदम आगे बढ़ा रही है। एक युवा पीढ़ी नए प्रभाव में पीछे की तरफ लौटने के लिए प्रयासरत है। इसको देखते हुए एक नए संघर्ष के पनपने का डर भी मन में जन्म ले रहा है। युवा पीढ़ी का एक पक्ष हिन्दुत्व को उभरता हुआ देखना चाहता है। वहीं, दूसरा पक्ष अपने जीवन को पश्चिमी तरीकों से जीने के लिए अग्रसर हो चुका है।
वर्ष 2013 के दौरान दिल्ली ने युवा पीढ़ी के नेतृत्व में देश के अंदर राजनीतिक परिवर्तन की नींव रखी थी। वर्ष2014 में हुए लोक सभा चुनावों के दौरान असर साफ देखने को मिला। नतीजन, देश को बहुमत हासिल सरकार मिली। मोदी सरकार ने जनता को देश को विकास के पथ पर दौड़ाने का भरोसा दिलाया। युवा पीढ़ी झूम उठी। मगर, अचानक आरएसएस के सहयोगी हिंदू संगठन सक्रिय हो गए। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए माहौल तैयार किया जाने लगा, जो शायद उस युवा पीढ़ी के सपनों पर पानी फेर देगा, जो पश्चिमी देशों की तरह जीवन जीने का सपना देख रही है।
जो लड़की आज सरेआम सड़क किनारे अपने प्रेमी के साथ किस कर रही थी। उसको 14 फरवरी के दिन होने वाले हिंदू संगठनों के हमले याद नहीं होंगे। अगले महीने 14 फरवरी का दिन आने वाला है। अब पूरे देश में सरकार भी हिंदूत्व प्रेमियों की है। इस स्थिति में देश के पार्कों में दीवानों के मेले लगेंगे या हिंदू संगठनों का रौब कायम होगा। अंजाम देखने के लिए इंतजार तो करना होगा। हालांकि, आज नूतन वर्ष की बधाई के सामने आया, दोस्त का जवाब आने वाले कल की ख़बर दे रहा है।
पहली तारीख से याद आया। नूतन वर्ष की बधाई हो। बधाई देते हुए डर भी लग रहा है। कहीं आप भी प्रतिक्रिया में निम्न पंक्तियां न कह दें। ''ईसाई और अंग्रेजी नूतन वर्ष को धूमधाम से मनाने वाले हिंदुओं पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है, 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना''। वॉट्सएप आजकल इस तरह की प्रक्रिया आ रही है। इसलिए कह रहा हूं, भारत में तेजी से दो समाज उभर रहे हैं, एक जो पश्चिमी रंग में डूबने के लिए तैयार है, दूसरा जो विश्व की महाशक्ति बनना चाहता है, मगर अपने मूल रंग में रहना चाहता है।
एक युवा पीढ़ी खुलेपन में जीने के लिए कदम आगे बढ़ा रही है। एक युवा पीढ़ी नए प्रभाव में पीछे की तरफ लौटने के लिए प्रयासरत है। इसको देखते हुए एक नए संघर्ष के पनपने का डर भी मन में जन्म ले रहा है। युवा पीढ़ी का एक पक्ष हिन्दुत्व को उभरता हुआ देखना चाहता है। वहीं, दूसरा पक्ष अपने जीवन को पश्चिमी तरीकों से जीने के लिए अग्रसर हो चुका है।
वर्ष 2013 के दौरान दिल्ली ने युवा पीढ़ी के नेतृत्व में देश के अंदर राजनीतिक परिवर्तन की नींव रखी थी। वर्ष2014 में हुए लोक सभा चुनावों के दौरान असर साफ देखने को मिला। नतीजन, देश को बहुमत हासिल सरकार मिली। मोदी सरकार ने जनता को देश को विकास के पथ पर दौड़ाने का भरोसा दिलाया। युवा पीढ़ी झूम उठी। मगर, अचानक आरएसएस के सहयोगी हिंदू संगठन सक्रिय हो गए। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए माहौल तैयार किया जाने लगा, जो शायद उस युवा पीढ़ी के सपनों पर पानी फेर देगा, जो पश्चिमी देशों की तरह जीवन जीने का सपना देख रही है।
जो लड़की आज सरेआम सड़क किनारे अपने प्रेमी के साथ किस कर रही थी। उसको 14 फरवरी के दिन होने वाले हिंदू संगठनों के हमले याद नहीं होंगे। अगले महीने 14 फरवरी का दिन आने वाला है। अब पूरे देश में सरकार भी हिंदूत्व प्रेमियों की है। इस स्थिति में देश के पार्कों में दीवानों के मेले लगेंगे या हिंदू संगठनों का रौब कायम होगा। अंजाम देखने के लिए इंतजार तो करना होगा। हालांकि, आज नूतन वर्ष की बधाई के सामने आया, दोस्त का जवाब आने वाले कल की ख़बर दे रहा है।
बहुत सटीक विश्लेषण.
ReplyDeleteनव वर्ष तो अब जो सारी दुनियां में होता आ रहा है,हम लोग भी उसी के साथ जुड़ गये हैं.
वैसे भारत में अलग अलग संप्रदायों के नव वर्ष भी अलग-अलग हो गये हैं.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत सटीक विश्लेषण.....
ReplyDelete"लिबास शर्म का उतार बैठें हैं
नंगे लोग है कहीं भी नहा लेते हैं"
परी ऍम. 'श्लोक'
नव वर्ष मंगलमय को आपके विश्लेषण को पढ़ने मिलता रहे हालाँकि आपके ब्लॉग पर आज पहली बार आएं है पर बेहद अच्छा लगा !!
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आधे अंग्रेज के प्रथम प्र.मंत्री होने के चलते एवं धनाढ्यों तथा फ़िल्मी जगत के पाश्चत्य प्रभाव के चलते और अंग्रेजी माध्यम शिक्षा पद्धति के चलते भारत ने अपनी सांस्कृतिक हत्या लगभग कर ही डाली है और युवा वर्ग को दोहरे जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है।
ReplyDeleteआधे अंग्रेज के प्रथम प्र.मंत्री होने के चलते एवं धनाढ्यों तथा फ़िल्मी जगत के पाश्चत्य प्रभाव के चलते और अंग्रेजी माध्यम शिक्षा पद्धति के चलते भारत ने अपनी सांस्कृतिक हत्या लगभग कर ही डाली है और युवा वर्ग को दोहरे जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है।
ReplyDeleteसही आकलन है आने वाले माहौल का....रस्साकशी को तैयार रहना होगा।
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