अगर भारत में कोई गंदा कल्चर है तो वो है ''वीआईपी कल्चर''। हालांकि, कुछ लोग कह सकते हैं कि दूर के अंगूर खट्टे। उनका भी अपना तर्क है। वे भी सही हैं कि क्योंकि भारत में हर कोई वीआईपी बनना चाहता है। यह विरोधाभास उसी तरह का है, जिस तरह भ्रष्टाचार विरोधी समाज बेटी के लिए लड़का देखने जाता है और पूछता है कि लड़के को ऊपर से कमाई होती है या नहीं। किसी भी व्यक्ति को ऊपर की कमाई से एतराज नहीं, मगर, भ्रष्टाचार से सबको नफरत है।
उसी तरह वीआईपी कल्चर है। यह कल्चर अच्छा नहीं है। मगर, यह कल्चर सबको पसंद है। वीआईपी कल्चर में हम केवल नेताओं, मंत्रियों को शामिल नहीं कर सकते, यहां के अमीर भी वीआईपी हैं। बड़े बड़े प्राइवेट कार्यक्रमों के साथ साथ अब धार्मिक संस्थानों में भी वीआईपी कल्चर घुस मार गया। वहां भी साधारण भक्त और वीआईपी भक्त हो गए हैं।
इस बंटवारे ने राष्ट्र को दो हिस्सों में बांट दिया एक आमजन और एक वीआईपी। वीआईपी कल्चर के खिलाफ एनडीटीवी ने एक मुहिम चलाई है। यह मुहिम कितनी सफल होगी, यह कहना मुश्किल है, मगर, रविश कुमार की तस्वीर के नीचे लगा स्लोगन कहता है, ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।''
उस मुहिम की सफलता असफलता पर सवालिया निशान लगाने से पहले कुछ सवाल आप स्वयं से पूछें। क्या सच में हम भारत बदलना चाहते हैं ? क्या हम नहीं चाहते, जब हम ऑफिस जाते समय ट्रैफिक में फंसे हों, तो हमारे साथ सरकार का नुमाइंदा या मंत्री भी खड़ा हो, और उसकी गाड़ी को स्पेशल ट्रीटमेंट के साथ न निकाला जाए ? क्या हम नहीं चाहते कि जब पुलिस स्टेशन जाएं तो पुलिस हमारे साथ उसी तरह का व्यवहार करे, जिस तरह मंत्री साहेब के साथ होता है ? क्या हम नहीं चाहते कि भगवान के दर्शन के लिए वीआईपी और साधारण भक्त के बीच का अंतर खत्म हो ?
ऐसा नहीं कि भारत में बदलाव नहीं आए। भारत में समय के साथ साथ बहुत सारे बदलाव आएं हैं। आज का भारत बीते हुए भारत से बहुत अलग है। आज हम युवतियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। इतिहास रच रही हैं। आज की महिला पुरुष के पांव की जूती नहीं है।
कल तक लोग पुलिस थानों में भी जाने से डरते थे। पुलिस की गाड़ी गांव में घुसती थी तो लोग घरों में दुबक जाते थे या सड़क किनारे खड़े हो जाते थे। अब वो पहले से हालात नहीं, क्योंकि लोगों में जागरूकता आई है। यह जागरूकता ऐसे ही नहीं आई, इसलिए आवाज उठाई गई थी। मैं फिर कहता हूं कि ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।''
अब एनडीटीवी इंडिया लेकर आया है वीआईपी कल्चर के खिलाफ एक मुहिम, क्या हम लोग इस मुहिम का हिस्सा नहीं बन सकते ? हम दंगा फैलाने वाली भीड़ का हिस्सा बन सकते हैं तो इस समाज सुधारक मुहिम का क्यों नहीं ? यह मत सोचो कि कौन अगुवाई कर रहा है ? इस सफलता का सेहरा किसके सिर जाएगा ?
अंत में...
बस इतना याद रखिए, ''सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।''
उसी तरह वीआईपी कल्चर है। यह कल्चर अच्छा नहीं है। मगर, यह कल्चर सबको पसंद है। वीआईपी कल्चर में हम केवल नेताओं, मंत्रियों को शामिल नहीं कर सकते, यहां के अमीर भी वीआईपी हैं। बड़े बड़े प्राइवेट कार्यक्रमों के साथ साथ अब धार्मिक संस्थानों में भी वीआईपी कल्चर घुस मार गया। वहां भी साधारण भक्त और वीआईपी भक्त हो गए हैं।
इस बंटवारे ने राष्ट्र को दो हिस्सों में बांट दिया एक आमजन और एक वीआईपी। वीआईपी कल्चर के खिलाफ एनडीटीवी ने एक मुहिम चलाई है। यह मुहिम कितनी सफल होगी, यह कहना मुश्किल है, मगर, रविश कुमार की तस्वीर के नीचे लगा स्लोगन कहता है, ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।''
उस मुहिम की सफलता असफलता पर सवालिया निशान लगाने से पहले कुछ सवाल आप स्वयं से पूछें। क्या सच में हम भारत बदलना चाहते हैं ? क्या हम नहीं चाहते, जब हम ऑफिस जाते समय ट्रैफिक में फंसे हों, तो हमारे साथ सरकार का नुमाइंदा या मंत्री भी खड़ा हो, और उसकी गाड़ी को स्पेशल ट्रीटमेंट के साथ न निकाला जाए ? क्या हम नहीं चाहते कि जब पुलिस स्टेशन जाएं तो पुलिस हमारे साथ उसी तरह का व्यवहार करे, जिस तरह मंत्री साहेब के साथ होता है ? क्या हम नहीं चाहते कि भगवान के दर्शन के लिए वीआईपी और साधारण भक्त के बीच का अंतर खत्म हो ?
ऐसा नहीं कि भारत में बदलाव नहीं आए। भारत में समय के साथ साथ बहुत सारे बदलाव आएं हैं। आज का भारत बीते हुए भारत से बहुत अलग है। आज हम युवतियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। इतिहास रच रही हैं। आज की महिला पुरुष के पांव की जूती नहीं है।
कल तक लोग पुलिस थानों में भी जाने से डरते थे। पुलिस की गाड़ी गांव में घुसती थी तो लोग घरों में दुबक जाते थे या सड़क किनारे खड़े हो जाते थे। अब वो पहले से हालात नहीं, क्योंकि लोगों में जागरूकता आई है। यह जागरूकता ऐसे ही नहीं आई, इसलिए आवाज उठाई गई थी। मैं फिर कहता हूं कि ''आवाज उठाओ बदलेगा इंडिया।''
अब एनडीटीवी इंडिया लेकर आया है वीआईपी कल्चर के खिलाफ एक मुहिम, क्या हम लोग इस मुहिम का हिस्सा नहीं बन सकते ? हम दंगा फैलाने वाली भीड़ का हिस्सा बन सकते हैं तो इस समाज सुधारक मुहिम का क्यों नहीं ? यह मत सोचो कि कौन अगुवाई कर रहा है ? इस सफलता का सेहरा किसके सिर जाएगा ?
अंत में...
बस इतना याद रखिए, ''सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।''
#NoVIP
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