Saturday, January 24, 2015

श्रीश्री ने क्‍यों ठुकरा दिया पद्म विभूषण ?

'द इंडियन एक्‍सप्रेस' में पद्म विभूषण के लिए सामने आए संभावित नामों में एक नाम अध्‍यात्‍म गुरू श्री श्री रविशंकर का भी था। बाबा रामदेव ने 'द इंडियन एक्‍सप्रेस' की ख़बर के आधार पर सरकार को पत्र लिखकर पुरस्‍कार लेने से मना कर दिया। इसके पश्‍चात ही श्री श्री रविशंकर जी द्वारा पुरस्‍कार ठुकरा देने की ख़बर मिली। बाबा रामदेव को पद्म विभूषण देने को लेकर विरोधी स्‍वर उठ रहे थे। हो सकता है कि आने वाले समय में अधिक जोर भी पकड़ लेते।

हालांकि, दूसरी तरफ श्रीश्री रविशंकर को सम्‍मानित करने पर लोगों को अधिक एतराज न होता, क्‍योंकि श्रीश्री बाबा रामदेव की तरह राजनीति में खुलकर नहीं आए, वे पर्दे के पीछे से नरेंद्र मोदी को समर्थन करते रहे हैं, उनके संस्‍थान से जुड़े महेश गिरि पूर्वी दिल्ली से सांसद बने और हेमा मालिनी आगरा से।

यदि श्रीश्री पद्म विभूषण को स्‍वीकार करते तो भी मेरे मन में सवाल उठता और नहीं कर रहे हैं तो इस स्‍थिति में भी सवाल तो उठेगा क्‍योंकि उनके वेबसाइट पर उनको मिले सम्‍मानों की एक लम्‍बी फेहरिस्‍त है। यदि श्रीश्री उन तमाम सम्‍मान को स्‍वीकार कर सकते हैं, तो इस सम्‍मान को क्‍यों ? इसका जवाब अंत में देना चाहूंगा।

फिलहाल मैं लौटता हूं, उस स्‍थिति पर यदि वे सम्‍मान लेते तो ? अगर 'द इंडियन एक्‍सप्रेस' की ख़बर अनुसार श्रीश्री के साथ साथ उसी मंच पर पंजाब के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता एलके आडवाणी को पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया जाता तो मैं सबसे पहले सरकार से सवाल करता कि पुरस्‍कार का विवरण किस आधार पर किया जा रहा है। इसका मापदंड क्‍या है ? क्‍योंकि एक ही मंच पर एंटी वायरस और वायरस को एक ही पुरस्‍कार से किस तरह सम्‍मानित किया जा सकता है। सवाल तो उठता ? उठना भी चाहिए था।

भले अदालतों ने बाबरी मस्‍जिद गिराने के मामले में भारतीय जनता पार्टी के तमात सीनियर नेताओं को बरी कर दिया हो, लेकिन हजारों लोगों की लाशों के जिम्‍मेदार वे नेता हैं, जिन्‍होंने लोगों के भीतर नफरत का बीज बोया। मस्‍जिद को गिराने के लिए लोगों में आक्रोश पैदा किया। कितने भी सफेद कपड़े पहन लें, यह दाग हमेशा बने रहेंगे, क्‍योंकि एक राम मंदिर बनाने की जद में न जाने कितने पाकिस्‍तान, बंग्‍लादेश में बने मंदिर एक दिन में तुड़वा दिए। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान में केवल एक ही दिन में तीस मंदिर तोड़े गए। उस समय हुए दंगों में करीब दो हजार लोगों की जान गई। उसके लिए जिम्‍मेदार नेतृत्‍व करने वाले नेता हैं। प्रकाश सिंह बादल, पंजाब के मुख्‍यमंत्री, जिनकी सरकार के मंत्री एवं करीबी रिश्‍तेदार पर पंजाब में नशा फैलाने का आरोप है। पंजाब नशे की गर्त में है, यह बात किसी से छुपी नहीं, पंजाब का बच्‍चा बच्‍चा शिरोमणि अकाली दल भाजपा गठबंधन से बनी सरकार को जिम्‍मेदार ठहरा रहा है।

उपरोक्‍त तथ्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह को सम्‍मानित करना। एलके आडवाणी को सम्‍मानित करना। और दूसरी तरफ उसी मंच पर देश विदेश में प्रेम का सबक पढ़ा रहे एक अध्‍यात्‍म गुरू श्रीश्री को सम्‍मानित करना कहां तक सही होगा ?

अब मैं दूसरे सवाल की तरफ लौटता हूं। आखिर श्रीश्री ने पद्म विभूषण लेने से इंकार क्‍यों कर दिया? ऐसा नहीं कि उनको पुरस्‍कार प्रिय नहीं हैं यदि ऐसा होता तो उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर सैंकड़ों पुरस्‍कारों का बड़ा सा विवरण न होता। उनको पुरस्‍कार प्रिय हैं। मगर, इस समय उनका पद्म विभूषण लेना, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाएगा, क्‍योंकि लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और श्रीश्री की निकटता जग जाहिर है। श्रीश्री को 1986 में योग शिरोमणि का पुरस्‍कार भारतीय राष्‍ट्रपति की तरफ से मिला था। उसके बाद भी बहुत सारे देश विदेश से पुरस्‍कार मिले। उन्‍होंने बड़े से छोटे सभी पुरस्‍कार हंसकर स्‍वीकार किए। मगर, पद्म विभूषण को लेकर उनका इंकार करना बताता है कि देश की राजनीतिक पार्टियों ने पुरस्‍कार की गरिमा किस कदर गिरा दी है। यदि आप अटल बिहारी वाजपेयी, मदन मोहन मालवीय को भारत रत्‍न देते हैं, और श्रीश्री को केवल पद्म विभूषण देकर खुश करने का प्रयास करते हैं तो कहीं न कहीं सरकार उनके कद को कम आंक रही है, क्‍योंकि श्रीश्री अध्‍यात्‍म जगत में बेहद सम्‍मानजनक शख्‍सियत हैं। उनको विदेशों से आए दिन सम्‍मान के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनको भारत रत्‍न कहा जा सकता है क्‍योंकि उनकी आभा आज विश्‍व के कई देशों को सम्‍मोहित कर रही है।

अंत में...
यदि राजनीतिक पार्टियां यूं ही सम्‍मानजनक पुरस्‍कारों की गरिमा को ठेस पहुंचाती रहेंगी तो शायद इन पुरस्‍कारों का अधिक मोल न रह जाएगा। यह केवल खुशामद एवं समर्थन का रिटर्न गिफ्ट बनकर रह जाएंगे।

3 comments:

  1. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  2. यह एक कटु सत्य ही है कि ज़्यादातर सम्मान आज केवल खुशामद एवं समर्थन का रिटर्न गिफ्ट बनकर ही रह गए है . काश, ऐसा हो कि कोई भी पुरस्कार उसके सही हकदार को ही मिले!

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  3. सभी पुरस्कार आज विवादों के घेरे में रहें हैं कारण उन्हें देने वालों के पक्षपात पूर्ण निर्णय , न तो इनके देने का कोई तर्कसंगत फार्मूला है और न ही निर्णय की क्षमता ,कभी वोट बैंक बनाने के लिए दे दिए जाते हैं तो कभी अपनी पार्टी के लोगों को. जिन लोगों को मिलने चाहिए उन्हें मिलते ही नहीं और यदि कभी मिल भी गए तो इतने विलम्ब से कि , उनकी कोई सार्थकता नहीं रह जाती ,भारत रत्न को भी अब एक मजाक बना दिया गया है ,इसकी शुरुआत पिछली सरकारों ने की औए अब भी यह सिलसिला जारी है ,और यह रुकने वाला भी नहीं है

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