Saturday, December 20, 2014

नीलगाय की हत्‍या करना उचित या अनुचित

ठंड का मौसम था। खेतों में धूप की चिड़िया फुदक रही थी। मैं नहर के किनारे टहल रहा था। मेरी नजर एक काले रंग के जानवर पर पड़ी, जो दौड़ता हुआ हमारी तरफ आ रहा था। इस काले रंग के जानवर के पीछे कुत्‍तों का झुंड था। काला सा दिखने वाला जानवर 'नील गाय' थी, जिसको पंजाबी बोली में 'रोज' भी कहते हैं। हांपते हुए इसकी निगाह हम पर पड़ी और न आयें देखा - न बायें देखा, सीधा नहर में कूद गई। हमने कूत्‍तों को वहां से दौड़ा दिया और नील गाय को बचाने का प्रयास करने लगे। वैसे तो नील गाय स्‍वयं निकल जाती, मगर वो हांप रही थी , और नहर पूरी तरह पक्‍की थी, ऐसे में उसका स्‍वयं निकलना मुश्‍किल था। जैसे ही हमने उसको सही सलामत बाहर निकाला, तो उसने हमारे हाथों में दम तोड़ दिया। मैं हैरान हो गया। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि आख़िर यह कैसे हुआ। हालांकि पिता ने यह कहते हुए जिज्ञासा को शांत कर दिया है कि इनका दिल बहुत कमजोर होता है।

यह किस्‍सा आज अचानक 20 साल बाद उस समय उभरकर मन की सतह पर आ गया। जब नीलगाय की समस्‍या को लेकर राजस्‍थान सरकार की तनातनी का मामला सामने आया। एक ख़बर के मुताबिक इस साल की शुरुआत में वसुंधरा राजे रंथमभौर गई थीं, जहां पर उनको किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। किसानों ने मुख्यमंत्री को बताया था कि नीलगायों के कारण बड़े पैमाने पर उनकी फसल बर्बाद हो रही है। किसानों की समस्‍या सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने किसानों से वादा किया था कि उनकी सरकार नीलगाय की संख्या को कम करने में विशेष कानून अधिकार का इस्‍तेमाल करते हुए उनको राहत प्रदान करेगी।

मगर, अब वसुंधरा राजे के लिए समस्‍या उस समय खड़ी हो गई। जब उनके नेताओं ने यह कहते हुए उनके कदम का विरोध कर दिया कि आप इनकी हत्या कैसे कर सकते हैं, जिनके नाम में 'गाय' है ?। मगर सवाल तो यह भी उठता है कि अगर इस जानवर के नाम के पीछे गाय शब्‍द न आता तो क्‍या इनकी हत्‍या करना उचित होता ? लावारिश पशुओं एवं जानवरों के कारण किसानों की फसलों का नुकसान होता है। इसमें कोई दो राय नहीं। मगर, किसी जानवर को खत्‍म करने संबंधी कानून पास करना आखिर कहां तक उचित है ?

इसके अन्‍य विकल्‍पों पर विचार करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि नीलगाय को पकड़कर निकटवर्ती प्राणी संग्रहालयों में छोड़ा जाए। उनकी देखभाल के लिए अलग से आर्थिक मदद मुहैया करवाई जाए। हालांकि, इन प्राणियों से सरकार को किसी तरह का आर्थिक लाभ नहीं होगा। मगर, जरूरी तो नहीं कि हर चीज के साथ आर्थिक लाभ को जोड़कर देखा जाए। यदि ऐसा ही है तो जो लोग दूध पीने के बाद गायों को सड़कों पर या खेतों के आस पास खुले स्‍थानों में छोड़ देते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं, तो नियम उनके लिए भी उसी तरह का होगा।

इस तरह की अक्‍सर कार्रवाईयां शहरों में होती हैं। नगर निगमों ने आवारा कुत्‍तों को शहर से हटाने के लिए आवारा कुत्‍तों के खिलाफ अभियान चलाया। नतीजा, यह हुआ कि आज शहरों की सड़कों पर आवारा कुत्‍तों की संख्‍या कम होगी, जो देसी नसल के हैं, जबकि विदेशी नसल के कुत्‍ते बड़ी शानदार के साथ सड़कों पर घूमते हैं, उनका मालिक, जो कहने को मालिक है, लेकिन वो जाता तो कुत्‍ते के पीछे पीछे है, और कभी मैंने किसी मालिक को पीछे चलते हुए नहीं देखा।

हमने अपने स्‍वार्थों के लिए पहाड़ों का सीना चीरकर बीच में से सड़कें निकाल ली, अब अगर सड़कों पर पहाड़ों कोई जानवर हमारा राह रोकता है तो हमको परेशानी होती है। हमने जंगलों को साफ कर दिया। अब अगर जंगलों में रहने वाली प्राणी हमारे खेतों में घुस रहे हैं, तो हम उनको खत्‍म करने की जिद्द पकड़े हुए हैं।

इस मामले में मेनिका गांधी का रूख किस तरह का होगा। यह भी देखने लायक होगा, क्‍योंकि वो स्‍वयं को वण प्राणियों की सबसे बड़ी रक्षक कहती हैं। और दिलचस्‍प बात तो यह है कि यह मामला अब राजस्‍थान से निकल केंद्र में पहुंच चुका है। उधर, राजस्थान के वन मंत्री राजकुमार रिनवा ने अंग्रेजी समाचार पत्र से कहा, ''राज्य की फसलों के लिए नीलगाय एक गंभीर समस्या बन चुकी हैं। हालांकि, यह अलग किस्म का जानवर है लेकिन ज्यादातर लोग इसको गाय कहते हैं। इसके साथ लोगों की भावना जुड़ी हुई है। मैं ब्राह्मण हूं और किसी जानवर की हत्या होने पर अच्छा महसूस नहीं होता है। फिर भी हम समाधान की तलाश में हैं। इन जानवरों को फसल वाले इलाके से बाहर करने पर विचार किया जा रहा है।'

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