आज प्रभु का रेल बजट आया। अच्छे दिन वाली सरकार का दूसरा जबकि प्रभु का पहला रेलवे बजट था। नई ट्रेन की घोषणा रहित बजट की शुरूआत में ही प्रभु ने ही कह दिया, किराया नहीं बढ़ाया जाएगा। मतलब, आम आदमी का बजट बस यहीं खत्म हो गया। प्रभु ने आम आदमी के समय की इज्जत की, वरना, प्रभु चाहते तो अंत तक इस बात पर रहस्य बनाए रखते, लेकिन प्रभु ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि प्रभु सब जानता है।
तभी तो प्रभु की नजर बुजुर्गों पर गई, उनके लिए लोअर बर्थ की व्यवस्था कर डाली। साथ ही, अपर सीट के लिए नए तरीके की सीढ़ियां बनाने की बात कही। हालांकि, मुझे इसमें विरोधाभास समझ पड़ता है। यदि बुजुर्गों के लिए लोअर बर्थ मिल गया, तो पुरानी सीढ़ियों में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं, अन्य वर्ग के लिए। और भारत में बुजुर्गों का आज भी सम्मान होता है, बहुत सारे यात्री बुजुर्गों के लिए अपनी सीट छोड़ देते हैं। शायद सोशल मीडिया के यह सुझाव एक ही समस्या से जुड़े थे, हां, सुझाव देने वाले अलग अलग हो सकते हैं क्योंकि लोगों के सुझावों को शामिल किया गया है।
इस बजट में नई घोषणा नहीं करके प्रभु ने संदेश दिया कि प्रभु पुराने को सुधारने में विश्वास रखते हैं, ताकि जनता का रेलवे में विश्वास बढ़े। हालांकि, आज भी अविश्वास के साथ भी करोड़ों यात्री रेलवे में सफर करते हैं। यात्रियों के हाथ में ट्रेन की टिकट तो होती है, लेकिन ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चलकर निर्धारित समय में उनकी मंजिल पर पहुंचेगी या नहीं, इसको लेकर। यदि प्रभु जी इस समस्या से निबटने में कामयाब हो गए तो हो सकता है, उनको एक अच्छे रेलवे मंत्री के रूप में याद किया जाएगा।
यह बजट बहुत अधिक लुभावना नहीं था। सच में कहूं तो तालियां बजाने वाला भी नहीं था। मगर, प्रभु का साहस काबिले तारीफ है कि प्रभु ने इस बजट में जनता को लुभावने का प्रयास बिल्कुल नहीं किया, हालांकि, मोदी सरकार ने आते ही रेल यात्री भाड़े में 14 फीसद की बढ़ोतरी की थी, इस बार उसको कम करना चाहिए था, चलो ऐसा नहीं हुआ तो बुरा भी नहीं मानना चाहिए। यह कह कर दिल समझा लो, कोई यूं ही बेवफा नहीं होता, कुछ उसकी भी मजबूरियां रही होंगी।
प्रभु ने चतुरता से काम लेते हुए महिला सुरक्षा, स्वच्छता अभियान, स्किल डेवलपमेंट जैसे कदम रेलवे बजट के साथ अलग तरीके से जोड़ दिए। हालांकि, यह केंद्र सरकार के मुख्य मुद्दों में पहले से ही शामिल हैं। इसके लिए भी प्रभु को दाद देनी होगी। बुलेट ट्रेन को भूत लोगों के सिर पर सवार न हो जाए, इसलिए प्रभु ने फिलहाल परीक्षण अधीन मुम्बई अहमदाबाद रूट कहर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। लेकिन, पुरानी ट्रेनों के एक्सीलेटर पर कदम रखना नहीं भूले ताकि आपको इसमें सेमी बुलेट की फीलिंग आएगी।
इस रेल बजट में आम यात्रियों का भाड़ा न बढ़ाकर आम आदमी को खुश तो कर दिया। मगर, हाथ घुमाकर कान पकड़ने से गुरेज न कर सके। माल ढुलाई में दस फीसद की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि की मार में सीमेंट, यूरिया, पेट्रोलियम उत्पाद, अन्य रोजमर्रा की चीजें शामिल हैं, जिनका संबंध सीधे सीधे आम आदमी से। यूरिया की ढुलाई भाड़े में वृद्धि की बात सामने आते ही सरकार ने बयान देते हुए कहा कि किसानों को सब्सिडी दी जाएगी। यदि सब्सिडी देनी है तो बढ़ाने की जरूरत समझ नहीं आई। एक हाथ से सरकार दे रही है, तो दूसरे हाथ से ले रही है।
प्रभु की कृपा से यात्री अब 60 दिन की जगह 120 दिन पहले कर पाएंगे टिकट - इससे फायदा किसको - केवल सरकार को - कैसे ? 4 महीने तक आपका पैसा सरकारी खाते में रहेगा - यदि कैंसल के लिए गए तो 30 रूपये से लेकर 50% तक सरकार के पास रह जाएगा। सरकार अपनी पैसा अपना - क्या फर्क पड़ता है कि कौन इस्तेमाल करता है ? अब टिकट पहले बुक न करवो तो आपकी समस्या और करवाओ तो रेलवे की मौज। फिर भी घाटे में है रेलवे।
जय हो।
अंत में...
रेल बजट में इन पर भी गौर किया जाना चाहिए था -
तभी तो प्रभु की नजर बुजुर्गों पर गई, उनके लिए लोअर बर्थ की व्यवस्था कर डाली। साथ ही, अपर सीट के लिए नए तरीके की सीढ़ियां बनाने की बात कही। हालांकि, मुझे इसमें विरोधाभास समझ पड़ता है। यदि बुजुर्गों के लिए लोअर बर्थ मिल गया, तो पुरानी सीढ़ियों में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं, अन्य वर्ग के लिए। और भारत में बुजुर्गों का आज भी सम्मान होता है, बहुत सारे यात्री बुजुर्गों के लिए अपनी सीट छोड़ देते हैं। शायद सोशल मीडिया के यह सुझाव एक ही समस्या से जुड़े थे, हां, सुझाव देने वाले अलग अलग हो सकते हैं क्योंकि लोगों के सुझावों को शामिल किया गया है।
इस बजट में नई घोषणा नहीं करके प्रभु ने संदेश दिया कि प्रभु पुराने को सुधारने में विश्वास रखते हैं, ताकि जनता का रेलवे में विश्वास बढ़े। हालांकि, आज भी अविश्वास के साथ भी करोड़ों यात्री रेलवे में सफर करते हैं। यात्रियों के हाथ में ट्रेन की टिकट तो होती है, लेकिन ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चलकर निर्धारित समय में उनकी मंजिल पर पहुंचेगी या नहीं, इसको लेकर। यदि प्रभु जी इस समस्या से निबटने में कामयाब हो गए तो हो सकता है, उनको एक अच्छे रेलवे मंत्री के रूप में याद किया जाएगा।
यह बजट बहुत अधिक लुभावना नहीं था। सच में कहूं तो तालियां बजाने वाला भी नहीं था। मगर, प्रभु का साहस काबिले तारीफ है कि प्रभु ने इस बजट में जनता को लुभावने का प्रयास बिल्कुल नहीं किया, हालांकि, मोदी सरकार ने आते ही रेल यात्री भाड़े में 14 फीसद की बढ़ोतरी की थी, इस बार उसको कम करना चाहिए था, चलो ऐसा नहीं हुआ तो बुरा भी नहीं मानना चाहिए। यह कह कर दिल समझा लो, कोई यूं ही बेवफा नहीं होता, कुछ उसकी भी मजबूरियां रही होंगी।
प्रभु ने चतुरता से काम लेते हुए महिला सुरक्षा, स्वच्छता अभियान, स्किल डेवलपमेंट जैसे कदम रेलवे बजट के साथ अलग तरीके से जोड़ दिए। हालांकि, यह केंद्र सरकार के मुख्य मुद्दों में पहले से ही शामिल हैं। इसके लिए भी प्रभु को दाद देनी होगी। बुलेट ट्रेन को भूत लोगों के सिर पर सवार न हो जाए, इसलिए प्रभु ने फिलहाल परीक्षण अधीन मुम्बई अहमदाबाद रूट कहर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। लेकिन, पुरानी ट्रेनों के एक्सीलेटर पर कदम रखना नहीं भूले ताकि आपको इसमें सेमी बुलेट की फीलिंग आएगी।
इस रेल बजट में आम यात्रियों का भाड़ा न बढ़ाकर आम आदमी को खुश तो कर दिया। मगर, हाथ घुमाकर कान पकड़ने से गुरेज न कर सके। माल ढुलाई में दस फीसद की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि की मार में सीमेंट, यूरिया, पेट्रोलियम उत्पाद, अन्य रोजमर्रा की चीजें शामिल हैं, जिनका संबंध सीधे सीधे आम आदमी से। यूरिया की ढुलाई भाड़े में वृद्धि की बात सामने आते ही सरकार ने बयान देते हुए कहा कि किसानों को सब्सिडी दी जाएगी। यदि सब्सिडी देनी है तो बढ़ाने की जरूरत समझ नहीं आई। एक हाथ से सरकार दे रही है, तो दूसरे हाथ से ले रही है।
प्रभु की कृपा से यात्री अब 60 दिन की जगह 120 दिन पहले कर पाएंगे टिकट - इससे फायदा किसको - केवल सरकार को - कैसे ? 4 महीने तक आपका पैसा सरकारी खाते में रहेगा - यदि कैंसल के लिए गए तो 30 रूपये से लेकर 50% तक सरकार के पास रह जाएगा। सरकार अपनी पैसा अपना - क्या फर्क पड़ता है कि कौन इस्तेमाल करता है ? अब टिकट पहले बुक न करवो तो आपकी समस्या और करवाओ तो रेलवे की मौज। फिर भी घाटे में है रेलवे।
जय हो।
अंत में...
रेल बजट में इन पर भी गौर किया जाना चाहिए था -
- शौचालय में मग्गे की चेन लम्बी किए जाने का प्रस्ताव
- सीट से हवाई चप्पल और जूते बाँधने का इंतजाम
- सहयात्री के अख़बार मांगने वालों पर जुर्माना
- पंखा चालू करने के लिए एक कंघी का इंतजाम
- रेलवे में मिलने वाला तकिया मोटा किया जाए
- मिडल बर्थ वालों के लिए काउन्सलिंग
- लोअर बर्थ पर बैठने वालों के लिए वोटिंग मीटर ताकि ये फैसला हो सके कि मिडल बर्थ कब उठाया जाए
- एयर होस्टेस के जैसे ही रेल होस्टेस, मिडल बर्थ उठाने की विधि समझाएगी और एक्स्ट्रा टॉमेटो सूप लाएगी।
- पानी लेने गए पापा अगर ट्रेन में न चढ़ पाए तो, उनके लिए विशेष ट्रेन/टैक्सी
- अगर बीच के किसी स्टेशन पर यात्री के मित्र या रिश्तेदार घर के आलू-पूरी आ रहे हों, और उन्हें देर हो जाए तो आपको चेन पुलिंग की छूट
- शौचालय में एक जगह टिकने के लिए सीटबेल्ट
- शौचालय में मोबाइल चार्जिंग पॉइंट
- गैस के मरीज़ों के लिए विकलांगों की तरह विशेष कोच ताकि बेझिझक हवा ख़ारिज कर सकें
- रेलवे लाइन के पास हगने वालों को करंट के झटके
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