भारतीय जनता पार्टी की ओर से शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए 5 सवालों की दूसरी किश्त पेश की। इस किश्त को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने पेश किया। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि भाजपा 5 फरवरी तक हर रोज अरविंद केजरीवाल से 5 नए सवाल पूछेगी। लेकिन, सवाल तो यह है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी किस हक से सवाल पूछ रही है ? क्या भारतीय जनता पार्टी को सवाल पूछने का हक है ? सबसे हैरानीजनक बात तो यह है कि इसकी दूसरी किश्त केंद्रीय मंत्री द्वारा जारी की गई है।
यह तरीका भी सराहनीय नहीं है। यह केवल सुर्खियों में बने रहने का ढंग है। लोगों का ध्यान भटकाने का तरीका है। एक राष्ट्रीय पार्टी जन आंदोलन की कोख से पिछले साल जन्मीं पार्टी से कितने बचकाने सवाल पूछ रही है। बचकानेपन तो मीडिया भी कर रहा है, जो बीजेपी के बेतुके बयानों को महत्व दे रहा है।
बीजेपी का यह कदम सराहनीय कम मद्दा अधिक लगता है, विशेषकर उस समय जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता गली गली कूचे कूचे नुक्कड़ नुक्कड़ वोट मांग रहे हैं, जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी को जनादेश भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस ने नहीं दिया, बल्कि जनता ने दिया है, तो सवाल पूछने का हक भी जनता को है, और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता जनता के बीच घूम रहे हैं।
एक अन्य सवाल, जब अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी के सामने खुली बहस का विकल्प पहले से ही रख दिया है तो बीजेपी सुरक्षित कोने में खड़ी होकर क्यों खेल रही है ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास मुद्दे नहीं ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास आम आदमी पार्टी की चुनौती का जवाब नहीं ? भारतीय जनता पार्टी इतने बचकाने सवाल पूछ रही है, जिनका जनता से दूर दूर तक सरोकार नहीं है।
क्या बच्चों की कसम खाकर पलटना राष्ट्रीय गुनाह है ? यदि गुनाह है तो पिछले साढ़े छह दशक के दौरान जो गुनाह राजनेताओं ने किए हैं, उनका जवाब तो पहले बीजेपी एवं कांग्रेस आम आदमी पार्टी के सामने ना सही, लेकिन जनता के सामने तो रखे। इसका तो सीधा सीधा मतलब तो यह हुआ कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की जुबां लोहे पर लकीर, और नेताओं की जुबां पानी पर, और पानी पर खींची लकीर पर सवाल उठाना उचित नहीं है।
मैं यह नहीं कहता भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस पार्टी को अरविंद केजरीवाल से सवाल नहीं करने चाहिए। मैं कहता हूं कि दोनों पार्टियों को मिलकर आम आदमी पार्टी को घेरना चाहिए। मगर, इतने बचकाने सवालों से नहीं। दोनों पार्टियां ठोस मुद्दों पर बात करें। यदि अरविंद केजरीवाल की सामान्य बातों पर ही सवाल पूछने हैं, तो कांग्रेस, बीजेपी अपने नेता के चुनावी बयानों का री टेलीकास्ट करे। अपने गिरेबां में पहले झांके। इससे पहले दिल्ली भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस दोनों के पास रही है। अरविंद केजरीवाल को तो केवल 49 दिन के लिए दिल्ली मिली और उसके लिए अरविंद केजरीवाल को लोक सभा चुनावों में दोनों पार्टियां बहुत कुछ पूछ चुकी हैं। जो अभी पूछ रही हैं, वो सोशल मीडिया पर बैठे किसी पार्टी के भक्तों के लिए तो ठीक है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के लिए वो बचकाने सवालों से अधिक कुछ नहीं है।
एक और बात आम आदमी पार्टी से जवाब मांगने का हक केवल और केवल जनता का है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज कल दिल्ली में सबसे अधिक भीड़ अरविंद केजरीवाल की रैलियों में हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की किरण बेदी भी भीड़ जुटाने में चूक रही हैं। कांग्रेस का हाल तो जग जाहिर है। आज जो कांग्रेस की स्थिति है, पिछले दिल्ली विधान सभा चुनावों में वो आम आदमी पार्टी की थी, केवल मीडिया की नजर में। आम आदमी पार्टी को मिलने जन समर्थन ने बड़े बड़े दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
यदि अरविंद केजरीवाल भगोड़ा है। यदि अरविंद केजरीवाल पलटीमार है। तो भारतीय जनता पार्टी को घबराने की जरूरत नहीं थी। यदि अरविंद केजरीवाल दिल्ली का भरोसा खो चुका था, तो भारतीय जनता पार्टी को किरण बेदी क्यों ? यदि जनता को अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी पर विश्वास होगा तो वो आम आदमी को वोट करेगी यदि नहीं होगा तो नहीं करेगी।
मगर, बीजेपी किस अधिकार से सवाल कर रही है ? क्या मोदी सरकार ने सौ दिन में काला धन वापस लाने के वादे को पूरा कर दिया ? क्या जम्मू कश्मीर में बाप बेटी या बाप बेटे की पार्टी के साथ मिलकर मोदी की भाजपा सरकार नहीं बनाएगी ? क्या सुभाष चंद्र बोस से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए गए हैं ? क्या नशा विरोधी मुहिम को शुरू करने से पहले पंजाब की मौजूदा सरकार से नाता तोड़ लिया गया है ? यह सवाल जनता से जुड़े हैं न कि पारिवारिक सदस्यों की कसम से। शायद यह ही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल की सार्वजनिक बहस की चुनौती को नजरंअदाज करते हुए एक तरफ सवाल दागने पर जोर दे रही है।
अंत में...
दिल्ली जीतने के लिए 250 रैलियां, 120 सांसदों की डियूटी, 13 राज्यों के कार्यकर्ता और दर्जनों मंत्रियों की तैनाती और प्रधानमंत्री की 4 रैलियां। बीजेपी में बेचैनी और अरविंद केजरीवाल के जनाधार का सबूत हैं। अब अगर आम आदमी पार्टी हार भी गई तो अधिक परेशानी की बात नहीं होगी। बीजेपी की तैयारी को देखकर विश्व विजेता बनने निकले सिकन्दर की याद आ गई जो पोरस से जीत कर भी अंत हार गया और वापस लौट गया। भारत को फतह नहीं कर पाया।
यह तरीका भी सराहनीय नहीं है। यह केवल सुर्खियों में बने रहने का ढंग है। लोगों का ध्यान भटकाने का तरीका है। एक राष्ट्रीय पार्टी जन आंदोलन की कोख से पिछले साल जन्मीं पार्टी से कितने बचकाने सवाल पूछ रही है। बचकानेपन तो मीडिया भी कर रहा है, जो बीजेपी के बेतुके बयानों को महत्व दे रहा है।
बीजेपी का यह कदम सराहनीय कम मद्दा अधिक लगता है, विशेषकर उस समय जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता गली गली कूचे कूचे नुक्कड़ नुक्कड़ वोट मांग रहे हैं, जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी को जनादेश भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस ने नहीं दिया, बल्कि जनता ने दिया है, तो सवाल पूछने का हक भी जनता को है, और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता जनता के बीच घूम रहे हैं।
एक अन्य सवाल, जब अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी के सामने खुली बहस का विकल्प पहले से ही रख दिया है तो बीजेपी सुरक्षित कोने में खड़ी होकर क्यों खेल रही है ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास मुद्दे नहीं ? क्या भारतीय जनता पार्टी के पास आम आदमी पार्टी की चुनौती का जवाब नहीं ? भारतीय जनता पार्टी इतने बचकाने सवाल पूछ रही है, जिनका जनता से दूर दूर तक सरोकार नहीं है।
क्या बच्चों की कसम खाकर पलटना राष्ट्रीय गुनाह है ? यदि गुनाह है तो पिछले साढ़े छह दशक के दौरान जो गुनाह राजनेताओं ने किए हैं, उनका जवाब तो पहले बीजेपी एवं कांग्रेस आम आदमी पार्टी के सामने ना सही, लेकिन जनता के सामने तो रखे। इसका तो सीधा सीधा मतलब तो यह हुआ कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की जुबां लोहे पर लकीर, और नेताओं की जुबां पानी पर, और पानी पर खींची लकीर पर सवाल उठाना उचित नहीं है।
मैं यह नहीं कहता भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस पार्टी को अरविंद केजरीवाल से सवाल नहीं करने चाहिए। मैं कहता हूं कि दोनों पार्टियों को मिलकर आम आदमी पार्टी को घेरना चाहिए। मगर, इतने बचकाने सवालों से नहीं। दोनों पार्टियां ठोस मुद्दों पर बात करें। यदि अरविंद केजरीवाल की सामान्य बातों पर ही सवाल पूछने हैं, तो कांग्रेस, बीजेपी अपने नेता के चुनावी बयानों का री टेलीकास्ट करे। अपने गिरेबां में पहले झांके। इससे पहले दिल्ली भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस दोनों के पास रही है। अरविंद केजरीवाल को तो केवल 49 दिन के लिए दिल्ली मिली और उसके लिए अरविंद केजरीवाल को लोक सभा चुनावों में दोनों पार्टियां बहुत कुछ पूछ चुकी हैं। जो अभी पूछ रही हैं, वो सोशल मीडिया पर बैठे किसी पार्टी के भक्तों के लिए तो ठीक है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के लिए वो बचकाने सवालों से अधिक कुछ नहीं है।
एक और बात आम आदमी पार्टी से जवाब मांगने का हक केवल और केवल जनता का है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज कल दिल्ली में सबसे अधिक भीड़ अरविंद केजरीवाल की रैलियों में हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की किरण बेदी भी भीड़ जुटाने में चूक रही हैं। कांग्रेस का हाल तो जग जाहिर है। आज जो कांग्रेस की स्थिति है, पिछले दिल्ली विधान सभा चुनावों में वो आम आदमी पार्टी की थी, केवल मीडिया की नजर में। आम आदमी पार्टी को मिलने जन समर्थन ने बड़े बड़े दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
यदि अरविंद केजरीवाल भगोड़ा है। यदि अरविंद केजरीवाल पलटीमार है। तो भारतीय जनता पार्टी को घबराने की जरूरत नहीं थी। यदि अरविंद केजरीवाल दिल्ली का भरोसा खो चुका था, तो भारतीय जनता पार्टी को किरण बेदी क्यों ? यदि जनता को अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी पर विश्वास होगा तो वो आम आदमी को वोट करेगी यदि नहीं होगा तो नहीं करेगी।
मगर, बीजेपी किस अधिकार से सवाल कर रही है ? क्या मोदी सरकार ने सौ दिन में काला धन वापस लाने के वादे को पूरा कर दिया ? क्या जम्मू कश्मीर में बाप बेटी या बाप बेटे की पार्टी के साथ मिलकर मोदी की भाजपा सरकार नहीं बनाएगी ? क्या सुभाष चंद्र बोस से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए गए हैं ? क्या नशा विरोधी मुहिम को शुरू करने से पहले पंजाब की मौजूदा सरकार से नाता तोड़ लिया गया है ? यह सवाल जनता से जुड़े हैं न कि पारिवारिक सदस्यों की कसम से। शायद यह ही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल की सार्वजनिक बहस की चुनौती को नजरंअदाज करते हुए एक तरफ सवाल दागने पर जोर दे रही है।
अंत में...
दिल्ली जीतने के लिए 250 रैलियां, 120 सांसदों की डियूटी, 13 राज्यों के कार्यकर्ता और दर्जनों मंत्रियों की तैनाती और प्रधानमंत्री की 4 रैलियां। बीजेपी में बेचैनी और अरविंद केजरीवाल के जनाधार का सबूत हैं। अब अगर आम आदमी पार्टी हार भी गई तो अधिक परेशानी की बात नहीं होगी। बीजेपी की तैयारी को देखकर विश्व विजेता बनने निकले सिकन्दर की याद आ गई जो पोरस से जीत कर भी अंत हार गया और वापस लौट गया। भारत को फतह नहीं कर पाया।