मेरी मां का देहांत फरवरी 2006 को हुआ। उनकी मृत्यु का समाचार जैसे रिश्तेदारों व परिचितों को मिला। परंपरा के अनुसार महिलाएं घर से चाली पचास कदमों की दूरी से रोना शुरू देती हैं, ऐसे मौकों पर। मेरी मम्मी के वक्त भी ऐसा हुआ। छाती पिट पिट कर ऐसे रोएं मानो, आज भगवान को जमीं पर लाकर छोड़ेंगी। और मेरी मां के शव में पुन:प्राण फूंकेंगी। दस बीस मिनटों के रोने धोने के बाद घुसर फुसर शुरू हो गई। एक दूसरे की बातें, फ्लां के क्या हुआ, तुमने वो सूट कब कहां से खरीदा, तरह तरह की बातें। मेरे कान खड़े के खड़े रह गए। ये तो मेरे ब्लैकटेक के टेलीविजन से भी ज्यादा तेज हैं, हवा से एनटीना हिला नहीं कि डीडी से सीधा डीडी मेट्रो हो जाता था। कुछ ऐसा ही माहौल सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है।
हालिया बात करूं तो भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के देहांत की ख़बर आई, तो सोशल मीडिया विनम्र श्रद्धांजलि, भावभीनि श्रद्धांजलि, झटका लगा, घाटा कभी पूरा न होगा, न जाने क्या क्या किस किस तरह की भावनाएं से भर गया। मगर, 28 जुलाई 2015 की बाद दोपहर होते हुए सोशल मीडिया चुटकले बनाने लगा, व्यंग करने लगा, सीधे प्रत्यक्ष वार करने लगा।
एक संदेश आया, भारत सरकार यदि डॉ. अब्दुल कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहती है तो 21 तोपों से नहीं, 21 मिसाइलों से दे, और इसका मुंह पाकिस्तान की तरफ रखें। यह हास्यजनक बात करने वाले कोई और नहीं बल्कि वे ही लोग हैं, जो पेशावर के एक स्कूल में हुए आतंकवादी हमले पर डिजिटल मोमबत्तियां जला रहे थे।
डॉ. अब्दुल कलाम को जब पूरा देश सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियां अर्पित कर रहा था तो कुछ लोग मुस्लिम समाज पर निशाना साधने में लगे हुए थे। देखो, एक सच्चे मुस्लिम के लिए पूरा भारत रो रहा है। हालांकि, डॉ. अब्दुल कलाम नाम एवं जन्म से मुस्लिम थे, बल्कि कर्म से तो सच्चे, नेक दिल इंसान एवं भारतीय नागरिक ही रहे हैं।
जब 27 जुलाई 2015 को देर रात ख़बर मिली कि डॉ. अब्दुल कलाम नहीं रहे, तो मुझे बिलकुल झटका नहीं लगा,मुझे कोई हैरानी भी नहीं हुई। मुझे उनकी उम्र का अंदाजा था। और दूसरी बात भारत के कितने लोग हैं, जो डॉ. अब्दुल कलाम के साथ हाथ मिलाकर सोते थे। डॉ. अब्दुल कलाम तो विचार थे, एक सोच थे, एक कर्म थे, जो न कभी मरते हैं, न कभी मिटते हैं। डॉ. अब्दुल कलाम सा देहांत तो नसीब से नसीब होता है। एक कर्मयोगी कर्म करते हुए जिन्दगी को अलविदा कहे, इससे अच्छा और क्या हो सकता है।
हिंदू मुस्लिम किसी दूसरे देश में होना लेना दोस्तो, अगर भारत में हैं तो डॉ. अब्दुल कलाम जैसे नागरिक हो जाए, यह भारत के लोग हैं, धर्म भी पूजते हैं, और कर्म भी।
चलते चलते
27/07/2015 को फेसबुक अपडेट
मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम मिसाल बन कर विदा हुए - ऐसी आत्माएं मरती कहाँ हैं - अमर हो जाती हैं - उनके विचार हमारे बीच रहेंगे जो उनके होने का अहसास दिलाएंगे ।।।
भगत सिंह का तो पूरा नहीं हुआ लेकिन 2020 बदलाव आपका सपना पूरा हो जाए तो अच्छा होगा और यह ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी आपके लिए। आप तो मिट्टी के असली हीरे थे।
हालिया बात करूं तो भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के देहांत की ख़बर आई, तो सोशल मीडिया विनम्र श्रद्धांजलि, भावभीनि श्रद्धांजलि, झटका लगा, घाटा कभी पूरा न होगा, न जाने क्या क्या किस किस तरह की भावनाएं से भर गया। मगर, 28 जुलाई 2015 की बाद दोपहर होते हुए सोशल मीडिया चुटकले बनाने लगा, व्यंग करने लगा, सीधे प्रत्यक्ष वार करने लगा।
एक संदेश आया, भारत सरकार यदि डॉ. अब्दुल कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहती है तो 21 तोपों से नहीं, 21 मिसाइलों से दे, और इसका मुंह पाकिस्तान की तरफ रखें। यह हास्यजनक बात करने वाले कोई और नहीं बल्कि वे ही लोग हैं, जो पेशावर के एक स्कूल में हुए आतंकवादी हमले पर डिजिटल मोमबत्तियां जला रहे थे।
डॉ. अब्दुल कलाम को जब पूरा देश सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियां अर्पित कर रहा था तो कुछ लोग मुस्लिम समाज पर निशाना साधने में लगे हुए थे। देखो, एक सच्चे मुस्लिम के लिए पूरा भारत रो रहा है। हालांकि, डॉ. अब्दुल कलाम नाम एवं जन्म से मुस्लिम थे, बल्कि कर्म से तो सच्चे, नेक दिल इंसान एवं भारतीय नागरिक ही रहे हैं।
जब 27 जुलाई 2015 को देर रात ख़बर मिली कि डॉ. अब्दुल कलाम नहीं रहे, तो मुझे बिलकुल झटका नहीं लगा,मुझे कोई हैरानी भी नहीं हुई। मुझे उनकी उम्र का अंदाजा था। और दूसरी बात भारत के कितने लोग हैं, जो डॉ. अब्दुल कलाम के साथ हाथ मिलाकर सोते थे। डॉ. अब्दुल कलाम तो विचार थे, एक सोच थे, एक कर्म थे, जो न कभी मरते हैं, न कभी मिटते हैं। डॉ. अब्दुल कलाम सा देहांत तो नसीब से नसीब होता है। एक कर्मयोगी कर्म करते हुए जिन्दगी को अलविदा कहे, इससे अच्छा और क्या हो सकता है।
हिंदू मुस्लिम किसी दूसरे देश में होना लेना दोस्तो, अगर भारत में हैं तो डॉ. अब्दुल कलाम जैसे नागरिक हो जाए, यह भारत के लोग हैं, धर्म भी पूजते हैं, और कर्म भी।
चलते चलते
27/07/2015 को फेसबुक अपडेट
मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम मिसाल बन कर विदा हुए - ऐसी आत्माएं मरती कहाँ हैं - अमर हो जाती हैं - उनके विचार हमारे बीच रहेंगे जो उनके होने का अहसास दिलाएंगे ।।।
भगत सिंह का तो पूरा नहीं हुआ लेकिन 2020 बदलाव आपका सपना पूरा हो जाए तो अच्छा होगा और यह ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी आपके लिए। आप तो मिट्टी के असली हीरे थे।